उद्योग जगत आर्थिक सुधारों में और तेजी के पक्ष में, बजट में बेल आउट का बेसब्री से इंतजार
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को नई दिल्ली में वित्तीय क्षेत्र के नियामकों के साथ एक बैठक की और देश में निवेश के माहौल में सुधार लाने के लिए जरूरी बजटीय व्यवस्था करने से सम्बंधित उनके प्रस्तावों पर विचार विमर्श किया।भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अध्यक्ष यू.के. सिन्हा, पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएफआरडीए) के अध्यक्ष योगेश अग्रवाल, बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) के अध्यक्ष जे. हरिनारायण ने इस बैठक में हिस्सा ली। ये सभी वित्तीय स्थायित्व और विकास परिषद के सदस्य हैं।
बैठक में वित्त मंत्रालय के सचिव भी शामिल हुए।
समूचे उद्योग जगत की निगाहें इस बैठक पर टिकी हुई हैं, जिसमें वित्तीय व मौद्रिक नीतियों को अंतिम रुप दिये जाने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से आर्थिक सुधारों में गति जरूर आयी है, पर मंदी के साये में उद्योग जगत को करों में और छूट चाहिए।इस चुनौती को इस तरह से निपटना कि उद्योग जगत से लेकर आम आदमी खुश दिखे, सरकार के लिए और भी गंभीर चुनौती है। उद्योग जगत को इस बात का बेसब्री से इंतजार है कि राजनीतिक मजबूरियों और घटक दलों की आपत्तियों को दरकिनार करके बजट में बेल आउट की गुंजाइश कैसे निकालते हैं वित्त मंत्री।इंतजार है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इस बार के बजट में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करें। पूरा 2011 इस शिकायत के बीच गुजरा कि अपने दूसरे कार्यकाल में मनमोहन सरकार देश, खासकर अर्थव्यवस्था को कोई निश्चित दिशा देने में विफल है और नीति संबंधी फैसले लेने की उसकी इच्छाशक्ति चुक गई है।हालांकि पिछले एक महीने में विदेशी निवेश, बिजली, बुनियादी ढांचे, दवा उद्योग, तेल एवं गैस आदि से जुड़े मुद्दों पर निर्णय प्रक्रिया में प्रधानमंत्री ने अपनी भागीदारी काफी बढ़ाई है और उसके नतीजे भी अब सामने आ रहे हैं। यह अपेक्षा है कि अगले महीने नया बजट पेश होने के बाद निवेश के लिए बेहतर स्थितियां बनेंगी, जिससे कारोबार एवं बाजार को नई ताकत मिलेगी। महंगाई दर में गिरावट से भी निवेश को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां अपनाने के अनुकूल हालात बने हैं।
ग्लोबल आर्थिक मंदी का घरेलू अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे प्रभावों से चिंतित भारतीय उद्योग जगत ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को आगामी आम बजट में करों के मौजूदा स्तर पर बनाए रखने का सुझाव दिया है। इसके साथ ही उद्योग जगत ने आर्थिक विकास के लिए छूट की सीमा बढ़ाने और व्यक्तिगत कर के दायरे में इजाफे का आग्रह किया है।भारतीय उद्योग जगत को इस बात का डर सता रहा है कि नया साल उनके लिए मुश्किल भरा हो सकता है। उन्हें लगता है कि वैश्विक आर्थिक संकट वर्ष 2012 में अपना पूरा असर दिखा सकता है। प्रमुख औद्योगिक संगठन फिक्की ने अपने सर्वे में कहा है कि अनिश्चित आर्थिक नजरिए के चलते सर्वे में भाग लेने वाले आधे से ज्यादा उद्योगों ने कहा कि वे भविष्य में अच्छे अवसरों के लिए अपनी निवेश योजनाओं को टाल रहे हैं।
