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Sunday 17 February 2013

मरों हुओं पर वार का असर भी क्या होने वाला है?


मरों हुओं पर वार का असर भी क्या होने वाला है?

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

फिर एक बार मैंगो भारतीय जनता को खुलीअर्थव्यवस्था की सरकार तेल में भुनने जा रही है। अब तो लोगों को जलन भी महसूस नहीं ​​होती। रसोई में आग वैसे भी बुझ नहीं रही है। मरों हुओं पर वार का असर भी क्या होने वाला है? कारपोरेट सरकार और धर्मराष्ट्रवाद की अद्बुत युगलबंदी है। फेवीकोल का सबसे बेहतरीन विज्ञापन। संघ परिवार के खिलाफ गेरुआ आतंकवाद के लिए जिहादी तेवर अपनाने वाले गृहमंत्री संसद के बजट सत्र से पहले माफी मांगने की मुद्रा में आ गये हैं। हिंदुत्व का झूठा विवाद हवा हवाई हो गया। हिंदुओं की परवाह पक्ष विपक्ष दोनों को नहीं है। हिंदुत्व  तो अब वोट बटोरने का कायदा है। नरसंहार संस्कृति के शिकार निनानब्वे फीसद लोगो में तो ज्यादातर हिंदु ही हुए।हिंदुओं की कितनी परवाह है,इलाहाबाद महाकुंभ में लाठी चार्ज से मची भगदड़ में ३६ श्रद्धालुओं की असमय मौत से इसका खुलासा अगर नहीं हुआ तो  राम भला करें हिंदुत्व की इस पैदल सेना का । पर बंदोबस्त इतना चाक चौबंद है कि दूसरे चरण के सुधारों के अश्वमेध यज्ञ में मैंगो जनता की बलि चढ़ने से राम भी शायद ही बचा सकें!खुदरा मुद्रास्फीति लगातार चौथे महीने बढते हुए जनवरी 2013 में 10.79 फीसदी पर पहुंच गई। दिसंबर 12 में यह 10.56 फीसद थी। सब्जी, खाद्य तेल, मोटे अनाज और दूध, मांस और प्रोटीन वाली खाद्य वस्तुओं के खुदरादामों के ऊंचे रहने से मुद्रास्फीति बढ़ी है।

गंवई हिंदुत्व खुले बाजार के ग्लोबल  शहरी हिंदुत्व के आगे बेरंग हो गयी है।एक कारोबारी संघ ने देश में वेलेंटाइन डे का बाजार 15 अरब रुपये (2.7 करोड़ डॉलर) का आंका है। संघ ने अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सर्वेक्षण में बड़े शहरों के 800 कंपनी अधिकारियों और 150 शिक्षा संस्थानों के 1,000 विद्यार्थियों से पूछताछ की।एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने कहा कि बाजार का आकार इतना बड़ा इसलिए है क्योंकि वेलेंटाइन डे एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि सप्ताह भर चलने वाला उत्सव है।विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) इस बार वैलेंटाइन डे का विरोध नहीं करेगी, बल्कि वह जरूरतमंद महिलाओं को हेल्पलाइन के जरिये सहायता मुहैया कराएगी। विहिप के प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि वैलेंटाइन डे के खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं होगा। युवाओं को भी भद्र व्यवहार करना चाहिए। इस बार हमने महिलाओं की मदद के लिए नई हेल्पलाइन सेवा 011-23616372 जारी करने का निर्णय लिया है।बंसल ने कहा कि हेल्पलाइन हर वक्त मौजूद रहेगी। विहिप की युवा शाखा दुर्गा वाहिनी तथा बजरंग दल के सदस्य इस पर आने वाले फोन उठाएंगे। यदि किसी अप्रिय वारदात की सूचना मिलती है तो हम नजदीकी पुलिस स्टेशन को इस बारे में सूचना देंगे।

संसद का बजट सत्र 21 फरवरी से शुरू होगा। इस दौरान अगले वित्तीय वर्ष [2013-14] के लिए आम बजट 28 फरवरी को पेश किया जाएगा। साथ ही 26 फरवरी को रेल बजट पेश किया जाएगा।

