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कारपोरेट धोखाधडी रोकने के लिए सेबी का डंडा, पर असर कितना, कहना मुश्किल!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सत्यम का मामला देश में कारपोरेट धोखाधड़ी के सबसे बड़े मामलों में से एक है, जिसमें अभियुक्त कम्पनी के खातों में हेराफेरी करने व मुनाफा बढ़ाकर बताने के आरोपों का सामना कर रहे हैं। कारपोरेट धोखाधड़ी के मामले को डील करने के लिए सरकार ने एक विशिष्ट, बहु-विभागीय संगठन गंभीर धोखाधड़ी अन्वेषण कार्यालय (एसएफआईओ) की स्थापना की है।पर सेबी की भूमिका कारगर बनाये बगैर बाजार से पूंजी और मुनाफा वटोरने के कारपोरे तौर तरीकों में पारदर्शिता की उम्मीद कम ही है।
1991 से जारी मुक्त बाजार प्रणाली और नवुदारवादी जमाने में कारपोरेट गतिविधियां बहुत ज्यादा बढ़ गयी हैं। उत्पादन प्रमाली नीं, सर्विस सेक्टर और बाजार पर अर्थ व्यवस्था का वजूद बना हुआ है। शेयर बाजार से अब भारतीयों के दिल धड़कते हैं। चालू सप्ताह के आखिरी कारोबारी दिन शुक्रवार को घरेलू शेयर बाजार के कारोबार का अंत खुशनुमा रहा। दिन के कारोबार के दौरान बांबे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के 30 शेयरों वाले सेंसेक्स ने 135.36 अंक यानी 0.75 फीसदी बढ़त ली। कारोबार के आखिर में सेंसेक्स 18,289.35 अंक के स्तर पर स्थिर हुआ। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के 50 शेयरों वाला निफ्टी भी शुक्रवार को 42.35 अंक यानी 0.77 फीसदी बढ़त के साथ 5,564.30 अंक के स्तर पर बंद हुआ।विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की तरफ से घरेलू बाजार में डाली जा रही पूंजी से निवेशक खासे उत्साहित दिख रहे हैं। पूंजी बाजार नियामक सेबी के प्रारंभिक आंकड़ों के मुताबिक गुरुवार को भी विदेशी संस्थागत निवेशकों ने घरेलू बाजार में 23.24 करोड़ डॉलर मूल्य के शेयरों की खरीदारी की। इससे इस वर्ष अब तक एफआईआई द्वारा भारतीय बाजार में किया गया निवेश 4.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यही वजह थी कि शुक्रवार को इंट्रा-डे में सेंसेक्स 18,423.06 अंक तक पहुंच गया।भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़े के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने 2012 में अब तक सात अरब डॉलर की लिवाली कर ली है।
ऐसे में बाजार नियामक सेबी का महत्व काफी बढ़ गया है क्योंकि कारपोरेट गतिविधियों के साथ ही कारपोरेटधोखाधड़ी में भारी इजाफाहो गया है।शेयर बाजार में जब सेबी जैसी कोई नियामक संस्था नहीं थी तो उस समय ब्रोकर्स और शेयर बाजार के खिलाड़ी मनमानी किया करते थे । अनुमान के मुताबिक देश में 500 से ज्यादा कंपनियां हैं जिन्होंने सेबी के नियमों का पालन किए बिना सामूहिक निवेश योजनाओं के जरिए निवेशकों से रकम जमा की है। पिछले कुछ समय में नियामक ने ऐसी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई भी की है। इसी के तहत सेबी ने रोज वैली रियल एस्टेट, सन-प्लांट एग्रो और पर्ल ग्रीन फॉरेस्ट पर नई योजनाएं लाने और जनता से पैसे जमा करने पर पांबदी लगा दी थी।
मालूम हो कि प्रतिभूति बाजार की बदलती जरूरतों और प्रतिभूति बाजार में होने वाले विकास के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 1995, 1999 और 2002 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम 1992 (सिक्यूरिटीज एण्ड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया एक्ट 1992/सेबी अधिनियम) को संशोधित किया गया।
बाजार नियामक सेबी ने कारपोरेट मामलों के मंत्रालाय को 500 से अधिक ऐसी कंपनियों के नाम बताने का फैसला किया है, जिन्होंने सामूहिक निवेश योजना (सीआईएस) नियमों का उल्लंघन करते हुए निवेशकों से धन इकट्ठा किया है।सेबी ऐसी कंपनियों के निदेशकों का नाम मंत्रालय को देगी, ताकि इन कंपनियों और व्यक्तियों को किसी नई कंपनी से जुड़ने से रोका जा सके। सीआईएस ऐसी योजनाएं हैं जिसके तहत कोई कंपनी किसी पूर्व निर्धारित उद्देश्य के लिए निवेशकों से धन इकट्ठा करती है और बाद में मुनाफे या आय में निवेशकों हिस्सा लगाती है। ये योजनाएं भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी के दायरे में आती हैं।
उपेंद्र कुमार सिन्हा ने शुरू में ही अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। 1976 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी सिन्हा ने अपनी पहली सार्वजनिक बैठक में कहा था कि प्रक्रियाओं में तेजी पर हमारा ध्यान होगा। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन के तौर पर एक साल पूरा करने में उन्हें महज 10 दिन (उन्होंने पिछले साल 18 फरवरी को कार्यभार संभाला था) बचे हैं। सेबी प्रमुख के तौर पर पिछले साल 25 मार्च को निदेशक मंडल की पहली बैठक में मौजूदा वित्त वर्ष के लिए उन्होंने जो वादे किए थे उनमें से ज्यादातर पर अमल हो चुका है।इस दावे में कितना दम है, यह देखना अभी बाकी है।ऐसा भी नहीं है कि सबकुछ आसान रहा है। सिन्हा की पहली परीक्षा उस समय हुई जब सेबी के निदेशक मंडल के एक पूर्व सदस्य ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिख कर आरोप लगाया था कि सेबी प्रमुख उन्हें कुछ बड़े मामलों में समझौता करने के लिए कह रहे हैं। लेकिन सिन्हा ने अब्राहम के दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया और वित्त सचिव आर गोपालन को पत्र लिख कर कहा कि समझौता करने जैसी कोई बात नहीं है और न ही उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया है। उसके बाद से ऐसा कुछ नहीं सुना गया है। सिन्हा के लगभग एक साल के कार्यकाल की जो मुख्य बातें रही हैं उनमें सार्वजनिक आरंभिक निर्गम के नियमों के उल्लंघन के लिए कंपनियों और कई अन्य के खिलाफ कार्रवाई रही है। भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सेबी ने आईपीओ शेयरों के लिए सर्किट फिल्टर और कॉल ऑक्शन सहित सूचीबद्धता के दिन कड़े नियम लागू करने का फैसला किया।
सेबी की जांच शुरू होने से पहले ही इनमें से कई कंपनियां और उनके परिचालक व निदेशक नए नाम से कंपनी शुरू कर देते हैं जिससे निवेशकों को नुकसान होता है। सेबी ने कहा कि सैकड़ों कंपनियां सामूहिक निवेश योजना के तहत कारोबार कर रही हैं लेकिन सिर्फ एक इकाई ही सेबी में पंजीकृत है।
सेबी कंपनी मामलों के मंत्रालय से यह आग्रह भी करेगा कि डिफॉल्टर सीआईएस इकाइयों और उनके निदेशकों के नाम को देश के सभी कंपनी पंजीयक को बताए ताकि वे नई कंपनी शुरू न कर सकें। सेबी की मंशा सीआईएस नियमों में व्यापक बदलाव करने की भी है।
दूसरी ओर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शेयर खरीद में अधिग्रहण नियमों का उल्लंघन किये जाने के एक मामले में डालमिया के खिलाफ न्यायिक कारवाई की प्रक्रिया को समाप्त कर दिया।
