Pages

Free counters!
FollowLike Share It

Wednesday, 10 April 2013

अब भी नहीं जागे तो खत्म होगी तराई की जनजातियां, सरकार का यह शासनादेश किसके लिए ?




  • अब भी नहीं जागे तो खत्म होगी तराई की जनजातियां, सरकार का यह शासनादेश किसके लिए ?

    राज्य में पीढ़ी दर पीढ़ी से निवास करने वाले लोग आने वाले समय अल्पसंख्यक होने जा रहें ? यह मेरी ही चिंता का विषय नहीं है बल्कि राज्य के हर उस व्यक्ति की चिंता है जो अलग राज्य गठन के पश्चात यह उम्मीद लगाये बैठा था कि अब तो हालात में कुछ सुधार आयेगा l लेकिन राज्य निर्माण के पश्चात से ही राज्य के भविष्य को लेकर राजनैतिक वर्ग ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जिससे यह परिलक्षित हो कि राज्य अपने निर्माण की अवधारणा को साकार कर रहा हो ? बल्कि बीते बारह सालों में एक के बाद एक वे सभी उम्मीदें रेत के महल की तरह धुल धूसरित होती जा रही है जिनकी अपेक्षा राजनैतिक नेतृत्व से थी l राज्य गठन के पश्चात से ही मुद्दा चाहे स्थानीय लोगो के रोजगार का हो ,या फिर दिनों दिन कम होती खेती की जमीनों का हो या फिर आर्थिक नीतियों का हो, या पहाड़ के विकास के आधार स्वास्थ एवं चिकित्सा एवं शिक्षा सेवाओं का हो, इन सभी क्षेत्रों में राज्य सरकार आम आदमी की उस धारणा के सत्य से कोसो दूर नजर आई जिसके सपने उसने अलग राज्य होने के रूप में जगाये थे l राज्य बनने के बाद से ही अगर कहीं विकास नजर आया है तो वह भी कुछ वर्ग विशेष तक ही सिमटा हुआ नजर आता है, राजनेताओं और उनके आस-पास मौजूद लोगो की निजी आर्थिकी पर नजर डाली जाए तो उनके और आम आदमी के बीच आमदनी एवं सुविधाओं की एक बहुत बड़ी खाई नजर आती है, पिछले बारह सालों में इन राजनेताओं की संपत्ति में सैकड़ों गुना वृद्धि हुई जो इस आशंका को और अधिक मजबूती देता है कि राज्य के राजनैतिक नेतृत्व में वह इमानदारी मौजूद नहीं है, जिसकी परिकल्पना राज्य निर्माण आंदोलन के समय की गयी थी l 

    हाल में राज्य सरकार द्वारा मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र के समबन्ध में जारी शासनादेश के सन्दर्भ में देखा जाए तो भविष्य की स्थिति और खतरनाक नजर आती है, सरकार का यह शासनादेश ऐसे समय आया है जब राज्य में यह बहस जोरो पर है कि आखिर राज्य किसके लिए बना ? सरकार ने अपने शासनादेश में मूल और स्थायी निवास को एक मानते हुए इसकी कट ऑफ देट 1985 मानी है, जबकि पुरे देश में यह कट ऑफ डेट 1950 है l यहाँ यह उल्लेखनीय तथ्य है कि पृथक राज्य निर्माण की आग को नवयुवक वर्ग द्वारा तब और तेज किया था, जब उत्तरप्रदेश के समय यहाँ पर 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू करने का शासनादेश जारी किया गया था, उस समय मसला पृथक राज्य का कम नवयुवक वर्ग के हितों का अधिक था, उत्तराखंड सरकार का स्थायी निवास और जाति प्रमाण-पत्र के लिए वर्तमान शासनादेश भविष्य के लिए कोमोबेस फिर वही स्थितियां राज्य में पैदा कर रहा है l 