सूत्रों ने बताया कि संसद का बजट सत्र 21 फरवरी से शुरू होगा और 10 मई को समाप्त होगा। बजट सत्र का पहला चरण 22 मार्च को खत्म होगा। इस दौरान 26 फरवरी को रेल बजट पेश किए जाने के साथ ही अगले दिन आर्थिक सर्वे को पेश किया जाएगा। जबकि 28 फरवरी को आम बजट पेश किया जाएगा। लंबे अंतराल के बाद 22 अप्रैल से इसका दूसरा चरण शुरू होगा और 10 मई तक चलेगा।

सूत्रों ने बताया कि बजट सत्र के कार्यक्रमों को लेकर शुक्रवार को संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी की अहम बैठक होगी।

हिंदुत्व राष्ट्र तत्व है, अगर तत्व ही खत्म हो जाए तो राष्ट्र को नहीं बचाया जा सकता। आज पूरे राष्ट्र के सामने चुनौती है और इससे निपटने में भाजपा ही सक्षम है। सपा बसपा ने प्रदेश को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है, जबकि कांग्रेस को देश के बजाए अपने राजनैतिक हितों की फिक्र है।उक्त विचार पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने रविवार को बुलंदशहर के कलश होटल में आयोजित कार्यकर्ता परिचय सम्मेलन में व्यक्त किए। कल्याण सिंह ने कहा कि जैसे इलाहाबाद में संगम पर नदियों का मिलन होता है, वैसे ही जनवरी में लखनऊ में आयोजित रैली में दो राष्ट्रीय क्रांति पार्टी और भाजपा रूपी दो धाराओं का मिलन हुआ।
आतंकवाद पर उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि आतंकवादियों को चौराहे पर खड़ा कर गोली मार देनी चाहिए। इनका कोई धर्म नहीं होता। पूर्व सीएम ने कहा कि सपा ने प्रदेश को लूटने के लिए चार काउंटर बना लिए हैं। एक काउंटर खुद सीएम अखिलेश यादव चला रहे हैं, बाकी के उनके परिवार के लोग। प्रदेश के बेरोजगार युवकों को भत्ता नहीं रोजगार चाहिए। मुस्लिम तुष्टिकरण पर भी उन्होंने कांग्रेस और सपा को आड़े हाथों लिया।

मजे का एक खुलासा हुआ है ,इ सका मजा लीजिये। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी वैसे भी बहुत सख्त  माने जाते हैं सुधारों के मामले में और अफजल गुरु कसाब प्रकरण से हिंदुत्व की राजनीति पर मंडरा रहे शक के बादल को साफ करने में वे अब नाटा मल्लिक की भूमिका में अवतरित होते हुए लग रहे हैं।अपनी अपनी खैर मनाइये, बस! हेलीकॉप्टर खरीद का यह मामला कभी 2003 से शुरू हुआ था और फरवरी 2010 में परवान चढ़ गया। सात साल में बहुत कुछ इधर-उधर हो गया। एनडीए की सरकार 2004 में चली गई। वायु सेना प्रमुख के रूप मे एयरचीफ मार्शल एस पी त्यागी ने कार्यभार संभाला और वह 2007 में रिटायर हो गए।रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी थे लेकिन एंटनी 2007 में आ गए। मुखर्जी 2007 के बाद पहले विदेश मंत्री बने और बाद में वित्त मंत्री हो गए। लेकिन इटली में चले राजनीतिक घटनाक्रम के कारण इस सौदे में नया मोड़ आ गया। आगुस्ता वेस्टलैंड की पैतृक कंपनी फिनमेक्कानिका में उत्तराधिकार की जंग छिड़ी और उस समय के प्रमुख फ्रांसेस्को गार्गुआंगलिनी और कल गिरफ्तार किए गए फिनमेक्कानिका के अध्यक्ष गीसप ओरसी के बीच घमासान छिड़ा था।इटली में सरकार सिल्वियो बर्लुस्कोनी की थी और उनकी गठबंधन सरकार में शामिल धुर दक्षिणपंथी पार्टी लेगा नोर्ड पर आरोप था कि इस सौदे मे एक बड़ी दलाली इस पार्टी को मिली थी। बर्लुस्कोनी की सरकार बदल गई और मारियो मोटी की सरकार बनी। इस सत्ता परिवर्तन के साथ ही मामले का भंडाफोड़ हो गया। फिनमेक्कानिका मे शीर्ष पद पर एक शख्स था लोरेजा बोर्गोग्नी। वह कंपनी के अध्यक्ष ओरसी से खार खाए हुए था। उसने हेलीकाप्टर सौदे मे दलाली खाए जाने की पोल खोल दी।