प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) ने पिछले साल नवंबर में सेबी के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें कहा गया था कि डालमिया ने शेयरों की वापस खरीद मामले में अधिग्रहण संहिता का उल्लंघन किया है, क्योंकि कंपनी ने ऐसा करने से पहले सार्वजनिक घोषणा नहीं की। सेबी ने कल जारी आदेश में कहा, ''रघु हरि डालमिया और 20 अन्य इकाइयों के खिलाफ 28 जनवरी, 2010 में पूर्णकालिक सदस्य के आदेश पर न्यायिक प्रक्रिया शुरू की गई थी और सैट ने इस आदेश को 21 नवंबर, 2011 को खारिज कर दिया। ऐसे में जिन लोगों को नोटिस भेजा गया है उनके खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। इसलिये मामले को यहीं समाप्त किया जाता है।''
इस बीच देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई का बाजार मूल्यांकन 15,510 करोड़ रुपये बढ़कर 1,53,463 करोड़ रुपये हो गया। पिछले हफ्ते कंपनी के शेयर में 11 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई।एसबीआई के बाजार मूल्यांकन में भारी बढ़ोतरी के साथ बीते हफ्ते सेंसेक्स की 10 सबसे मूल्यवान कंपनियों में से 5 के बाजार पूंजीकरण में 35,878 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
एसबीआई ने तीसरी तिमाही के अपने मुनाफे में 16.3 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की। बैंक को 31 दिसंबर 2011 को समाप्त तीसरी तिमाही के दौरान 4,318.08 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ।सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इनफोसिस का बाजार पूंजीकरण 9,642 करोड़ रुपये बढ़कर 1,69,429 करोड़ रुपये रहा, जो एसबीआई के बाद लाभ दर्ज करने वाली दूसरी सबसे बड़ी कंपनी रही।
इसी तरह एनटीपीसी का बाजार मूल्यांकन 6,432 करोड़ रुपये बढ़ा, जबकि एचडीएफसी बैंक ने पिछले सप्ताह अपने बाजार पूंजीकरण में 2,656 करोड़ रुपये जोड़े। साथ ही आईटीसी ने 1,638 करोड़ रुपये जोड़े। हालांकि आरआईएल, ओएनजीसी, टीसीएस, कोल इंडिया और भारती एयरटेल के बाजार मूल्यांकन में कमी दर्ज हुई।
सेबी ने इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट प्रोग्राम (आईपीपी) के नियम जारी कर दिए है। आईपीपी के जरिए कंपनियां प्रमोटर्स की 10 फीसदी तक हिस्सेदारी बेच सकेंगी। शेयर बाजार नियामक सेबी ने निवेशकों के लिए नए नियम अमल में लाने का फैसला किया है। सेबी, नए नियमों के तहत निवेशकों के लेन-देन की लागत कम करना चाहता है।भारतीय म्युचुअल फंड उद्योग और शेयर बाजारों में क्वालीफाईड फॉरेन इन्वेस्टर्स (क्यूएफआई) को सीधे पहुंच की अनुमति मिलने के बाद सिन्हा ने इनके लिए नए निवेश दिशानिर्देंशों की घोषणा की। हालांकि जानकारों ने कुछ नियमों में संशोधन करने का आग्रह किया है।
खुदरा निवेशकों की मदद के लिए सेबी ने कुछ नए उपाय किए हैं जिनका श्रेय भी सिन्हा को जाता है। इनमें से एक है नो योर क्लाइंट (केवाईसी) प्रक्रिया। सेबी ने सभी नए ग्राहकों के लिए केवाईसी रजिस्ट्रेशन एजेंसी (केआरए) अनिवार्य कर दिया है। इससे केवीसी प्रक्रिया छोटी और समान हो गई है और यह केवल एक बार पूरी करनी होती है।
आईपीपी क्यूआईपी की तरह ही ई-ऑक्शन है, जिसके जरिए कंपनियां प्रमोटर्स का हिस्सा इंस्टीट्यूशंस को बेचेंगी। आईपीपी में 2 दिन के लिए ई-ऑक्शन की विंडो खुलेगी। साथ ही, आईपीपी के तहत इंस्टीट्यूशनल इंवेस्टर को नए शेयर भी जारी किए जा सकेंगे। सेबी के नियमों के मुताबिक लिस्टेड कंपनियों के लिए कम से कम 25 फीसदी पब्लिक शेयरहोल्डिंग होना जरूरी है। मार्च 2013 तक निजी कंपनियों को प्रमोटर्स की हिस्सेदारी 75 फीसदी और सरकारी कंपनियों को 90 फीसदी से कम करनी है।
आईपीपी के नियमों का सबसे ज्यादा फायदा 8 सरकारी कंपनियों में हिस्सा बेचने में होगा। सरकारी कंपनियां हिस्सा बेचने के लिए एफपीओ लाने में हिचक रही थीं, क्योंकि शेयर के भाव गिरने का डर था। उच्चतम न्यायालय ने सहारा समूह की उन संपत्तियों की सूची का विवरण मीडिया में लीक करने के लिए सेबी की खिंचाई की है। सहारा ने इस सूची में अपनी वे सम्पत्तियां गिनाईं थीं, जिन्हें उसकी विवादास्पद निवेश योजनाओं में पैसा लगाने वालों के निवेश की सुरक्षा की गारंटी के तौर पर लिया जा सकता था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सहारा के वकील द्वारा सेबी के अधिवक्ता को भेजा गया प्रस्ताव एक टीवी चैनल में लीक होने से 'व्यथित' है। दिन-प्रतिदिन बढ़ती इस प्रकार की घटना से न केवल कारोबारी धारणा पर असर पड़ता है बल्कि न्याय के प्रशासन में भी हस्तक्षेप होता है।मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया, न्यायाधीश एके पटनायक तथा न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार की पीठ ने कहा कि हम इस बात से व्यथित हैं कि अपीलकर्ता (सहारा) के वकील की तरफ से सेबी के अधिवक्ता को भेजा गया प्रस्ताव एक टीवी चैनल को लीक कर दिया गया।
पूंजी बाजार नियामक सेबी को भी ट्विटर, फेसबुक व ब्लॉग्स का चस्का लगता दिख रहा है। निवेशकों को शिक्षित करने तथा अपनी छानबीन संबंधी गतिविधियों को मजबूती देने के लिए सेबी अब इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स की मदद लेने को तैयार है।इसके लिए सेबी विशेषज्ञ आईटी अधिकारियों की नियुक्ति कर रहा है। सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ये आईटी अधिकारी ट्विटर, फेसबुक व ब्लॉग्स जैसे प्लेटफॉर्म पर बाजार से जुड़े ताजातरीन पोस्ट तथा बहस-मुबाहिसों पर नजर रखेंगे।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड(सेबी) ने स्ट्राइड्स आर्कोलैब के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है जिसमें कंपनी ने प्रवर्तकों को तरजीही आधार पर 260 करोड़ रुपये मूल्य के वारंट जारी करने की अनुमति मांगी थी।नियामक ने इस बारे में एक अनौपचारिक निर्देश में कहा कि प्रवर्तक समूह के बीच आपसी स्थानांतरण के लिए तरजीही आवंटन से संबंधित नियम लागू होंगे।
नियामक ने कहा, 'अगर पिछले छह महीनों में प्रवर्तक समूह के बीच आपस में स्थानांतरण होता है तो प्रवर्तक और प्रवर्तक समूह का हिस्सा बनने वाले सभी लोग/इकाइयां तरजीही आधार पर प्रतिभूतियों के आवंटन के लिए अयोग्य हो जाएंगे।'
स्ट्राइड्स ने इस बात पर सेबी से सलाह मांगी थी कि क्या प्रवर्तक समूह के बीच शेयरों कास्थांनांतरण इश्यू ऑफ कैपिटल ऐंड डिस्क्लोजर क्वायरमेंट्स(आईसीडीआर) नियमन के तहत 'बिक्री' मानी जाएगी।
