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Tuesday 21 February 2012

अभिव्यक्ति के लिए ज्यादा जोखिम उठाना मुनासिब नहीं



अभिव्यक्ति के लिए ज्यादा जोखिम उठाना मुनासिब नहीं

बातचीत या मेसेज पर नजर,ब्लैकबेरी बनाने वाली कंपनी ने मुंबई में अपना सर्वर लगा दिया

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी का मौलिक अधिकार है। इस अधिकार को पाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना बलिदान दिया।

कभी महाकवि गजानन माधव मुक्तिबोध ने लिखा था, अभिव्यक्ति के लिए हर खतरा उठाना होगा। पर अब हालात यह है कि सूचना क्रांति और हर हाथ में मोबाइल, हर कोई आन लाइन के जमाने में अभिव्यक्ति के लिए ज्यादा जोखिम उठाना मुनासिब नहीं है। सरकार ने सोशल नेटवर्किंग पर नकेल​ ​ कस दी है। गूगल समेत बड़ी सोवाओं की शर्तें बदल गयी हैं। सेंसर युग लागू है। सरकार का दावा साइबर अपराध रोकने का है, पर ऐसा हो नहीं रहा है, बल्कि वैकल्पिक मीडिया और  जनांदोलनों की आवाज पर पाबंदी लग गयी है।​ केन्द्र सरकार ने आईटी एक्ट के तहत सोशल नेटवर्किंग साइटों के लिए तुगलकी फरमानों वाली नई संहिता जारी की है। इससे समाज में लोगों की आवाज दबाने का काम किया जाएगा।इसी सिलसिले में देशभर से इंटरनेट यूजर्स एवं ब्लागर्स 13 मई को दिल्ली में जमा होंगे, जहां पर इंडिया गेट से एक लंगड़ा मार्च निकालकर केन्द्र सरकार के इस निर्णय पर प्रतीकात्मक आपत्ति जताई जाएगी।

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संचार के क्षेत्र में मोबाइल जहां हमारी जिंदगी का अहम जरूरत बन गया है, वहीं इसमें दिनोदिन हो रहे तकनीकी विकास ने समाज को समृद्ध बनाने का काम भी किया है। सूचना संसार में 3 जी को नई क्रांति की तरह देखा जा रहा है। ​ताजा वाकया यह है कि  काफी विवादों के बाद ब्लैकबेरी बनाने वाली कंपनी ने मुंबई में अपना सर्वर लगा दिया है। कंपनी पर सरकार की तरफ से दबाव था कि वह अपनी मेसेंजर सर्विस में कानूनी रूप से दखल देने के लिए कोई प्लैटफॉर्म मुहैया कराए। नोकिया से भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया है। गौरतलब है कि सुरक्षा एजेंसियों ने कई बार ब्लैकबेरी की मेसेंजर और एंटरप्राइज मेल सर्विस में दखल का कोई तरीका नहीं होने पर आपत्ति जताई थी, जिस पर केंद्र सरकार ने संबंधित कंपनी से बात की थी। लाइसेंसिंग की शर्तों के मुताबिक, मोबाइल सर्विस प्रवाइडर कंपनियों के लिए जरूरी है कि वे जरूरत पड़ने पर अपने किसी भी  उपभोक्ता की कोई भी बातचीत या मेसेज पर नजर रखने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को कोई तरीका उपलब्ध कराएं।जाहिर है कि  मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी ब्लैकबेरी ने आखिरकार भारत सरकार के आगे घुटने टेक ही दिए। भारत में सर्वर लगाने से लगातार मना कर रही ब्लैकबेरी ने मुंबई में अपना सर्वर ऑफिस खोल दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री के साथ सुरक्षा एजेंसियों की हाल में हुई बैठक में इस बारे में जानकारी दी गई है। जानकार इसे नियम-कानून को लेकर भारत सरकार की जीत मान रहे हैं।कंपनी 175 देशों में अपनी सेवाएं दे रही है।

टेलिकॉम विभाग ने ब्लैकबेरी और नोकिया पुस मेल दोनो के लिए एक ही नीति अपनाई है। इसमें से ब्लैकबेरी के भारतीय सर्वर की जांच टेलिकॉम विभाग के अधिकारियों और विशेषज्ञ टीम ने ही किया है।