वर्तमान सप्ताह के अंत तक पेट्रोल के दाम में प्रति लीटर एक रुपया तथा डीजल की कीमत में प्रति लीटर 50 पैसे तक की बढ़ोतरी हो सकती है। इसकी वजह यह है कि खुदरा तेल विपणन क्षेत्र की सरकारी कंपनियों (ओएमसी) ने लागत के अनुरूप दाम को समायोजित करने की हालिया आजादी के अनुरूप काम करना शुरू कर दिया है।पिछले दो हफ्तों के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतों में आई तेजी के कारण ओएमसी को पेट्रोल पर प्रति लीटर 1.32 रुपये का नुकसान हो रहा है। 15 फरवरी को होने वाली समीक्षा बैठक के दौरान ओएमसी इस नुकसान को ग्राहकों पर डालने पर विचार कर सकती हैं।इसके अलावा, डीजल की कीमतों में भी प्रति लीटर 40-50 पैसे की बढ़ोतरी हो सकती है, जैसा कि सरकार ने पिछले महीने इसके दाम में वृद्धि किए जाने की इजाजत दे दी थी।सरकार की कोशिश यह है कि डीजल के दामों में हर माह प्रति लीटर 40-50 पैसे की बढ़ोतरी तब तक जारी रखी जाए जब तक कि प्रति लीटर डीजल की बिक्री पर होने वाला 9.22 रुपये का नुकसान पूरी तरह से समाप्त न हो जाए।

पिछले नवंबर और अक्टूबर में यह खुदरा भावों पर आधारित मुद्रास्फीति क्रमश: 9.90 फीसदी और 9.75 फीसदी थी। आज जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अनुसार जनवरी में सब्जियों के दाम एक साल पहले की तुलना में 26.11 फीसदी ऊंचे रहे।
खाद्य तेल व चिकनाई के भाव सालाना आधार पर औसतन 14.98 फीसदी तथा मांस, मछली और अंडे 13.73 फीसदी तेज रहे। इसी तरह अनाज और दलहन क्रमश: 14.90 फीसदी और 12.76 फीसदी महंगे हुए। चीनी 12.95 फीसदी ऊंची रही। कपड़े और जूते-चप्पल की कीमतों में भी इस दौरान 11 फीसदी की वृद्धि हुई।

शहरी क्षेत्रों के उपभोक्ताओं से संबंधित खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी में बढ़कर 10.73 फीसदी हो गई, जो पिछले महीने 10.42 फीसदी थी। ग्रामीण आबादी संबंधी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) इसी दौरान बढ़कर 10.88 फीसदी हो गया, जो दिसंबर,12 में 10.74 फीसदी थी।

थोकबिक्री मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित मुद्रास्फीति के जनवरी आंकड़े गुरुवार को जारी किए जाने हैं। दिसंबर,12 में थोकबिक्री मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति 7.24 फीसदी थी। रिजर्व बैंक पांच से छह फीसदी के अधिक की थोक मूल्य मुद्रास्फीति को सहज स्थिति के विपरीत मानता है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार तीन तिमाही तक सख्त नीति अपनाने के बाद पिछले महीने अपने मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा में प्रमुख नीतिगत ब्याज दरों में चौथाई (0.25) फीसदी की कटौती की थी और बैंकों की आरक्षित नकदी पर 0.25 फीसदी की ढील दे कर बैंकों के पास 18,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी सुलभ कराने के कदम उठाए थे। इसका उद्देश्य अर्थिक क्रियाओं को गति प्रदान करने में मदद करना है।

