Pages

Free counters!
FollowLike Share It

Tuesday, 20 March 2012

प्रणव बाजार को राजनीतिक बाध्यताएं गिना रहे हैं तो क्या कर रहे हैं शरद पवार?सरकार कारपोरेट इंडिया का एजंडा संसद और संविधान को बाईपास करके लागू करने की पूरी तैयारी में!


प्रणव बाजार को राजनीतिक बाध्यताएं गिना रहे हैं तो क्या कर रहे हैं शरद पवार?सरकार कारपोरेट इंडिया का एजंडा संसद और संविधान को बाईपास करके लागू करने की पूरी तैयारी में!

मुंबई से  एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

आईसीसी के अध्यक्ष शरद पवार ने भी सचिन तेंदुलकर को बधाई संदेश भेजा है। शरद पवार भारत के केन्द्रीय मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री हैं एवं महाराष्ट्र के प्रमुख नेताओं में से हैं।पवार इंटरनेशनल क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड  के अध्यक्ष भी हैं।सरकार कारपोरेट इंडिया का एजंडा संसद और संविधान को बाईपास करके लागू करने की पूरी तैयारी में है। बजट के दिन से गिरते पड़ते​ ​ शेयर बाजार का मूड दुरुस्त करने के लिए सेनसेक्स वित्तमंत्री के सार्वजनिक बयानों का यही सार है। प्रणव मुखर्जी रो गाकर अपनी राजनीतिक बाध्यताओं का बयान कर रहे हैं। जबकि बजट के छुपाये जा रहे तथ्यों की प्याज परते खुलने से साफ है कि अनिद्रा के मरीज वित्तमंत्री ने आम जनता को जितनी सब्सिडी दी है, उससे दोगुणा ज्याडा उद्योग जगत की दी है। जीसीटी और डीटीसी,मल्टा ब्रांड रीटेल एफडीआई, विमानन उद्योग ​​में एफडीआई जैसै मामले अब बजट सत्र के बाद निपटा दिये जायेंगे। बजट में कंपनियों पर टैक्स का बोझ नहीं लदा, उत्पाद सेवा सीमा शुल्कों में वृद्धि का खामियाजा आम जनता को ही भुगतना होगा। जबकि ऊर्जा,खनन और विनिर्माण क्षेत्रों को दी गयी छूट से कंपनियां मालामाल हो रही​ ​ हैं। नवरत्न कंपनियों कीस  हिस्सेदारी की नीलामी होने ही वाली है। कारपोरेट लाबिइंग और बाजार का दबाव मगर बजट के बाद लगातार​ ​ बढ़ा है। सुधारों की गाड़ी बीच रास्ते ब्रेकफेल जरूर है, पर हाईवे पर रप्तार पकड़ने में देरी कितनी लगेगी, प्रणव बाजार को यही समझा रहे है। ​​कृषि विकास के फर्जी आंकड़ों और हरित क्रांति के छलावे के बीच देहात के लिए जो भी सरकारी खर्च है, उसका मकसद बाजार का विस्तार​ ​ करना ही है। विदेशी कर्ज बढ़ रहा है और कंपनियों के बैल आउट जारी है। राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है और कृषि विकास दर लगातार गिर रही है। ऐसे में क्या कर रहे हैं मराठा मानुष शरद पवार, जिनके लिए खेती की हर मर्ज की दवा आयात निर्यात का खेल है। जबकि उनके गृहराज्य महाराष्ट्र समेत बाकी देश में किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला थम ही नहीं रहा। ऐसा भी नही कि सचिन के महा शतक या कोहली के विराटत्व में​ ​ उनका कोई भारी योगदान हो। खेती और किसान तबाह होते रहे, और जी हां, सम्राट नीरो के अवतार भारत के कृषि मंत्री आईपीएल चीयर ​​लीडर की भूमिका निभाते रहे। अब तो प्रधानमंत्रित्व के मजबूत दावेदार नरेंद्र मोदी भी पूछने लगे हैं कि विदर्भ में किसान आत्महत्या​ ​ क्यों कर रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने आरोप लगाया कि देश में हो रही किसानों की आत्महत्या के लिए केंद्र जिम्मेदार है।उन्होंने कहा कि सिंचाई को केंद्र की समवर्ती सूची में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे राज्य एवं केंद्र सरकारें सिंचाई के संसाधन बढ़ा सकें। इसके अलावा किसानों को खाद- बीज समय पर मिलने चाहिए। सत्ता वर्ग के लिए कृषि संकट अब पहेली बूझने जैसा मनोरंजन हो गया है।जैसा कि क्रिकेट।