भारतीय कानून में लाइसेंस नियमों के अनुसार, टेलिकॉम सर्विस प्रदाता कंपनियों के किसी भी ग्राहक के कॉल या मैसेज को सुरक्षा एजेंसियां कभी भी रिकार्ड कर सकती हैं। भारत में टाटा, एयरटेल, बीएसएनएल, एमटीएनएल, वोडाफोन और रिलायंस जैसी कंपनियां ब्लैकबेरी सर्विस दे रही हैं। ऐसे में कंपनियों को लाइसेंस नियमों का पालन करने में सहयोग करना होगा। मोबाइल पर होने वाले संवाद की निगरानी के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दूरसंचार मंत्रालय के साथ क्षेत्रीय निगरानी केंद्र स्थापित करने का निश्चय किया है। तकनीकी दक्षता के लिए सूचना प्रौद्योगिकी विभाग भी इन केंद्रों से संबद्ध किए जाएंगे।सरकार पहले चरण में मुंबई, कोलकाता, चेन्नई के साथ ही इंदौर, जयपुर और बंगलुरू में भी ऐसा केंद्र स्थापित करना चाहती है।

अगर आपने पिछले कुछ दिनों में गूगल सर्च, यूट्यूब, मानचित्र या फिर गूगल के अन्य उत्पादों का इस्तेमाल किया है, तो अपने ब्राउजिंग पर एक नोटिस अवश्य देखा होगा, जिसमें लिखा है, "हम अपनी गोपनीयता की नीति और शर्तों को बदल रहे हैं। इस विषय वस्तु के मायने हैं।" गूगल ने अपनी गोपनीयता नीति में बदलाव किए हैं, जिसके तहत गूगल उपयोगकर्ताओं कीगोपनीयता में सेंध लग सकती है। गूगल की नई पॉलिसी और शर्तें एक मार्च से प्रभावी हो जाएंगी। पहले ही कपिल सिब्बल ने इंटरनेट कंपनियों पर लगाम लगाने की बात कही नहीं कि गूगल इंडिया को इनकम टैक्स विभाग का नोटिस पहुंच गया। ब्लागों के यूआरएल बदल दिए गए हैं। डाट कम अब डाट इन है ताकि नए भारतीय साइबर नियम के तहत ब्लाग पोस्टिंग के खलाफ कार्रवाई की जा सकें। इसके अलावा ग्लोबल पाठकवर्ग तक सूचना लीक रोकी जा सके। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमाओं में बाँधने की तैयारी पूरी हो गयी है। गूगल अब अपनी ब्लॉगस्पाट साइट्स को देशों की स्वीकृति और अस्वीकृति के आधार पर ब्लाक करने की तैयारी कर चुका है। यानि की अगर कोई ब्लॉग किसी देश की सरकार को आपत्तिजनक लगता है तो वो गूगल से उसको अपने देश में प्रतिबंधित करने की मांग कर सकता है। मुमकिन है अगले कुछ दिनों में ये प्रणाली काम करने लगेगी। फिलहाल जिन तीन देशों में ये लागू होने जा रहा है उनमे भारत के अलावा आस्ट्रेलिया और न्यूजीलेंड शामिल हैं।

मालूम हो कि इंटरनेट पर सामग्री को नियंत्रित करने को लेकर दो मुद्दे हैं। पहला, यदि सरकार किसी वेबसाइट को पूरी तरह से बंद अथवा प्रतिबंधित करना चाहती है तो यह लोकतात्रिक नहीं है, क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना प्राप्त करने के अधिकार के खिलाफ है। दूसरा सरकार फेसबुक, ट्विटर और गूगल पर किसी सामग्री को डाले जाने से पूर्व देखने की बात कर रही है। तकनीकी तौर पर यह असंभव है, क्योंकि भारी मात्रा में सूचनाएं डाली जाती हैं। इस तरह का कोई सॉफ्टवेयर उपलब्ध नहीं है जिसके जरिए यह पता लगाया जा सके कि कौन सा वीडियो अथवा फोटो आपत्तिजनक, वैध अथवा अवैध है।


