Pages

Free counters!
FollowLike Share It

Sunday, 11 March 2012

कारपोरेट लाबिइंग अब सीधे सीधे कारपोरेट सौदेबाजी में तब्दील!





कारपोरेट लाबिइंग अब सीधे सीधे कारपोरेट सौदेबाजी में तब्दील!

डीटीसी और जीएसटी लागू करना और मल्टी ब्रांड रीटेल एफडी आई को हरी झंडी दादा प्रणव की मुख्य चुनौतियां हैं,बिना लब्बोलुआब इंड्स्ट्री को अब नतीजे चाहिए!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

​बजट की उलटी गिनती शुरू हो गयी है।वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी 16 मार्च को साल 2012-13 के लिए देश का आम बजट पेश करेंगे। यूपी चुनाव में मुंह की खाने और उससे बी ज्यादा भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका के फ्लाप शो,ममता, मुलायम और क्षेत्रीय क्षत्रपों की नई तीसरी शक्ति बनने की नई मुहिम और हाथ में भाजपा का पुराना विकल्प, उद्योग जगत के पास ताश के पत्ते कुछ ज्यादा ही हैं। इस पर तुर्रा यह कि राजकोषीय घाटा कम करने की फिक्र में दिन का चैन, रात की नींद खराब करने वाले प्रणव मुखर्जी न तो वित्तीय नीत और न मौद्रिक नीति की दिशा तय कर पा रहे हैं। तमाम वित्तीय कानून खटाई में हैं। विनिवेश डांवाडोल है। सुधारों का भविष्य अधर में है। सरकार और पार्टी डरी डरी सी है। ऐसे में फौरी तौर पर इस बजट में डीटीसी और जीएसटी लागू करना और मल्टी ब्रांड रीटेल एफडी आई को हरी झंडी दादा प्रणव की मुख्य चुनौतियां हैं। उन्हें देश की व्यापक पहुंच वाली लेकिन चरमराती और लीकेज वाली सब्सिडी व्यवस्था में व्यापक सुधार को अंजाम देना होगा, उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में जबरदस्त सुधारों  के लिए पहल करनी होगी। उनको कर का दायरा बढ़ाना होगा और साथ ही वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद अपनाए गए कर कटौती के राहत उपायों को भी वापस लेना होगा। यह कोई चुनाव प्रचार का मामला तो है नहीं कि वायदा करके मुकर जाये और किसी की बला किसी और के मत्थे टाल दिया जाये। बिना लब्बोलुआब इंड्स्ट्री को अब नतीजे चाहिए।

तेल संकट, यूरोजोन और इरान परिदृश्य मुश्किल कुछ कम नहीं थे। अमेरिका में नये रोजगार की खबर से बाजार में थोड़ा जोश का माहौल भी बना था। पर अब नया अशनिसंकेत भारतीय अर्थ व्यवस्था की चूलें हिलाने के लिए काफी हैं।अब मंदी की आहटें बहुत तेज हो गयी हैं। चीन भी मंदी की चपेट में ह। बकरी की अम्मा कब तक खैर मनाती रहेगी जबकि उत्पादन प्रणाली ध्वस्त है और खुले बाजार के चक्कर में परंपरागत उद्योग धंधों, आजीविका को टौपट कर दिया गया है। चीनी रक्षा बजट ही नहीं, चीन में मंदी बी वित्तमंत्री के लिए अग्नि परीक्षा साबित होने जा रही है।चीन में फरवरी माह में व्यापार घाटा पिछले दशक में सबसे ऊंचे स्तर तक पहुंच गया. फरवरी महीने में व्यापार घाटा साढ़े इकत्तीस अरब डॉलर था, यानी, वहां जो आयात हुआ वो निर्यात के मुकाबले साढ़े इकत्तीस अरब डॉलर अधिक था। उधर एक और एशियाई देश ईधन का आयात बढ़ने से जापान का व्यापार घाटा रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। पिछले साल जापान में परमाणु दुर्घटना हुई थी, जिसके कारण वहां के अधिकांश परमाणु बिजली घरों को बंद करना पड़ा था। अधिकांश परमाणु बिजली घरों के बंद होने की वजह से बिजली जरुरतों को पूरा करने के लिए ईधन आयात बढ़ाना पड़ा था।विडंबना है कि भारत ने भी परमाणु बिजली का विकल्प चुना है जिस भारत अमेरिका परमाणु संधि के बाद अब किसी भी हाल में बदला नहीं जा सकता। भोपाल गैस त्रासदी के अनुभव के बावजूद।

