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Saturday, 21 April 2012

वाशिंगटन के दबाव में कौशिक बसु ने सरकार की कलई खोल दी, बाजार में मच गया हड़कंप!


वाशिंगटन के दबाव में कौशिक बसु ने सरकार की कलई खोल दी, बाजार में मच गया हड़कंप!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु के बयान से बाजार में हड़कंप मच गया है।बाजार को भारी धक्का लगा और निफ्टी 5300 के नीचे लुढ़का। सेंसेक्स 130 अंक गिरकर 17373 और निफ्टी 41 अंक गिरकर 5291 पर बंद हुए।वैसे बताया जाता है कि बाजार में हड़बड़ाहट की वजह फ्रिक ट्रेड है।बड़े आर्थिक सुधारों पर वर्ष 2014 तक ब्रेक लगने और रिलायंस का मुनाफा घटने की आशंका बाजार पर भारी पड़ी। निवेशकों की मुनाफावसूली से दलाल स्ट्रीट में चार दिनों से जारी तेजी शुक्रवार को थम गई। बीते चार सत्रों के दौरान इसमें 289 अंक की तेजी आई थी।जाहिर है कि सारा खेल वाशिंगटन में हो रहा है , जहां वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी दौरे पर हैं और बाजार पूरी तरह खोलने, आर्थिक सुधार लागू करने के लिए उनपर दबाव का पहाड़ टूट पड़ा है। प्रणव दादा इस बोझ के आदी हैं। इंदिरा गांधी के सोवियत माडल के जमाने में भी वे वित्त मंत्री रहे हैं। उदारीकरण के नये जमाने में समाजवादी रूसी चोला उतारकर वे पूरी तरह अमेरिकी रंग में रंग गये हैं।

पर कौशिक बसु को इतना अनुभव नहीं है। दबाव में आकर उन्होंने सरकार की कलई ही खोल दी।बसु ने कल वाशिंगटन में कहा था कि वर्ष 2014 के आम चुनाव से पहले देश में आर्थिक सुधारों की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की संभावना नहीं है। आम चुनाव के बाद केंद्र में नई सरकार के गठन के उपरांत ही आर्थिक सुधारों की गाड़ी के फिर से आगे बढ़ने की उम्मीद है।उद्योग जगत को आशंका है कि चरमराती अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए सरकार की ओर से कई कदम उठाने जाने की संभावना कम हो गई है।कौशिक बसु ने कहा है कि भ्रष्टाचार के मामलों के लगातार उजागर होने के कारण निर्णय करने की प्रकिया प्रभावित हुई है। ऐसे मामले सामने आने के कारण अफसरों की मानसिककता पर असर पड़ता है और वे जोखिम उठाने से परहेज करते हैं।इसके अलावा गठबंधन सरकार में महंगाई और कृषि उत्पादन में गिरावट के चलते भी फैसले लेने की रफ्तार मंद पड़ी है।

बसु के 'देश में आर्थिक सुधारों की गाड़ी का पहिया राजनीति के दलदल में फंसने' संबंधी इस विवादास्पद बयान से सरकार के लिए भारी फजीहत उठ खड़ी हुई है।प्रधानमंत्री हर विफलता के लिए पहले से ही गठबंधन सरकार का रोना रोते हैं, अब वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने भी ऐसा ही कुछ कह दिया है।

दूसरी ओर जन लोकपाल, भ्रष्टाचार और काला धन के खिलाफ अलग-अलग अभियान चला रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे व योग गुरु बाबा रामदेव के एक साथ मिलकर आंदोलन करने के एलान के बाद सरकार की मुश्किलें बढ़ने की भी संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि अभी तक अन्ना हजारे व बाबा रामदेव अलग-अलग आंदोलन कर रहे थे, और जाकर एक हुए हैं।

अब तय है कि कौसिक बसु के इस बयान के बाद अन्ना ब्रिगेड का हौसला भी बुलंद हो गया।1 मई से अन्ना हजारे महाराष्ट्र के शिरडी से अपना आंदोलन शुरू करेंगे। वहीं, बाबा रामदेव छत्तीसगढ़ के दुर्ग से। अन्ना ने कहा कि उनका आंदोलन महाराष्ट्र के 35 जिलों में चलेगा। दोनों करीब महीने भर बाद 3 जून को दिल्ली में एक साथ एक दिन के सांकेतिक अनशन पर बैठेंगे।खबर है कि दिल्ली  के अनशन में श्रीश्री रविशंकर भी शामिल हो सकते हैं। बाबा रामदेव के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में अन्ना हजारे ने केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का आरोप लगाया।उन्होंने कहा कि उनका इरादा सरकार गिराना नहीं है, लेकिन यदि लोगों के आंदोलन का नतीजा इस रूप में सामने आता है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।बाबा रामदेव ने कहा, मौजूदा सरकार को शासन का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, "यह केवल भारत में हो सकता है कि भ्रष्टाचार के कई मामलों के बाद भी सरकार सत्ता में बनी रहे।"बाबा रामदेव ने कहा, "समय बदलेगा और एक ऐसी सरकार सत्ता में आएगी, जो वास्तव में प्रभावी लोकपाल चाहेगी।"

