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इस लिए चाहते हैं रावत रुद्रपुर काण्ड की सीबीआई जांच

 
-विशेष रिपोर्ट-

केंद्रीय मंत्री हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भले ही न बन पाए हों, मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के लिए सरदर्द ज़रूर बने हुए हैं. रुद्रपुर काण्ड की सीबीआई जांच की उनकी मांग उनकी बहुगुणा नहीं, कांग्रेस का भी सरदर्द बढ़ाने की कोशिश है. 

कहने को कह वे ये रहे हैं कि चुनाव के ऐन पहले रुद्रपुर में हुए साम्प्रदायिक दंगे ने ऐसा पोलराइज़ेशन किया कि न सिर्फ रुद्रपुर बल्कि अगल बगल की भी सीटें हरवा दीं. मांग भी रुद्रपुर के भाजपा विधायक राजकुमार ठकराल को गिरफ्तार करने की गयी. लेकिन इस सब के पीछे मंशा दरअसल कुछ और है.


आम धारणा ये है कि रुद्रपुर में साम्प्रदायिक घृणा भाजपा नहीं कांग्रेस के एक बड़े नेता ने फैलाई. मुसलमान मतदाता रुद्रपुर विधानसभा क्षेत्र में काफी कम हैं. डर कांग्रेसी नेता को ये था कि शहर के हिंदू भाजपा के साथ जा सकते हैं. उन्हें अपने साथ करना था. सोचा था कि कुछ ऐसा करो कि हिंदू और मुसमानों में लट्ठ बजे और उसका श्रेय भी खुद को मिले. लग ही रहा था कि सरकार कांग्रेस की बनी तो सीनियरिटी की वजह से मंत्री पद मिलना ही है. सो, खुल के खेले. खेल कुछ ऐसे खेला कि खेलते हुए दिखें भी. अब इस से ज्यादा क्या करते कि बयान तक भी दिए. पूछो पत्रकारों से. वारदात कहाँ, कैसे होगी इस की जानकारी भी वे खुद एडवांस में दे रहे थे.


मगर टैक्सी और राजनीति चलाने में एक बड़ा फर्क होता है. जैसे तैसे सरकार कांग्रेस की बन भी गई तो उस में न वे विधायक हुए, न मंत्री. ऊपर से खेमा भी उनका वो जो न रावत का, विजय बहुगुणा का ही. नारायणदत्त तिवारी ही लाये थे राजनीति में. वे ही ले डूबे. कांग्रेस ने खुद उन्हें खुड्डे लाइन लगा दिया. अब हरीश रावत चाहते हैं कि सीबीआई की जांच हो और नेता जी नपते बनें. इस लिए भी कि उन्हें उम्मीदवार बना कर कोई चुनाव तो कांग्रेस वैसे भी रुद्रपुर में अब नहीं जीत पाएगी. रुद्रपुर वैसे भी गुजरात नहीं है. साम्प्रदायिकता वाली सोच को तराई, भाबर के लोग बर्दाश्त नहीं करते. और इस का बड़ा कारण है कि इस पूरे इलाके में बहुतायत उन पंजाबियों की है जो खुद भारत-पाक विभाजन के समय साम्प्रदायिकता का शिकार हुए हैं या फिर उन बांग्लादेशियों, थारुओं, बुक्सों की जो आज दूसरी पीढ़ी के बाद भी यहाँ शरणार्थी से भी बदतर हालत में हैं.


हो सकता है हरीश रावत सीबीआई जांच की मांग कर के नारायण दत्त तिवारी के इस चेले को नपवा देना चाहते हों. लेकिन ये भी है कि अगर कांग्रेस ने साम्प्रदायिकता का विष बोने वाले इस व्यक्ति को मिसाल न बनाया तो खुद कांग्रेस मसली जायेगी. और एक बार वो रुद्रपुर और उसके आसपास के मैदानी इलाकों में नज़रों से उतरी तो कभी वापसी नहीं कर पाएगी. समझदार लोग तो कहने भी लगे हैं कि अब या तो उत्तराखंड में बहड़ होगा या फिर कांग्रेस में कहर होगा.
Last Updated (Thursday, 07 June 2012 20:37)