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Wednesday, 10 April 2013

हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन

हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन


लोग विभाजन की त्रासदी आज भी झेलने को मजबूर हैं. जख्मों को भरने के लिये दोनों देशों के बीच आगरा जैसी कई वार्ताएँ हुई, टी.वी चैनलों पर कार्यक्रम किये गये, बस व रेलगाड़ी चलाई गयी, क्रिक़ेट खेला गया, परंतु ज़ख्म नही भरे...
राजीव गुप्ता 

मात्र तीन दिन के अपने बेटे को उसके दादा-दादी के पास छोड्कर पाकिस्तान से तीर्थयात्रा वीजा पर भारत आने वाली 30 वर्षीय भारती रोती हुई अपनी व्यथा बताते हुए कहती है अगर मैं अपने बेटे का वीजा बनने का इंतज़ार करती तो कभी भी भारत न आ पाती.' 15 वर्षीय युवती माला के मुताबिक पाकिस्तान मे उनके लिये अपनी अस्मिता को बचाये रखना मुश्किल है, तो 76 वर्षीय शोभाराम कहते है वे भारत मे हर तरह की सजा भुगत लेंगे, परंतु पाकिस्तान वापस नही जायेंगे. हमारा कसूर यह है कि हमने हिन्दू-धर्म मे पाकिस्तान की धरती पर जन्म लिया है. 'मैं अपनी आँखों के सामने अपने घर की महिलाओं की अस्मत लुटते नही देख सकता.' कहते हुए 80 वर्षीय बुजुर्ग वैशाखीलाल की आँखें नम हो गयी.
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यह कहानी है दिल्ली स्थित बिजवासन गाँव के एक सामजिक कार्यकर्ता नाहर सिँह द्वारा की गई आवास व्यवस्था में रह रहे 479 पाकिस्तानी हिन्दुओं की. यहाँ कुल 200 परिवारों में 480 लोग है, एक माह की अवधि के लिए तीर्थयात्रा वीजा पर भारत आये पाकिस्तानी -हिन्दू अपने वतन वापस लौटने को तैयार नही है. साथ ही भारत-सरकार के लिये चिंता की बात यह है कि इन पाकिस्तानी हिन्दुओ की वीजा-अवधि समाप्त हो चुकी है.

अगस्त 1947 को भारत न केवल भौगोलिक दृष्टि से दो टुकडो मे बँटा, बल्कि लोगों के दिल भी टुकड़ों मे बँट गये. पाकिस्तान के प्रणेता मुहमद अली जिन्ना को पाकिस्तान में हिन्दुओं के रहने पर कोई आपत्ति नहीं थी. उन्होंने अपने भाषण में भी कहा था 'क्योंकि पाकिस्तानी - संविधान के अनुसार पाकिस्तान कोई मजहबी इस्लामी देश नहीं है तथा विचार अभिव्यक्ति से लेकर धार्मिक स्वतंत्रता को वहा के संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है.' पर वास्तव में ऐसा हो नहीं पाया. 

लोग विभाजन की त्रासदी आज भी झेलने को मजबूर हैं. जख्मों को भरने के लिये दोनों देशों के बीच आगरा जैसी कई वार्ताएँ हुई, टी.वी चैनलों पर कार्यक्रम किये गये, बस व रेलगाडी चलाई गयी, क्रिक़ेट खेला गया, परंतु ज़ख्म नही भरे. इसके उलट विभाजन का यह ज़ख्म नासूर बन गया. स्वाधीन भारत की प्रथम सरकार मे उद्योग मंत्री डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पुरजोर विरोध के बाद भी अप्रैल 1950 मे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और लियाकत अली के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत भारत सरकार को पाकिस्तान मे रह रहे हिन्दुओ और सिखो के कल्याण के लिए प्रयास करने का अधिकार है. 

वह समझौता मात्र कागजी सिद्ध हुआ. पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ ने भारत में शरण लेने के लिए जैसे ही पलायन शुरू किया, विभाजन के घाव फिर से हरे हो गये. सवाल उठे की कोई क्योंकर अपनी मातृभूमि से पलायन करता है. मीडिया में आने वाली खबरों से पता चलता है कि पाकिस्तान में आये दिन हिन्दूओ पर जबरन धर्मांतरण, महिलाओ का अपहरण,उनका शोषण, इत्यादि जैसी घटनाएँ आम हो गयी है.

प्रकृति कभी भी किसी से कोई भेदभाव नहीं करती. इन्सान ने समय – समय पर अपनी सुविधानुसार दास-प्रथा, रंगभेद-नीति, सामंतवादी इत्यादि जैसी व्यवस्थाओं के आधार पर मानव-शोषण की ऐसी कालिमा पोती है, जो इतिहास के पन्नों से शायद ही कभी धुले. समय बदला. लोगों ने ऐसी अत्याचारी व्यवस्थाओं के विरुद्ध आवाज उठाई. विश्वमानस पटल पर सभी मुनष्यों को मानवता का अधिकार देने की बात उठी, परिणामतः विश्व मानवाधिकार का गठन हुआ. 