वर्ष 2012-13 के केंद्रीय बजट में वित्तीय मोर्चे पर सरकार के समक्ष आने वाली अड़चनों को दूर करने के लिये कोई ठोस समाधान पेश नहीं किये जाने से सरकार की वित्तीय साख गिर सकती है। वैश्विक साख निर्धारण एजेंसी मूडीज ने अपने ताजा नोट में इस तरह की आशंका व्यक्त की है। एजेंसी के अनुसार सरकारी राजस्व के लिये कंपनी कर पर अधिक निर्भरता तथा उपभोक्ता वस्तु एवं विनिमय दर की बढ़ती संवेदनशीलता से सरकार की ऋण साख कमजोर पड़ी है। राजनीतिक अनिश्चितता के माहौल के बीच मुनाफावसूली का जोर रहने से घरेलू शेयर बाजारों में एक फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई। बीएसई का सेंसेक्स 192.83 अंक यानी 1.10 प्रतिशत नीचे फिसलकर 17273.37 अंक पर और एनएसई का निफ्टी 60.85 अंक नीचे 5257.05 अंक पर बंद हुआ। बीएसई समूह में एफएमसीजी और एचसी वर्ग को छोड़कर अन्य सभी वर्ग लाल निशान पर रहे।

हालत यह है कि सुधारों की गाड़ी राजनीतिक बाध्यताओं के बावजूद जारी रहेगी। बाजार फिर चंगा होगा। लेकिन मारे जायेंगे किसान।मसलन पेट्रोलियम पदार्थों पर लगातार बढ़ती सब्सिडी से चिंतित वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सोमवार को कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के लगातार बढ़ते दाम के मद्देनजर सरकार बजट सत्र के बाद इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों से बातचीत करेगी। सब्सिडी नियंत्रण के लिये राजनीतिक आमसहमति बनाना आवश्यक है। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी आखिर अपने मकसद में कामयाब हो ही गईं। पहले तो उन्होंने रेल मंत्री पद से दिनेश त्रिवेदी की छुट्टी करने और अपने करीबी मुकुल रॉय को रेल मंत्री की नई जिम्मेदारी सौंपने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मजबूर किया। अब वह यात्री किराया वापस लेने के लिए सरकार पर दबाव बना रही हैं।ममता की मुराद पूरी हो गयी। श्रीलंका में मानवाधिकार अपराधों के मामले में नंदा प्रस्ताव को समर्थन के साथ कांग्रेस ने दक्षिण भारत से​ ​ द्रमुक अन्नाद्रमुक डाबल लाइफ लाइन जिंदा कर दी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को कहा कि उनकी सरकार संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी) में श्रीलंका के खिलाफ अमेरिका द्वारा लाए जाने वाले प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करना चाहती है। मायावती के तृणमूल कांग्रेस के बराबर १९ सांसद हैं। महज उन्हें पद देकर कांग्रेस कभी भी संकट का हल निकाल सकती है। मुलायम से अलग सौदेबाजी हो रही है। हालांकि समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने उनकी पार्टी के केंद्र की संप्रग सरकार में शामिल होने को लेकर चल रही अटकलों पर विराम लगाते हुए सोमवार को यहां कहा कि सपा का केंद्र सरकार में शामिल होने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। बहरहाल राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर भाजपा और लेफ्ट के संशोधन आसानी से खारिज हो गये। इस बीच चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार इम्पोर्टर देश बन गया है। भारत दुनिया भर में होने वाली हथियारों की बिक्री का 10 फीसदी आर्म्स खरीदता है। दूसरे नंबर पर साउथ कोरिया सबसे ज्यादा हथियार इम्पोर्ट करवाता है, जबकि तीसरे नंबर पर पाकिस्तान है। चीन अब हथियार एक्सपोर्ट यानी निर्यात करने वाले देशों की फेहरिस्त में तेजी से ऊपर बढ़ रहा है। इस लिस्ट में वह छठे नंबर पर है। अब सुधारों की गाड़ी का ट्रेफिक साफ नजर आने लगा है। पहले ही कई मोर्चों पर जूझ रही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के लिए अब ऐसी खबर है, जो अच्छी भी है और बुरी भी। अच्छी खबर यह है कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 7 फीसदी घटी है और बुरी खबर है कि तेंडुलकर समिति के नए गरीबी अनुमान के आंकड़ों में गरीबी रेखा अब 32 रुपये प्रतिदिन से घटकर 28 रुपये प्रतिदिन हो गई है ।