बड़े विदेशी निवेशकों की नजर ओएनजीसी की हिस्सेदारी पर
कुवैत और अबूधाबी के सावरेन फंड समेत बड़े विदेशी निवेशकों की नजर ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी पर लगी है।भारत सरकार वित्तीय घाटा कम करने के मकसद से बजट से पहले मुनाफा देने वाली बड़ी सार्वनिक कंपनियों के विनिवेश की प्रक्रिया तेज करने में लगी है। जिसके तहत ओएनजीसी की पांचप्रतिशत हिस्सेदारी की नीलामी का फैसला हुआ है।जाहिर है कि सरकार ने चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक उपक्रम ओएनजीसी के विनिवेश का फैसला कर निवेशकों को खुश कर दिया है। सरकारी क्षेत्र की ऑयल कंपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) के लिए ब्रोकरों के दांवपेंच भी शुरू हो चुके हैं।सरकार को उम्मीद है कि नए नियमों के तहत सरकारी कंपनियों का हिस्सा बेचने की प्रक्रिया आसान होगी। साथ ही, नियम बदलने से सरकारी कंपनियों का हिस्सा खरीदने में बड़े निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ेगी।
ओएनजीसी देश में बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नए ऊर्जा स्रोतों को ढूंढने तथा हाइड्रोकार्बन वैल्यू चेन में समुचित एकीकरण करने में जुटी है। कंपनी अपनी आय का 97 प्रतिशत हिस्सा अन्वेषण तथा उत्पादन पर खर्च करती है। ओएनजीसी ने विकास के लिए 10 बड़ी ऊर्जा परियोजनओं को हाथ में लिया हुआ है जिन पर करीब 24 हजार 890 करोड़ रुपये के निवेश का अनुमान है। 2009-10 की तुलना में 2010-11 के दौरान घरेलू खनिज तेल उत्पादन में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
सरकार ने देश की सबसे बड़ी तेल उत्खनन कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) में 5 प्रतिशत हिस्सेदारी संस्थागत निवेशकों को बेचने का बुधवार को निर्णय किया। चालू वित्त वर्ष में 40,000 करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य के कुछ करीब पहुंचने की अंतिम कोशिश के तहत सरकार ने यह निर्णय किया है।वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाला मंत्रियों का अधिकार प्राप्त समूह ने ओएनजीसी में नीलामी बिक्री के जरिये शेयर बेचे जाने का निर्णय किया, वहीं भेल में विनिवेश के निर्णय को अगले वित्त वर्ष के लिये टाल दिया गया।ईजीओएम में भाग लेने वाले मंत्रियों ने कीमत संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर विनिवेश के समय के बारे में कुछ नहीं कहा। आरक्षित मूल्य एवं समय के बारे में निर्णय करने के लिये मंत्री समूह की जल्दी ही बैठक होगी।बहरहाल, ओएनजीसी में हिस्सेदारी बिक्री से सरकार को 31 मार्च तक 40,000 करोड़ रुपये के महत्वाकांक्षी विनिवेश लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद नहीं मिलेगी। विनिवेश सचिव मोहम्मद हलीम खान ने कहा कि बजट लक्ष्य को हासिल करना अब लगभग असंभव है।
हालांकिओएनजीसी की तीसरी तिमाही के कमजोर नतीजों से कंपनी पर तेजी से बढ़ रहे सब्सिडी बोझ का स्पष्ट रूप से पता चलता है, हालांकि इसके राजस्व पर दबाव केयर्न से रॉयल्टी भुगतान की वजह से काफी हद तक घटा है। दिसंबर 2011 की तिमाही के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं गैस कंपनियों के सब्सिडी बोझ में ओएनजीसी की भागीदारी बढ़ कर 47 फीसदी की हो गई है जो पिछली दो तिमाहियों में 33 फीसदी थी। हालांकि कंपनी प्रबंधन ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है कि चौथी तिमाही में कंपनी का प्रदर्शन कैसा रहेगा। दूसरी तरफ वित्त वर्ष 2013 का उत्पादन अनुमान उत्साहजनक है जिसमें सितंबर 2012 के दौरान बॉम्बे हाई से बड़ा योगदान देखा जा सकता है।