दूसरी तरफ भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की ओर से जो बजट पूर्व ज्ञापन जारी किया गया है उसमें यह तो माना गया है कि राजकोषीय गुंजाइश सीमित है लेकिन इसके बावजूद उसने उद्योग जगत के लिए छूट की मांग की है। सीआईआई के ज्ञापन में कहा गया है, 'निवेश को बढ़ावा देने के लिए उत्पाद शुल्क और सेवा कर को मौजूदा स्तर पर बरकरार रखना बेहद जरूरी है।' वास्तव में तो सीआईआई का तर्क यह है कि सेवा कर में छूट की सीमा को ढाई गुना तक बढ़ाया जाना चाहिए।

इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हो सकती हैं। ममता ने कहा है कि वो इन दोनों शपथ ग्रहण समारोहों में जाने की पूरी कोशिश करेंगी।गौरतलब है कि बादल 14 मार्च को शपथ लेने वाले हैं, जबकि अखिलेश यादव 15 मार्च को लखनऊ में शपथ लेंगे। वहीं, ममता के इस कदम को यूपीए के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। बीते कई महीनों से ममता और यूपीए के बीच कई मुद्दों पर तनातनी दिखी है। रिटेल में एफडीआई का मुद्दा हो या एनसीटीसी का ममता ने दोनों मुद्दे पर यूपीए सरकार को घेरा है। अब अखिलेश यादव और प्रकाश सिंह बादल के शपथ ग्रहण समारोह में जाकर वो यूपीए को एक और झटका देने की तैयारी कर रही है।सूत्रों की मानें तो ममता दोनों शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगी। पंजाब में एनडीए के बड़े नेताओं के साथ दिखेंगी तो यूपी में समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ दिखेंगी। दूसरी तरफ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि देश की राजनीति एक मोड़ ले रही है। जाहिर है कि कारपोरेट इंडिया इन परिस्थितियों और बदलते समीकरणों पर नजर रखे हुए हैं और वक्त बेवक्त रणनीति बदल रही है। कारपोरेट लाबिइंग अब सीधे सीधे कारपोरेट सौदेबाजी में तब्दील है।पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को पटखनी क्या मिली चारों ओर सुगबुगाहट फैल गयी कि अब दिल्ली की सत्ता को खतरा पैदा हो सकता है, हालांकि यूपीए सुप्रीमो सोनिया गांधी ने इस बात से इंकार कर दिया है।

सब्सिडी में होने वाली भारी बढ़ोतरी का भार कम करने के लिए सरकार ने कीमत सुरक्षा कोष का प्रस्ताव तैयार किया है। खाद्य व उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इस पर विचार कर रहा है और 2012-13 के बजट में यह सामने आ सकता है। इस कोष का ढांचा अभी शुरुआती अवस्था में है और इस पर विस्तार से काम होना बाकी है। हालांकि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की दिशा में पहल करके सरकार ने बहुत बड़ी जवाबदेही अपने हाथ में ली है। लेकिन इस दौरान उन्होंने बढ़ती जनसंख्या, पानी की घटती उपलब्धता और बढ़ती सब्सिडी को लेकर अपनी चिंता भी जाहिर की।