रिजर्व बैंक का अनुमान है कि इस वर्ष मार्च के अंत तक थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 6.8 फीसदी होगी। निरंतर मुद्रास्फीति को लेकर चिंतित रिजर्व बैंक ने अप्रैल 2012 के बाद से प्रमुख ब्याज दरों को बदला नहीं था, जबकि जनवरी 2013 में इसे कम किया। इस बीच औद्योगिक उत्पादन दिसंबर 2012 में 0.6 फीसदी सिकुड़ गया जबकि पिछले वर्ष इसी माह औद्योगिक उत्पादन 2.7 फीसदी बढ़ा था।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में इच्छाशक्ति की कमी और कमजोर पीएम के भाजपा के जुमले सुनते-सुनते बीते तीन साल में कांग्रेस और संप्रग दोनों ही आजिज आ गए थे। मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब व संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी में देरी को लेकर भाजपा ने सरकार और कांग्रेस पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण व आतंकवाद के प्रति नरम रुख रखने के आरोप लगाए। इसी तरह पिछले महीने नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी सेना द्वारा दो भारतीय सैनिकों के सिर काट लेने के मामले में भी भाजपा ने सरकार को काफी भला-बुरा कहा था। लेकिन, कसाब की फांसी के महज ढाई महीने बाद ही अफजल को भी फांसी पर लटकाकर सरकार ने एक साथ विपक्ष के सारे सवालों का जवाब दे दिया। सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि उसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति भी है और जरूरत पड़ने पर वह किसी हद तक जा सकती है।अजमल कसाब और अफजल गुरु के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने फांसी की सजा पाए चार अन्य हत्यारों की दया याचिका खारिज कर दी है। ये चारों कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन के सहयोगी थे और इन्हें 2004 में फांसी की सजा सुनाई गई थी।चंदन तस्कर वीरप्पन के चार साथियों ज्ञानप्रकाशम, सिमोन, मीसेकर और बिलावेंद्रन को 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। ये चारों कर्नाटक में 1993 में 21 पुलिसवालों की लैंडमाइन से हत्या के दोषी पाए गए थे।अपनी फांसी की सजा माफ करने के लिए चारों ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका डाली थी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया है। बताया जाता है कि बेलगाम के जेल प्रशासन को इन चारों की दया याचिका खारिज होने की सूचना भेज दी गई है।

दूसरी ओर,चालू खाता घाटे के लिए सोने के बढ़ते आयात को जिम्मेदार मानते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने घरों में पड़े 20 हजार टन सोने को लुभावनी योजनाओं के जरिए बाजार मे लाने की मुहिम शुरू की है।रिजर्व बैक की इस मुहिम को लेकर सर्राफा कारोबारियों और आम लोग अशंकित हैं। कारोबारियों का मानना है कि इससे देश में सर्राफा कारोबार तो प्रभावित होगा ही, सोने की तस्करी भी बढ़ेगी। आम लोग चिंतित है कि सरकार शायद इसके जरिए आयकर का दायरा बढाने की जुगत में है।देश मे कुल आयातित सोने का 60 प्रतिशत बैंकों के जरिए आयात किया जाता है। लिहाजा आरबीआई ने पहले बैंकों पर सोने के बदले ऋण देने पर पाबंदी लगाई। उसके बाद केंद्र और राज्य स्तर के सहकारी बैंकों को किसी भी रूप में सोने की खरीद के लिए ऋण नहीं देने का आदेश जारी किया और अब उसने वाणिज्यिक बैंकों द्वारा किए जाने वाले सोने के आयात पर अत्यधिक जरूरी परिस्थितियों में आंशिक प्रतिबंध लगाने के विकल्प पर भी विचार करना शुरू कर दिया है।

सार्वजनिक कंपनियों में विदेशी निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम अगले वित्त वर्ष 2013-14 के लिए विनिवेश लक्ष्य को बढ़ाकर 40 हजार करोड़ रुपये कर सकते हैं। इस दौरान 20 कंपनियों को शेयर बाजार में उतारने की योजना है। वित्त मंत्री आम बजट में इसकी घोषणा कर सकते हैं। हाल के महीने में सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री के लिए बाजार में उतारी गई कंपनियों में विदेशी निवेशकों ने खूब निवेश किया है। इससे सरकार उत्साहित है। साथ ही खजाने की हालत दुरुस्त करने के लिए भी यह जरूरी है।