अक्टूबर 2011 में कंपनी के प्रवर्तक समूह-एंगस होल्डिंग्स, छायादीप वेंचर और प्रोनोम्ज वेंचर्स- ने तीन विभिन्न परिचालनों के तहत आपस में 1.26 करोड़ शेयरों का स्थानांतरण किया था। शेयर के आपस में इस स्थानांतरण से कंपनी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी पर कोई असर नहीं पड़ा। इसस पहले नवंबर 2011 में कंपनी के निदेशकमंडल ने प्रवर्तक समूह को 62 लाख परिवर्तनीय वारंट के निर्गम की अनुमति दे दी थी। यह परिचालन प्रति वारंट 425 रुपये पर हुआ था जे 260 करोड़ रुपये हुआ।
सरकार के आगामी बजट में निवेश का अनुकूल माहौल बनाने वाली नीतियों को अहम जगह मिलने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। बजट से पहले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की वित्तीय बाजारों से जुड़े नियामकों के साथ हुई बैठक से संकेत मिले हैं कि बजट में निवेश को प्रोत्साहित करने वाले कदम उठाए जा सकते हैं।
वित्त मंत्री ने शनिवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव और सेबी अध्यक्ष यूके सिन्हा समेत वित्तीय क्षेत्र के विभिन्न नियामकों से मुलाकात की। बैठक में अर्थव्यवस्था में गतिविधियां बढ़ाने और निवेश माहौल सुधारने संबंधी प्रस्ताव तैयार करने को लेकर नियामकों के सुझावों को वित्त मंत्री ने अहम बताया। बैठक के बाद सुब्बाराव ने बताया कि यह वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद [एफएसडीसी] की बजट पूर्व बैठक है। वित्त मंत्री ने सभी नियामकों के विचार सुनें। निश्चित तौर पर आरबीआइ पर वृहत-आर्थिक प्रबंधन और बैंकिंग नियमन दोनों की जिम्मेदारी है। बैठक का नतीजा बजट में दिखेगा।
सेबी कानून *
एक बेहतर नैगम शासन प्रतिभूति बाजार में विनियामक ढांचे का प्रमुख उद्देश्य है। तदनुसार, भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड (सेबी) ने देश में विद्यमान नैगम शासन प्रक्रियाओं की पर्याप्तता का मूल्यांकन करने तथा इन प्रक्रियाओं में और सुधार लाने के उद्देश्य से अनेक प्रयास किए है। यह अपने निम्न कानूनी तथा विनियामक रूपरेखा के प्रयोग के जरिए नैगम शासन के मानकों को क्रियान्वित तथा अनुरक्षित कर रहा है।
1. प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956
इस अधिनियम का अधिनियमन प्रतिभूतियों में लेन देन के व्यवसाय को विनियमित करके उनमें अवांछित सौदों को रोकने तथा उनमें सट्टेबाजी पर रोक लगाने के लिए किया गया था। कोई भी स्टॉक एक्सचेंज, जो मान्यता प्राप्त करने का इच्छुक है, निर्धारित तरीके से केन्द्र सरकार को आवेदन कर सकता है। प्रत्येक आवेदनपत्र में यथा निर्धारित विवरण निहित होंगे तथा उसके साथ संविदाओं के विनियमन तथा नियंत्रण के लिए स्टॉक एक्सचेंज की उप विधियों की प्रति तथा साथ ही सामान्यत: स्टॉक एक्सचेंजों के संघटन से तथा विशेष रूप से निम्न से संबंधित नियमों की प्रति संलग्न की जाएगी।:- (i) ऐसे स्टॉक एक्सचेंज का शासी निकाय, इसका संघटन तथा प्रबंधन की शक्तियां तथा तरीका जिससे व्यवसाय का लेन देन किया जाना है; (ii) स्टॉक एक्सचेंज के पदधारकों की शक्तियां तथा कर्त्तव्य; (iii) विभिन्न श्रेणियों के सदस्यों की स्टॉक एक्सचेंज में प्रविष्टि, सदस्यता के लिए अर्हकताएं तथा स्टॉक एक्सचेंज से या उसमें सदस्यों का निष्कासन, निलम्बन, बहिष्करण तथा पुन: प्रवेश ; (iv) उन मामलो में स्टॉक एक्सचेंज के सदस्यों के रूप में भागीदारियों के पंजीकरण के लिए प्रक्रिया जहां नियमों से ऐसी सदस्यता की व्यवस्था है, तथा प्राधिकृत प्रतिनिधियों तथा लिपिकों का नामांकन तथा नियुक्ति।
प्रत्येक मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज केन्द्र सरकार को वार्षिक रिपोर्ट की एक प्रति प्रस्तुत करेगा तथा ऐसी वार्षिक रिपोर्ट में यथा निर्धारित विवरण निहित होंगे। यह निम्न मामलों में से सब की या किस एक की व्यवस्था करने के लिए नियम बना सकता है या अपने द्वारा बनाए गए नियमों में संशोधन कर सकता है, नामत; (i) किसी भी बैठक में स्टॉक एक्सेचेज के समक्ष प्रस्तुत किसी भी मामले के संबध में केवल सदस्यों के लिए मतदान अधिकार सीमित करना; (ii) किसी भी बैठक में स्टॉक एक्सचेंज के समक्ष प्रस्तुत किसी मामले के संबंध में मतदान अधिकारों का विनियमन ताकि प्रत्येक सदस्य को स्टॉक एक्सचेंज की प्रदत्त इक्विटी पूंजी में अपने हिस्से के बावजूद केवल एक ही मत का हक प्राप्त हो; (iii) स्टॉक एक्सचेंज की बैठक में भाग लेने तथा मतदान करने के लिए अपने परोक्षी के रूप में किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करने के सदस्य के अधिकार पर प्रतिबंध, इत्यादि।
यदि केन्द्र सरकार की राय में, कोई आपात स्थिति उत्पन्न हुई है तथा उस आपात स्थिति उत्पन्न हुई है तथा उस आपातस्थिति का सामना करने के प्रयोजन से केन्द्र सरकार उचित समझती है तो वह सरकारी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसा करने के लिए कारण बताते हुए मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज को निदेश दे सकती है कि वह अधिसूचना में यथा विर्दिष्ट अवधि के लिए, जो सात दिन से अधिक नहीं होगी, तथा निर्धारित शर्तो के अध्यधीन अपने ऐसे व्यवसाय को निलम्बित करे तथा यदि केन्द्र सकरार की राय में कारोबार के हित में या जनहित में यह आवश्यक है कि इस अवधि को बढाया जाए तो वह समान प्रकार की अधिसूचना द्वारा उक्त अवधि को समय समय पर बढा सकती है।
प्रतिभूति संविदा (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2007 का अधिनियमन ''प्रतिभूतियों'' की परिभाषा के अंतर्गत प्रतिभूतिकरण लिखतों को शामिल करने तथा प्रतिभूति लिखतों के निर्गम के लिए प्रकटन आधारित विनियमन तथा उसकी प्रक्रिया की व्यवस्था करने के उद्देश्य में प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 में आगे और संशोधन करने के लिए किया गया है। ऐसा इस बात को ध्यान में रख कर किया गया है कि प्रतिभूतिकरण लेनदेनो के अंतर्गत लिखतों या प्रमाणपत्रों के लिए प्रतिभूति बाजार में पर्याप्त संभाव्यता है। इसके अतिरिक्त, इन लिखतों के लिए प्रतिभूति बाजार ढांचे का प्रतिबलन स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार को सुकर बनाएगा तथा बदले में गहराई तथा नकदी के अर्थ में बाजार के विकास में सहायक होगा।
2. भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड, 1992
इस अधिनियम का अधिनियमन प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों का संरक्षण करने तथा प्रतिभूति बाजार के विकास का संवर्धन करने तथा उसे विनियमित करने तथा उससे संबधित या आनुषंगिक मामलों के लिए किया गया था। इस प्रयोजनार्थ, सेबी (बोर्ड) विनियमन द्वारा निम्न को विनिर्दिष्ट करता है:- (i) पूंजी के निर्गम, प्रतिभूतियों के अंतरण संबंधी मामले तथा उससे आनुषंगिक अन्य मामले, तथा (b) तरीका जिससे ऐसे मामलों का प्रकटन कम्पनियों द्वारा किया जाएगा।.