औद्योगिक उत्पादन दर घटने पर उद्योग जगत ने निराशा जताई है। उसने देश में निवेश बढ़ाने के साथ बैंकों के ब्याज दर कम करने की सिफारिश भी की है। फिक्की अध्यक्ष आर वी कनोरिया का कहना है कि मौजूदा समय में मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां कच्चे माल और ईंधन की बढ़ती कीमत के साथ ऊंचे ब्याज दर की समस्या से घिरी हुई है।
इसलिए आगामी बजट में उत्पाद शुल्क में इजाफा नहीं होना चाहिए। आरबीआई को भी ब्याज दर में कटौती पर विचार करना चाहिए। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) का कहना है कि फिलहाल सरकार को बड़ी परियोजनाओं को लागू करने पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। ताकि निवेश बढ़ने के साथ देश के सकल घरेलू विकास दर में भी इजाफा हो सके। महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिए आरबीआई को अब ब्याज दरों में कटौती पर निर्णय लेना चाहिए।
बहरहालबढ़ते राजकोषीय घाटे का बोझ और कर उगाही उम्मीद से कम होने के कारण वित्त मंत्रालय पर सरकारी बजट संतुलित करने का दबाव बना हुआ है। इस वजह से मंत्रालय बजट में रियायतों का पिटारा खोलने में कंजूसी कर सकता है।सरकारी खजाने में लगातार चपत लगने से परेशान सरकार के एजेंडे में फिलहाल आम आदमी को राहत देने के उपायों पर ध्यान देने की बजाए विकास दर बढ़ाने और विदेशी निवेशकों को भारत का रास्ता दिखाना है। दरअसल, एक ओर उम्मीद से कम प्रत्यक्ष कर जमा हो पाया है, तो दूसरी ओर विनिवेश लक्ष्य भी सरकार के अनुमान से काफी पीछे है। विनिवेश सचिव ने भी यह साफ कर दिया है 40 हजार करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य को पाना मौजूदा आर्थिक परिप्रेक्ष्य में संभव नहीं है।
नए वित्त वर्ष 2012-13 का आम बजट शुक्रवार, 16 मार्च को पेश होगा। उसके एक दिन पहले 15 मार्च को दो चीजें बजट का माहौल व पृष्ठभूमि बनाएंगी। एक तो आर्थिक समीक्षा और दो, रिजर्व बैंक की मध्य-तिमाही मौद्रिक नीति समीक्षा। पूरी उम्मीद है कि उस दिन रिजर्व बैंक नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को 5.50 फसीदी से आधा फीसदी घटाकर 5 फीसदी कर देगा। लेकिन सारा कुछ रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव की सोच से तय होगा क्योंकि वे सबकी सुनने के बाद फैसला अपने विवेक से ही करते हैं।सूत्रों का कहना है कि इसमें ब्याज की दर तो नहीं घटाई जाएगी। लेकिन सीआरआर में आधा फीसदी कमी किए जाने की पूरी संभावना है। कारण, 24 जनवरी को रिजर्व बैंक ने सीआरआर में आधा फीसदी कटौती इसीलिए की थी ताकि बैंकों को ज्यादा धन उपलब्ध हो सके। इससे करीब 32,000 करोड़ रुपए मुक्त हुए थे। मालूम हो कि सीआरआर वह अनुपात है जिसके हिसाब से बैंकों को अपनी कुल जमा का हिस्सा रिजर्व बैंक के पास नकद रखना पड़ता है।
एफएसडीसी की स्थापना 2011 में की गई। यह देश में सभी वित्तीय नियामकों का छाता संगठन है, जिसके प्रमुख केंद्रीय वित्त मंत्री होते हैं। यह देश की आर्थिक स्थिति पर नजर रखता है और आर्थिक नीति का निर्धारण करता है।
बैठक के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर सुब्बाराव ने संवाददाताओं से कहा, "बैठक में सभी नियामकों की बातें सुनी गईं। आज लिए गए फैसलों को आम बजट में शामिल किया जाएगा।"