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक विनिवेश विभाग से हुई चर्चा के बाद 40 हजार करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य निर्धारित करने की योजना बनाई जा रही है। अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार को देखते हुए वित्त मंत्री के लिए राजस्व बढ़ाना बड़ी चुनौती है। ऐसे में विनिवेश की तेज रफ्तार से रकम जुटाने में खासी मदद मिल सकती है। अगले वित्त वर्ष में जिन कंपनियों को शेयर बाजार में उतारने के लिए विनिवेश विभाग ने चुना है उनमें कोल इंडिया, इंडियन ऑयल, पीजीसीआइल, एनएचपीसी, नेशनल इलेक्ट्रिक पावर कंपनी और टीएचडीसी प्रमुख हैं। इसके अलावा भेल, निवेली लिग्नाइट और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स के विनिवेश की मंजूरी सरकार पहले ही दे चुकी है। साथ ही हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड की भी बाकी बची 4.42 हिस्सेदारी बेची जानी है। विनिवेश विभाग इन कंपनियों के विनिवेश कैलेंडर तैयार करने में जुटा है।

चालू वित्त वर्ष में सरकार ने विनिवेश से 30 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। मगर अभी तक 21,500 करोड़ रुपये ही जुटाए जा सके हैं। विनिवेश सचिव रवि माथुर ने उम्मीद जताई है कि मार्च तक इसके जरिये 27 हजार करोड़ रुपये जुटा लिए जाएंगे।

आस टूटी- दिसंबर, 2012 में औद्योगिक विकास दर 0.6' नकारात्मक रही

क्यों लगा झटका - मुख्यत: मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग सेक्टरों के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण औद्योगिक विकास दर बढऩे की आस पूरी नहीं हो पाई, कैपिटल व कंज्यूमर गुड्स के उत्पादन में भी दर्ज की गई गिरावट

ज्यादा चिंता क्यों - आर्थिक विकास की रफ्तार बढऩे की उम्मीदों पर भी हुआ है तुषारापात, ज्यादा विकास के सरकारी दावे साबित हो रहे खोखले

उद्योग जगत की मांग - इन निराशाजनक आंकड़ों के बाद औद्योगिक उत्पादन में गिरावट की समीक्षा के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कमेटी का गठन होना चाहिए। इसके अलावा बजट में कोई नया कर उस पर न लगाया जाए।

औद्योगिक उत्पादन ने लगातार दूसरे महीने दर्शाई है गिरावट

चालू वित्त वर्ष में दिसंबर माह के दौरान औद्योगिक उत्पादन में दिसंबर, 2011 के मुकाबले 0.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसी तरह चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में औद्योगिक उत्पादन में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले मात्र 0.7 फीसदी की बढ़ोतरी आंकी गई है।

उद्योग चैंबरों ने औद्योगिक उत्पादन के इस आंकड़े को अर्थव्यवस्था में तेजी की उम्मीद को धूमिल करने वाला बताया है। उद्योग जगत को मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग और कैपिटल गुड्स के उत्पादन में गिरावट से निराशा हुई है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2012 में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में 0.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इसी तरह खनन में 4 फीसदी, पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में 0.9 फीसदी, इंटरमीडिएट गुड्स में 0.1 फीसदी, कंज्यूमर गुड्स में 4.2 फीसदी, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स में 8.2 फीसदी और नॉन कंज्यूमर ड्यूरेबल गुड्स के उत्पादन में 1.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर महीने में सिर्फ बिजली और बेसिक गुड्स के उत्पादन में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले क्रमश: 5.2 व 2.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।

चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-दिसंबर के दौरान भी सबसे बढिय़ा प्रदर्शन बिजली क्षेत्र का रहा। बिजली उत्पादन में इन नौ महीनों के दौरान 4.6 फीसदी का इजाफा हुआ। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में खनन के उत्पादन में 1.9 फीसदी और पूंजीगत वस्तुओं में 10.1 फीसदी की गिरावट रही।

औद्योगिक संगठन फिक्की की अध्यक्ष नैना लाल किदवई ने कहा कि इन आंकड़ों ने आने वाले समय में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में सुधार की आशा को धूमिल कर दिया है और यह गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि इस निराशाजनक आंकड़ों के बाद औद्योगिक उत्पादन में गिरावट की समीक्षा के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कमेटी का गठन होना चाहिए।