    राज्य पुनर्गठन के बाद राज्य में मूल, स्थायी और जाति प्रमाण-पत्र का हकदार कौन के विषय में विवाद उत्पन्न होने का मामला केवल उत्तराखंड राज्य के ही सामने नहीं आया, बल्कि यह हर उस राज्य के सामने आया था, जो अपने पुर्ववर्ती से राज्यों से अलग कर बनाए गए थे, लेकिन बाकी राज्यों की सरकारों नें बाहर के राज्यों से आए लोगों के वोट के लालच में इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने के बजाय उच्चतर कानूनी संस्थाओं द्वारा उपलब्ध कराएं गए प्रावधनों एवं समय-समय पर इस सम्बन्ध में देश की सर्वोच्च न्यायपालिका द्वारा दिए गए न्यायिक निर्णयों की रोशनी में अविवादित एवं स्थायी रूप से हल कर लिया l जबकि उत्तराखंड राज्य में सत्ता एवं विपक्ष में बैठे राजनेताओं ने इसे वोट बैंक और मैदानी क्षेत्रवाद का मुद्दा बनाकर हमेशा ज़िंदा रखे रहें और अपने फायदे के अनुसार इस मुद्दे को चुनावों के समय इस्तेमाल भी करते रहें, तथा राज्य उच्च न्यायालय की एकल पीठ में लचर पैरवी के परिणामस्वरुप अपने मन माफिक निर्णय आ जाने के पश्चात, अपने फायदे के लिए इस संवेदनशील तथा भावना से जुड़े मुद्दे पर नीति बनाते समय वे उत्तर प्रदेश से अगल कर बनाये उत्तराखंड राज्य निर्माण की उस मूल अवधारणा को ही भूल गए जिसके चलते राज्य निर्माण के लिए यहाँ का हर वर्ग आन्दोलित रहा । ऐसे में राजनेताओं की मंशा पर और सवाल उत्पन्न होता है जब उच्च न्यायालय की एकल पीठ का यह निर्णय अंतिम नहीं था, एकल पीठ के इस निर्णय को डबल बेंच में तत्पश्चात उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती थी, लेकिन सरकार में बैठे राजनेताओं ने इमानदारी से ऐसा कोई प्रयास नहीं किया, जबकि उनके पास ऐसा करने के पर्याप्त कारण तथा समय था l राजनैतिक वर्ग द्वारा उत्तराखंड राज्य निर्माण भावना के साथ खिलवाड़ का यह कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी उच्च न्यायालय में मुज्जफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा दिलाने के मामले में भी लचर पैरवी करने में सरकार में बैठे नेताओं और राज्य मशीनरी का कुछ ऐसा ही व्यवहार नजर आया था, यह सरकार में बैठे राजनेताओं की ढुलमुल नीति का ही परिणाम था कि मुज्जफ्फरनगर कांड के दोषी सजा पाने से बच गए l 

    ऐसा नहीं था कि देश में मूल/स्थायी निवास तथा प्रमाण पत्र जारी किये जाने का यह मामला पहली बार उत्तराखंड में ही उठा हो, सबसे पहले मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र का मामला सन् 1977 में महाराष्ट्र में उठ चुका था । महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया कि सन 1950 में जो व्यक्ति महाराष्ट्र का स्थायी निवासी था, वही राज्य का मूल निवासी है । महाराष्ट्र सरकार और भारत सरकार के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, इस पर उच्चतम न्यायालय की संवैधनिक पीठ ने जो निर्णय दिया, वह आज भी मूल निवास/स्थायी निवास के मामले में अंतिम और सभी राज्यों के लिए आवश्यक रूप से बाध्यकारी है । उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति के दिनांक 8 अगस्त और 6 सितंबर 1950 को जारी नोटिपिफकेशन के अनुसार उस तिथी को जो व्यक्ति जिस राज्य का स्थायी निवासी था, वह उसी राज्य का मूल निवासी है । उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति को जाति प्रमाण पत्र उसी राज्य से जारी होगा, जिसमें उसके साथ सामाजिक अन्याय हुआ है । उच्चतम न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में यह भी स्पष्ट किया है कि रोजगार, व्यापार या अन्य किसी प्रयोजन के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य राज्य या क्षेत्र में रहता है तो इसके कारण उसे उस क्षेत्र का मूल निवासी नहीं माना जा सकता । उत्तराखंड के साथ ही अस्तित्व में आए झारखंड और छत्तीसगढ़ में भी मूल निवास का मामला उठा, पर इसे उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के अनुसार बिना किसी फिजूल विवाद के हल कर लिया गया । 