कोई भी स्टॉक ब्रोकर, उप ब्रोकर, शेयर अंतरण एजेंट, निर्गम का बैंककार, न्यास विलेख का न्यासी निर्गम का रजिस्ट्रार, मर्चेट बैंककार, हामीदार, पोर्टफोलियो प्रबंधन, निवेश सलाहकार तथा ऐसा अन्य मध्यवर्ती, जो प्रतिभूति बाजार से संबद्ध हो, प्रतिभूतियों का क्रय, विक्रय या उनमें लेनदेन नही करेगा सिवाएं इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए विनियमों के अनुसार बोर्ड से प्राप्त पंजीकरण प्रमाणपत्र की शर्तो के अंतर्गत तथा उनके अनुसार।
कोई भी डिपाजिटरी, भागीदार, प्रतिभूतियों का संरक्षक, विदेशी संस्थागत निवेशक दर निर्धारण अभिकरण, या प्रतिभूति बाजार से संबद्ध कोई अन्य मध्यवर्ती जिसे बोर्ड अधिसूचना द्वारा इस संबंध में विनिर्दिष्ट करे, प्रतिभूतियों का क्रय, विक्रय या उनमें लेनदेन नही करेगा सिवाएं इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए विनियमों के अनुसार बोर्ड से प्राप्त पंजीकरण प्रमाणपत्र की शर्तो के अंतर्गत तथा उनके अनुसार।
इसके अतिरिक्त, कोई भी व्यक्ति म्यूचुअल फंडों सहित किसी उद्यम पूंजीनिधि या सामूहिक निवेश को प्रायोजित नहीं करेगा या कराएगा अथवा उसका संचालन नहीं करेगा या कराएगा जब तक कि उसने विनियमों के अनुसार बोर्ड से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं कर लिया हो।
पंजीकरण के लिए प्रत्येक आवेदनपत्र विनियमों द्वारा यथा निधार्रित तरीके से तथा निर्धारित शुल्क के भुगतान पर दिया जाएगा। बोर्ड आदेश द्वारा किसी पंजीकरण प्रमाणपत्र को इस अधिनियम के अंतर्गत यथा निर्धारित तरीके से निलम्बित या निरस्त कर सकता है। तथापि, ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जाएगा जब तक कि संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का युक्तिसंगत अवसर न प्रदान किया गया हो।
3. निक्षेपागार अधिनियम, 1996
इस अधिनियम का अधिनियमन प्रतिभूतियों में निक्षेपागारों के विनियमन की व्यवस्था करने तथा उससे जुडे या उसके आनुषंगिक मामलो के लिए किया गया था। इससे स्क्रिपरहित कारोबार प्रणाली तथा निपटान की शुरूआत की व्यवस्था की गई है जिसे प्रतिभूति बाजारों के प्रभावी कार्यकरण के लिए आवश्यक समझा गया है। अधिनियम के अनुसार, शब्दा ''निक्षेपागार'' का अर्थ है ''कम्पनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत निर्मित तथा पंजीकृत कम्पनी तथा जिसे भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड अधिनियम 1992 की धारा 12 की उपधारा (1 क) के तहत पंजीकरण पमाणपत्र प्रदान किया गया है।
कोई भी डिपाजिटरी निक्षेपागार के रूप में कार्य नहीं करेगा जब तक कि उसने बोर्ड (सेबी) से व्यवसाय आरम्भ करने का प्रमाणपत्र न प्राप्त कर लिया हो। बोर्ड ऐसा प्रमाणपत्र तभी देगा यदि वह संतुष्ट है कि निक्षेपागार में अभिलेखो तथा लेनदेनों की हेराफेरी को रोकने के लिए पर्याप्त प्रणालियां तथा सुरक्षोपाय है। तथापि, प्रमाणपत्र देने से मना नही किया जाएगा जब तक कि संबंधित निक्षेपगार की सुनवाई का युक्तिसंगत अवसर प्रदान न किया गया हो।
निक्षेपागार एक या अधिक भागीदारों के साथ उसके एजेंट के रूप में ऐसे तरीके से कारार करेगा जैसकि उपविधियो द्वारा विनिर्दिष्ट किया गया हो। कोई भी व्यक्ति किसी भागीदार के माध्यम से किसी भी निक्षेपागार के साथ उपनिधियों द्वारा यथा विनिर्दिष्ट स्वरूप में उसकी सेवाओं का उपभोग करने के लिए करार कर सकता है। ऐसा कोई भी व्यक्ति निर्गमकर्ता को विनियमों द्वारा यथा विर्निदिष्ट तरीके से प्रतिभूति प्रमाणपत्र अभ्यर्पित करेगा जिसके लिए वह निक्षेपागार की सेवाओं का लाभ उठाना चाहता है। प्रतिभूति पमाणपत्र प्राप्त होने पर निर्गमकर्ता प्रतिभूति प्रमाणपत्र को निरस्त कर देगा तथा इसके अभिलेखों में उस प्रतिभूति के संबंध में पंजीकृत मालिक के रूप में निक्षेपागार का नाम दर्ज कर देगा तथ निक्ष्ज्ञेपागार को तदनुसार सूचित करेगा। सूचना प्राप्त होने पर निक्षेपागार अपने रिकोर्डो में लाभानुभोगी स्वामी के रूप में उल्लिखित व्यक्ति का नाम प्रविष्ट कर लेगा।
किसी भागीदार के सूचना प्राप्त होने पर, प्रत्येक निक्षेपागार अंतरिक के नाम में प्रतिभूति का अंतरण पंजीकृत कर लेगा। यदि किसी प्रतिभूति का लाभानुभोगी स्वामी या अंतरिती ऐसी प्रतिभूति की अभिरक्षा लेना चाहे तो निक्षेपागार निर्गमकर्ता को तदनुसार सूचित करेगा।
निर्गामकर्ता द्वारा पेशकश की गई प्रतिभूतियों में अभिदान करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यह विकल्प होगा कि वह प्रतिभूति प्रमाणपत्र प्राप्त करे अथवा निक्षेपागार में प्रतिभूतियां धारित करे। जहां कोई व्यक्ति निक्षेपागार में प्रतिभूति धारित रखने का विकल्प चुनता है, वहां निर्गमकर्ता ऐसे निक्षेपागार के प्रतिभूति के आवंटन के ब्यौरे सूचित करेगा तथा ऐसी सूचना प्राप्त होने पर, निक्षेपागार उस प्रतिभूति के लाभानुभोगी स्वामी के रूप में आवंटिती के नाम को अपने रिकोर्डों में प्रविष्ट करेगा।
डिपाजिटरी को लाभानुभोगी स्वामी की ओर से प्रतिभूति के स्वामित्व का अंतरण प्रभावी करने के प्रयोजनार्थ पंजीकृत स्वामी माना जाएगा तथापि उसे अपने द्वारा धारित प्रतिभूतियों के संबंध में कोई मतदान अधिकारों या अन्य कोई अधिकार प्राप्त नहीं होंगे।
यदि बोर्ड संतुष्ट है कि जनहित में या निवेशकों के हित में ऐसा करना आवश्यक है तो वह लिखित में निम्न आदेश दे सकता है; (i) किसी भी निर्गमकर्ता, निक्षेपागार, भागीदार या लाभानुभोगी स्वामी को निक्षेपागार में धारित प्रतिभूतियों के संबंध में लिखित में ऐसी सूचना प्रस्तुत करने के लिए कहना जो उसे उपेक्षित हो, अथवा (ii) किसी भी व्यक्ति को निर्गमकर्ता, लाभानुभोगी स्वामी निक्षेपागार या भागीदार के मामलों के संबंध में जांच निरीक्षण करने के लिए प्राधिकृत करना जो आदेश में यथा विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर ऐसी जांच या निरीक्षण की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
सत्यम का मामला देश में कारपोरेट धोखाधड़ी के सबसे बड़े मामलों में से एक है, जिसमें अभियुक्त कम्पनी के खातों में हेराफेरी करने व मुनाफा बढ़ाकर बताने के आरोपों का सामना कर रहे हैं। कारपोरेट धोखाधड़ी के मामले को डील करने के लिए सरकार ने एक विशिष्ट, बहु-विभागीय संगठन गंभीर धोखाधड़ी अन्वेषण कार्यालय (एसएफआईओ) की स्थापना की है।पर सेबी की भूमिका कारगर बनाये बगैर बाजार से पूंजी और मुनाफा वटोरने के कारपोरे तौर तरीकों में पारदर्शिता की उम्मीद कम ही है।
