छात्रों ने नहीं खाया दलित का बनाया खाना
खाने के समय स्कूल में नहीं थे बच्चे
कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले की बेलटांगडी तहसील में फिर एक बार सड़ी हुई सामाजिक मान्यता ने सिर उठाया है। वहां पढ़ने वालों छात्रों ने 7 फरवरी को बने दोपहर का भोजन करने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि खाना बनाने वाली महिला दलित जाति से ताल्लुक रखती थी....
वह स्कूल जहाँ बच्चों ने नहीं खाया खाना
आज भी समाज में कुछ लोग जातिवाद का कीड़ा अपने बच्चों में कितने तसल्ली बख्स से घुसाते हैं उसका ताजा उदाहरण कर्नाटक के एक प्राथमिक स्कूल में 7 फरवरी को देखने को मिला। मात्र पांचवी कक्षा के बच्चों ने दोपहर का खाना खाने से इसलिए इनकार कर दिया कि खाना बनाने वाली महिला सुमित्रा दलित परिवार से थी। बच्चों ने शर्मशार कर देने वाला यह वाकया अपने अभिभावकों के दबाव में किया।
कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले की बेलटांगडी तहसील में यह मामला 7 फरवरी को उस समय प्रकाश में आया जब तहसील में स्थित सूर्य प्राथमिक विद्यालय के छात्रों ने दोपहर का खाने से इनकार कर दिया। खाने से इनकार करने वाले 41 सवर्ण छात्रों के अलावा 7 बच्चों ने स्कूल में खाना खाया क्योंकि वह दलित जाति के थे।
स्कूल के प्रधानाध्यापक ने बताया कि, 'खाना बनाने वाली महिला सुमित्रा की रसाई सहायक के तौर पर 6 फरवरी को नियुक्त हुई और आज पहले दिन खाना बनाने आयी थी और यह तमाशा हो गया। जैसे ही अभिभावकों को पता चला कि खाने बनाने वाली सुमित्रा दलित है तो वह अपने बच्चों को लंच के लिए अपने घर लेते गये।'
हालांकि हैरत में डालने वाला तथ्य यह है कि स्कूल के प्रधानाध्यापक के घर के भी दो बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं और उन्होंने भी दोपहर का भोजन स्कूल में नहीं लिया। गौरतलब है कि सुमित्रा की भर्ती से पहले भी कुछ लोगों ने रसाइये के तौर पर उसकी नियुक्ती को लेकर ऐतराज किया था।
इसके घटना के बाद ब्लॉक स्तर के स्कूल अधिकारी और स्थानीय थाने के अधिकारी स्कूल का दौरा कर चुके हैं। अधिकारियों ने आश्वस्त किया है कि वहां ग्रामीणों को समझाकर इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगे।
कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले की बेलटांगडी तहसील में यह मामला 7 फरवरी को उस समय प्रकाश में आया जब तहसील में स्थित सूर्य प्राथमिक विद्यालय के छात्रों ने दोपहर का खाने से इनकार कर दिया। खाने से इनकार करने वाले 41 सवर्ण छात्रों के अलावा 7 बच्चों ने स्कूल में खाना खाया क्योंकि वह दलित जाति के थे।
स्कूल के प्रधानाध्यापक ने बताया कि, 'खाना बनाने वाली महिला सुमित्रा की रसाई सहायक के तौर पर 6 फरवरी को नियुक्त हुई और आज पहले दिन खाना बनाने आयी थी और यह तमाशा हो गया। जैसे ही अभिभावकों को पता चला कि खाने बनाने वाली सुमित्रा दलित है तो वह अपने बच्चों को लंच के लिए अपने घर लेते गये।'
हालांकि हैरत में डालने वाला तथ्य यह है कि स्कूल के प्रधानाध्यापक के घर के भी दो बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं और उन्होंने भी दोपहर का भोजन स्कूल में नहीं लिया। गौरतलब है कि सुमित्रा की भर्ती से पहले भी कुछ लोगों ने रसाइये के तौर पर उसकी नियुक्ती को लेकर ऐतराज किया था।
इसके घटना के बाद ब्लॉक स्तर के स्कूल अधिकारी और स्थानीय थाने के अधिकारी स्कूल का दौरा कर चुके हैं। अधिकारियों ने आश्वस्त किया है कि वहां ग्रामीणों को समझाकर इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगे।
स्रोत- दाजी वर्ल्ड
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