सूत्रों के मुताबिक जिस वक्त कपिल सिब्बल गूगल की खिंचाई करने का मन बना रहे थे, तकरीबन उसी समय इनकम टैक्स विभाग के अधिकारी ग्लोबल सर्च इंजन कंपनी गूगल की भारतीय शाखा को भेजे जाने वाले टैक्स नोटिस को अंतिम रूप दे रहे थे। विभाग के मुताबिक ग्लोबल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने अपनी पूरी आय पर टैक्स नहीं दिया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने सोशल नेटवर्किंग साइट फ़ेसबुक इंडिया और सर्च इंजन गूगल इंडिया को चेतावनी दी है कि अगर ये वेबसाइट्स आपत्तिजनक सामग्रियों पर नियंत्रण और उन्हें हटाने की व्यवस्था नहीं करतीं, तो चीन की तरह भारत में इन पर रोक लगाई जा सकती है

दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने अपने उपभोक्‍ताओं को मेल भेजकर अपने सभी उत्पादों की प्राइवेसी सेटिंग में बड़े बदलाव करने की घोषणा कर दी है। इनमें जीमेल, यू-ट्यूब और गूगल सर्च भी शामिल हैं। नई प्राइवेसी सेटिंग 1 मार्च से लागू हो जाएंगी।

गूगल ने संदेश में कहा है, '1 मार्च, 2012 से नई गोपनीयता नीति और गूगल सेवा की शर्तें प्रभावी होंगी। ऐसा होने के बाद भी यदि आप गूगल का उपयोग जारी रखना चुनते हैं, तो ऐसा आप नई गोपनीयता नीति और सेवा की शर्तों के अधीन करेंगे।' गूगल के दुनियाभर में 35 करोड़ एक्टिव यूजर्स हैं।

मजे की बात है कि ओबामा की मानें तो भारत में सूचना क्रांति की वजह से ही गांव गांव की आवाज़ सरकार तक पहुंच रही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने उभरते एवं स्थापित लोकतांत्रिक देशों से आग्रह किया है कि उन्हें अपनी सरकारों को भारत की ही तरह अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए।ओबामा भारतीय गांवों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि , भारत के हर गांव की आवाज़ सूचना प्रौद्योगिकी के नए उपकरणों के माध्यम से ऊपर तक सुनी जा रही है।

ओबामा ने कहा कि अमेरिका भी एक नया ऑनलाइन उपकरण लांच करेगा, जिसके माध्यम से अमेरिकी नागरिक अपनी शिकायतें व्हाइट हाउस तक सीधे भेज सकेंगे। ओबामा ने कहा कि अन्य सरकारों को भी प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराई जाएगी।

पर परिदृश्य कुछ अलग ही बयान करते हैं। गांवों की आवाज की क्या कहैं, गांव ही खत्म हो रहे हैं या फर वजूद के वास्ते गांव तेजी से शहर बनते जा रहे हैं। हर आवाज पर अब पहरेदारी है। नाटो की परियोजना बायोमैट्रिक पहचान को तो यूरोप ने खारिज कर दिया पर हमारे यहां आधार कार्ड की धूम है। निजी गोपनीयता को गिरवी पर रख चुके हम।

ब्लैकबेरी को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंता के बीच सुरक्षा एजेंसियों ने दूरसंचार मंत्रालय से गूगल, स्काइपे और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के लिए निगरानी समाधान उपलब्ध कराने को कहा है। खुफिया एजेंसियों तथा अन्य कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर इस बारे में सूचना मांगी है।सरकार ने इससे पहले कनाडा की कंपनी रिसर्च इन मोशन (रिम) से ब्लैकबेरी इंटरनेट सेवा (बीआईएस), ब्लैकबेरी मैसेंजर (बीबीएम) और ब्लैकबेरी इंटरप्राइज सर्विसेज (बीईएस) तक पहुंच के लिए इंटरसेप्शन सॉल्यूशन उपलब्ध कराने को कहा था। सरकार को आशंका है कि आतंकवादी इन सेवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि सुरक्षा एजेंसियां इन पर निगरानी नहीं रख सकती हैं।

इंटरनेट कंपनियां नियमित तौर पर अपनी गोपनीयता नीति को अपडेट करती रहती हैं, खासतौर पर अपने उत्पादों को बढ़ाते वक्त, लेकिन गूगल ये अब क्यों कह रहा है कि "इस विषय वस्तु के मायने हैं?" क्या कंपनी उपयोगकर्ताओं के बारे में और ज्यादा डाटा जुटाने की योजना बना रही है? या फिर वो लंबे समय के लिए आपके सर्च लॉग्स और अन्य उपयोगी डाटा को स्टोर कर रही है?

