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कमार आदिवासियों की अजीब परंपरा
परंपरा के अनुसार कमारों की बेटियों को शादी के बाद लाल बंगले में प्रवेश निषेध है. शादी के बाद जब वह मायके आती है तब उसका विशेष ख्याल रखती है. किसी कमार भुंजिया की शादी-ब्याह पर बेटी लाल बंगला में नहीं जाती...
अशोक दीक्षित
छत्तीसगढ़ के वनांचल में रहने वाले कमार भुंजिया जनजातियों की एक अनूठी परंपरा आज भी कायम है. इसमें वे अपने आवास के भीतर घास-फूंस से एक विशेष प्रकार की झोपड़ी बनाते है. इस झोपड़ी को वे लाल बंगला कहते हैं. इस बंगले को यदि कोई दूसरी जाति का व्यक्ति छू दे तो बंगले को वे आग के हवाले कर देते है, और नया लाल बंगला बनाते तक अन्न जल ग्रहण नहीं करते यह लाल बंगला उनकी इष्ट देवी और देवता का निवास होता है. जिसे कोई अन्य व्यक्ति नहीं छूने देते.
क्षेत्र में कमारों के विकास के लिए कई योजनाएं चल रही है. इसके बावजूद कमार भुंजिया के भुंजिया के लोग विकास के लिए कई योजनाएं चल रही है इसके बावजूद कमार भुंजिया के लोग विकास की मुख्यधारा से नहीं जुड़े है.
वे आज भी अपनी प्राचीन पंरपरा और मान्यताओं के साथ पिछड़ेपन की जिंदगी जीने को मजबूर है. गरियांबंद जिले के कटेपारा के तीजू भुंजिया (58) पिता फुलसिंग भुंजिया ने बताया कि वे लोग अपने आवास के भीतर एक अलग से छिंद, खद्दर, बांस और मिट्टी का छोटा घर बनाते है.
कमारों की परंपरा को विस्तार से बताने वाले तीजू ने बताया कि लाल बंगला को जलाने के बाद छूने वाले व्यक्ति द्वारा लाल बंगला का निर्माण कराया जाता है. यदि वह तैयार नहीं होता तो वे स्वयं इसे तैयार करते हैं. जब तक बंगला दोबारा नहीं बन जाता तब तक उनके परिवार का खाना पीना बंद रहता है.
वे लोग लाल बंगला में देवी देवताओं को बिठाते है. देवी और देवताओं का पूजा करते हैं. छूरा ब्लाक के कमार भुंजिया जनजातियों के लिए शासन द्वारा 25 हजार रुपए प्रति एकड़ की दर पर जमीन देने का प्रावधान है, लेकिन कमार भुंजिया लोगों को कृषि योग्य जमीन पर्दान नहीं की जा रही है. ब्लाक में इन जातियों के लिए किए जा रहे विकास के सारे दावे खोखले नजर आते हैं.
बेटियों की शादी के बाद लाल बंगले में प्रवेश निशेध : पूर्वजों की परंपरा के अनुसार कमारों की बेटियों को शादी के बाद लाल बंगले में प्रवेश निषेध है. शादी के बाद जब वह मायके आती है तब उसका विशेष ख्याल रखती है. किसी कमार भुंजिया की शादी ब्याह पर बेटी लाल बंगला में नहीं जाती वे इस परंपरा का निर्वाह जीवनभर करेंगे. साथ ही उनके आने वाली पीढ़ी भी इस परंपरा को निभाएगी. परिवार में किसी भी महिला के माहवारी आने पर बंगले को छु नहीं सकती. उस लाल बंगले के सामने अलग से बने हुए मकान में वह इस बीच गुजारा करती हैं.
जंगल से गांव की ओर : कमार भुंजिया जनजाति के लोग अपने आने वाली पीढ़ी को लेकर चिंतित हैं. वे जंगल से गांवों में जाकर बसते जा रहे हैं. वे अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर विकास की मुख्य धारा से जोड़ना चाहते हैं. हाट बजारों में किसी भी होटल या सार्वजनिक स्थानों में तेल से तली हुई वस्तुएं को सेवन नहीं करते है. स्वयं के द्वारा बनाएं ज्यादातर प्राय: बिना तेल के पसंद करते है. जंगली फलों को उपयोग में लाते हैं.
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