अड़चनें मगर तेजी से खत्म हो रही हैं । जैसे तमिलनाडु सरकार ने 2000 मेगावाट क्षमता वाली कुडनकुलम परमाणु बिजली संयंत्र को हरी झंडी दे दी है। इसके बाद से निर्माण स्थल पर अब काम शुरू किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री जे जयललिता की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इस विवादास्पद परियोजना को हरी झंडी दी गई। साथ ही राज्य सरकार ने इस संयंत्र के आसपास के इलाके के विकास के लिए 500 करोड़ रुपये के विशेष विकास पैकेज दिए जाने की घोषणा की है।जाहिर है कि उद्योग को तो प्रणव बाबू खुश कर देंगे देर ​​सवेर। किसानों को क्या मिलेगा?

कृषि क्षेत्र में 2.5 प्रतिशत की ग्रोथ से सरकार को क्या फर्क पड़ा और शरद पवार को? वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को जो बजट पेश किया उसमें कृषि क्षेत्र के बजट में सिर्फ 18 प्रतिशत की वृद्धि की गई है।मुखर्जी ने अगले वित्त वर्ष के लिए कृषि कर्ज वितरण के लक्ष्य को 1,00,000 करोड़ रुपये बढ़ाकर 5,75,000 रुपये किए जाने की घोषणा की है। साथ ही कृषि क्षेत्र के लिए खर्च में लगभग 3,000 करोड़ रुपये का इजाफा किए जाने का प्रस्ताव किया गया।मुखर्जी ने 2012-13 के अपने बजट भाषण में कहा, 'सरकार के लिए कृषि प्राथमिक क्षेत्र है। कृषि और सहकारिता के लिए कुल योजनागत व्यय 2012-13 में 18 प्रतिशत बढ़ाकर 20,208 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है। वित्त वर्ष 2011-12 में यह 17,123 करोड़ रुपये था।' देश के पूर्वी हिस्से में हरित क्रांति लाने की योजना के लिए आवंटन अगले वित्त वर्ष के लिये 600 करोड़ रुपये बढ़ाकर 1,000 करोड़ रुपये किया गया है। इस कार्यक्रम की सफलता और 2011-12 के फसल वर्ष में 70 लाख टन अतिरिक्त धान उत्पादन को देखते हुए आवंटन राशि बढ़ाई गई है। गौरतलब है कि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान २० वर्षों में ३० प्रतिशत से घटकर १४.५ प्रतिशत रह गया है और प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता में कमी आई है लेकिन देश का ५२ प्रतिशत कार्यबल आजीविका के लिए आज भी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। कृषि मंत्रालय के वित्त वर्ष २०११-१२ की रिपोर्ट के अनुसार, एक सामान्य व्यक्ति आज भी अपने खर्च का आधा हिस्सा खाद्य पदार्थ पर व्यय करता है जबकि भारत के कार्यबल का आधा भाग अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र से जु़ड़ा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में ८ से ९ प्रतिशत की वृद्धि दर गरीबी को कम करने में तब तक अधिक योगदान नहीं कर सकती जब तक कृषि वृद्धि में तेजी नहीं आती है। देश में एक हेक्टेयर से कम जोत वाले किसान करीब ६४ प्रतिशत हैं जबकि १८ प्रतिशत एक से दो हेक्टेयर जोत वाले और १६ प्रतिशत दो हेक्टेयर से अधिक और १० हेक्टेयर से कम जोत वाले किसान हैं। वहीं, १० हेक्टेयर या उससे अधिक जोत वाले एक प्रतिशत से कम किसान हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जीडीपी में कृषि के घटते अंश, कृषि पर जनसंख्या के लगातार ब़ढ़ते दबाव और जमीन के लगातार छोटे होते आकार के कारण प्रति परिवार कृषि भूमि क्षेत्र की उपलब्धता घटी है।