गूगल की इस नयी व्यवस्था में एक मुख्य बात ये है कि जिस देश में जिस किसी ब्लॉग को ब्लाक किया जाएगा उसको छोड़कर नया देशों में उस ब्लॉग को देखा जा सकेगा। गूगल के इस फैसले से साफ हो गया है कि जो तकनीकि कल तक अभिव्यक्ति की आजादी का दरवाजा खोलती थी वही अब अपनी सुविधा और संकटों से बचने के लिए तकनीकि का ताला लगा रही है।

गौरतलब है कि भारत में व्यवस्थापिका से लेकर न्यायपालिका तक ने फेसबुक और गूगल को उनके कंटेंट को लेकर कार्यवाही की चेतावनी दी थी। महत्वपूर्ण है कि ट्विटर ने भी हाल ही में घोषणा की थी कि वो देशवार त्व्वेट्स को ब्लाक करने की योजना लागू कर सकता है। भारत समेत तमाम देशों का आरोप है कि इन ब्लाग्स और माइक्रोब्लाग्स पर लगातार आपत्तिजनक सन्देश प्रकाशित किये जा रहे हैं ,भारत में राजनैतिक दलों और उनके नेताओं के खिलाफ ब्लाग्स और फेसबुक की वाल पर तमाम तरह की अनर्गल और आपत्तिजनक टिप्पणियां पढ़ने को मिलती रही हैं तो आस्ट्रेलिया और न्यूजीलेंड अशलीलता से परेशान हैं।

गूगल जो नयी व्यव्यस्था करने जा रहा है उसके अंतर्गत ब्लॉग पढ़ने वाले किसी भी व्यक्ति को सम्बंधित देश के कोड से जुड़े पेज ही देखेंगे। यानि कि अगर कोई भारत का इंटरनेट इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति ब्लॉगर को ल्होलता है तो वो आटोमेटिक तरीके से blogname.blogspot.com.in पर चला जाएगा। अगर आप किसी ऐसे ब्लॉग पर जाते हैं जो आपके मौजूदा लोकेशन और आपके आईपी एड्रेस से मेल नहीं खाता तब ब्लागस्पाट सर्वर आपको सीधे उस डोमेन पर ले जाएगा जो आपके देश से सम्बंधित हैं। गूगल का मानना है कि ऐसे आरोपों से सम्बंधित देशों को अपने क़ानून लागू करने में सरलता होगी। हाँ गूगल ये व्यवस्था भी कर रही है कि अगर आप चाहे तो किसी भी देश से सम्बंधित वेब एड्रेस पर जाने से बच सकते हैं इसके लिए आपको ब्लॉग एड्रेस के आगे "/ncr जोड़ना होगा जिसका मतलब है "नो कंट्री रिडायरेक्ट '। यानि कि अगर हम अमेरिका के बाहर हैं और हम ब्लाग्स को अमेरिका के वेब एड्रेस के द्वारा पढ़ना चाहते हैं तो हमें blogname.blogspot.com/ncr टाइप करना होगा ,गौरतलब है कि गूगल का मुख्य सर्वर अमेरिका में ही है।

इस नयी तकनीक में एक जो बड़ी बात है वो ये है कि उपयोगकर्ता जिस किसी देश के ब्लॉग देखना चाहते है उसके लिए उन्हें बस ब्लॉग पते के आगे सम्बंधित देश का कोड डालना होगा। ऐसा नहीहै कि गूगल ये पहली बार कर रहा है वो पहले भी ब्लाकिंग की कई कोशिशें कर चूका है जैसे कि गूगल ने जर्मनी में नाजियों से सम्बंधित सभी सामग्रियों को हटा लेने की बात कही थी। गूगल ने २००७ में पाने एक ब्लागपोस्ट में कहा था कि विवादास्पद सामग्री हमारे लिए हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही हैं। उसी पोस्ट में गूगल ने कहा था कि हमने पाया है कि अलग अलग देशों के कानून हमारे लिए गंभीर तकनिकी समस्याएं पडिया कर रहे हैं ,जैसे कि ये कैसे संभव है कि एक तरह की सामग्री को हम एक देश में प्रतिबंधित करे और दूसरे देश में वो काम करे। लेकिन पांच साल बाद गूगल ने इसका हल भी निकाल लिया है।