    अधिवास संबंधी एक अन्य वाद नैना सैनी बनाम उत्तराखंड राज्य (एआईआर-2010,उत्त.-36) में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सन 2010 में प्रदीप जैन बनाम भारतीय संघ (एआईआर-1984, एससी-1420) में दिए उच्चतम न्यायालय के निर्णय को ही प्रतिध्वनित किया था l उच्चतम न्यायालय ने अपने इस निर्णय में स्पष्टरूप से कहा था कि देश में एक ही अधिवास की व्यवस्था है और वह है भारत का अधिवास ! यही बात उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने नैना सैनी मामले में दोहराई l

    जबकि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दिनांक 17 अगस्त 2012 को मूल निवास के संदर्भ में जो फैसला सुनाया है उसमें कोर्ट ने दलील दी कि 9 नवंबर 2000 यानि कि राज्य गठन के दिन जो भी व्यक्ति उत्तराखंड की सीमा में रह रहा था, उसे यहां का मूल निवासी माना जायेगा, राज्य सरकार ने बिना आगे अपील किये उस निर्णय को ज्यों का त्यों स्वीकार भी कर लिया जो किसी ताज्जुब से कम नहीं है, एक तरफ उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गए व्यवस्था को देखा जाये तो राज्य की आम जनता उच्च न्यायालय और राज्य सरकार के फैसले से हतप्रभ होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर पा रही हैं, इसका कारण भी वाजिब है कि जब देश की सर्वोच्च अदालत इस संदर्भ में पहले ही व्यवस्था कर चुकी है, तो फिर राज्य सरकर ने उस पुर्ववर्ती न्यायिक व्यवस्था को ज्यों का त्यों स्वीकार क्यों नहीं किया और उच्च न्यायालय के एकल पीठ के निर्णय के खिलाफ अपील क्यों नहीं की, जो सत्ता में बैठे राजनेताओं की नीयत पर साफ़ साफ़ सवाल खड़ा करती है ? 

    सर्वोच्च न्यायालय ने जाति प्रमाण पत्र के मामले पर अपने निर्णयों में साफ़-साफ़ कहा है कि यदि कोई व्यक्ति रोजागर और अन्य कार्यों हेतु अपने मूल राज्य से अन्य राज्य में जाता है, तो उसे उस राज्य का जाति प्रमाण पत्र नहीं मिलेगा जिस राज्य में वह रोजगार हेतु गया है, उसे उसी राज्य से जाति प्रमाण पत्र मिलेगा जिस राज्य का वह मूल निवासी है । सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन के तहत ही दी थी । मूल निवास के संदर्भ में भारत के राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन की तिथि 10 अगस्त / 6 सितंबर 1950 को जो व्यक्ति जिस राज्य का स्थायी निवासी था उसे उसी राज्य में मूल निवास प्रमाण पत्र मिलेगा । यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन की तिथि पर अस्थाई रोजगार या अध्ययन के लिए किसी अन्य राज्य में गया हो तो भी उसे अपने मूल राज्य में ही जाति प्रमाण पत्र मिलेगा । ऐसे में मूल निवास के मसले पर राज्य सरकार का उच्च न्यायालय के फैसले को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेना और उस पर शासनादेश जारी कर देना संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है । 