मानवाधिकार के घोषणा-पत्र में साफ शब्दों में कहा गया कि मानवाधिकार हर व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है, जो प्रशासकों द्वारा जनता को दिया गया कोई उपहार नहीं है तथा इसके मुख्य विषय शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोजगार, आवास, संस्कृति ,खाद्यान्न व मनोरंजन इत्यादि से जुडी मानव की बुनयादी मांगों से संबंधित होंगे. इसके साथ-साथ अभी हाल में ही पिछले वर्ष मई के महीने में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी द्वारा मानवाधिकार कानून पर हस्ताक्षर करने से वहाँ एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कार्यरत है.

पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के अध्यक्ष जेठानंद डूंगर मल कोहिस्तानी के अनुसार पिछले कुछ महीनों में बलूचिस्तान और सिंध प्रांतों से 11 हिंदू व्यापारियों और जैकोबाबाद से एक नाबालिग लड़की मनीषा कुमारी के अपहरण से हिंदुओं में डर पैदा हो गया है. वहां के कुछ टीवी चैनलों के साथ साथ पाकिस्तानी अखबार डॉन ने भी 11 अगस्त के अपने संपादकीय में लिखा कि ‘हिंदू समुदाय के अंदर असुरक्षा की भावना बढ़ रही है’ जिसके चलते जैकोबाबाद के कुछ हिंदू परिवारों ने धर्मांतरण,फिरौती और अपहरण के डर से भारत जाने का निर्णय किया है. पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के अनुसार वहां हर मास लगभग 20-25 लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराकर शादियां कराई जा रही हैं. 

यह संकट पहले केवल बलूचिस्तान तक ही सीमित था, लेकिन अब इसने पूरे पाकिस्तान को अपनी चपेट में ले लिया है. रिम्पल कुमारी का मसला अभी ज्यादा पुराना नहीं है. उसने साहस कर न्यायालय का दरवाजा तो खटखटाया, परन्तु वहाँ की उच्चतम न्यायालय भी उसकी मदद नहीं कर सका. अंततः उसने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया. हिन्दू पंचायत के प्रमुख बाबू महेश लखानी के मुताबिक कई हिंदू परिवारों ने भारत जाकर बसने का फैसला किया है, क्योंकि पाक पुलिस अपराधियों द्वारा फिरौती और अपहरण के लिए निशाना बनाए जा रहे हिंदुओं की मदद नहीं करती है. इतना ही नहीं भारत आने के लिए 300 हिंदू और सिखों के समूह को पाकिस्तान ने अटारी-वाघा बॉर्डर पर रोक कर सभी से वापस लौटने का लिखित वादा लिया गया. इसके बाद ही इनमें से 150 को भारत आने दिया गया.

पिछले दिनों पाकिस्तान द्वारा हिन्दुओं पर हो रही ज्यादतियों पर भारत की संसद में भी सभी दलों के नेताओं ने एक सुर में पाकिस्तान की आलोचना की. तब भारत के विदेश मंत्री ने यह कहकर मामले को शांत किया था कि वे इस मुद्दे पर पाकिस्तान से बात करेंगे. मगर पाकिस्तान से बात करना अथवा संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को उठाना तो दूर सरकार ने इस मसले को ही ठन्डे बसते में डाल दिया. पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं पर की जा रही बर्बरता को देखते हुए माना जा सकता है कि विश्व-मानवाधिकार पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ के लिए नहीं है. 

भारत के कुछ हिन्दु संगठनो के अनुसार पाकिस्तानी हिन्दुओं ने इस सम्बन्ध में पिछले माह (मार्च में ही भारत के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री,कानून मंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री के साथ सभी संबन्धित सरकारी विभागों सहित भारत व संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोगों को भी पत्र भेजा, मगर किसी के पास न तो इन पीडितों का दर्द सुनने की फ़ुर्सत है और न ही कोई ऐसी कार्रवाई हुई जो पाकिस्तान में हिन्दुओं को सुरक्षित माहौल का आभास दिला सके दरिंदगी पर अंकुश लगा सके. 

ऐसे में जेहन में एक ही बात आती है क्या पाकिस्तान के 76 वर्षीय शोभाराम की बात सही है कि 'पाकिस्तानी हिन्दू अपने हिन्दू होने की सजा भुगत रहे हैं. उनके लिए मानवाधिकार की बात करना मात्र एक छलावा है?' 


rajeev-guptaराजीव गुप्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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