बहरहाल सरकार को इस नीलामी से बारह हजार करोड़ रुपए जुटाने की उम्मीद है। इसके मद्देनजर सिंगापुर और मध्यपूर्व के निवेशकों ने वित्त मंत्रालय और ओएनजीसी में अपनी लाबिंग तेज कर दी है। इस सरकारी कंपनी को विदेशी निवेशक सोने की खान मानकर चल रहे हैं।ओएनजीसी में नीलामी मार्ग के जरिये 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर सरकार 12,000 करोड़ रुपये तक जुटा सकती है। इसके अलावा पावर फाइनेंस कारपोरेशन में विनिवेश से 1,145 करोड़ रुपये प्राप्त किये जा चुके हैं। ऐसे में कुल मिलाकर सरकार 13,000 करोड़ रुपये ही चालू वित्त वर्ष में प्राप्त कर सकती है। इसके अलावा नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन में आईपीओ के जरिये करीब 250 करोड़ रुपये प्राप्त हो सकते हैं।
कुवैत इंवेस्टमेंट आथोरिटी और आबूधाबी इंवेस्टमेंट आथोरिटी की इस सिलसिले में वित्त मंत्रालय से बात भी हो चुकी है, ऐसा सूत्रों का दावा है।
समझा जाता है कि प्रुडेंशियल और खैलिफोर्निया पेंशन फंड के नुमाइंदे भी अफसरान से मुलाकात कर चुके हैं।
गौरतलब है कि ओएन जीसी के संसाधन, तकनीक और विशेषज्ञों की बदौलत खोजे गए तेल खजाने को पहले ही निजी कंपनियों के हवाले किया जाता रहा है। पर इस पर कभी कोई बवाल नहीं हुआ। अब भी ओएनजीसी पर काबिज होने के लिए विदेशी कंपनियों में होड़ मची हुई है।
इस बीच बुरी खबर यह है कि सरकार ने बढ़ती पेट्रोलियम सब्सिडी के मद्देनजर इसकी भरपाई के लिए तेल एवं गैस उत्पादक कंपनियों पर बोझ बढ़ाने का फैसला किया है। तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी), ऑयल इंडिया लिमिटेड और गेल इंडिया जैसी तेल एवं गैस उत्पादक कंपनियों को 31 दिसंबर को समाप्त 9 महीनों में पेट्रोलियम सब्सिडी का करीब 37.91 फीसदी यानी 36,894 करोड़ रुपये का सब्सिडी बोझ वहन करने के लिए कहा गया है। यह पहले 6 महीने के 33.3 फीसदी सब्सिडी बोझ से अधिक है। वित्त वर्ष 2011 में कुल सब्सिडी में प्रमुख तेल उत्पादक कंपनियों की हिस्सेदारी 38.8 फीसदी रही थी।
सरकारी तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी)- इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम बाजार दरों पर कच्चे तेल की खरीदारी करती हैं, लेकिन डीजल, केरोसीन और रसोई गैस की बिक्री सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर करती है। ऐसे में इन कंपनियों को घाटा उठाना पड़ता है जिसकी भरपाई सरकार नकद सब्सिडी के जरिये करती है।
बुरी खबर यह है कि कृष्णा गोदावरी घाटी के 3 ब्लॉकों में उत्खनन कार्यों पर रक्षा और अंतरिक्ष एजेंसियों की आपत्ति के मद्देनजर सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख तेल व गैस उत्खनन कंपनी ओएनजीसी को इन ब्लॉकों के कुछ हिस्से को छोडऩा पड़ सकता है।
ओएनजीसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सुधीर वासुदेव ने बताया कि इन ब्लॉकों के लिए हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय अगले महीने के मध्य तक सशर्त मंजूरी दे सकता है। इस संबंध में कुछ दिन पहले हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने संबंधित मंत्रालय से संपर्क किया था। सशर्त मंजूरी के तहत कंपनी को इन ब्लॉकों में कुछ क्षेत्रों को हमेशा के लिए छोडऩा पड़ सकता है।
केजी बेसिन में नेल्प 7 के तहत आवंटित दो ब्लॉकों, ओएनजीसी द्वारा हासिल कुछ अन्य ब्लॉकों और नेल्प 8 दौर के ब्लॉकों पर काम उस समय प्रभावित हो गया जब अंतरिक्ष विभाग के साथ-साथ रक्षा मंत्रालय ने इन क्षेत्रों में उत्खनन गतिविधियों पर एतराज जताया। सरकार द्वारा इन ब्लॉकों को आवंटित किए जाने के काफी समय बाद उत्खनन गतिविधियों पर आपत्ति जताई जा रही है।
रक्षा और अंतरिक्ष एजेंसियों के लिए कृष्णा गोदावरी घाटी से सटी बंगाल की खाड़ी रणनीतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण है।
पर एक अच्छी खबर भी है कि केयर्न इंडिया और इसकी साझेदार ओएनजीसी राजस्थान के बाड़मेर स्थित तेल ब्लॉक पर अगले वित्त वर्ष में 1.25 अरब डॉलर की रकम खर्च करेंगी। इस निवेश के जरिए कंपनी दिसंबर 2013 तक इस ब्लॉक से तेल उत्पादन बढ़ाकर दोगुना करेगी। तेल ब्लॉक में अपनी हिस्सेदारी के अनुरूप केयर्न इस राशि में से 70 फीसदी और ओएनजीसी 30 फीसदी राशि का निवेश करेगी। नए निवेश में से 70 फीसदी राशि का इस्तेमाल तेल ब्लॉक से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाएगा, जबकि बाकी निवेश अन्वेषण कार्यो के लिए होगा। कंपनी को फरवरी के अंत तक इस ब्लॉक से उत्पादन बढ़कर 1,50,000 बैरल प्रतिदिन होने की उम्मीद है।
जहां तक इस शेयर का सवाल है, तो चौथी तिमाही के लिए सब्सिडी बोझ पर अस्पष्टता, उत्पादन समस्याओं एवं एफपीओ ऑफर की चुनौती आदि की वजह से इसका अल्पावधि परिदृश्य सुस्त दिख रहा है। हालांकि चुनाव के बाद ईधन की कीमतों में वृद्घि के सकारात्मक निर्णय से या डीजल को नियंत्रणमुक्त किए जाने से इस शेयर को मदद मिल सकती है।
मुनाफे पर सब्सिडी बोझ
ओएनजीसी जैसी अपस्ट्रीम कंपनियों का सब्सिडी बोझ दिसंबर 2011 को समाप्त हुई 9 महीनों की अवधि में 36,900 करोड़ रुपये रहा। ओएनजीसी कच्चे तेल की बाजार कीमत की तुलना में कम बिक्री कीमत के स्वरूप में सब्सिडी मुहैया कराती है। विश्लेषकों के अनुसार अपस्ट्रीम कंपनियों (ओएनजीसी और ऑयल इंडिया) की कुल कच्चे तेल की बिक्री 56 डॉलर प्रति बैरल के डिस्काउंट (सब्सिडी) से संबद्घ है जिसमें ऑयल इंडिया की भागीदारी पहले 9 महीनों की अवधि में 37.9 फीसदी की रही। जहां वित्त वर्ष 2012 की पहली छमाही के दौरान अपस्ट्रीम कंपनियों ने 33 फीसदी सब्सिडी की भागीदारी की वहीं दिसंबर तिमाही के दौरान यह भागीदारी बढ़ कर 47 फीसदी हो गई।
दिसंबर तिमाही में कच्चे तेल की सकल प्राप्ति 111.7 डॉलर प्रति बैरल रही। 66.8 डॉलर प्रति बैरल के उच्च सब्सिडी भुगतान के समायोजन के साथ शुद्घ प्राप्ति 45 डॉलर प्रति बैरल रही जो सालाना आधार पर 31 फीसदी और सितंबर 2011 की तिमाही की तुलना में 46 फीसदी कम है।
हालांकि ओएनजीसी को केयर्न इंडिया से अगस्त 2009-सितंबर 2011 की अवधि के लिए 3,142 करोड़ रुपये के रॉयल्टी भुगतान से काफी मदद मिली जिससे शुद्घ लाभ (6,741 करोड़ रुपये) में सालाना आधार पर गिरावट महज 4.8 फीसदी तक सीमित रह गई।