    ऐसा नहीं है कि विवाद की जो स्थिति उत्तराखंड में उत्पन्न हुई है वह उत्तराखंड के साथ गठित छत्तीसगढ़ और झारखंड में नहीं आई, वहाँ भी इस प्रकार की स्थिति पैदा हुई थी, क्योंकि इन राज्यों का भी गठन अन्य राज्यों से अलग कर किया गया था, लेकिन इन दोनों राज्यों में मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र दिये जाने के प्रावधान उत्तराखंड से इतर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों पर ही आधारित हैं । झारखंड में उन्हीं व्यक्तियों को मूल निवास प्रमाण पत्र निर्गत किये जाते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी वर्तमान झारखंड राज्य क्षेत्र के निवासी थे । छत्तीसगढ़ में जाति प्रमाण पत्र उन्हीं लोगों को दिये जाते हैं जिनके पूर्वज 10 अगस्त/ 06 सितंबर 1950 को छत्तीसगढ़ राज्य में सम्मिलित क्षेत्र के मूल निवासी थे । उन लोगों को यहां मूल निवास प्रमाण पत्र नहीं दिये जाते हैं, जो इन राज्यों में अन्य राज्यों से रोजगार या अन्य वजहों से आये हैं ।

    कमोबेश यही स्थिति महाराष्ट्र की भी है । महाराष्ट्र में भी उसके गठन यानी कि 1 मई 1960 के बाद मूल निवास का मुद्दा गरमाया था । महाराष्ट्र में भी दूसरे राज्यों से आये लोगो ने जाति प्रमाणपत्र दिये जाने की मांग की । ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र सरकार ने भारत सरकार से इस संदर्भ में कानूनी राय मांगी । जिस पर भारत सरकार ने सभी राज्यों को राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन की तिथि 10 अगस्त/6 सितंबर 1950 का परिपत्र जारी किया । भारत सरकार के दिशा-निर्देशन के बाद महाराष्ट्र सरकार ने 12 फरवरी 1981 को एक सर्कुलर जारी किया जिसमें स्पष्ट किया गया था कि राज्य में उन्हीं व्यक्तियों को अनुसूचित जाति जनजाति के प्रमाण पत्र मिलेंगे जो 10 अगस्त/ 6 सितंबर 1950 को राज्य के स्थाई निवासी थे । इस सर्कुलर में ये भी स्पष्ट किया था कि जो व्यक्ति 1950 में राज्य की भौगोलिक सीमा में निवास करते थे वहीं जाति प्रमाण पत्र के हकदार होंगे ।

    ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में जाती प्रमाण पत्र के सम्बन्ध में ऐसे नियम नहीं है, उत्तराखंड राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 24 एवं 25 तथा इसी अधिनियम की पांचवीं और छठी अनुसूची तथा उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के निर्णय में जो व्यवस्था की गयी है उसके आलोक में उत्तराखंड में उसी व्यक्ति को जाति प्रमाण पत्र मिल सकता है जो 10 अगस्त/ 06 सितंबर 1950 को वर्तमान उत्तराखंड राज्य की सीमा में स्थाई निवासी के रूप में निवास कर रहा था । उच्च न्यायालय की एकल पीठ के निर्णय में यह तथ्य विरोधाभाषी है कि जब प्रदेश में मूल निवास का प्रावधान उत्तराखंड राज्य पुनर्गठन अधिनियम में है तो फिर राज्य सरकार मूल निवास की कट ऑफ डेट राज्य गठन को क्यों मान रही है, उसके द्वारा एकल पीठ के निर्णय को चुनौती क्यों नहीं दी गयी ? 