1991 से जारी मुक्त बाजार प्रणाली और नवुदारवादी जमाने में कारपोरेट गतिविधियां बहुत ज्यादा बढ़ गयी हैं। उत्पादन प्रमाली नीं, सर्विस सेक्टर और बाजार पर अर्थ व्यवस्था का वजूद बना हुआ है। शेयर बाजार से अब भारतीयों के दिल धड़कते हैं। चालू सप्ताह के आखिरी कारोबारी दिन शुक्रवार को घरेलू शेयर बाजार के कारोबार का अंत खुशनुमा रहा। दिन के कारोबार के दौरान बांबे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के 30 शेयरों वाले सेंसेक्स ने 135.36 अंक यानी 0.75 फीसदी बढ़त ली। कारोबार के आखिर में सेंसेक्स 18,289.35 अंक के स्तर पर स्थिर हुआ। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के 50 शेयरों वाला निफ्टी भी शुक्रवार को 42.35 अंक यानी 0.77 फीसदी बढ़त के साथ 5,564.30 अंक के स्तर पर बंद हुआ।विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की तरफ से घरेलू बाजार में डाली जा रही पूंजी से निवेशक खासे उत्साहित दिख रहे हैं। पूंजी बाजार नियामक सेबी के प्रारंभिक आंकड़ों के मुताबिक गुरुवार को भी विदेशी संस्थागत निवेशकों ने घरेलू बाजार में 23.24 करोड़ डॉलर मूल्य के शेयरों की खरीदारी की। इससे इस वर्ष अब तक एफआईआई द्वारा भारतीय बाजार में किया गया निवेश 4.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यही वजह थी कि शुक्रवार को इंट्रा-डे में सेंसेक्स 18,423.06 अंक तक पहुंच गया।भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़े के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने 2012 में अब तक सात अरब डॉलर की लिवाली कर ली है।
ऐसे में बाजार नियामक सेबी का महत्व काफी बढ़ गया है क्योंकि कारपोरेट गतिविधियों के साथ ही कारपोरेटधोखाधड़ी में भारी इजाफाहो गया है।शेयर बाजार में जब सेबी जैसी कोई नियामक संस्था नहीं थी तो उस समय ब्रोकर्स और शेयर बाजार के खिलाड़ी मनमानी किया करते थे । अनुमान के मुताबिक देश में 500 से ज्यादा कंपनियां हैं जिन्होंने सेबी के नियमों का पालन किए बिना सामूहिक निवेश योजनाओं के जरिए निवेशकों से रकम जमा की है। पिछले कुछ समय में नियामक ने ऐसी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई भी की है। इसी के तहत सेबी ने रोज वैली रियल एस्टेट, सन-प्लांट एग्रो और पर्ल ग्रीन फॉरेस्ट पर नई योजनाएं लाने और जनता से पैसे जमा करने पर पांबदी लगा दी थी।
मालूम हो कि प्रतिभूति बाजार की बदलती जरूरतों और प्रतिभूति बाजार में होने वाले विकास के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 1995, 1999 और 2002 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम 1992 (सिक्यूरिटीज एण्ड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया एक्ट 1992/सेबी अधिनियम) को संशोधित किया गया।
बाजार नियामक सेबी ने कारपोरेट मामलों के मंत्रालाय को 500 से अधिक ऐसी कंपनियों के नाम बताने का फैसला किया है, जिन्होंने सामूहिक निवेश योजना (सीआईएस) नियमों का उल्लंघन करते हुए निवेशकों से धन इकट्ठा किया है।सेबी ऐसी कंपनियों के निदेशकों का नाम मंत्रालय को देगी, ताकि इन कंपनियों और व्यक्तियों को किसी नई कंपनी से जुड़ने से रोका जा सके। सीआईएस ऐसी योजनाएं हैं जिसके तहत कोई कंपनी किसी पूर्व निर्धारित उद्देश्य के लिए निवेशकों से धन इकट्ठा करती है और बाद में मुनाफे या आय में निवेशकों हिस्सा लगाती है। ये योजनाएं भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी के दायरे में आती हैं।
उपेंद्र कुमार सिन्हा ने शुरू में ही अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। 1976 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी सिन्हा ने अपनी पहली सार्वजनिक बैठक में कहा था कि प्रक्रियाओं में तेजी पर हमारा ध्यान होगा। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन के तौर पर एक साल पूरा करने में उन्हें महज 10 दिन (उन्होंने पिछले साल 18 फरवरी को कार्यभार संभाला था) बचे हैं। सेबी प्रमुख के तौर पर पिछले साल 25 मार्च को निदेशक मंडल की पहली बैठक में मौजूदा वित्त वर्ष के लिए उन्होंने जो वादे किए थे उनमें से ज्यादातर पर अमल हो चुका है।इस दावे में कितना दम है, यह देखना अभी बाकी है।ऐसा भी नहीं है कि सबकुछ आसान रहा है। सिन्हा की पहली परीक्षा उस समय हुई जब सेबी के निदेशक मंडल के एक पूर्व सदस्य ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिख कर आरोप लगाया था कि सेबी प्रमुख उन्हें कुछ बड़े मामलों में समझौता करने के लिए कह रहे हैं। लेकिन सिन्हा ने अब्राहम के दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया और वित्त सचिव आर गोपालन को पत्र लिख कर कहा कि समझौता करने जैसी कोई बात नहीं है और न ही उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया है। उसके बाद से ऐसा कुछ नहीं सुना गया है। सिन्हा के लगभग एक साल के कार्यकाल की जो मुख्य बातें रही हैं उनमें सार्वजनिक आरंभिक निर्गम के नियमों के उल्लंघन के लिए कंपनियों और कई अन्य के खिलाफ कार्रवाई रही है। भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सेबी ने आईपीओ शेयरों के लिए सर्किट फिल्टर और कॉल ऑक्शन सहित सूचीबद्धता के दिन कड़े नियम लागू करने का फैसला किया।
सेबी की जांच शुरू होने से पहले ही इनमें से कई कंपनियां और उनके परिचालक व निदेशक नए नाम से कंपनी शुरू कर देते हैं जिससे निवेशकों को नुकसान होता है। सेबी ने कहा कि सैकड़ों कंपनियां सामूहिक निवेश योजना के तहत कारोबार कर रही हैं लेकिन सिर्फ एक इकाई ही सेबी में पंजीकृत है।
सेबी कंपनी मामलों के मंत्रालय से यह आग्रह भी करेगा कि डिफॉल्टर सीआईएस इकाइयों और उनके निदेशकों के नाम को देश के सभी कंपनी पंजीयक को बताए ताकि वे नई कंपनी शुरू न कर सकें। सेबी की मंशा सीआईएस नियमों में व्यापक बदलाव करने की भी है।
दूसरी ओर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शेयर खरीद में अधिग्रहण नियमों का उल्लंघन किये जाने के एक मामले में डालमिया के खिलाफ न्यायिक कारवाई की प्रक्रिया को समाप्त कर दिया।
प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) ने पिछले साल नवंबर में सेबी के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें कहा गया था कि डालमिया ने शेयरों की वापस खरीद मामले में अधिग्रहण संहिता का उल्लंघन किया है, क्योंकि कंपनी ने ऐसा करने से पहले सार्वजनिक घोषणा नहीं की। सेबी ने कल जारी आदेश में कहा, ''रघु हरि डालमिया और 20 अन्य इकाइयों के खिलाफ 28 जनवरी, 2010 में पूर्णकालिक सदस्य के आदेश पर न्यायिक प्रक्रिया शुरू की गई थी और सैट ने इस आदेश को 21 नवंबर, 2011 को खारिज कर दिया। ऐसे में जिन लोगों को नोटिस भेजा गया है उनके खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। इसलिये मामले को यहीं समाप्त किया जाता है।''