दिल्ली में बैठनेवालों ने पूरे विश्व के व्यापार क्षेत्र में भारत की विश्वसनीयता जीरो कर दी है। यह आरोप गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को पुणे में एक समारोह में लगाया। श्री पूना गुजराती बंधु समाज द्वारा मोदी को गुजरात रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सम्मान के पश्चात मोदी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि गुजरात के कृषि क्षेत्र का विकास दस वर्षो में 11 फीसदी से अधिक बढ़ा है।वहीं देश का कुल कृषि विकास 4 फीसदी तक भी नहीं पहुंच पाया है। गुजरात के कपास किसानों के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक बिकता है। यह देख दिल्ली में बैठनेवालों को परेशानी हो रही है। क्योंकि वे विचार कर रहे हैं कि अन्य राज्यों में किसानों द्वारा आत्महत्याएं की जा रही हैं, वहीं गुजरात का किसान इतनी प्रगति कैसे कर रहा है।

सातवीं बार लोकसभा में बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कृषि विकास पर जोर देने की बात कही है। वित्त मंत्री ने कहा है कि देश में अनाज का स्टोरेज बढ़ाने के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे। वहीं किसानों के हित का पूरा ख्याल रखा जाएगा।प्रणव मुखर्जी ने आहार सुरक्षा का फायदा लोगों तक पहुंचाने के लिए नेशनल इंफो यूटिलिटी बनाने की घोषणा भी की है। साथ ही फूड प्रोसेसिंग के लिए राष्ट्रीय मिशन तैयार करने का भरोसा भी वित्त मंत्री ने दिया है।

कृषि मंत्री शरद पवार उद्योग को राहत देने और गन्ना बकाये का भुगतान करने के लिए अतिरिक्त 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति चाह रहे हैं। हालांकि मिलों को पहले ही 20 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी जा चुकी है। गन्ना भुगतान का बकाया करीब 6,000 करोड़ रुपये पहुंच चुका है।पवार ने इस माह के शुरू में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर एथेनॉल की कीमतें जल्द से जल्द तय करने का भी आग्रह किया है। पवार ने बताया कि फिलहाल मिलों को प्रति क्विंटल चीनी की बिक्री पर लागत के मुकाबले 200 से 400 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। पवार ने अपने पत्र में कहा है, 'अतिरिक्त 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति मिलने से मिलों के पास नकदी का प्रवाह बढ़ेगा, जिससे वह गन्ने का बकाया भुगतान करने में सक्षम हो सकेंगी। निर्यात विंडो मई-जून तक ही खुली है, ऐसे में निर्यात पर जल्द से जल्द निर्णय लिया जाना चाहिए।'वाणिज्य मंत्रालय द्वारा कपास के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने के खिलाफ कृषि मंत्री शरद पवार खुल कर सामने आ गए। इस मुद्दे पर अपना प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हस्तक्षेप की मांग करने के बाद पवार ने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय द्वारा इस मामले में मुझसे कोई सलाह-मश्विरा किए बिना ही फैसला लिया गया।बाद में केंद्र ने कपास निर्यात पर पाबंदी हटा दी।फूड सिक्युरिटी बिल को अमली जामा पहनाने में पहले दिक्कतों का हवाला देने वाले कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि अनाज की रेकॉर्ड पैदावार की वजह से प्रस्तावित कानून को लागू करने में कोई समस्या पेश नहीं आनी चाहिए।

पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का आंदोलन छाया हुआ था उसी समय विदर्भ के 51 किसानों ने मौत को गले लगाया।नागपुर से वर्धा होते हुये यवतमाल पहूंचने पर किसान को बदहाली सामने आ जाती है। होशंगाबाद जिले के किसान भी हताशा में मौत को गले लगा रहे हैं। महाराष्ट्र की संतरा बेल्ट से लेकर कपास बेल्ट तक संकट में है।  महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण एक ओर विदर्भ को सर्वाधिक प्राथमिकता देने की बात कहते हैं, वहीं दूसरी ओर विदर्भ के किसानों के एक संगठन ने शनिवार को आरोप लगाया कि अधिकारियों ने कटाई के मौसम के ठीक पहले विदर्भ के किसानों के ट्रैक्टर जब्त कर लिए हैं और क्षेत्र की बिजली काट दी है।विदर्भ किसानों की आत्महत्या की घटना के लिए पिछले कुछ सालों से सुर्खियों में रहा है। विदर्भ जन आंदोलन समिति के प्रमुख किशोर तिवारी ने कहा कि राज्य के भूमि विकास बैंक ने ऋण लेने वाले किसानों के लगभग तीन दर्जन ट्रैक्टर जब्त कर लिए हैं। उधर बिजली विभाग ने बिल न अदा कर सकने वाले लगभग 1.4 लाख किसानों को बिजली की आपूर्ति काट दी है।आमिर खान की फिल्म 'पीपली लाइव' में किसानों की आत्महत्या के मुद्दे को पेश किए जाने के तरीके पर आपत्ति जताते हुए विदर्भ जनांदोलन समिति ने महाराष्ट्र सरकार से इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।कृषि मंत्री शरद पवार ने शुक्रवार को राज्यसभा को बताया कि विदर्भ में वर्ष 2010 में 275 किसानों ने और 2009 में 273 किसानों ने आत्महत्या की। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र सरकार से मिली खबर के अनुसार, वर्ष 2001 से 30 नवंबर 2009 तक आत्महत्या करने वाले किसानो में से 11.39 फीसदी अनुसूचित जाति के, 8.02 फीसदी अनुसूचित जनजाति के, 16.06 फीसदी खानाबदोश और गैर अधिसूचित जाति के, 52.74 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग के और 11.25 फीसदी अन्य किसान थे।