    सन 1961 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने पुन: नोटिफिकेशन के द्वारा यह स्पष्ट किया था कि देश के सभी राज्यों में रह रहे लोगों को उस राज्य का मूल निवासी तभी माना जाएगा, जब वह 1951 से उस राज्य में रह रहे होंगे । उसी के आधार पर उनके लिए आरक्षण व अन्य योजनाएं भी चलाई जाएं । उत्तराखंड राज्य बनने से पहले संयुक्त उत्तर प्रदेश में पर्वतीय इलाकों के लोगों को आर्थिक रूप से कमजोर एवं सुविधाविहीन क्षेत्र होने के कारण आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई थी । जिसे समय समय पर विभिन्न न्यायालयों ने भी उचित माना था । आरक्षण की यह व्यवस्था कुमाऊं में रानीबाग से ऊपर व गढ़वाल में मुनिकी रेती से उपर के पहाड़ी क्षेत्रों में लागू होती थी । इसी आधार पर उत्तर प्रदेश में इस क्षेत्र के लोगों के लिए इंजीनियरिंग व मेडिकल की कक्षाओं में कुछ प्रतिशत सीटें रिक्त छोड़ी जाती थी । 

    उत्तराखंड राज्य बनने के बाद तराई के जनपदों में बाहरी लोगों ने अपने आप को उद्योग धंधे लगाकर यहीं मजबूत कर लिया और सरकार का वर्तमान रवैया भी उन्ही को अधिक फायदा पहुंचा रहा है l आज प्रदेश के तराई के इलाकों में जितने भी बडे़ उद्योग धंधे हैं, या जो लग रहें हैं उन अधिकांश पर बाहरी राज्य के लोगों का मालिकाना हक है । ऐसे में राज्य सरकार अगर आने वाले समय में इन सभी लोगों को यहां का मूल निवासी मान ले तो राज्य के पर्वतीय जिलों के अस्तित्व पर संकट छा जाएगा । बात नौकरी और व्यवसाय से इतर भी करें तो आज राज्य में अगर सबसे ज्यादा संकट है तो यहाँ की खेती की जमीनों पर है, सरकारी आंकड़ों के हिसाब से राज्य में पिछले ग्यारह सालों में लगभग 53 हजार हेक्टेयर (राज्य गठन से लेकर मार्च-2011 तक) जमीन खत्म हो चुकी है, अगर गैर सरकारी आंकड़ों पर गौर किया जाय तो यह स्थिति भयावह है, यह स्थिति तब है जब बाहरी लोगो के राज्य में जमीन की खरीद फरोक्त पर केप लगी है, और राज्य में हाल ही में खरीदी गयी अधिकार जमीनें राज्य में बाहर से आये लोगो की है, अगर इन्हें भी मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र बना देने में नियमों में ढील दी जाती है तो राज्य का मूल निवासी होने के नाते उन्हें यह अधिकार स्वत: ही मिल जाते है कि वे केप लगी भूमि से अधिक भूमि निर्बाध रूप से इस राज्य में खरीद सकते हैं, जो आने वाले समय में और भी बड़े प्रश्न खडा करेगा l इससे व्यवस्था के अस्तित्व में आने से राज्य के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग ही अधिक प्रभावित होंगे क्योंकि बाहर राज्यों से आये लोग ही इस व्यवस्था से अधिक लाभ अर्जन करेंगे, वे अपने मूल राज्य से भी प्रमाण-पत्र प्राप्त करेंगे और साथ ही उत्तराखंड से भी, जहां अवसर ज्यादा होंगे वे दोनो में से उस राज्य के अवसरों को अधिक भुनायेंगे, जो सीधा-सीधा इस राज्य के मूल अनुसूचित एवं अनुसूचित जनजाति के लोगो के हितों पर कानुनी डाका है l 

