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Friday 10 February 2012

मुआवजे को तरसते लोग

मुआवजे को तरसते लोग

लेखक : नैनीताल समाचार :: :: वर्ष :: : January 18, 2012  पर प्रकाशित
प्रवीन कुमार भट्ट
देहरादून के चकराता विकासखंड के सीमांत भटाड़ छौटाड़ गाँव के लोग इन दिनों जिलाधिकारी कार्यालय के खूब चक्कर लगा रहे हैं। सुदूर सीमांत गाँव के यह जनजाति लोग इस कार्यालय में किसी प्रकार की जुगाड़बाजी के लिए नहीं आ रहे। स्वभाव से बेहद शांत और मिजाज से शर्मीले यह लोग इस बात से परेशान हैं कि सड़क बनाने के नाम पर तीन साल पहले काटी गई उनकी जमीन का मुआवजा सरकार ने अब तक नहीं दिया है।
विकास के नाम पर गाँव के इन लोगों पर संकट तब शुरू हुआ जब आरआईएस ने 2002 में विकासनगर के बाद लाखामंडल से सिल्वा-मानथात-गोराघाटी सड़क निर्माण शुरू किया। सिंगल लेन पहाड़ी सड़क तो थोड़े बहुत मुआवजे में इस उम्मीद के साथ बन गई कि गाँव के लोग भी क्षेत्र में गाड़ी आती-जाती देखना चाहते थे। वैसे भटाड़ गाँव के चन्द्र सिंह तो कहते हैं कि यह सड़क तब आरईएस ने सूखा राहत के पैसों से बनाई थी। सड़क जिस मद से भी बनी थी, उस समय हुए कटान का मुआवजा ग्रामीणों को मिल गया था लोग ऐसा बताते हैं। सड़क कटान के बाद 2006-07 में आरईएस ने यह सड़क लोक निर्माण विभाग को हस्तांतरित कर दी। जिसके बाद लोनिवि ने दोबारा से सड़क चौड़ीकरण और डामरीकरण की मुहिम शुरू की और लोगों की आफत भी यहीं से शुरू हुई। सिल्वा से गोरघाटी तक करीब 20 किमी की इस सड़क का लोनिवि ने 2007-08 में दोबारा कटान कर चौड़ीकरण किया।
इस दौरान विभाग ने दो बार गाँव के लोगों को बैठाकर इस बात के लिए आश्वस्त किया कि सड़क की जद में आ रही जमीन का मुआवजा समय पर दे दिया जाएगा। सड़क के कटान में पहले ही अपने कई खेत गँवा चुकने के बावजूद ग्रामीण जमीन देने को राजी हो गए। मगर 2008 में हुए कटान से सैकड़ों परिवार भूमिहीन जैसी स्थिति में आ गये हैं। अनेक खेत सड़क के कारण कट गए और अनेक उसी सड़क के मलबे में दब गए। इसके बावजूद छौटाड़, भटाड़ और मोड़ी के दर्जन भर परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं मिल पाया है।
स्थानीय राजस्व विभाग से लेकर लोक निर्माण विभाग तक के अधिकारियों से थक हारकर प्रभावित लोग 22 नवम्बर को जिलाधिकारी के पास पहुँचे। जिलाधिकारी द्वारा अधिशासी अभियंता, लोक निर्माण विभाग, साहिया (कालसी) को 15 दिनों में मुआवजा देने के लिखित आदेश दिए जाने के बावजूद कुछ नहीं हुआ। तीन सालों के दौरान कई अधिकारी बदल गए, लेकिन इन ग्रामीणों की समस्या हल नहीं हो पाई। इनमें भूमिहीन हो चुके चंद्र सिंह, पार सिंह, सरदार सिंह जैसे कई ग्रामीण तो ऐसे हैं, जिन्हें इस मुआवजे से ही आगे की जिंदगी की उम्मीद है।
छौटाड़ गाँव के मुखिया व उप प्रधान कुँवर सिंह का कहना है कि जो लोग विभाग के पीछे लगे रहे, उनका मुआवजा पहले ही दे दिया गया। जो सीधे सादे हैं, वे रह गये। अब विभाग कह रहा है कि मुआवजे की फाइल शासन से वापस आ गई है। शिष्टमंडल के साथ जिलाधिकारी कार्यालय पहुँचे गाँव के मेर सिंह, चंदर सिंह, अर्जुन सिंह, शूरवीर सिंह, गोपाल सिंह, दिनेश व जगत, सभी का यही कहना है कि अमीन ने तो मुआवजा पहले ही तय कर दिया है, लेकिन विभाग देने में आनाकानी कर रहा है।
चकराता विकासखंड के यह लोग इतने मासूम हैं कि शिष्टमंडल में शामिल दस से अधिक लोगों में से एक को भी नहीं मालूम कि उसकी कितनी भूमि सड़क कटान में कट गई है। और न यह मालूम है कि उनके लिए सरकार ने कितने मुआवजे का आकलन किया है। हाँ लोग यह जरूर जानते हैं कि उनके छह से आठ और कहीं ज्यादा खेत भी कटे हैं। जिलाधिकारी देहरादून दिलीप जावलकर ने आश्वस्त किया है कि जल्दी से जल्दी काश्तकारों को भूमि का मुआवजा अदा कर दिया जाएगा। इस मामले में स्थानीय विधायक प्रीतम सिंह के बारे में पूछने पर लोगों का कहना है कि विधायक जी के बारे में कुछ भी उल्टा मत लिखिएगा। वह सहयोग कर रहे हैं। लेकिन इस बात का जवाब उनके पास नहीं था कि अगर विधायक जी समर्थन कर रहे हैं तो मुआवजा तीन साल तक क्यों नहीं मिल पाया ?

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