किसानों की आत्माहत्या के कोई अलग आंकड़े या कारणों का रिकॉर्ड नहीं रखा जाता।इसलिए सही आंकड़े कभी मालूम नहीं होसकते। हाल में बंगाल में किसानों ने आत्महत्या कि तो किसानों की सबसे बड़ी हमदर्द बतौर ​​मशहूर ममता बनर्जी ने उन्हों किसान मानने से ही इंकार कर दिया।व‌र्द्धमान जिले में किसानों द्वारा आत्महत्या करने की घटना लगातार जारी है। ऐसी घटना कम होने का नाम नहीं ले रही है। वहीं राजनीतिक दल किसानों की आत्महत्या पर भी राजनीतिक रोटी सेंकने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। विरोधी दल इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार बताने में जुटी है। वैसे राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद किसानों में एक उम्मीद जगी थी कि नई सरकार किसानों के हित के लिए भी काम करेगी। धान की पैदावार होने के बाद सरकार की ओर से धान का सहायक मूल्य भी निर्धारित किया गया। इसके बावजूद भी कई इलाकों में धान की बिक्री में किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ा। व‌र्द्धमान जिला भी इससे अछूता नहीं रहा। यहां भी धान की बिक्री को लेकर किसानों को आंदोलन का रास्ता भी अपनाना पड़ा। वहीं अब किसानों द्वारा आत्महत्या करने की घटना भी बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि विगत दो माह के दरम्यान व‌र्द्धमान जिले के आधा दर्जन किसानों ने आत्महत्या की। नवंबर माह में भातार के काला टिकुरी गांव के सफर अल्ली मोल्ला ने आत्महत्या की थी। वहीं बीस दिसंबर को भातार के बेरेंडा निवासी वरूण पाल ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया। एक जनवरी को मेमारी के राजपुर गांव निवासी किसान ओमियो साहा ने भी आत्महत्या की। उसके बाद तेरह नवंबर को व‌र्द्धमान के पूर्वस्थली निवासी तापस माझी ने भी जहर पीकर आत्महत्या का रास्ता अपनाया। परिजनों ने आरोप लगाया कि महाजनी ऋण नहीं चुका पाने के कारण इन लोगों ने आत्महत्या की।  शरद पवार तो इस सिलसिले में जुबान पर ताला लगाये बैठे हैं।

मध्य प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का आरोप है कि राज्य सरकार खेती को फायदे का धंधा बनाने की बात करती है मगर हकीकत इससे जुदा है। यही कारण है कि राज्य में बीते तीन वर्षो में 6782 किसानों ने मौत को गले लगाया है।मध्य प्रदेश में हर दिन औसतन तीन किसान आत्महत्या करते हैं। पिछले तीन साल में 3936 किसानों ने आत्महत्या कर ली। राज्य विधानसभा में गुरुवार को विधायक हेमराज कल्पोनी के सवाल के जवाब में गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने कहा कि जनवरी, 2009 से 15 मार्च, 2012 के दौरान यानी 1170 दिन में कुल 3936 किसानों ने कर्ज अदायगी न कर पाने और पारिवारिक कलह के कारण आत्महत्या कर ली।गृह मंत्री के जवाब के आधार पर देखा जाए तो राज्य में हर महीने 100 किसान और हर दिन तीन किसान आत्महत्या कर रहे हैं। बीते तीन साल में सबसे अधिक 319 किसानों ने सीधी जिले में आत्महत्या की। रीवा में 317, खरगौन में 256 और सतना में 232 किसानों ने आत्महत्या की।

अभी ज्यादा समय नहीं हुआ जब देसी गोबर खाद, देसी बीज और हल-बैल के माध्यम से किसान खेती कर रहे थे। खेती की लागत बढ़ रही है और उपज घट रही है। कभी ज्यादा, कभी कम या अनियमित वर्षा से फसलें प्रभावित हो रही हैं।  देश के शीर्ष पांच राज्यों में जहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या कर रहे हैं ।राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकडों के मुताबिक यहां वर्ष 2004 से 2009 के दरम्यान 8298 किसानों ने आत्महत्या की है।राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 में देश भर में सवा लाख से अधिक लोगों ने आत्माहत्या की जिनमें 17 हज़ार से अधिक किसान थे।ब्यूरो ने कहा है कि सबसे ज्यादा किसानों ने महाराष्ट्र में आत्माहत्या की और आंध्र प्रदेश दूसरे नंबर पर रहा।2009 में महाराष्ट्र में 2872 जबकि आंध्र प्रदेश में 2474 किसानों ने खुदकुशी की।खेती में महंगे बीज, रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का बेजा इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही पूरी खेती मशीनीकृत हो गई है जो ट्रैक्टर और हार्वेस्टर से होती है। इन सबसे लागत बहुत बढ़ गई है। इस धंधे में कई देशी-विदेशी कंपनियां तो मालामाल हो रही हैं लेकिन किसान कंगाल होते जा रहे हैं।रोटी-रोजगार की तलाश में लाखों की तादाद में किसान-मजदूर महानगरों को पलायन कर गए हैं। बंगाल से लेकर महारास्त्र के विदर्भ तक । कही पर खाद ,पानी और बिजली की मांग करता किसान पुलिस की लाठी खाता है तो कही पर संघर्ष का रास्ता छोड़ कर ख़ुदकुशी करने पर मजबूर हो जाता है ।

