अमरकांत जी के अवसान के बहाने बची हुई पृथ्वी की शोकगाथा
पलाश विश्वासएक जरुरी नोटः आज सुबह पुराने मित्र उर्मिलेश के फोन से नींद खुली।मुझे स्मृतिभ्रंश की वजह से इस आलेख में तथ्यात्मक गलतियों की आशंका ज्यादा थीं।
आज सुबह दुबारा इसके टुकड़े मोबाइल पाठकों के लिए फेसबुक पर दर्ज कराते हुए छिटपुट गलतियां नजर भी आयीं। यथासंभव दुरुस्त करके यह आलेख कुछ देर
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