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Tuesday 5 June 2012

पोर्न स्टार को नागरिकता,जन्मजात को देश निकाला

सनी लियोन को नागरिकता और...

मुंबई. 29 मई 2012 एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सनी लियोन

छोटे परदे के रिएलिटी शो ‘बिग बॉस’ में आई एडल्ट फिल्मों की हिरोइन पोर्न स्टार, जिस्म 2 की अभिनेत्री सनी लियोन को भारतीय नागरिकता मिल गयी. सनी लियोन को नागरिकता का मसला महज रूटीन पेज थ्री खबर नहीं है. इससे पता चलता है कि भारत में सत्ता कैसे खुले बाजार की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए आइकनों के लिए नियम कानून ताक पर रख देती है और बहिष्कृत अछूत बहुजनों को नागरिकता, नागरिक और मानव अधिकारों से वंचित करके उनके जल, जंगल, जमीन और आजीविका पर कारपोरेट राज कायम किया जाता है. सनी के पास इससे पहले कनाडा की नागरिकता थी.

बंगाली शरणार्थियों को बांग्लादेशी बताकर उनके देश निकाले के लिए अतिसक्रिय हिंदुत्ववादी तमाम संगठनों को हालांकि सनी की भारतीय नागरिकता पर कोई एतराज नहीं है. देश भर में छितरा दिये गये तमाम बंगाली शरणार्थी अछूत हैं और उनके पुनर्वास और नागरिकता आंदोलन दलित आंदोलन हैं. पर दलित संगठनों ने उन्हें हमेशा अपने दायरे से बाहर रखा है. राजनीति की तरह अंबेडकर विचारधारा के झंडावरदारों ने अछूत बंगाली शरणार्थियों का इस्तेमाल ही किया है. भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की त्रासदी के बाद अपने देश में मौलिक अधिकारों के लिए जूझ रहे बंगाली शरणार्थी परिवार दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. उन्हें दोयम दर्जे का जीवन जीना पड़ रहा है.

भारतीय नागरिकता और राष्ट्रीयता कानून के अनुसार- भारत का संविधान पूरे देश के लिए एकमात्र नागरिकता उपलब्ध कराता है. संविधान के प्रारंभ में नागरिकता से संबंधित प्रावधानों को भारत के संविधान के भाग II में अनुच्छेद 5 से 11 में दिया गया है. प्रासंगिक भारतीय कानून नागरिकता अधिनियम 1955 है. जिसे नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 1986, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 1992, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2003 और नागरिकता (संशोधन) अध्यादेश 2005 के द्वारा संशोधित किया गया है. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2003 को 7 जनवरी 2004 को भारत के राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकृति प्रदान की गयी और 3 दिसंबर 2004 को यह अस्तित्व में आया. नागरिकता (संशोधन) अध्यादेश 2005 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किया गया था और यह 28 जून 2005 को अस्तित्व में आया. इन सुधारों के बाद भारतीय राष्ट्रीयता कानून जूस सोली (क्षेत्र के भीतर जन्म के अधिकार के द्वारा नागरिकता) के विपरीत काफी हद तक जूस सेंगिनीस (रक्त के अधिकार के द्वारा नागरिकता) का अनुसरण करता है.

नये नागरिकता कानून में हिंदुओं के लिए कोई अलग रियायत नहीं है. इसके अलावा इस कानून से शरणार्थियों के अलावा देश के अंदर विस्थापित दस्तावेज न रख पाने वालों, आदिवासियों,मुसलमानों, बस्ती वासियों और बंजारा खानाबदोश समूहों के लिए भी नागरिकता का संकट पैदा हो गया है. यह सिर्फ हिंदुओं या बंगाली शरणार्थियों की समस्या तो कतई नहीं है. खासकर नागरिकता के लिए बायोमैट्रिक पहचान के लिए अनिवार्य बना दी गयी आधार कार्ड योजना के बाद. नंदन निलेकणि खुद कहते हैं कि एक सौ बीस करोड़ की आबादी वाले इस देश में महज साठ करोड़ लोगों को आधार कार्ड दिया जायेगा.

संविधान में विभाजन के शिकार लोगों को नागरिकता और पुनर्वास के वादे वाले धारा को बदले बिना संविधान के फ्रेमवर्क से बाहर गैरकानूनी ढंग से यह संविधान संशोधन किया गया. शरणार्थियों को जो आधार वर्ष 1971 का सुरक्षा कवच देने का वायदा किया जाता है, उस सिलसिले में भी स्पष्ट किया कि इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है. सिवाय इसके कि इंदिरा मुजीब समझौते के बाद इसी साल शरणार्थियों का पंजीकरण बंद हो गया.

शरणार्थियों को आने से रोकने के लिए जो करना था, किया नहीं गया. इसी साल पुनर्वास विभाग ही बंद कर दिया गया और तबसे देश के भीतर विकास के बहाने शरणार्थी बनाने का काम तेज हो गया. असम समझौते में जो आधार वर्ष कई बात है, वह असम से विदेशी घुसपैठियों को निकालने के लिए है. पऱ ऐसा भी नहीं हुआ. नागरकता संशोधन कानून और आधार कार्ड योजना का मकसद तो सिर्फ विकास के बहाने विनाश के लिए आदिवासियों, शरणार्थियों और बंजाऱा समुदायों के साथ बस्तियों में रहने वालों की बेदखली और कारपोरेट को जमीन देने का है.
 http://raviwar.com/dailynews/d2148_sunny-leone-and-bangladeshi-20120529.shtml

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