उत्पादन
एक तरफ जहां कंपनी का कच्चे तेल का उत्पादन 4 फीसदी घट कर सालाना आधार पर 67.4 करोड़ टन (घरेलू परिचालन और संयुक्त उपक्रम दोनों) रह गया वहीं उसकी गैस बिक्री समीक्षाधीन तिमाही में महज 1 फीसदी बढ़ कर 6.4 अरब घन मीटर तक सीमित रही। इसकी वैश्विक सहायक कंपनी ओएनजीसी विदेशी ((ओवीएल) का तेल उत्पादन भी सीरियाई और सूडान क्षेत्रों में राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से प्रभावित हुआ। ओवीएल के उत्पादन में इन क्षेत्रों का योगदान लगभग 25 फीसदी है। भविष्य के लिए कंपनी का कारोबारी परिदृश्य मजबूत है। एशियन मार्केट सिक्योरिटीज के अरिंदम पाल का मानना है कि वित्त वर्ष 2013 के लिए कच्चे तेल का कुल उत्पादन अनुमान 2.875 करोड़ टन और गैस उत्पादन 27 अरब क्यूबिक मीटर पर सकारात्मक है।
वे कहते हैं कि सितंबर 2012 से बॉम्बे हाई के जरिये कच्चे तेल उत्पादन में 30 लाख टन की तेजी आ सकती है। गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया है कि अगले दो वर्षों में ओएनजीसी का उत्पादन तेजी से बढ़ेगा। सीमांत क्षेत्रों के विकास, आईओआर/ईओआर (उत्पादन विस्तार) परियोजनाओं और राजस्थान ब्लॉक में सुधार प्रक्रिया से कंपनी को उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी। तेल कीमतों में तेजी वित्त वर्ष 2013 के अनुमानों में तेजी लाएगी। ओवीएल की वेनेजुएला जैसी वैश्विक परिसंपत्तियों से भी उत्पादन दिसंबर 2012 से शुरू हो जाने की संभावना है और इनका शुरुआती दैनिक उत्पादन लगभग 20,000 बैरल होगा।
-- मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कुवैत और अबूधाबी के सावरेन फंड समेत बड़े विदेशी निवेशकों की नजर ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी पर लगी है।भारत सरकार वित्तीय घाटा कम करने के मकसद से बजट से पहले मुनाफा देने वाली बड़ी सार्वनिक कंपनियों के विनिवेश की प्रक्रिया तेज करने में लगी है। जिसके तहत ओएनजीसी की पांचप्रतिशत हिस्सेदारी की नीलामी का फैसला हुआ है।जाहिर है कि सरकार ने चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक उपक्रम ओएनजीसी के विनिवेश का फैसला कर निवेशकों को खुश कर दिया है। सरकारी क्षेत्र की ऑयल कंपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) के लिए ब्रोकरों के दांवपेंच भी शुरू हो चुके हैं।सरकार को उम्मीद है कि नए नियमों के तहत सरकारी कंपनियों का हिस्सा बेचने की प्रक्रिया आसान होगी। साथ ही, नियम बदलने से सरकारी कंपनियों का हिस्सा खरीदने में बड़े निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ेगी।
ओएनजीसी देश में बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नए ऊर्जा स्रोतों को ढूंढने तथा हाइड्रोकार्बन वैल्यू चेन में समुचित एकीकरण करने में जुटी है। कंपनी अपनी आय का 97 प्रतिशत हिस्सा अन्वेषण तथा उत्पादन पर खर्च करती है। ओएनजीसी ने विकास के लिए 10 बड़ी ऊर्जा परियोजनओं को हाथ में लिया हुआ है जिन पर करीब 24 हजार 890 करोड़ रुपये के निवेश का अनुमान है। 2009-10 की तुलना में 2010-11 के दौरान घरेलू खनिज तेल उत्पादन में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