बैंकों को मिलेंगे 20 हजार करोड़

बेसिल-3 मानक को पूरा करने के लिए सरकार अगले वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 20 हजार करोड़ रुपये की नई पूंजी डाल सकती है। सूत्रों के मुताबिक इस पर अंतिम फैसला वित्त मंत्रालय करेगा।

चालू वित्त वर्ष में सरकार अब तक 10 पीएसयू बैंकों में 12,517 करोड़ रुपये की नई पूंजी डाल चुकी है। आरबीआइ के अनुमान के मुताबिक मार्च 2018 तक इन बैंकों में सरकार को अतिरिक्त 90 हजार करोड़ रुपये की नई पूंजी डालनी होगी।

आम चुनाव से पहले सरकार के आखिरी बजट की तैयारियों में जुटे वित्त मंत्री पी चिदंबरम अगले हफ्ते कांग्रेस पार्टी के नेताओं से राय मशविरा करेंगे। यह बैठक बजट से जुड़ी पार्टी नेताओं की अपेक्षाओं को लेकर हो रही है। कांग्रेस के दफ्तर में होने वाली इस बैठक में वित्त मंत्री अर्थव्यवस्था की मजबूरियों को भी पार्टी के सामने रखेंगे।

वित्त मंत्री अगले हफ्ते गुरुवार को कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड जाकर पार्टी नेताओं से मुलाकात करेंगे। माना जा रहा है कि वित्त मंत्री को इस बैठक में आयकर राहत की सीमा बढ़ाने जैसी आम जनता से जुड़ी मांगों का सामना करना पड़ सकता है। चुनाव में जाने की तैयारियों में जुटे कांग्रेस नेता वित्त मंत्री को समाजशास्त्र की शिक्षा देंगे तो वित्त मंत्री उन्हें अर्थशास्त्र की मजबूरियां समझाएंगे। उनका ज्यादा जोर पार्टी नेताओं को देश की अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति से अवगत कराने पर रहेगा।

चूंकि चुनाव से पहले संप्रग सरकार का यह आखिरी बजट है, लिहाजा वित्त मंत्री से इसे लोक लुभावन बनाने की उम्मीद की जा रही है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्री चाहते हैं कि पार्टी नेता आर्थिक हालात को जाने और सुधार संबंधी कदमों पर जनता के सामने सरकार का पक्ष रखें। बजट से पहले डीजल के दाम बढ़ाने और एलपीजी के सिलेंडरों की संख्या सीमित करने पर सरकार की काफी आलोचना हो रही है। चिदंबरम पार्टी नेताओं की इसकी जरूरत समझाएंगे ताकि लोगों के बीच जाकर पार्टी कार्यकर्ता सरकारी नीति को सही तरीके से पेश कर सकें।

आम चुनाव से पहले संप्रग सरकार के आखिरी बजट की तैयारियों में जुटे वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ऐसे कई सुधारों को लेकर चिंतित होंगे जिनके अमल की चाबी राज्यों के पास है। चाहे वह वैट को बदल देश में जीएसटी लागू करने का सवाल हो या फिर मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआइ या महंगाई को काबू करने वाले मंडी कानून में बदलाव के प्रस्ताव। इन सभी आर्थिक सुधारों पर बिना राज्यों की सहमति के आगे बढ़ना बेमानी है। वित्त मंत्री को अपने बजट में आर्थिक सुधारों का खाका तैयार करते वक्त राज्यों के साथ उलझी इस गुत्थी से जूझना होगा।

मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] को केंद्र सरकार भले ही मंजूरी दे चुकी है लेकिन देश के कई बड़े राज्य इसे लागू करने के हक में नहीं हैं। सरकार ने इसके विरोध को देखते हुए ही राज्यों को इसे लागू करने या न करने का अधिकार नीति के तहत दिया है। मगर अब यह जाहिर हो गया है कि उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के राजी हुए बिना देश में बड़ी मल्टीब्रांड कंपनियों को लाना संभव नहीं होगा।