इस बीच देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई का बाजार मूल्यांकन 15,510 करोड़ रुपये बढ़कर 1,53,463 करोड़ रुपये हो गया। पिछले हफ्ते कंपनी के शेयर में 11 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई।एसबीआई के बाजार मूल्यांकन में भारी बढ़ोतरी के साथ बीते हफ्ते सेंसेक्स की 10 सबसे मूल्यवान कंपनियों में से 5 के बाजार पूंजीकरण में 35,878 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
एसबीआई ने तीसरी तिमाही के अपने मुनाफे में 16.3 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की। बैंक को 31 दिसंबर 2011 को समाप्त तीसरी तिमाही के दौरान 4,318.08 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ।सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इनफोसिस का बाजार पूंजीकरण 9,642 करोड़ रुपये बढ़कर 1,69,429 करोड़ रुपये रहा, जो एसबीआई के बाद लाभ दर्ज करने वाली दूसरी सबसे बड़ी कंपनी रही।
इसी तरह एनटीपीसी का बाजार मूल्यांकन 6,432 करोड़ रुपये बढ़ा, जबकि एचडीएफसी बैंक ने पिछले सप्ताह अपने बाजार पूंजीकरण में 2,656 करोड़ रुपये जोड़े। साथ ही आईटीसी ने 1,638 करोड़ रुपये जोड़े। हालांकि आरआईएल, ओएनजीसी, टीसीएस, कोल इंडिया और भारती एयरटेल के बाजार मूल्यांकन में कमी दर्ज हुई।
सेबी ने इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट प्रोग्राम (आईपीपी) के नियम जारी कर दिए है। आईपीपी के जरिए कंपनियां प्रमोटर्स की 10 फीसदी तक हिस्सेदारी बेच सकेंगी। शेयर बाजार नियामक सेबी ने निवेशकों के लिए नए नियम अमल में लाने का फैसला किया है। सेबी, नए नियमों के तहत निवेशकों के लेन-देन की लागत कम करना चाहता है।भारतीय म्युचुअल फंड उद्योग और शेयर बाजारों में क्वालीफाईड फॉरेन इन्वेस्टर्स (क्यूएफआई) को सीधे पहुंच की अनुमति मिलने के बाद सिन्हा ने इनके लिए नए निवेश दिशानिर्देंशों की घोषणा की। हालांकि जानकारों ने कुछ नियमों में संशोधन करने का आग्रह किया है।
खुदरा निवेशकों की मदद के लिए सेबी ने कुछ नए उपाय किए हैं जिनका श्रेय भी सिन्हा को जाता है। इनमें से एक है नो योर क्लाइंट (केवाईसी) प्रक्रिया। सेबी ने सभी नए ग्राहकों के लिए केवाईसी रजिस्ट्रेशन एजेंसी (केआरए) अनिवार्य कर दिया है। इससे केवीसी प्रक्रिया छोटी और समान हो गई है और यह केवल एक बार पूरी करनी होती है।
आईपीपी क्यूआईपी की तरह ही ई-ऑक्शन है, जिसके जरिए कंपनियां प्रमोटर्स का हिस्सा इंस्टीट्यूशंस को बेचेंगी। आईपीपी में 2 दिन के लिए ई-ऑक्शन की विंडो खुलेगी। साथ ही, आईपीपी के तहत इंस्टीट्यूशनल इंवेस्टर को नए शेयर भी जारी किए जा सकेंगे। सेबी के नियमों के मुताबिक लिस्टेड कंपनियों के लिए कम से कम 25 फीसदी पब्लिक शेयरहोल्डिंग होना जरूरी है। मार्च 2013 तक निजी कंपनियों को प्रमोटर्स की हिस्सेदारी 75 फीसदी और सरकारी कंपनियों को 90 फीसदी से कम करनी है।
आईपीपी के नियमों का सबसे ज्यादा फायदा 8 सरकारी कंपनियों में हिस्सा बेचने में होगा। सरकारी कंपनियां हिस्सा बेचने के लिए एफपीओ लाने में हिचक रही थीं, क्योंकि शेयर के भाव गिरने का डर था। उच्चतम न्यायालय ने सहारा समूह की उन संपत्तियों की सूची का विवरण मीडिया में लीक करने के लिए सेबी की खिंचाई की है। सहारा ने इस सूची में अपनी वे सम्पत्तियां गिनाईं थीं, जिन्हें उसकी विवादास्पद निवेश योजनाओं में पैसा लगाने वालों के निवेश की सुरक्षा की गारंटी के तौर पर लिया जा सकता था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सहारा के वकील द्वारा सेबी के अधिवक्ता को भेजा गया प्रस्ताव एक टीवी चैनल में लीक होने से 'व्यथित' है। दिन-प्रतिदिन बढ़ती इस प्रकार की घटना से न केवल कारोबारी धारणा पर असर पड़ता है बल्कि न्याय के प्रशासन में भी हस्तक्षेप होता है।मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया, न्यायाधीश एके पटनायक तथा न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार की पीठ ने कहा कि हम इस बात से व्यथित हैं कि अपीलकर्ता (सहारा) के वकील की तरफ से सेबी के अधिवक्ता को भेजा गया प्रस्ताव एक टीवी चैनल को लीक कर दिया गया।
पूंजी बाजार नियामक सेबी को भी ट्विटर, फेसबुक व ब्लॉग्स का चस्का लगता दिख रहा है। निवेशकों को शिक्षित करने तथा अपनी छानबीन संबंधी गतिविधियों को मजबूती देने के लिए सेबी अब इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स की मदद लेने को तैयार है।इसके लिए सेबी विशेषज्ञ आईटी अधिकारियों की नियुक्ति कर रहा है। सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ये आईटी अधिकारी ट्विटर, फेसबुक व ब्लॉग्स जैसे प्लेटफॉर्म पर बाजार से जुड़े ताजातरीन पोस्ट तथा बहस-मुबाहिसों पर नजर रखेंगे।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड(सेबी) ने स्ट्राइड्स आर्कोलैब के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है जिसमें कंपनी ने प्रवर्तकों को तरजीही आधार पर 260 करोड़ रुपये मूल्य के वारंट जारी करने की अनुमति मांगी थी।नियामक ने इस बारे में एक अनौपचारिक निर्देश में कहा कि प्रवर्तक समूह के बीच आपसी स्थानांतरण के लिए तरजीही आवंटन से संबंधित नियम लागू होंगे।
नियामक ने कहा, 'अगर पिछले छह महीनों में प्रवर्तक समूह के बीच आपस में स्थानांतरण होता है तो प्रवर्तक और प्रवर्तक समूह का हिस्सा बनने वाले सभी लोग/इकाइयां तरजीही आधार पर प्रतिभूतियों के आवंटन के लिए अयोग्य हो जाएंगे।'
स्ट्राइड्स ने इस बात पर सेबी से सलाह मांगी थी कि क्या प्रवर्तक समूह के बीच शेयरों कास्थांनांतरण इश्यू ऑफ कैपिटल ऐंड डिस्क्लोजर क्वायरमेंट्स(आईसीडीआर) नियमन के तहत 'बिक्री' मानी जाएगी।
अक्टूबर 2011 में कंपनी के प्रवर्तक समूह-एंगस होल्डिंग्स, छायादीप वेंचर और प्रोनोम्ज वेंचर्स- ने तीन विभिन्न परिचालनों के तहत आपस में 1.26 करोड़ शेयरों का स्थानांतरण किया था। शेयर के आपस में इस स्थानांतरण से कंपनी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी पर कोई असर नहीं पड़ा। इसस पहले नवंबर 2011 में कंपनी के निदेशकमंडल ने प्रवर्तक समूह को 62 लाख परिवर्तनीय वारंट के निर्गम की अनुमति दे दी थी। यह परिचालन प्रति वारंट 425 रुपये पर हुआ था जे 260 करोड़ रुपये हुआ।