सरकार ने देश की सबसे बड़ी तेल उत्खनन कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) में 5 प्रतिशत हिस्सेदारी संस्थागत निवेशकों को बेचने का बुधवार को निर्णय किया। चालू वित्त वर्ष में 40,000 करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य के कुछ करीब पहुंचने की अंतिम कोशिश के तहत सरकार ने यह निर्णय किया है।वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाला मंत्रियों का अधिकार प्राप्त समूह ने ओएनजीसी में नीलामी बिक्री के जरिये शेयर बेचे जाने का निर्णय किया, वहीं भेल में विनिवेश के निर्णय को अगले वित्त वर्ष के लिये टाल दिया गया।ईजीओएम में भाग लेने वाले मंत्रियों ने कीमत संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर विनिवेश के समय के बारे में कुछ नहीं कहा। आरक्षित मूल्य एवं समय के बारे में निर्णय करने के लिये मंत्री समूह की जल्दी ही बैठक होगी।बहरहाल, ओएनजीसी में हिस्सेदारी बिक्री से सरकार को 31 मार्च तक 40,000 करोड़ रुपये के महत्वाकांक्षी विनिवेश लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद नहीं मिलेगी। विनिवेश सचिव मोहम्मद हलीम खान ने कहा कि बजट लक्ष्य को हासिल करना अब लगभग असंभव है।
हालांकिओएनजीसी की तीसरी तिमाही के कमजोर नतीजों से कंपनी पर तेजी से बढ़ रहे सब्सिडी बोझ का स्पष्ट रूप से पता चलता है, हालांकि इसके राजस्व पर दबाव केयर्न से रॉयल्टी भुगतान की वजह से काफी हद तक घटा है। दिसंबर 2011 की तिमाही के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं गैस कंपनियों के सब्सिडी बोझ में ओएनजीसी की भागीदारी बढ़ कर 47 फीसदी की हो गई है जो पिछली दो तिमाहियों में 33 फीसदी थी। हालांकि कंपनी प्रबंधन ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है कि चौथी तिमाही में कंपनी का प्रदर्शन कैसा रहेगा। दूसरी तरफ वित्त वर्ष 2013 का उत्पादन अनुमान उत्साहजनक है जिसमें सितंबर 2012 के दौरान बॉम्बे हाई से बड़ा योगदान देखा जा सकता है।
बहरहाल सरकार को इस नीलामी से बारह हजार करोड़ रुपए जुटाने की उम्मीद है। इसके मद्देनजर सिंगापुर और मध्यपूर्व के निवेशकों ने वित्त मंत्रालय और ओएनजीसी में अपनी लाबिंग तेज कर दी है। इस सरकारी कंपनी को विदेशी निवेशक सोने की खान मानकर चल रहे हैं।ओएनजीसी में नीलामी मार्ग के जरिये 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर सरकार 12,000 करोड़ रुपये तक जुटा सकती है। इसके अलावा पावर फाइनेंस कारपोरेशन में विनिवेश से 1,145 करोड़ रुपये प्राप्त किये जा चुके हैं। ऐसे में कुल मिलाकर सरकार 13,000 करोड़ रुपये ही चालू वित्त वर्ष में प्राप्त कर सकती है। इसके अलावा नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन में आईपीओ के जरिये करीब 250 करोड़ रुपये प्राप्त हो सकते हैं।
कुवैत इंवेस्टमेंट आथोरिटी और आबूधाबी इंवेस्टमेंट आथोरिटी की इस सिलसिले में वित्त मंत्रालय से बात भी हो चुकी है, ऐसा सूत्रों का दावा है।
समझा जाता है कि प्रुडेंशियल और खैलिफोर्निया पेंशन फंड के नुमाइंदे भी अफसरान से मुलाकात कर चुके हैं।
गौरतलब है कि ओएन जीसी के संसाधन, तकनीक और विशेषज्ञों की बदौलत खोजे गए तेल खजाने को पहले ही निजी कंपनियों के हवाले किया जाता रहा है। पर इस पर कभी कोई बवाल नहीं हुआ। अब भी ओएनजीसी पर काबिज होने के लिए विदेशी कंपनियों में होड़ मची हुई है।