गूगल उपयोगकर्ताओं से संबद्ध किसी भी तरह के अतिरिक्त डाटा को एकत्र करने की योजना नहीं बना रही है, लेकिन एक बार जब अगले महीने से नई नीति लागू की जाएगी, उसका विभिन्न सेवाओं से डाटा संबंधी सम्मिश्रण हो जाएगा, मसलन जीमेल या फिर यूट्यूब से। ऐसा उपयोगकर्ताओं को बेहतरीन "खोज अनुभव" प्रदान करने के लिए है, जो इसे परिणामस्वरूप उपयोगकर्ताओं के लिए ज्यादा लक्ष्य साधने वाले विज्ञापन प्रस्तुत करने में सक्षम बनाएगा।


गूगल ने अपने सभी जीमेल उपभोक्‍ताओं को भेजे मेल में कहा है, 'हम गूगल की 60 विभिन्‍न गोपनीयता नीतियों को छोड़ने वाले हैं और उन्‍हें एक ऐसी नीति से बदलने जा रहे हैं जो बहुत छोटी और पढ़ने में आसान है। हमारी नई नीति एकाधिक उत्‍पादों और फ़ीचर को कवर करती है, जो संपूर्ण गूगल में एक बहुत सरल और सहज अनुभव बनाने की हमारी इच्‍छा को दर्शाती है। यह सामग्री महत्‍वपूर्ण है इसलिए हमारी अपडेट की गई गूगल गोपनीयता नीति और सेवा की शर्तें अभी पढ़ने के लिए कुछ समय दें।'
कंपनी का कहना है कि इससे हमें उपयोगकर्ताओं की रुचि समझने में मदद मिलेगी। साथ ही उपयोगकर्ताओं को भी उनकी पसंद के विज्ञापन ही देखने को मिलेंगे। यदि कोई व्यक्ति जगुआर शब्द गूगल पर सर्च करता है तो कंपनी समझ सकेगी कि उसे कार देखनी है या जानवर। हालांकि उपभोक्ताओं के वकीलों ने नई प्राइवेसी सेटिंग पर विरोध जताया है।
उनका कहना है कि कोई भी उपभोक्ता कभी नहीं चाहता कि उससे संबंधित जानकारियां विभिन्न वेबसाइटों को दी जाएं। हर उपयोगकर्ता चाहता है कि वह इंटरनेट पर जो खोजे उसे वही मिले और उसकी निजता सुरक्षित रखी जाए। साइबर विशेषज्ञ जेम्स स्टेयर ने कहा कि गूगल को भले ही लगता है कि वह इस प्रयास के जरिए उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधा दे पाएगी लेकिन यह नई प्राइवेसी सेंटिंग डराने और खीझ पैदा करने वाली है।

गूगल की नि:शुल्क सेवा 'गूगल मैप्स' अब आपको दुकानों, रेस्तरां, जिम आदि के भीतर भी ले जाने के लिए तैयार है।

गूगल की प्रवक्ता डियेना यिक ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में इन तस्वीरों के प्रति लोगों का रुझान काफी बढ़ा है। पिछले साल अप्रैल में परीक्षण के लिए दुकानों के भीतर की ली गई विभिन्न तस्वीरों को श्रृंखलाबद्ध तरीके से दिखाया गया था।

जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका जैसे देशों में कई छोटे दुकानदार भी अब गूगल मेप पर अपने प्रतिष्ठानों के भीतर की तस्वीरें उपलब्‍ध कराने के लिए छायाकारों को बुलाने लगे हैं। इन तस्वीरों को गूगल मैप पर डाला जाएगा। इनके माध्यम से इस साइट के जरिए जानकारी जुटाने वाले लोग खुद को प्रतिष्ठानों के भीतर महसूस करेंगे।

हालांकि ग्राहक की गोपनीयता को ध्‍यान में रखते हुए इन तस्वीरों में गूगल ने पास खड़े लोगों के चेहरों को धुंधला कर दिया ।