इससे भी खराब हालत वस्तु व सेवा कर [जीएसटी] को लेकर है। वैट को बदल सभी अप्रत्यक्ष करों के स्थान पर पूरे देश में जीएसटी को अप्रैल 2010 से लागू होना था। मगर बिक्री कर के मुआवजे के भुगतान से लेकर टैक्स की दरों पर राज्यों से सहमति नहीं बनने की वजह से अभी तक इस पर अमल की स्थिति नहीं बन सकी है। हालांकि, वित्त मंत्री ने नए सिरे से राज्यों के साथ बातचीत शुरू की है और इसके संकेत भी अच्छे दिख रहे हैं। इसके बावजूद अप्रैल 2013 से इसे लागू कर पाने की स्थिति में सरकार नहीं है।

पिछले डेढ़ साल से महंगाई केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ा मुद्दा रही है। आर्थिक विकास की रफ्तार को धीमा करने में महंगाई एक बड़ी वजह रही है। बावजूद इसके केंद्र राज्यों को मंडी कानून में बदलाव के लिए नहीं मना पाया है। इससे खाद्य उत्पादों समेत तमाम आवश्यक वस्तुओं की पूरे देश में एक समान आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी। ऐसे सभी मुद्दों पर राज्यों का आरोप है कि केंद्र उनकी सहमति तो चाहता है लेकिन विकास के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने में हमेशा राज्यों के साथ भेदभाव बरतता है। चुनावी साल का बजट होने के नाते वित्त मंत्री को इन सब मुद्दों पर ध्यान देना होगा। साथ ही सुधारों पर राज्यों की सहमति के लिए एक संतुलित नजरिया अपनाना होगा।

2.82 लाख करोड़ रुपये के सहारा ग्रुप की 2 कंपनियों का बैंक अकाउंट सीज, संपत्ति जब्त

इसी बीच बाजार नियामक सेबी (सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ इंडिया) ने आज सहारा समूह की दो कंपनियों के सौ से ज्यादा बैंक एकाउंट को फ्रीज कर दिया। साथ ही इन दोनों कंपनियों के लेन-देन पर भी रोक लगा दी है। इन दोनों कंपनियों की गैर-नगदी संपत्तियों को भी फ्रीज कर दिया गया है।कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सेबी को यह अधिकार दिया था कि वह सहारा की दो कंपनियों (सहारा इंडिया रीयल इस्टेट कार्पोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कार्पोरेशन) से संबंधित बैंक एकाउंट को फ्रीज कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सहारा की लेटलतीफी और निवेशकों को पैसे लौटाने में टाल-मटोल को देखते हुए आया था।सुप्रीम कोर्ट ने सहारा की इन दोनों कंपनियों द्वारा जनता से लिए गए चौबीस सौ करोड़ रुपये को पंद्रह फीसदी ब्याज समेत लौटाने का आदेश दिया था। कोर्ट के इस आदेश की अवहेलना कर सहारा जानबूझ कर जनता को पैसे लौटाने में टाल-मटोल कर रहा था।

कृषि कर्ज माफी योजना से एमएफआई ने पल्ला झाड़ा
क्या है मामला - 52,000 करोड़ रुपये की कृषि कर्ज माफी योजना के तहत 150 करोड़ रुपये की राशि ऐसे लोगों के बीच आवंटित करने का मामला सामने आया है जो इसके नहीं थे हकदार

एमएफआई सेक्टर ने आरोपों से किया इनकार, कहा जल्द जारी करेंगे घोषणा पत्र

कृषि कर्ज माफी योजना के तहत माइक्रोफाइनेंस संस्थानों द्वारा आवंटित राशि से अनुचित लाभ उठाने वाले मामले में एमएफआई ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के संगठन माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूट नेटवर्क (एमएफआईएन) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आलोक प्रसाद ने 'बिजनेस भास्कर' को बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक से पंजीकृत नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी वाले एमएफआई का इस मामले में कोई लेना-देना नहीं है।

हमने सभी पंजीकृत कंपनियों से लिखित में जवाब लिया है, जिसमें कहा गया है कि किसान कर्ज माफी योजना से वे लाभान्वित नहीं हुए हैं। इस दस्तावेज को जल्द ही घोषणा पत्र के रूप से सार्वजनिक किया जाएगा।
प्रसाद ने बताया, हमारा मानना है कि जिन छह माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (एमएफआई) के इस घोटाले में शामिल होने की बात कही जा रही है, वे रिजर्व बैंक में पंजीकृत नहीं हैं।