पीएफआरडीए के अध्यक्ष योगेश अग्रवाल ने कहा कि नियामकों ने देश की अर्थव्यवस्था में मजबूती लाने और देश की बेहतर निवेश स्थल की छवि बनाने के लिए अपनी राय दी।
उन्होंने कहा, "नियामकों ने बजट के लिए ऐसे कदम सुझाए, जिससे निवेश और विकास में तेजी आए तथा महंगाई कम हो।"
मुखर्जी 2012-13 के लिए 16 मार्च को आम बजट पेश करेंगे।
मालूम हो कि चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटा 4.6 प्रतिशत के बजट अनुमान से ऊपर निकल जाने की आशंकाओं के बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सुझाव दिया है कि आगामी बजट में सब्सिडी पर अंकुश और राजकोषीय घाटे को कम करने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
अहलूवालिया ने कहा कि आगामी बजट में सबसे ज्यादा ध्यान राजकोषीय घाटे को कम करने और सब्सिडी को नियंत्रित करने पर दिया जाना चाहिये, हालांकि इसके साथ ही उन्होंने स्वीकार भी किया कि यह आसान काम नहीं है।
मौद्रिक एवं ऋण नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा में रिजर्व बैंक ने भी सरकार का राजकोषीय घाटा कम करने पर जोर दिया है। अहलूवालिया ने कहा कि वित्त मंत्री ने कई मौकों पर यह कहा है कि वह वित्तीय मजबूती के रास्ते पर लौटना चाहते हैं। अब इस दिशा में क्या कुछ हुआ है यह हमें बजट से ही पता चलेगा, लेकिन इस बारे में मुझे कोई संदेह नहीं है कि अगले वित्त वर्ष की शुरुआत से सरकार को इस रास्ते पर चलना चाहिये।
उन्होंने कहा कि हमें बजट से पूरी तस्वीर साफ होनी चाहिए कि इस दिशा में क्या कुछ हो सकता है और कितने समय में इसे किया जायेगा। उन्होंने कहा पूरी दुनिया में निवेशक यह जानने को इच्छुक हैं कि मध्यम काल में भारत की वित्तीय स्थिति कैसी होगी।
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी सहित सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों ने हाल में कहा भी है कि इस वर्ष राजकोषीय घाटे के निर्धारित लक्ष्य को पाने में मुश्किल हो सकती है।
आम आदमी के हिस्से में मंहगाई के सिवाय कुछ और मिलने के आसार कम ही हैं।आम बजट में सब्सिडी को कम करने की योजना पर लोगों की नब्ज टटोलने के लिए प्रणब मुखर्जी ने एक नया सिगूफा छोड़ा है। वित्त मंत्री ने अपनी इस चाल में सब्सिडी के बोझ को कम करने की बात कहते हुए इसके चलते खुद सो न पाने की बात तक कह डाली है। मुखर्जी ने कहा था कि सब्सिडी के बारे में सोच कर उनकी रातों की नींद उड़ी हुई है।मुखर्जी की इस चाल के बाद अलग-अलग सेक्टरों सहित आम आदमी की राह सब्सिडी कम करने की योजना पर आने लगा है। जहां एक ओर ऊर्जा क्षेत्र, गैस और पेट्रोलियम सेक्टर ने सरकार के इस कदम का स्वागत करने के संकेत दिए हैं। वहीं ऑटोमोबाइल लॉबी डीजल के दाम बढ़ाने और गाड़ियों पर अधिक कर की मार डालने के संकेतों के बाद से सरकारी अमले पर लगातार दबाव बनाने में लगा हुआ है।
इस समय देश में व्यक्तिगत आयकर देनेवाले लोग कुल तीन करोड़ हैं। इनमें से 2.02 करोड़ की सालाना आय दो लाख रुपए तक है। 56.73 लाख लोगों की सालाना आय दो से चार लाख रुपए है। चार से दस लाख रुपए तक सालाना आय के करदाता 36.07 लाख हैं। दस से बीस लाख कमानेवालों की संख्या 3.35 लाख है। साल में 20 लाख रुपए से ज्यादा कमानेवालों की संख्या केवल 1.85 लाख है। इन्होंने बीते वित्त वर्ष 2010-11 में 53,170 करोड़ रुपए का टैक्स दिया, जबकि दस से बीस लाख रुपए कमानेवालों ने 10,185 करोड़ और दस लाख तक कमानेवालों ने 21,094 करोड़ रुपए का टैक्स जमा कराया।