इस बीच बुरी खबर यह है कि सरकार ने बढ़ती पेट्रोलियम सब्सिडी के मद्देनजर इसकी भरपाई के लिए तेल एवं गैस उत्पादक कंपनियों पर बोझ बढ़ाने का फैसला किया है। तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी), ऑयल इंडिया लिमिटेड और गेल इंडिया जैसी तेल एवं गैस उत्पादक कंपनियों को 31 दिसंबर को समाप्त 9 महीनों में पेट्रोलियम सब्सिडी का करीब 37.91 फीसदी यानी 36,894 करोड़ रुपये का सब्सिडी बोझ वहन करने के लिए कहा गया है। यह पहले 6 महीने के 33.3 फीसदी सब्सिडी बोझ से अधिक है। वित्त वर्ष 2011 में कुल सब्सिडी में प्रमुख तेल उत्पादक कंपनियों की हिस्सेदारी 38.8 फीसदी रही थी।
सरकारी तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी)- इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम बाजार दरों पर कच्चे तेल की खरीदारी करती हैं, लेकिन डीजल, केरोसीन और रसोई गैस की बिक्री सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर करती है। ऐसे में इन कंपनियों को घाटा उठाना पड़ता है जिसकी भरपाई सरकार नकद सब्सिडी के जरिये करती है।
बुरी खबर यह है कि कृष्णा गोदावरी घाटी के 3 ब्लॉकों में उत्खनन कार्यों पर रक्षा और अंतरिक्ष एजेंसियों की आपत्ति के मद्देनजर सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख तेल व गैस उत्खनन कंपनी ओएनजीसी को इन ब्लॉकों के कुछ हिस्से को छोडऩा पड़ सकता है।
ओएनजीसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सुधीर वासुदेव ने बताया कि इन ब्लॉकों के लिए हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय अगले महीने के मध्य तक सशर्त मंजूरी दे सकता है। इस संबंध में कुछ दिन पहले हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने संबंधित मंत्रालय से संपर्क किया था। सशर्त मंजूरी के तहत कंपनी को इन ब्लॉकों में कुछ क्षेत्रों को हमेशा के लिए छोडऩा पड़ सकता है।
केजी बेसिन में नेल्प 7 के तहत आवंटित दो ब्लॉकों, ओएनजीसी द्वारा हासिल कुछ अन्य ब्लॉकों और नेल्प 8 दौर के ब्लॉकों पर काम उस समय प्रभावित हो गया जब अंतरिक्ष विभाग के साथ-साथ रक्षा मंत्रालय ने इन क्षेत्रों में उत्खनन गतिविधियों पर एतराज जताया। सरकार द्वारा इन ब्लॉकों को आवंटित किए जाने के काफी समय बाद उत्खनन गतिविधियों पर आपत्ति जताई जा रही है।
रक्षा और अंतरिक्ष एजेंसियों के लिए कृष्णा गोदावरी घाटी से सटी बंगाल की खाड़ी रणनीतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण है।
पर एक अच्छी खबर भी है कि केयर्न इंडिया और इसकी साझेदार ओएनजीसी राजस्थान के बाड़मेर स्थित तेल ब्लॉक पर अगले वित्त वर्ष में 1.25 अरब डॉलर की रकम खर्च करेंगी। इस निवेश के जरिए कंपनी दिसंबर 2013 तक इस ब्लॉक से तेल उत्पादन बढ़ाकर दोगुना करेगी। तेल ब्लॉक में अपनी हिस्सेदारी के अनुरूप केयर्न इस राशि में से 70 फीसदी और ओएनजीसी 30 फीसदी राशि का निवेश करेगी। नए निवेश में से 70 फीसदी राशि का इस्तेमाल तेल ब्लॉक से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाएगा, जबकि बाकी निवेश अन्वेषण कार्यो के लिए होगा। कंपनी को फरवरी के अंत तक इस ब्लॉक से उत्पादन बढ़कर 1,50,000 बैरल प्रतिदिन होने की उम्मीद है।