कहने को तो सूचना क्रांति में पिछड़े और दूरस्थ गांवों में इंटरनेट एवं इससे जुड़ी ऑनलाइन सेवाएं सुलभ कराने के मकसद से सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अभिनव पहल की है। इसके तहत बीएसएनएल के प्रोडक्ट मार्केटिंग से जुड़े लोगों एवं रिटेलर को नि:शुल्क ब्रॉडबैण्ड कनेक्शन आवंटित किए जाएंगे। फिलहाल, बीएसएनएल ने चयनित गांवों में ब्रॉडबैण्ड कियोस्क स्थापित करने की कवायद शुरू कर दी है। योजना के तहत सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने यूनिवर्सल सर्विस ओबलिगेशन फंड्स (यूएसओएफ) के अंतर्गत बीएसएनएल को गांवो में ब्रॉडबैण्ड कियोस्क स्थापित करने का जिम्मा सौंपा है।

बीएसएनएल की ओर से चयनित गांवों में नि:शुल्क ब्रॉडबैण्ड कनेक्शन दिए जाएंगे। इसके लिए कियोस्क संचालक से ना तो ब्रॉडबैण्ड का किराया लिया जाएगा और ना ही उसे बिल भरना होगा। मंत्रालय की इस पहल से ग्रामीणों को रोजगार सुलभ होगा। ब्रॉडबैण्ड कियोस्क पर ग्रामीणों को जहां इंटरनेट ब्राउसिंग की सुविधा मिलेगी। वहीं वीडियो चेट, वीडियो कॉम्फ्रेसिंग, टेली मेडिसिन, टेली एज्यूकेशन, प्रिंट आउट, डॉक्यूमेंट स्कैन की सेवाएं भी सुलभ होगी। इसके लिए कियोस्क संचालक किफायती शुल्क भी वसूल सकेंगे।


केंद्रीय गृह मंत्रालय में हाल ही में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में सुरक्षा एजेंसियों के अफसरों को बताया गया कि ब्लैकबेरी बनाने वाली कनाडा की कंपनी रिसर्च इन मोशन ने मुंबई में सर्वर लगा दिया है। अफसरों की टीम ने इसका इंस्पेक्शन कर लिया है। ब्लैकबेरी सेवाओं पर कानूनी रूप से रोक के लिए डायरेक्ट लिंक की इजाजत जल्दी मिलने की उम्मीद है।


भारत में सरकारी फोन कंपनियों बीएसएनल और एमटीएनएल के अलावा एयरटेल, वोडाफोन, रिलायंस और टाटा ब्लैकबेरी सेवाएं दे रही हैं। ऐसे में उन्हें सुरक्षा एजेंसियों का दखल इन सेवाओं तक कराना जरूरी है।

हालांकि सरकार ने ब्लैकबेरी एंटरप्राइज सर्विसेज के जरिए भेजी जाने वाली मेल पर अपना रुख नरम किया है। इस सेवा के लिए फिलहाल 5000 एंटरप्राइज सर्वर काम कर रहे हैं। इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर नेहछल संधू के मुताबिक, इन सर्वरों से आमतौर पर एंटरप्राइज एंप्लॉइज के बीच ही कम्यूनिकेशन हो रहा है। ऐसे में ये सुरक्षा या खुफिया एजेंसियों के लिए चिंता की वजह नहीं हैं।

गौरतलब है कि सूचना प्रेषण व आदान प्रदान में कभी डाक विभाग लोगों के लिए लाइफ लाइन माना जाता था। वहीं सूचना क्रांति के इस युग में डाक विभाग स्वयं सूचना प्रसार का मोहताज बन कर रह गई है। व्यक्तिगत सूचना आदान प्रदान का मुख्य स्त्रोत अब मोबाईल व इमेल बन चुका है तथा डाक विभाग बेरोजगारों के आवेदन प्रेषण व एडमिट कार्ड पहुंचाने तक ही सीमित रह गई है। सूचना क्रांति के इस युग में डाक विभाग का क्रेज घटने के कारण ही डाक विभाग घाटे में है।