सरकार इस बजट में रसोई गैस (एलपीजी) पर सब्सिडी को 50 फीसदी तक कम कर सकती है। ऐसे में 1 सिलंडर की कीमत 600 से 650 रुपये तक पहुंचने की उम्मीद जतायी जा रही है। हालांकि जानकार कुछ खास वर्ग पर इसका कम असर पड़ने की बात भी कर रहे हैं।सूत्रों के मुताबिक, एलपीजी, कैरोसिन और डीजल पर सब्सिडी के बढ़ते बोझ के चलते सरकार की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। ऐसे में बजट में केंद्र सरकार इसकी सब्सिडी को प्रति सिलेंडर घटाकर 150 से 180 रुपये ही रखने का मन बना रही है। वर्तमान में यह सब्सिडी करीब 400 रुपये तक है।
योजना विभाग के मुताबिक, देश में हर साल करीब 14000 हजार टन एलपीजी गैस का उपभोग किया जा रहा है। इसका करीब 90 फीसदी इस्तेमाल घरेलू कामों में होता है। साथ ही इसके इस्तेमाल दर में भी हर साल 5 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हो रहा है। वर्तमान में देश के 12.5 करोड़ परिवारों के पास रसोई गैस पहुंच रही है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 में एलपीजी सब्सिडी के रूप में केंद्र सरकार पर करीब 35000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का बोझ पड़ रहा है। वहीं कैरोसीन और डीजल सब्सिडी को मिलाकर ये आंकड़ा काफी बढ़ जाता है।
और तो और,सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा मेंभ्रष्टाचार पर केंद्र और राज्यों की खींचतान का शिकार हो गई है। चालू साल के लिए आम बजट में योजना को आवंटित धन का आधा भी खर्च नहीं हो पाया है, जिसका सीधा असर गरीबों की रोजी-रोटी पर पड़ा है। यही वजह है कि राज्यों के 'रवैए' से नाखुश केंद्र सरकार आगामी आम बजट में इसके आवंटन में भारी कटौती कर सकती है।योजना के क्रियान्वयन में हुए घपलों को देखते हुए लगभग एक दर्जन बड़े राज्यों में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] से जांच कराई जा रही है। जांच के डर से भी तमाम राज्यों में योजना के तहत अंधाधुंध होने वाले खर्च पर लगाम लगी है।
चालू वित्त वर्ष 2011-12 के बजट में मनरेगा के लिए 40 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अभी तक 22 हजार करोड़ रुपये जारी किए हैं। इसकेविपरीत 20 हजार करोड़ रुपये भी खर्च नहीं हो पाए हैं। मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक मार्च के आखिर तक थोड़ा बहुत खर्च और बढ़ सकता है।
सरकार 12वीं पंचवर्षीय योजना में रेलवे को 2,00,000 करोड़ रुपये कम देने के मूड में है। वहीं रेल मंत्रालय ने इन 5 सालों के लिए 3 गुना से भी अधिक धनराशि खर्च करने की योजना बना रखी है। ऐसे में रेलवे को बाकी पैसा जुटाने के लिए आम आदमी पर बोझ डालने के साथ ही अन्य उपायों पर भी विचार करना पड़ सकता है।
अप्रैल 2012 से चालू होने वाली 12वीं पंचवर्षीय योजना में रेलवे ने 7,19,677 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है। ऐसे में 2 लाख करोड़ रुपये कम आबंटित होने से रेलवे को कई महत्वपूर्ण योजनाओं से हाथ पीछे खींचना पड़ेगा। साथ ही रेल यात्रियों पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है।सूत्रों के अनुसार, जरूरत का करीब 50 फीसदी हिस्सा (3,54,024 करोड़ रुपये) सरकार के बजटरी सपोर्ट (जीबीएस) से मिलेगा। वहीं 28 फीसदी इंटरनल रिसोर्स से और करीब 20 फीसदी पीपीपी-वैगन इंवेस्टमेंट स्कीम से जुटाया जायेगा। इसके अलावा बचा 2 फीसदी रेलवे सेफ्टी फंड से मिलने की संभावना है। जबकि रेल मंत्रालय जीबीएस से इससे अधिक धन की मांग कर रहा है।
