महिलाओं की तस्करी रोकने पर समझौता
भारत
बांग्लादेश सीमा से सटे इलाकों में महिलाओं की तस्करी का धंधा कुटीर
उद्योग की तरह बेरोकटोक चल रहा है. वर्ष 2011 में राज्य में महिलाओं की
खरीद-फ़रोख्त का आँकड़ा आठ हजार तक पहुँच गया.......................
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
महिलाओं
पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए दिल्ली बलात्कारकांड के विरोध में उठे
तूफान के मद्देनजर आनन फानन अध्यादेश तो जारी हो गया, लेकिन देश में महिला
तस्करी की समस्या सुलझाने की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
खासकर भारत बांग्लादेश सीमा से सटे इलाकों में महिलाओं की तस्करी का धंधा
कुटीर उद्योग की तरह बेरोकटोक चल रहा है.
सीमा के
आर पार तस्करों की अबाध आवाजाही से सामान्य कानून व्यवस्था की समस्या के
तौर पर इस समस्या से निजात पाना मुश्किल है. बहरहाल इस दिशा में पहलीबार
भारत और बांग्लादेश ने मिलकर हालात सुधारने का बीड़ा उठाया है.
आतंकवाद
से निपटने के लिए दोनों देशों के बीच जो सहयोग है, उसी सिलसिले को आगे
बढ़ाते हुए भारत और बांग्लादेश ने महिलाओं की तस्करी से निपटने के लिए एक
समझौता पत्र पर दस्तखत कर दिये हैं. छिटपुट धरपकड़ और दबिश, छापेमारी से इस
समस्या का हल निकालना मुश्किल है. आतंकविरोधी अभियान की जैसी द्विपक्षीय
मुश्तैदी के बिना महिलाओं की व्यापक तस्करी रोकने का उपाय नहीं है.
नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो के जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार राज्य में महिलाओं की खरीद-फ़रोख्त का धंधा तेजी से फ़ल-फ़ूल रहा है. वर्ष 2011 में राज्य में महिलाओं की खरीद-फ़रोख्त का आँकड़ा आठ हजार तक पहुँच गया. लेकिन गैर सरकारी संगठनों के मुताबिक असली तादाद इससे कहीं बहत ज्यादा है, यह आंकड़ा तो उन मामलों के आधार पर तैयार किया गया है जो पुलिस तक पहंचे हैं. राज्य सरकारें इसे रोक पाने में अभीतक नाकाम हैं.
सीमांतवर्ती गांवों में सर्वत्र महिला तस्कर अंतरराष्ट्रीय गिरोह सक्रिय है और घर -घर में लापता महिलाओं की दास्तां सुनी जा सकती है. राज्य पुलिस और प्रशासन में बैठे लोग अबतक दूसरे राज्यों और बांग्लादेश के अधिकारियों के साथ बैठक करके ही तस्कर गिरोहों से निपटने की कोशिश करते थे, लेकिन सीमा के आरपार धड़ल्ले से जारी इस कारोबार के संदर्भ में कोई द्विपक्षीय समझौता न होने कारण कामयाबी कम ही मिल पा रही थी.अब हुए समझौते के तहत द्विपक्षीय रणनीति तस्करी रोकने और उद्धार की गयी महिलाओं के पुनर्वास के लिए बनायी गयी है.
पूर्व वाममोर्चा सरकार के दौर में ही ग्रामीण इलाकों के लोगों में गरीबी की वजह से कम उम्र में बेटियों के ब्याह की जो परंपरा शुरू हुई थी वह सरकार बदलने के बावजूद जस की तस है. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के बाद अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मानती हैं कि राज्य में महिलाओं की खरीद-फरोख्त का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है. उनका आरोप है कि पूर्व सरकार ने इस पर अंकुश लगाने की दिशा में कभी कोई ठोस पहल नहीं की. बंगाल में समाज कल्याण, नारी व शिशु कल्याण सचिव रोशनी सेन ने जानकारी दी है कि इस समझौते पत्र दस्तखत हो गये हैं.अब स्टैंडर्ड आपरेशनल प्रोसिडिउर के मसविदे पर बांग्लादेश की हरी झंडी मिलते ही इस रणनीति पर तेजी से अमल शुरु हो जायेगा.
ताजा अध्ययनों से साफ है कि राज्य में महिलाओं की बढ़ती तस्करी में पड़ोसी देशों की भी अहम भूमिका है. वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक, देश में सबसे ज्यादा आबादी वाले दस जिलों में से पांच इसी राज्य में हैं और इनमें से तीन-उत्तर व दक्षिण 24-परगना और मुर्शिदाबाद बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं.राज्य की लगभग एक हजार किमी लंबी सीमा बांग्लादेश से सटी है.