* किसानों की आत्महत्या की घटनाएं महाराष्ट्र,कर्नाटक,केरल,आंध्रप्रदेश,पंजाब और मध्यप्रदेश(इसमें छत्तीसगढ़ शामिल है) में हुईं।

   * साल १९९७ से लेकर २००६ तक यानी १० साल की अवधि में भारत में १६६३०४ किसानों ने आत्महत्या की। यदि हम अवधि को बढ़ाकर १२ साल का करते हैं यानी साल १९९५ से २००६ के बीच की अवधि का आकलन करते हैं तो पता चलेगा कि इस अवधि में लगभग २ लाख किसानों ने आत्महत्या की।

   * आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से पिछले एक दशक में औसतन सोलह हजार किसानों ने हर साल आत्महत्या की। आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी जाहिर होगा कि देश में आत्महत्या करने वाला हर सांतवां व्यक्ति किसान था।

   * साल १९९८ में किसानों की आत्महत्या की संख्या में तेज बढ़ोत्तरी हुई। साल १९९७ के मुकाबले साल १९९८ में किसानों की आत्महत्या में १४ फीसदी का इजाफा हुआ और अगले तीन सालों यानी साल २००१ तक हर साल लगभग सोलह हजार किसानों ने आत्महत्या की।

   * साल २००२ से २००६ के बीच यानी कुल पांच साल की अवधि पर नजर रखें तो पता चलेगा कि हर साल औसतन १७५१३ किसानों ने आत्महत्या की और यह संख्या साल २००२ से पहले के पांच सालों में हुई किसान-आत्महत्या के सालाना औसत(१५७४७) से बहुत ज्यादा है। साल १९९७ से २००६ के बीच किसानों की आत्महत्या की दर (इसकी गणना प्रति एक लाख व्यक्ति में घटित आत्महत्या की संख्या को आधार मानकर होती है) में सालाना ढाई फीसद की चक्रवृद्धि बढ़ोत्तरी हुई।

   * अमूमन देखने में आता है कि आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है और यही बात किसानों की आत्महत्या के मामले में भी लक्ष्य की जा सकती है लेकिन तब भी यह कहना अनुचित नहीं होगा कि किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में पुरुषों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा थी।देश में कुल आत्महत्या में पुरुषों की आत्महत्या का औसत ६२ फीसदी है जबकि किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में पुरुषों की तादाद इससे ज्यादा रही।

   * साल २००१ में देश में किसानों की आत्महत्या की दर १२.९ फीसदी थी और यह संख्या सामान्य तौर पर होने वाली आत्महत्या की घटनाओं से बीस फीसदी ज्यादा है।साल २००१ में आम आत्महत्याओं की दर (प्रति लाख व्यक्ति में आत्महत्या की घटना की संख्या) १०.६ फीसदी थी। आशंका के अनुरुप पुरुष किसानों के बीच आत्महत्या की दर (१६.२ फीसदी) महिला किसानों (६.२ फीसदी) की तुलना में लगभग ढाई गुना ज्यादा थी।

   * साल २००१ में किसानों की आत्महत्या की सकल दर १५.८ रही।यह संख्या साल २००१ में आम आबादी में हुई आत्महत्या की दर से ५० फीसदी ज्यादा है।पुरुष किसानों के लिए यह दर १७.७ फीसदी रही यानी महिला किसानों की तुलना में ७५ फीसदी ज्यादा।
 


No comments:

Post a Comment