सीआईआई के मुताबिक विकास और उद्योग को बढ़ावा सरकार को आर्थिक सुधार लाने चाहिए। वहीं, अमेरिका के उद्योग जगत ने भी बराक ओबामा को कहा है कि भारत सरकार के फैसलों से निवेश का माहौल बिगड़ रहा है।योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का कहना है कि अगले 2 साल तक कोई सुधार नहीं होगा ये कहना गलत है। लंबे समय से कई अटके पड़े रिफॉर्म जरूर पूरे होंगे। रिफॉर्म के लिए सरकार को सहमति बनानी होगी।लोकसभा के आगामी चुनावों से पहले आर्थिक सुधारों की दिशा में किसी बडे कदम की असंभावना के बारे में मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु के वक्तव्य के बीच केन्द्र सरकार ने आज दावा किया कि दुनिया भर में आर्थिक मंदी के बावजूद भारत में वित्तीय सुधारों की कई पहलकदमियां जारी हैं।

कमजोर अंतर्राष्ट्रीय संकेतों की वजह से घरेलू बाजार भी गिरावट के साथ खुले। निवेशकों में जोश की कमी दिखी और बाजार सीमित दायरे में ही घूमते नजर आए।यूरोपीय बाजारों में मिला-जुला कारोबार होने की वजह से घरेलू बाजारों में खरीदारी नहीं लौट पाई। लेकिन, दोपहर 2 बजे बाजार में तेज गिरावट आई।भारी गिरावट की वजह रही एक गलत ट्रेड। सेंसेक्स 273 अंक और निफ्टी 87 अंक टूटे। निफ्टी 5300 के अहम स्तर के नीचे चला गया। हालांकि, कारोबार के आखिर में बाजार संभलते नजर आए।प्रधान उधारी दर में कटौती के कारण बैंकों का मार्जिन घट सकता है, खासतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का। दरअसल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने मार्च में जमा दरों में इजाफा किया था, जिसे बैंकों को कम से कम एक साल तक बरकरार रखना पड़ेगा। हालांकि रिजर्व बैंक द्वारा रीपो दर में कटौती के बाद ही बैंकों ने जमा दरें घटानी शुरू कर दी हैं।देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने अपने ग्राहकों को खासा निराश किया है। बैंक ने कहा है कि एसबीआई बेस रेट और बीपीएलआर में कोई कटौती नहीं करने जा रही है। एक अन्य सरकारी बैंक बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी इस मामले में शनिवार को फैसला लेने की बात की है। उधर, सिंडिकेट बैंक ने अपने बेस रेट में 0.25 फीसदी की कटौती का फैसला किया है। 0.25 फीसदी की कटौती के बाद सिंडिकेट बैंक का बेस रेट 10.5 फीसदी हो जाएगा। वहीं बैंक ने बीपीएलआर भी 0.25 फीसदी घटाकर 14.75 फीसदी करने का ऐलान किया है। भारत सरकार ने आय कर अधिनियम में पिछली तारीख से किए जाने वाले संशोधन पर अपने रुख में बदलाव से स्पष्ट तौर पर इनकार करते हुए वाशिंगटन को साफ कर दिया है कि भारत स्थित परिसंपत्ति से किसी कंपनी को होने वाले पूंजीगत फायदे के लिए भारत या मूल देश (जहां की कंपनी है) में कर का भुगतान करना पड़ेगा। इस महीने की शुरुआत में भारत इस मामले को लेकर ब्रिटेन के समक्ष भी अपना रुख स्पष्ट कर चुका है।