हाल में दिल्ली हाई कोर्ट ने गूगल और फेसबुक को चेतावनी दी है कि उन्होंने अपने वेब पेज से आपत्तिजनक सामग्री हटाने के लिए कदम नहीं उठाए तो अदालत उन्हें ब्लॉक करने का आदेश दे सकती है। गूगल इंडिया और फेसबुक की याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के जस्टिस सुरेश कैट ने यह टिप्पणी की।

हाई कोर्ट ने अपनी मौखिक टिप्पणी में नेटवर्किंग साइट्स से कहा कि अगर आपने आपत्तिजनक सामग्री को चेक करने और उसे हटाने के लिए मेकनिज़म नहीं बनाए, तो चीन की तरह यहां भी ऐसी वेबसाइट्स को अदालत ब्लॉक करा सकती है। इस दौरान हाई कोर्ट ने फेसबुक और गूगल इंडिया के वकील से कहा कि वह ऐसा सिस्टम तैयार करें, जिससे आपत्तिजनक सामग्री को चेक करने और उसे हटाने की व्यवस्था हो। इससे पहले गूगल इंडिया और फेसबुक की ओर से उनके वकीलों ने दलीलें पेश की।

इस पर गूगल ने कहा कि उसने भारत में अपनी साइटों से कुछ ऐसी सामग्री हटा दी, जिन्हें स्थानीय अदालत ने आपत्तिजनक करार दिया था।

गूगल इंडिया ने अपने खोज मॉडल, यूट्यूब वीडियो साइट, ब्लॉगर और सोशल नेटवर्किंग साइट ऑरकुट पर से आपत्तिजनक घोषित सामग्री हटा दी है।अदालत के आदेश का अनुपालन के तहत इंटरनेट सेवा प्रदाता ने यह कदम उठाया ।

कंपनी ने प्रवक्ता ने एक बयान में कहा कि हमने सर्च, यूट्यूब, ब्लॉगर और ऑरकुट के स्थानीय डोमेन से सिर्फ कुछ विशेष तत्व ही हटाए हैं, जिसकी पहचान आपत्तिजनक तत्व के तौर पर की गई थी या अदालत के आदेश के दायरे में आता था।

उन्होंने कहा कि अदालती आदेश को मानने की गूगल की नीति के तहत यह कदम उठाया गया है। जिन वेबसाईट से आपत्तिजनक तत्व हटाने के लिए कहा या कि उनमें फेसबुक इंडिया, फेसबुक, गूगल इंडिया, ऑरकुट, यूट्यूब, ब्लॉगस्पाट, माइक्रोसॉफ्ट इंडिया, माइक्रोसॉफ्‍ट, जोंबी टाइम, एक्सबोई, बोर्डरीडर, आईएमसी इंडिया, माई लाट, शायनी ब्लॉक और टॉपिक्स शामिल हैं।

जबकि इससे पहले गूगल इंडिया की ओर से पेश सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, ' वेबसाइट पर पोस्ट किए जाने वाली आपत्तिजनक सामग्री और लेख को न तो मॉनिटर किया जा सकता है और न ही उसे फिल्टर किया जा सकता है। पूरे विश्व में करोड़ों लोग अपने आर्टिकल वेबसाइट पर डालते हैं यह संभव है कि वह आपत्तिजनक हो सकते हों लेकिन उसे फिल्टर नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह संभव नहीं है। '

रोहतगी ने कहा कि गूगल इंडिया और यूएस बेस्ड गूगल इंक अलग-अलग हैं। गूगल इंक सर्विस प्रवाइडर कंपनी है और गूगल इंडिया सर्विस प्रवाइडर नहीं है ऐसे में गूगल इंडिया इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। जहां तक व्यापक जिम्मेदारी की बात है तो गूगल इंडिया पर जिम्मेदारी नहीं बनती।