इसके जरिए गरीबी की मारी बांग्लादेशी महिलाओं को कोलकाता स्थित दक्षिण एशिया में देह व्यापार की सबसे बड़ी मंडी सोनागाछी में लाया जाता है और यहां से उनको मुंबई व पुणे जैसे शहरों के दलालों के हाथों बेच दिया जाता है. सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के एक अधिकारी कहते हैं कि सीमा पार से आने वाली महिलाओं को देख कर यह पता लगाना मुश्किल है कि कौन घुसपैठिया है और किसको तस्करी के जरिए यहां लाया जा रहा है. इसी तरह नेपाल से सिलीगुड़ी कॉरीडोर से युवतियों को बेहतर नौकरियों का लालच देकर यहां लाया जाता है.
गांवों में बड़े-बूढ़े लोग मानते हैं कि अब इलाके में बाल विवाह की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. वर्ष 2001 की जनगणना व राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्टें भी इस तथ्य की पुष्टि करती हैं. इनके मुताबिक, बाल विवाह का राष्ट्रीय औसत जहां 32.10 फीसदी है, वहीं विकास की राह पर तेजी से दौड़ने का दावा करने वाले इस कथित प्रगतिशील राज्य में यह आंकड़ा 39.16 फीसदी तक पहुंच गया है. डॉ. मुखर्जी कहती हैं कि गांवों में ऐसे ज्यादातर मामलों की सूचना पुलिस तक नहीं पहुंचती.
पश्चिम बंगाल पुलिस की ओर से हाल में पुणे के एक वेश्यालय से बचाई गई सुनीता प्रधान (बदला हुआ नाम) अपनी आपबीती बताते हुए कहती है, ‘मुझे मेरा एक पड़ोसी बेहतर नौकरी का लालच देकर झापा (नेपाल) से यहां ले आया था. लेकिन कोलकाता लाकर उसने मुझे एक दलाल के हाथों बेच दिया. उस दलाल ने पहले मुझे मुंबई के एक कोठे पर बेचा. बाद में वहां से पुणे के एक कोठा मालिक ने खरीद लिया.' अब पांच साल बाद उसे पुलिस बचाकर कोलकाता लाई है. फिलहाल अपने अनिश्चित भविष्य के साथ वह एक महिला सुधार गृह में अपने दिन काट रही है.
राज्य महिला आयोग की पूर्व प्रमुख यशोधरा बागची कहती हैं, ‘इस समस्या की जड़ गरीबी ही है. कई बार गरीबी के चलते महिलाएं जानबूझ कर दलालों के जाल में फंस जाती हैं.' वह कहती हैं कि महिलाओं की तस्करी एक जटिल मुद्दा है. इसके प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया जाना चाहिए. इसके लिए सरकार व गैर-सरकारी संगठनों को तो मिल कर काम करना ही होगा, ग्रामीण इलाकों के लोगों को भी भरोसे में लेना होगा.
समस्या बढ़ते देख कर पिछले साल सरकार ने महिला आयोग और पुलिस समेत छह सरकारी विभागों को साथ लेकर एक नेटवर्क बनाने का फैसला किया था ताकि इस समस्या पर काबू पाया जा सके. सरकार ने इस अभियान के लिए एक करोड़ रुपए की मंजूरी दी था. तब कहा गया था कि इसमें शामिल संगठनों के प्रतिनिधि हर दो महीने बाद एक बैठक में प्रगति की समीक्षा करेंगे. देश में अपनी किस्म के इस पहले नेटवर्क का मूल मकसद शहरों व गांवों में जागरूकता फैलाना था ताकि महिलाएं व युवतियों को मानव तस्करों के चंगुल में फंसने से बचाया जा सके. बावजूद इसके समस्या घटने की बजाय लगातार बढ़ रही है.
नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो के जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार राज्य में महिलाओं की खरीद-फ़रोख्त का धंधा तेजी से फ़ल-फ़ूल रहा है. वर्ष 2011 में राज्य में महिलाओं की खरीद-फ़रोख्त का आँकड़ा आठ हजार तक पहुँच गया. लेकिन गैर सरकारी संगठनों के मुताबिक असली तादाद इससे कहीं बहत ज्यादा है, यह आंकड़ा तो उन मामलों के आधार पर तैयार किया गया है जो पुलिस तक पहंचे हैं. राज्य सरकारें इसे रोक पाने में अभीतक नाकाम हैं.
सीमांतवर्ती गांवों में सर्वत्र महिला तस्कर अंतरराष्ट्रीय गिरोह सक्रिय है और घर -घर में लापता महिलाओं की दास्तां सुनी जा सकती है. राज्य पुलिस और प्रशासन में बैठे लोग अबतक दूसरे राज्यों और बांग्लादेश के अधिकारियों के साथ बैठक करके ही तस्कर गिरोहों से निपटने की कोशिश करते थे, लेकिन सीमा के आरपार धड़ल्ले से जारी इस कारोबार के संदर्भ में कोई द्विपक्षीय समझौता न होने कारण कामयाबी कम ही मिल पा रही थी.अब हुए समझौते के तहत द्विपक्षीय रणनीति तस्करी रोकने और उद्धार की गयी महिलाओं के पुनर्वास के लिए बनायी गयी है.