जहां तक इस शेयर का सवाल है, तो चौथी तिमाही के लिए सब्सिडी बोझ पर अस्पष्टता, उत्पादन समस्याओं एवं एफपीओ ऑफर की चुनौती आदि की वजह से इसका अल्पावधि परिदृश्य सुस्त दिख रहा है। हालांकि चुनाव के बाद ईधन की कीमतों में वृद्घि के सकारात्मक निर्णय से या डीजल को नियंत्रणमुक्त किए जाने से इस शेयर को मदद मिल सकती है।
मुनाफे पर सब्सिडी बोझ
ओएनजीसी जैसी अपस्ट्रीम कंपनियों का सब्सिडी बोझ दिसंबर 2011 को समाप्त हुई 9 महीनों की अवधि में 36,900 करोड़ रुपये रहा। ओएनजीसी कच्चे तेल की बाजार कीमत की तुलना में कम बिक्री कीमत के स्वरूप में सब्सिडी मुहैया कराती है। विश्लेषकों के अनुसार अपस्ट्रीम कंपनियों (ओएनजीसी और ऑयल इंडिया) की कुल कच्चे तेल की बिक्री 56 डॉलर प्रति बैरल के डिस्काउंट (सब्सिडी) से संबद्घ है जिसमें ऑयल इंडिया की भागीदारी पहले 9 महीनों की अवधि में 37.9 फीसदी की रही। जहां वित्त वर्ष 2012 की पहली छमाही के दौरान अपस्ट्रीम कंपनियों ने 33 फीसदी सब्सिडी की भागीदारी की वहीं दिसंबर तिमाही के दौरान यह भागीदारी बढ़ कर 47 फीसदी हो गई।
दिसंबर तिमाही में कच्चे तेल की सकल प्राप्ति 111.7 डॉलर प्रति बैरल रही। 66.8 डॉलर प्रति बैरल के उच्च सब्सिडी भुगतान के समायोजन के साथ शुद्घ प्राप्ति 45 डॉलर प्रति बैरल रही जो सालाना आधार पर 31 फीसदी और सितंबर 2011 की तिमाही की तुलना में 46 फीसदी कम है।
हालांकि ओएनजीसी को केयर्न इंडिया से अगस्त 2009-सितंबर 2011 की अवधि के लिए 3,142 करोड़ रुपये के रॉयल्टी भुगतान से काफी मदद मिली जिससे शुद्घ लाभ (6,741 करोड़ रुपये) में सालाना आधार पर गिरावट महज 4.8 फीसदी तक सीमित रह गई।
उत्पादन
एक तरफ जहां कंपनी का कच्चे तेल का उत्पादन 4 फीसदी घट कर सालाना आधार पर 67.4 करोड़ टन (घरेलू परिचालन और संयुक्त उपक्रम दोनों) रह गया वहीं उसकी गैस बिक्री समीक्षाधीन तिमाही में महज 1 फीसदी बढ़ कर 6.4 अरब घन मीटर तक सीमित रही। इसकी वैश्विक सहायक कंपनी ओएनजीसी विदेशी ((ओवीएल) का तेल उत्पादन भी सीरियाई और सूडान क्षेत्रों में राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से प्रभावित हुआ। ओवीएल के उत्पादन में इन क्षेत्रों का योगदान लगभग 25 फीसदी है। भविष्य के लिए कंपनी का कारोबारी परिदृश्य मजबूत है। एशियन मार्केट सिक्योरिटीज के अरिंदम पाल का मानना है कि वित्त वर्ष 2013 के लिए कच्चे तेल का कुल उत्पादन अनुमान 2.875 करोड़ टन और गैस उत्पादन 27 अरब क्यूबिक मीटर पर सकारात्मक है।
वे कहते हैं कि सितंबर 2012 से बॉम्बे हाई के जरिये कच्चे तेल उत्पादन में 30 लाख टन की तेजी आ सकती है। गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया है कि अगले दो वर्षों में ओएनजीसी का उत्पादन तेजी से बढ़ेगा। सीमांत क्षेत्रों के विकास, आईओआर/ईओआर (उत्पादन विस्तार) परियोजनाओं और राजस्थान ब्लॉक में सुधार प्रक्रिया से कंपनी को उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी। तेल कीमतों में तेजी वित्त वर्ष 2013 के अनुमानों में तेजी लाएगी। ओवीएल की वेनेजुएला जैसी वैश्विक परिसंपत्तियों से भी उत्पादन दिसंबर 2012 से शुरू हो जाने की संभावना है और इनका शुरुआती दैनिक उत्पादन लगभग 20,000 बैरल होगा।
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