मुकुल रोहतगी ने दलील दी, ' गूगल इंडिया सब्सिडियरी कंपनी है और अगर प्रिंसिपल कंपनी की कोई जिम्मेदारी तय होती है तो वह जिम्मेदारी गूगल इंडिया पर नहीं बन सकती। कोई भी वेबसाइट को अप्रोच कर सकता है। अगर किसी को भी वेब साइट की सामग्री से कोई आपत्ति है तो वह इसके लिए इलेक्ट्रॉनिकली कंप्लेंट कर सकता है यह शिकायत सर्विस प्रवाइडर को किया जाता है लेकिन इस मामले में याचिकाकर्ता ने कोई भी शिकायत सर्विस प्रवाइडर को नहीं की। दुनियाभर में 5 से 10 हजार भाषाएं हैं और किस भाषा में क्या लिखा जा रहा है उसे चेक करना बहुत मुश्किल काम है। वेब साइट में अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री को फिल्टर करना मुश्किल काम है। मौजूदा तकनीक में यह संभव नहीं है कि इसे फिल्टर किया जा सके। '

इनकम टैक्स अधिकारियों ने विज्ञापनों से होने वाले ' नेट इनकम ' पर टैक्स देने की गूगल इंडिया की आदत पर सवाल उठाया है। कंपनी अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा बतौर वितरण शुल्क गूगल आयरलैंड को दे देती है। इसके बाद बची अपने ' शुद्ध आय ' या नेट प्रॉफिट पर ही टैक्स देती है। गूगल इंडिया ऐडवर्ड्स प्रोग्राम के आधार पर चलता है जिसके मुताबिक इसकी वेबसाइट पर आने वाले विज्ञापन भारत में भारतीय उद्योग समूहों को बेचे जाते हैं।

इनकम टैक्स अधिकारियों की दलील उस समझौते पर आधारित है जो गूगल इंडिया और गूगल आयरलैंड के बीच हुआ है। इस समझौते के मुताबिक गूगल इंडिया ऐडवर्ड प्रोग्राम से राजस्व अपने काते में हासिल कर रहा है। आईटी अधिकारियों का तर्क है कि इससे गूगल इंडिया की एक अलग स्वतंत्र पहचान बन जाती है। और इस वजह से इसे अपनी पूरी आमदनी इनकम टैक्स विभाग को बतानी चाहिए और इसी के आधार पर टैक्स अदा करना चाहिए।

विभाग के मुताबिक 2008-09 में गूगल इंडिया ने अपनी आय महज 7.49 करोड़ बताई जबकि विभाग के हिसाब से उसे 167.32 करोड़ की अपनी पूरी आय बतानी चाहिए थी। विभाग ने गूगल इंडिया पर उस साल के लिए 74 करोड़ रुपए दावा किया है। गूगल इंडिया के प्रवक्ता ने इस बारे में ई मेल से पूछे गए सवालों के जवाब नहीं दिए।

मोबाइल की इन सेवाओं पर नजर
पुश मेल या विंडो मोबाइल एक्टिव सिंक ईमेल, नोकिया इंटेलिसिंक वायरलेस ईमेल, मोटोरोला गुड मोबाइल मैसेजिंग, सेवन नेटवर्क मोबाइल ईमेल और ब्लैकबेरी सर्विसेस जिसमें मैसेंजर (बीबीएम) और इंटरप्राइजेस ईमेल सेवा (बीआई एस) शामिल है। इनमें से ब्लैकबेरी ने मुंबई में सर्वर लगाने को लेकर अपनी सहमति दे दी है। जिसका सुरक्षा एजेंसियां निरीक्षण करेगी। इससे ब्लैकबेरी की बीबीएम सेवा की निगरानी संभव हो पाएगी।
इंटरनेट की इन सेवाओं पर नजर
हश मेल, जी मेल और एस/एमआईएमई, स्काइप। इसमें से याहू को लेकर सरकार को सूचना तकनीक विभाग ने बताया है कि याहू के ऐसे सभी एकाउंट जो भारत में रजिस्टर है उन तक पहुंच का विकल्प है। जबकि ऐसे एकाउंट जो भारत से बाहर रजिस्टर है लेकिन यहां पर जिन पर संवाद होता है उनका संवाद विदेश में लगाए गए सर्वर से होता है।
ऐसे में सरकार ने याहू और जीमेल को सलाह दी है कि ऐसे मेल जो भारत से संचालित किए जाते हैं उन्हें भारत मे लगे सर्वर से लिंक किया जाए। जिससे सरकार उन पर निगरानी रख पाए। स्काईप को लेकर एक अधिकारी ने कहा कि इस कंपनी के प्रतिनिधियों ने भारत केंद्रित समाधान सुझाने को लेकर उत्साह दिखाया है।


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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/


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