पूर्व वाममोर्चा सरकार के दौर में ही ग्रामीण इलाकों के लोगों में गरीबी की वजह से कम उम्र में बेटियों के ब्याह की जो परंपरा शुरू हुई थी वह सरकार बदलने के बावजूद जस की तस है. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के बाद अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मानती हैं कि राज्य में महिलाओं की खरीद-फरोख्त का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है. उनका आरोप है कि पूर्व सरकार ने इस पर अंकुश लगाने की दिशा में कभी कोई ठोस पहल नहीं की. बंगाल में समाज कल्याण, नारी व शिशु कल्याण सचिव रोशनी सेन ने जानकारी दी है कि इस समझौते पत्र दस्तखत हो गये हैं.अब स्टैंडर्ड आपरेशनल प्रोसिडिउर के मसविदे पर बांग्लादेश की हरी झंडी मिलते ही इस रणनीति पर तेजी से अमल शुरु हो जायेगा.
ताजा अध्ययनों से साफ है कि राज्य में महिलाओं की बढ़ती तस्करी में पड़ोसी देशों की भी अहम भूमिका है. वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक, देश में सबसे ज्यादा आबादी वाले दस जिलों में से पांच इसी राज्य में हैं और इनमें से तीन-उत्तर व दक्षिण 24-परगना और मुर्शिदाबाद बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं.राज्य की लगभग एक हजार किमी लंबी सीमा बांग्लादेश से सटी है.
इसके जरिए गरीबी की मारी बांग्लादेशी महिलाओं को कोलकाता स्थित दक्षिण एशिया में देह व्यापार की सबसे बड़ी मंडी सोनागाछी में लाया जाता है और यहां से उनको मुंबई व पुणे जैसे शहरों के दलालों के हाथों बेच दिया जाता है. सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के एक अधिकारी कहते हैं कि सीमा पार से आने वाली महिलाओं को देख कर यह पता लगाना मुश्किल है कि कौन घुसपैठिया है और किसको तस्करी के जरिए यहां लाया जा रहा है. इसी तरह नेपाल से सिलीगुड़ी कॉरीडोर से युवतियों को बेहतर नौकरियों का लालच देकर यहां लाया जाता है.
गांवों में बड़े-बूढ़े लोग मानते हैं कि अब इलाके में बाल विवाह की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. वर्ष 2001 की जनगणना व राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्टें भी इस तथ्य की पुष्टि करती हैं. इनके मुताबिक, बाल विवाह का राष्ट्रीय औसत जहां 32.10 फीसदी है, वहीं विकास की राह पर तेजी से दौड़ने का दावा करने वाले इस कथित प्रगतिशील राज्य में यह आंकड़ा 39.16 फीसदी तक पहुंच गया है. डॉ. मुखर्जी कहती हैं कि गांवों में ऐसे ज्यादातर मामलों की सूचना पुलिस तक नहीं पहुंचती.
पश्चिम बंगाल पुलिस की ओर से हाल में पुणे के एक वेश्यालय से बचाई गई सुनीता प्रधान (बदला हुआ नाम) अपनी आपबीती बताते हुए कहती है, ‘मुझे मेरा एक पड़ोसी बेहतर नौकरी का लालच देकर झापा (नेपाल) से यहां ले आया था. लेकिन कोलकाता लाकर उसने मुझे एक दलाल के हाथों बेच दिया. उस दलाल ने पहले मुझे मुंबई के एक कोठे पर बेचा. बाद में वहां से पुणे के एक कोठा मालिक ने खरीद लिया.' अब पांच साल बाद उसे पुलिस बचाकर कोलकाता लाई है. फिलहाल अपने अनिश्चित भविष्य के साथ वह एक महिला सुधार गृह में अपने दिन काट रही है.
राज्य महिला आयोग की पूर्व प्रमुख यशोधरा बागची कहती हैं, ‘इस समस्या की जड़ गरीबी ही है. कई बार गरीबी के चलते महिलाएं जानबूझ कर दलालों के जाल में फंस जाती हैं.' वह कहती हैं कि महिलाओं की तस्करी एक जटिल मुद्दा है. इसके प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया जाना चाहिए. इसके लिए सरकार व गैर-सरकारी संगठनों को तो मिल कर काम करना ही होगा, ग्रामीण इलाकों के लोगों को भी भरोसे में लेना होगा.
समस्या बढ़ते देख कर पिछले साल सरकार ने महिला आयोग और पुलिस समेत छह सरकारी विभागों को साथ लेकर एक नेटवर्क बनाने का फैसला किया था ताकि इस समस्या पर काबू पाया जा सके. सरकार ने इस अभियान के लिए एक करोड़ रुपए की मंजूरी दी था. तब कहा गया था कि इसमें शामिल संगठनों के प्रतिनिधि हर दो महीने बाद एक बैठक में प्रगति की समीक्षा करेंगे. देश में अपनी किस्म के इस पहले नेटवर्क का मूल मकसद शहरों व गांवों में जागरूकता फैलाना था ताकि महिलाएं व युवतियों को मानव तस्करों के चंगुल में फंसने से बचाया जा सके. बावजूद इसके समस्या घटने की बजाय लगातार बढ़ रही है.
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