ऐसे में सरकार और राज्य को अपनी ओर से जांच-पड़ताल करनी चाहिए। प्रसाद ने कहा कि एमएफआई को लाभ पहुंचाने के मकसद से राशि का आवंटन बैंकों की ओर से हुआ है इसलिए  ज्यादा बैंक अधिकारियों की जांच होनी अधिक जरूरी है, ताकि आगे इस प्रकार की घटना दोबारा न हो।

गौरतलब है कि 52,000 करोड़ रुपये की कृषि कर्ज माफी योजना के तहत 150 करोड़ रुपये की राशि ऐसे लोगों के बीच आवंटित करने का मामला सामने आया है जो इसके हकदार नहीं थे।  भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा किए गए ऑडिट में इस बात का खुलासा हुआ है।

इसमें कहा गया है कि बैंकों की ओर से करीब छह माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को भी अनुचित रूप से लाभ पहुंचाने के लिए राशि आवंटित की गई है। इसमें कुछ सेल्फ हेल्प ग्रुप के शामिल होने की बात भी कही गई है।

खाद्य सुरक्षा बिल के मसौदे पर कई राज्यों ने जताई असहमति

किस पर असहमति
रियायती अनाज की मात्रा कितनी हो
स्कीम से कितनी आबादी लाभान्वित हो
किसने क्या कहा
छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने सर्वमान्य पीडीएस सिस्टम लाने की बात कही है
क्या जिक्र
खाद्य सुरक्षा बिल के मूल मसौदे में प्रत्येक लाभार्थी को सात किलो अनाज का प्रावधान था
लेकिन संसदीय समिति की सिफारिशों में इसे घटाकर 5 किलो कर दिया गया है

देश की दो-तिहाई आबादी को भोजन का अधिकार देने वाले प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल के मौजूदा मसौदे को लेकर राज्यों ने केंद्र सरकार को जोर का झटका दिया है। बुधवार को खाद्य राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के वी थॉमस की राज्यों के खाद्य मंत्रियों के साथ हुई बैठक में प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के मौजूदा मसौदे में गरीबों की संख्या के निर्धारण और लाभार्थियों को दिए जाने वाले रियायती खाद्यान्न की मात्रा पर कई राज्यों ने असहमति जताई है।
तमिलनाडु सरकार का मानना है कि खाद्य सुरक्षा बिल के मौजूदा प्रावधान में स्पष्टता का अभाव है।

बिहार, उड़ीसा, केरल, पंजाब और गुजरात की सरकारों ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि पहले सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) सिस्टम को मजबूत बनाया जाए और उसके बाद ही खाद्य सुरक्षा बिल को लागू किया जाए। इस बारे में थॉमस ने कहा कि तमिलनाडु समेत सभी राज्य खाद्य सुरक्षा बिल का स्वागत कर चुके हैं।

उन्होंने कहा कि हम हर राज्य को संतुष्ट नहीं कर सकते है। संशोधित खाद्य सुरक्षा बिल को बजट सत्र में संसद में पेश किया जाएगा। तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने सर्वमान्य पीडीएस सिस्टम लाने की बात कही है।

उधर उड़ीसा, केरल और बिहार की राज्य सरकारों ने संसदीय समिति द्वारा सभी लाभार्थियों को दिए जाने वाले 5 किलो अनाज पर असहमति जताई है। इन राज्यों का मानना है कि लाभार्थियों को ज्यादा अनाज का आवंटन किया जाए। बैठक में शामिल 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से ज्यादातर ने लाभार्थियों की पहचान के तरीके में बदलाव की मांग की।

खाद्य सुरक्षा बिल के मूल मसौदे में प्रत्येक लाभार्थी को सात किलो अनाज देने का प्रावधान था, लेकिन संसदीय समिति की सिफारिशों में इसे घटाकर 5 किलो कर दिया गया है।

समिति ने खाद्य सुरक्षा विधेयक के उस प्रावधान पर मुहर लगाई है जिसमें 75 फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी शहरी आबादी को राशन दुकानों के माध्यम से रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने को कहा गया है।

समिति ने अपनी सिफारिशों में खाद्य सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को दुरुस्त करने के साथ ही बेसहारा लोगों को भी कानून के दायरे में लाने की सिफारिश की है।


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