    जाति प्रमाण पत्र और स्थाई निवास जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सरकार तथा विपक्ष में बैठे राजनेताओं की मंशा क्या हैं यह तो वे ही बेहतर जानतें है, लेकिन अभी यह मामला अंतिम रूप से निर्णित नहीं हुआ है बल्कि उच्च न्यायालय की डबल बेंच में लंबित हैं, ऐसे में सरकार का न्यायालय का अंतिम फैसला आने से पूर्व जल्दीबाजी में इस संबंध में शासनादेश जारी करना किसी न किसी निहीत राजनैतिक स्वार्थ होने की और राज्य निवासियों को स्पष्ट संकेत देता है l यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि सरकार की इस नीति से भविष्य में राज्य का समस्त सामाजिक और आर्थिक ताना बाना प्रभावित ही नहीं होगा, बल्कि उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनाये जाने की अवधारणा ही समाप्त हो जायेगी, सरकार और विपक्ष में बैठे राजनेताओं के इस कुटिल गठजोड़ के कुपरिणाम आने वाली पीढ़ी को आवश्यकीय रूप से भुगतने होंगे, जिसके लिए हम आप सभी को तैयार रहना चाहिए l यह तय मानकर चलिये की सरकार के इस शासनादेश से राज्य में तराई की मूल जनजातियों के सामाजिक और आर्थिक सरोकारों पर राज्य में बाहर से आये लोगो का निश्चित तौर पर कब्जा होने वाला है, सरकार के इस शासनादेश की भावना भी यही है और उद्देश्य भी ! — with Aranya Ranjan and 19 others.
    1Unlike ·  · Share


1 comment:

  1. Sexy Pornstar Lisa Ann Hardcore Anal Sex, Horny Lisa Ann Hairy Pussy Busty Tits Nude Photo After Fucked

    Hairy Pussy School Teacher Fucked By Her Student In Class Room, Mother-Son Sex Scandals, Deep Anal Fuck Video

    Mallu Aunty Huge Big Tits Picture,Hot Boobs,Hips Indian Aunty Sucking Hairy Lund And Group Fucking Porn Movie

    Teen Age Muslim Girl Virgin Pussy,Cute Boobs And Sex With Her Grand Father Real Mobile Video

    Hottest Actress Katrina Kaif's Boob Press In Party Shocking Real Picture,Katrina Kaif Real Sex Video With Salman Khan

    Number One Indian 18 Years Old Sexy College Girl Boobs Fucking,Malayalam Actrees Bhavana Hot Photos Gallery

    Kareena Kapoor Sex Picturs With Saif Ali Khan,Kareena Kapoor Doggy Style Fucking 3G Mobile Video Free Download

    Indian Father Forced Ass Point Fuck Her 14 Years Vergin School Girl And Forced To Sucking Her Big Black Dick

    Hot And Beautiful Actrees Katrina Kaif Sex Video With Salman Khan,Katrina Kaif Hairy And Clean Shaved Pussy Pictures Gallery

    Bengali Mother Sex With Her Step Son,Son Fucking Her Step Mother,Desi Lesibean Sex Scandal Real Porn Adult Movie And More

    Deepika Padukone Dancing Nude Showing Boobs Trimmed Pussy,Indian Desi School Girl Sex Video Homemade Free Sex Video

    Lates Half Blouse And Sexy Bra With Sarre Sexy Pakistani College Girl,South Actrees In Bridal Sarre Photos Still Hot

    Wonderfull Collection Of Irani Beautiful Girl Cute Boobs And Hot Sexy Pink Pussy Photos,Download Kajol Aggarwal Sexy Hd Photos In Saree

    Sexy Porn Star Indian Sunny Leon Fucking Images,Sunny Leone Latest Hot Topless Photo Shoot Without Cloth

    Muslim School Girls Enjoying Group Sex With Her Hindu Classmet In Classroom,Sexy Pakistani College Girl Fuck Boobs Hot Pics

    Indonesian Yong College Teen Girl Posing Nude Showing Juicy Tits And Shaved Pussy Pics,Priyanka Chopra Hot Bedroom Kissing Scene

    Japanese Wife Oral Fucked,Beautiful Asian Girl Big Boobs Sucking Big Penis,Indian Desi Girl Rape In School Bus

    ReplyDelete