हालांकि इस बीच बसु ने वाशिंगटन में आर्थिक सुधारों को लेकर दिए गए अपने बयानों पर सफाई दी है।उनका कहना था कि साल 2014 की बात उन्होंने यूरोपियन यूनियन के संबंध में कही थी, लेकिन इसे तोड़ मरोड़ कर भारत के संदर्भ में बताया जा रहा है। कौशिक बसु ने सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि आर्थिक घोटाले व गठबंधन की सरकार देश में आर्थिक सुधारों में रोड़ा बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा फैसला नहीं लेने का खामियाजा देश को आने वाले और दो साल तक भुगतना पड़ेगा। कौशिक बसु ने कहा कि एक के बाद एक हो रहे घोटाले से देश पर बुरा असर पड़ा है।

अब विपक्ष की मजबूरी है कि आर्थिक सुधारों के प्रति वह अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करें। एक तो वाशिंगटन से बाहरी दबाव तो दूसरी ओर ​
​उद्योग जगत को खश रखने की मजबूरी।केन्द्र के कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) पर राष्ट्रीय आर्थिक संकट के लिए दूसरों पर दोषारोपण करने का आरोप लगाते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने शुक्रवार को कहा कि वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने बड़ी हिम्मत कर सच्चाई कही है कि वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनावों से पहले देश में बड़े आर्थिक सुधार होने की संभावना नहीं है।मालूम हो कि यूपीए-2 यानी मनमोहन सिंह के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद आर्थिक तरक्की थम गई है। विकास दर की रफ्तार मई 2009 से अब तक 10 फीसदी से घटकर 6 फीसदी तक पहूंच गई है। सरकार सब्सिडी पर अपनी जीडीपी का 3 फीसदी पैसा खर्च कर रही है जो बहुत ज्यादा है। यानी सब्सिडी को घटाने की जरूरत है जो गठबंधन की वजह से मुमकिन नहीं हो पा रहा है।सरकार की कमाई का 16 फीसदी हिस्सा सब्सिडी देने में खर्च हो जाता है। इनमें मनरेगा, खाद, भोजन और पेट्रोल सब्सिडी शामिल है। सरकार का वित्तिय घाटा लगातारा बढ़ रहा है। पहले ये घाटा जीडीपी के 4.5 फीसदी था जो बढ़कर 6.5 फीसदी पहुंच गया है। ओएनजीसी का विनिवेश भी बुरी तरह फेल हो गया और ऐसा क्यों हुआ इसका जवाब सरकार के पास नही है।

सीआईआई के नये अध्यक्ष ने आर्थिक सुधारों की सर्वोच्च प्राथमिकता बताकर सरकार और विपक्ष दोनों पर दबाव और बढ़ा दिया है।गोदरेज समूह के चेयरमैन अदि गोदरेज को सीआईआई का नया अध्यक्ष बनाया गया है। सीआईआई का पद संभालने के बाद अदि गोदरेज का कहना है कि उनका पूरा ध्यान आर्थिक सुधारों पर होगा।अदि गोदरेज के मुताबिक सुधार प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए सीआईआई सरकार की हरसंभव मदद करने को तैयार है। वहीं इस साल ग्रोथ में बढ़ोतरी सीआईआई का प्रमुख एजेंडा होगा।अदि का मानना है कि इस तिमाही में आरबीआई द्वारा रेपो रेट में कटौती करना काफी सकारात्मक कदम है, साथ ही उम्मीद है आगे भी प्रमुख दरों में कटौती हो सकती है। वहीं रिजर्व बैंक को बाजार में लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए सीआरआर में कटौती करनी चाहिए।अदि गोदरेज का कहना है कि इस साल जीएसटी लागू किए जाने की उम्मीद है। वहीं टैक्स कानून में बदलाव से सरकार की छवि को धक्का लगा है, ऐसे में सरकार को टैक्स नियमों में सुधार करने जैसे कदम उठाने की जरूरत है।

कौशिक बसु ने अपनी सफाई पेश करते हुए कहा कि साल 2014 का महत्व इसलिए है क्योंकि इस साल यूरोपियन यूनियन के देश अपने 1.3 ट्रिलियन के कर्ज को चुकाएंगे, जिससे दुनिया को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।बसु का कहना है कि ऐसी स्थिति में भारत अहम रोल अदा कर सकता है, क्यों भारत एक तेज़ गति से विकास कर रहा देश है, यहां तक की चीन से भी अधिक रफ्तार से भारत विकास कर रहा है।हालांकि, उन्होंने एक बार फिर माना है कि गठबंधन सरकार में फैसले लेने में दिक्कत आती और एक पार्टी की सरकार में ऐसी परेशानी नहीं आती है।उनका कहना था कि अगर अगले आम चुनाव में एक पार्टी की सरकार बनती है तो आर्थिक सुधारों में आसानी होगी।