माना जा रहा है कि बजट में एफडी पर मिलने वाली टैक्स छूट के लॉक इन पीरियड को कम किया जा सकता है। अभी पांच साल के एफडी पर टैक्स छूट मिलती है। इसे घटाकर तीन साल किया जा सकता है। हालांकि, यह डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) की सोच के खिलाफ है। डीटीसी में लॉन्ग टर्म सेविंग्स के लिए टैक्स छूट पर जोर है।
म्यूचुअल फंड की इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ईएलएसएस) का लॉक इन पीरियड तीन साल होता है और इसमें निवेश की गई रकम को टैक्स के दायरे से बाहर रखा जाता है। अभी बैंक एफडी पर सालाना 9 फीसदी ब्याज मिल रहा है। वित्त मंत्रलय के एक अधिकारी ने बताया कि बैंकों और आर्थिक संगठनों ने प्री-बजट बैठक में वित्त मंत्री को डिमांड की जो लिस्ट सौंपी थी, उसमें से कुछ प्रपोजल को विचार के लिए शॉर्ट-लिस्ट किया गया है। यह उनमें से एक है। बैंकों ने प्रणब मुखर्जी के साथ बैठक में इकॉनमी के लिए फंड की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा डिपॉजि़ट जुटाने की जरूरत पर जोर दिया था।
किराये से आय पर टैक्स में छूट संभव
सरकार उन मकान मालिकों को टैक्स में राहत दे सकती है जिन्होंने अपना मकान किसी परिवार के लिए किराये पर दिया है। ऐसे मकान मालिकों को किराये से आमदनी पर कम टैक्स चुकाना पड़ेगा। वहीं, व्यावसायिक गतिविधियों व उद्योगों को पॉपर्टी किराए पर देकर भारी भरकम आमदनी पा रहे लोगों पर टैक्स का भार बढ़ सकता है। फिलहाल डीटीसी में हाउस रेंट से आय की सिर्फ एक श्रेणी रखी गई है। इसमें अलग-अलग नहीं बताया है कि रिहायशी और व्यवसायिक उद्देश्य के लिए दी प्रॉपर्टी से किराये की आमदनी पर कितना किस हिसाब से टैक्स लिया जाए। डीटीसी विधेयक की धारा 24 से 29 तक हाउस रेंट से आय के बारे में प्रावधान हैं। भाजपा नेता यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली इस स्थायी समिति की बैठक में शुक्रवार को इस पर विचार किया गया।
सेविंग्स जीडीपी 32 फीसदी
देश में सेविंग्स जीडीपी का 32 फीसदी है। इसमें बैंकों की हिस्सेदारी सिर्फ एक-तिहाई है। जानकारों के मुताबिक दूसरे सोर्स के मुकाबले फिक्स्ड डिपॉजि़ट लो-कॉस्ट फंड है। इससे बैंकों को सस्ती दरों पर फंड जुटाने और उसे ग्राहकों को कम ब्याज दर पर लोन देने में मदद मिलती है।
बुनियादी क्षेत्र का दर्जा दिए जाने की मांग
मुखर्जी के साथ बजट पूर्व परिचर्चा के दौरान उद्योगपतियों ने स्वास्थ्य सेवाओं को सेवा कर के दायरे से बाहर रखने और न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) को तर्कसंगत बनाने का आग्रह भी किया। उन्होंने विमानन, दूरसंचार, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के क्षेत्र को बुनियादी क्षेत्र का दर्जा दिए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को यथाशीघ्र लागू किया जाना चाहिए।
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