सरकार के आगामी बजट में निवेश का अनुकूल माहौल बनाने वाली नीतियों को अहम जगह मिलने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। बजट से पहले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की वित्तीय बाजारों से जुड़े नियामकों के साथ हुई बैठक से संकेत मिले हैं कि बजट में निवेश को प्रोत्साहित करने वाले कदम उठाए जा सकते हैं।
वित्त मंत्री ने शनिवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव और सेबी अध्यक्ष यूके सिन्हा समेत वित्तीय क्षेत्र के विभिन्न नियामकों से मुलाकात की। बैठक में अर्थव्यवस्था में गतिविधियां बढ़ाने और निवेश माहौल सुधारने संबंधी प्रस्ताव तैयार करने को लेकर नियामकों के सुझावों को वित्त मंत्री ने अहम बताया। बैठक के बाद सुब्बाराव ने बताया कि यह वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद [एफएसडीसी] की बजट पूर्व बैठक है। वित्त मंत्री ने सभी नियामकों के विचार सुनें। निश्चित तौर पर आरबीआइ पर वृहत-आर्थिक प्रबंधन और बैंकिंग नियमन दोनों की जिम्मेदारी है। बैठक का नतीजा बजट में दिखेगा।
सेबी कानून *
एक बेहतर नैगम शासन प्रतिभूति बाजार में विनियामक ढांचे का प्रमुख उद्देश्य है। तदनुसार, भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड (सेबी) ने देश में विद्यमान नैगम शासन प्रक्रियाओं की पर्याप्तता का मूल्यांकन करने तथा इन प्रक्रियाओं में और सुधार लाने के उद्देश्य से अनेक प्रयास किए है। यह अपने निम्न कानूनी तथा विनियामक रूपरेखा के प्रयोग के जरिए नैगम शासन के मानकों को क्रियान्वित तथा अनुरक्षित कर रहा है।
1. प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956
इस अधिनियम का अधिनियमन प्रतिभूतियों में लेन देन के व्यवसाय को विनियमित करके उनमें अवांछित सौदों को रोकने तथा उनमें सट्टेबाजी पर रोक लगाने के लिए किया गया था। कोई भी स्टॉक एक्सचेंज, जो मान्यता प्राप्त करने का इच्छुक है, निर्धारित तरीके से केन्द्र सरकार को आवेदन कर सकता है। प्रत्येक आवेदनपत्र में यथा निर्धारित विवरण निहित होंगे तथा उसके साथ संविदाओं के विनियमन तथा नियंत्रण के लिए स्टॉक एक्सचेंज की उप विधियों की प्रति तथा साथ ही सामान्यत: स्टॉक एक्सचेंजों के संघटन से तथा विशेष रूप से निम्न से संबंधित नियमों की प्रति संलग्न की जाएगी।:- (i) ऐसे स्टॉक एक्सचेंज का शासी निकाय, इसका संघटन तथा प्रबंधन की शक्तियां तथा तरीका जिससे व्यवसाय का लेन देन किया जाना है; (ii) स्टॉक एक्सचेंज के पदधारकों की शक्तियां तथा कर्त्तव्य; (iii) विभिन्न श्रेणियों के सदस्यों की स्टॉक एक्सचेंज में प्रविष्टि, सदस्यता के लिए अर्हकताएं तथा स्टॉक एक्सचेंज से या उसमें सदस्यों का निष्कासन, निलम्बन, बहिष्करण तथा पुन: प्रवेश ; (iv) उन मामलो में स्टॉक एक्सचेंज के सदस्यों के रूप में भागीदारियों के पंजीकरण के लिए प्रक्रिया जहां नियमों से ऐसी सदस्यता की व्यवस्था है, तथा प्राधिकृत प्रतिनिधियों तथा लिपिकों का नामांकन तथा नियुक्ति।
प्रत्येक मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज केन्द्र सरकार को वार्षिक रिपोर्ट की एक प्रति प्रस्तुत करेगा तथा ऐसी वार्षिक रिपोर्ट में यथा निर्धारित विवरण निहित होंगे। यह निम्न मामलों में से सब की या किस एक की व्यवस्था करने के लिए नियम बना सकता है या अपने द्वारा बनाए गए नियमों में संशोधन कर सकता है, नामत; (i) किसी भी बैठक में स्टॉक एक्सेचेज के समक्ष प्रस्तुत किसी भी मामले के संबध में केवल सदस्यों के लिए मतदान अधिकार सीमित करना; (ii) किसी भी बैठक में स्टॉक एक्सचेंज के समक्ष प्रस्तुत किसी मामले के संबंध में मतदान अधिकारों का विनियमन ताकि प्रत्येक सदस्य को स्टॉक एक्सचेंज की प्रदत्त इक्विटी पूंजी में अपने हिस्से के बावजूद केवल एक ही मत का हक प्राप्त हो; (iii) स्टॉक एक्सचेंज की बैठक में भाग लेने तथा मतदान करने के लिए अपने परोक्षी के रूप में किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करने के सदस्य के अधिकार पर प्रतिबंध, इत्यादि।
यदि केन्द्र सरकार की राय में, कोई आपात स्थिति उत्पन्न हुई है तथा उस आपात स्थिति उत्पन्न हुई है तथा उस आपातस्थिति का सामना करने के प्रयोजन से केन्द्र सरकार उचित समझती है तो वह सरकारी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसा करने के लिए कारण बताते हुए मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज को निदेश दे सकती है कि वह अधिसूचना में यथा विर्दिष्ट अवधि के लिए, जो सात दिन से अधिक नहीं होगी, तथा निर्धारित शर्तो के अध्यधीन अपने ऐसे व्यवसाय को निलम्बित करे तथा यदि केन्द्र सकरार की राय में कारोबार के हित में या जनहित में यह आवश्यक है कि इस अवधि को बढाया जाए तो वह समान प्रकार की अधिसूचना द्वारा उक्त अवधि को समय समय पर बढा सकती है।
प्रतिभूति संविदा (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2007 का अधिनियमन ''प्रतिभूतियों'' की परिभाषा के अंतर्गत प्रतिभूतिकरण लिखतों को शामिल करने तथा प्रतिभूति लिखतों के निर्गम के लिए प्रकटन आधारित विनियमन तथा उसकी प्रक्रिया की व्यवस्था करने के उद्देश्य में प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 में आगे और संशोधन करने के लिए किया गया है। ऐसा इस बात को ध्यान में रख कर किया गया है कि प्रतिभूतिकरण लेनदेनो के अंतर्गत लिखतों या प्रमाणपत्रों के लिए प्रतिभूति बाजार में पर्याप्त संभाव्यता है। इसके अतिरिक्त, इन लिखतों के लिए प्रतिभूति बाजार ढांचे का प्रतिबलन स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार को सुकर बनाएगा तथा बदले में गहराई तथा नकदी के अर्थ में बाजार के विकास में सहायक होगा।
2. भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड, 1992
इस अधिनियम का अधिनियमन प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों का संरक्षण करने तथा प्रतिभूति बाजार के विकास का संवर्धन करने तथा उसे विनियमित करने तथा उससे संबधित या आनुषंगिक मामलों के लिए किया गया था। इस प्रयोजनार्थ, सेबी (बोर्ड) विनियमन द्वारा निम्न को विनिर्दिष्ट करता है:- (i) पूंजी के निर्गम, प्रतिभूतियों के अंतरण संबंधी मामले तथा उससे आनुषंगिक अन्य मामले, तथा (b) तरीका जिससे ऐसे मामलों का प्रकटन कम्पनियों द्वारा किया जाएगा।.