कौशिक बसु ने अपनी राय को भारत सरकार के राय से अलग करते हुए कहा, "मैं मुख्य आर्थिक सलाहकार होने के नाते कभी-कभी अपनी राय रखता रहता हूं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि मेरी राय वित्त मंत्रालय और भारत सरकार की राय हो।"

केंद्रीय मंत्रियों और योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने सरकार का बचाव करने की कोशिश की है।बसु की राय में कई ऐसे सुधार हैं, जिनमें तेजी से आगे बढ़ना जरूरी है। रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश को मंजूरी देना भी ऐसा ही एक महत्वपूर्ण सुधार है, जो अटका पड़ा है। कौशिक बसु ने ये बातें अमेरिका के वॉशिंगटन में इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक की सालाना बैठक के दौरान कही। बसु इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के साथ अमेरिका गए हुए हैं।मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु के बयान पर फिक्की के महासचिव राजीव कुमार ने भी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि अगर कौशिक बसु ने ऐसा कहा है जो उद्योग जगत के लिए ठीक नहीं है। उनके मुताबिक आर्थिक विकास में स्थिरता आई है।

प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री वी नारायण सामी ने बसु के बयान को उनकी व्यक्तिगत राय बताते हुए कहा कि वास्तव में सरकार ने वित्तीय सुधार और ग्रामीण व शहरी विकास के लिए कई सक्रिय कदम उठाए हैं। सामी ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में देश बेहतर से बेहतर विकास का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में प्रयास कर रहा है।उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व के प्रयासों का ही फल है कि विश्व में आर्थिक मंदी के कारण जहां दुनिया की बड़ी और मजदूत अर्थव्यवस्थाएं धराशाई हो रही हैं, वहीं हमारा देश तरक्की की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने बसु के बयान पर टिप्पणी करने से इंकार किया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में बसु से ही पूछा जाना चाहिए।सिब्बल ने कहा कि यदि बसु ने ऐसा बयान दिया है तो इस पर सवाल उन्हीं से पूछा जाना चाहिए। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि देश में नीति निर्धारण एवं फैसला लेने में गतिरोध संबंधी बसु के बयान से वह सहमत नहीं हैं।

इस बीच सरकार ने शुक्रवार को 586.137 करोड़ रुपए के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के 22 प्रस्तावों को मंजूरी दे दी।केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि विदेशी निवेश सम्वर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) द्वारा 30 मार्च, 2012 की बैठक की गई सिफारिशों के बाद ही इन प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है।

एफडीआई को, विदेशी संस्थागत निवेश की तुलना में ज्यादा टिकाऊं माना जाता है। सरकार ने शांता बायोटेकि्न क के 514 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।इस राशि के जरिए कम्पनी जैवप्रौद्योगिकी से जुड़े उत्पादों और अन्य जैव उत्पादों के अनुसंधान, विकास, विनिर्माण और विपणन से सम्बंधित गतिविधियों के लिए ब्राउनफील्ड फार्मा सेक्टर में अपनी विदेशी हिस्सेदारी बढ़ाएगी।

सरकार ने राडार प्रणालियों, और विभिन्न तरह के रक्षा इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों के विकास, विनिर्माण और सेवा सहायता मुहैया कराने के लिए एक संयुक्त उपक्रम स्थापित करने के लिए महिंदा एंड महिंद्रा के 25.99 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी।

सरकार ने स्प्रिंगर एडिटोरियल सर्विसिस के 12.87 करोड़ रुपए के प्रस्ताव को भी अनुमति दे दी।

इसके जरिए कम्पनी प्रकाशन सेवाओं, सामग्री तैयार करने, सामग्री प्रबंधन और सामग्री की आउटसोर्सिग सहित अन्य कामों के लिए 100 प्रतिशत तक विदेशी हिस्सेदारी बढ़ाएगी।

सरकार ने हालांकि तारा एयरोस्पेस सिस्टम्स, अल शकूर कम्पनी फॉर इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन और आर्डेन हेल्थ केयर ग्लोबल जैसी कम्पनियों के 18 प्रस्तावों को खारिज कर दिया।

सरकार ने वेर्गा अटैचमेंट्स, क्वेस्ट ग्लोबल मैन्युफैक्च रिंग और योरनेस्ट एंजेल फंड ट्रस्ट के पांच प्रस्तावों को भी खारिज कर दिया. निकित इन्वेस्टमेंट्स के एक प्रस्ताव को एजेंडे से ही हटा लिया गया है।


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