कोई भी स्टॉक ब्रोकर, उप ब्रोकर, शेयर अंतरण एजेंट, निर्गम का बैंककार, न्यास विलेख का न्यासी निर्गम का रजिस्ट्रार, मर्चेट बैंककार, हामीदार, पोर्टफोलियो प्रबंधन, निवेश सलाहकार तथा ऐसा अन्य मध्यवर्ती, जो प्रतिभूति बाजार से संबद्ध हो, प्रतिभूतियों का क्रय, विक्रय या उनमें लेनदेन नही करेगा सिवाएं इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए विनियमों के अनुसार बोर्ड से प्राप्त पंजीकरण प्रमाणपत्र की शर्तो के अंतर्गत तथा उनके अनुसार।
कोई भी डिपाजिटरी, भागीदार, प्रतिभूतियों का संरक्षक, विदेशी संस्थागत निवेशक दर निर्धारण अभिकरण, या प्रतिभूति बाजार से संबद्ध कोई अन्य मध्यवर्ती जिसे बोर्ड अधिसूचना द्वारा इस संबंध में विनिर्दिष्ट करे, प्रतिभूतियों का क्रय, विक्रय या उनमें लेनदेन नही करेगा सिवाएं इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए विनियमों के अनुसार बोर्ड से प्राप्त पंजीकरण प्रमाणपत्र की शर्तो के अंतर्गत तथा उनके अनुसार।
इसके अतिरिक्त, कोई भी व्यक्ति म्यूचुअल फंडों सहित किसी उद्यम पूंजीनिधि या सामूहिक निवेश को प्रायोजित नहीं करेगा या कराएगा अथवा उसका संचालन नहीं करेगा या कराएगा जब तक कि उसने विनियमों के अनुसार बोर्ड से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं कर लिया हो।
पंजीकरण के लिए प्रत्येक आवेदनपत्र विनियमों द्वारा यथा निधार्रित तरीके से तथा निर्धारित शुल्क के भुगतान पर दिया जाएगा। बोर्ड आदेश द्वारा किसी पंजीकरण प्रमाणपत्र को इस अधिनियम के अंतर्गत यथा निर्धारित तरीके से निलम्बित या निरस्त कर सकता है। तथापि, ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जाएगा जब तक कि संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का युक्तिसंगत अवसर न प्रदान किया गया हो।
3. निक्षेपागार अधिनियम, 1996
इस अधिनियम का अधिनियमन प्रतिभूतियों में निक्षेपागारों के विनियमन की व्यवस्था करने तथा उससे जुडे या उसके आनुषंगिक मामलो के लिए किया गया था। इससे स्क्रिपरहित कारोबार प्रणाली तथा निपटान की शुरूआत की व्यवस्था की गई है जिसे प्रतिभूति बाजारों के प्रभावी कार्यकरण के लिए आवश्यक समझा गया है। अधिनियम के अनुसार, शब्दा ''निक्षेपागार'' का अर्थ है ''कम्पनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत निर्मित तथा पंजीकृत कम्पनी तथा जिसे भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड अधिनियम 1992 की धारा 12 की उपधारा (1 क) के तहत पंजीकरण पमाणपत्र प्रदान किया गया है।
कोई भी डिपाजिटरी निक्षेपागार के रूप में कार्य नहीं करेगा जब तक कि उसने बोर्ड (सेबी) से व्यवसाय आरम्भ करने का प्रमाणपत्र न प्राप्त कर लिया हो। बोर्ड ऐसा प्रमाणपत्र तभी देगा यदि वह संतुष्ट है कि निक्षेपागार में अभिलेखो तथा लेनदेनों की हेराफेरी को रोकने के लिए पर्याप्त प्रणालियां तथा सुरक्षोपाय है। तथापि, प्रमाणपत्र देने से मना नही किया जाएगा जब तक कि संबंधित निक्षेपगार की सुनवाई का युक्तिसंगत अवसर प्रदान न किया गया हो।
निक्षेपागार एक या अधिक भागीदारों के साथ उसके एजेंट के रूप में ऐसे तरीके से कारार करेगा जैसकि उपविधियो द्वारा विनिर्दिष्ट किया गया हो। कोई भी व्यक्ति किसी भागीदार के माध्यम से किसी भी निक्षेपागार के साथ उपनिधियों द्वारा यथा विनिर्दिष्ट स्वरूप में उसकी सेवाओं का उपभोग करने के लिए करार कर सकता है। ऐसा कोई भी व्यक्ति निर्गमकर्ता को विनियमों द्वारा यथा विर्निदिष्ट तरीके से प्रतिभूति प्रमाणपत्र अभ्यर्पित करेगा जिसके लिए वह निक्षेपागार की सेवाओं का लाभ उठाना चाहता है। प्रतिभूति पमाणपत्र प्राप्त होने पर निर्गमकर्ता प्रतिभूति प्रमाणपत्र को निरस्त कर देगा तथा इसके अभिलेखों में उस प्रतिभूति के संबंध में पंजीकृत मालिक के रूप में निक्षेपागार का नाम दर्ज कर देगा तथ निक्ष्ज्ञेपागार को तदनुसार सूचित करेगा। सूचना प्राप्त होने पर निक्षेपागार अपने रिकोर्डो में लाभानुभोगी स्वामी के रूप में उल्लिखित व्यक्ति का नाम प्रविष्ट कर लेगा।
किसी भागीदार के सूचना प्राप्त होने पर, प्रत्येक निक्षेपागार अंतरिक के नाम में प्रतिभूति का अंतरण पंजीकृत कर लेगा। यदि किसी प्रतिभूति का लाभानुभोगी स्वामी या अंतरिती ऐसी प्रतिभूति की अभिरक्षा लेना चाहे तो निक्षेपागार निर्गमकर्ता को तदनुसार सूचित करेगा।
निर्गामकर्ता द्वारा पेशकश की गई प्रतिभूतियों में अभिदान करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यह विकल्प होगा कि वह प्रतिभूति प्रमाणपत्र प्राप्त करे अथवा निक्षेपागार में प्रतिभूतियां धारित करे। जहां कोई व्यक्ति निक्षेपागार में प्रतिभूति धारित रखने का विकल्प चुनता है, वहां निर्गमकर्ता ऐसे निक्षेपागार के प्रतिभूति के आवंटन के ब्यौरे सूचित करेगा तथा ऐसी सूचना प्राप्त होने पर, निक्षेपागार उस प्रतिभूति के लाभानुभोगी स्वामी के रूप में आवंटिती के नाम को अपने रिकोर्डों में प्रविष्ट करेगा।
डिपाजिटरी को लाभानुभोगी स्वामी की ओर से प्रतिभूति के स्वामित्व का अंतरण प्रभावी करने के प्रयोजनार्थ पंजीकृत स्वामी माना जाएगा तथापि उसे अपने द्वारा धारित प्रतिभूतियों के संबंध में कोई मतदान अधिकारों या अन्य कोई अधिकार प्राप्त नहीं होंगे।
यदि बोर्ड संतुष्ट है कि जनहित में या निवेशकों के हित में ऐसा करना आवश्यक है तो वह लिखित में निम्न आदेश दे सकता है; (i) किसी भी निर्गमकर्ता, निक्षेपागार, भागीदार या लाभानुभोगी स्वामी को निक्षेपागार में धारित प्रतिभूतियों के संबंध में लिखित में ऐसी सूचना प्रस्तुत करने के लिए कहना जो उसे उपेक्षित हो, अथवा (ii) किसी भी व्यक्ति को निर्गमकर्ता, लाभानुभोगी स्वामी निक्षेपागार या भागीदार के मामलों के संबंध में जांच निरीक्षण करने के लिए प्राधिकृत करना जो आदेश में यथा विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर ऐसी जांच या निरीक्षण की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
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