उद्योग जगत ने भारतीय रिजर्व बैंक से आगामी मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा में रेपो दरों में एक प्रतिशत कटौती की मांग की है। बाजार को सीआरआर में 50 आधार अंक की कटौती की उम्मीद थी। आम बजट से पहले रिजर्व बैंक ने सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) में 0.75 फीसदी की कटौती कर दी है। यह कटौती शनिवार से प्रभावी हो गई है।बाजार को हैरान करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) 75 आधार अंक घटाकर 4.75 फीसदी कर दिया है। इससे बैंकिंग तंत्र में अतिरिक्त 48,000 करोड़ रुपये की नकदी आएगी। ​मौद्रिक नीतियों में यह उदारता उद्योग जगत को तदर्थ तौर पर जरूर खुश कर सकती है, पर डीटीएस, जीएसटी, विनिवेश, वित्तीय और श्रम कानूनों में संशोधन उसके एजंडे पर टाप पर है। लालीपाप थमाकर सरकार इस मुश्किल से निकल जायेगी, ऐसा नहीं लगता। बहरहाल इससे जहां महंगाई और ऊंची ब्याज दर से परेशान आम आदमी को राहत मिली है, वहीं उद्यमियों का मानना है कि इससे उद्योगों को मजबूती मिलेगी।  सीआरआर बैंकों की जमा राशि का वह हिस्सा होता है, जिसे बैंकों को रिजर्व बैंक के पास सुरक्षित रखना होता है। इस हिस्से में पहले भी आरबीआई ने जनवरी माह में आधे फीसदी की कटौती की थी। तब बैंकिंग तंत्र को 315 अरब रुपये का इजाफा हुआ था। अब यह कटौती और बढ़ने से आम आदमी के लिए ऋण लेना आसान होगा तो उद्योगों की मंदी भी दूर होगी और उद्योग तरक्की करेंगे। बैंकरों ने कहा कि सीआरआर में कटौती से छोटी अवधि की दरों में गिरावट आएगी, जो पिछले एक हफ्ते से ऊंचे स्तर पर बनी हुई थी। केनरा बैंक के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक एस रामन ने कहा, 'हम रिजर्व बैंक द्वारा सीआरआर में कटौती किए जाने से बेहद खुश हैं। यह कदम तंत्र में नकदी बढ़ाने के लिए उठाया गया है। सीआरआर में कटौती के बाद सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट और बल्क डिपॉजिट की दरें 25 आधार अंक कम हो सकती हैं।'तीन महीने के डिपॉजिट सर्टिफिकेट की दरें पिछले एक हफ्ते में 75-100 आधार अंक बढ़कर 11 फीसदी से ज्यादा हो गई थी। सोमवार को बाजार में नकदी बढऩे से सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल भी घट सकता है।सीआरआर में कटौती की वजह पर रिजर्व बैंक ने कहा, 'अग्रिम कर भुगतान और बैंकों द्वारा केंद्रीय बैंक में नकदी जमा कराने के कारण मार्च के दूसरे सप्ताह में तंत्र में नकदी प्रवाह का संकट बढऩे की आशंका थी।' केंद्रीय बैंक ने कहा कि वह अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों तक पूंजी का निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित करना चाहता है।

फरवरी में निर्यात 4.3 की रफ्तार से बढ़ा है और ये 2,460 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है। हालांकि निर्यात के मुकाबले आयात की ग्रोथ ज्यादा रही है।

फरवरी में आयात 20.6 फीसदी की तेजी के साथ बढ़ा है और ये 3,980 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है। निर्यात और आयात के बीच इस खाई की वजह से देश का व्यापार घाटा 1,520 करोड़ डॉलर से ज्यादा का रहा है।

वहीं अप्रैल-फरवरी के दौरान निर्यात 21.4 फीसदी बढ़कर 26,740 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है। अप्रैल-फरवरी के दौरान आयात 29.4 फीसदी बढ़कर 44,320 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। अप्रैल-फरवरी के दौरान व्यापार घाटा 16,680 करोड़ रुपये रहा है।

फिलहाल वित्त मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2011-12 में सरकार का कुल अनुमानित ऋण 32,81,464.94 करोड़ रुपए है। इसमें से आंतरिक ऋण 31,10,617.97 करोड़ रुपए का है, जबकि विदेशी ऋण की मात्रा 1,70,846.97 करोड़ रुपए है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का त्वरित अनुमान 52,22,027 करोड़ रुपए का है। इस तरह इस समय भारत सरकार का कुल ऋण जीडीपी का 62.84 फीसदी है।केंद्र सरकार सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन के लिए रिजर्व बैक से अलग व्यवस्था करेगी। इसके लिए ऋण प्रबंधन कार्यालय (डीएमओ) बनाया जाएगा जिसके लिए एक विधेयक संसद के बजट सत्र में पेश किया जाएगा। बजट सत्र अगले हफ्ते सोमवार, 12 मार्च से शुरू हो रहा है।

वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को सरकारी ऋण की ताजा स्थिति पर जारी रिपोर्ट में कहा है, "सार्वजनिक ऋण प्रबंधन के बारे में सबसे अहम सुधार है वित्त मंत्रालय में अलग से डीएमओ की स्थापना। आनेवाले बजट सत्र 2012-13 में इस सिलसिले में आवश्यक विधेयक पेश करने का प्रस्ताव है।"

अभी तक भारतीय रिजर्व बैंक देश के मुद्रा प्रबंधन और बैंकों के नियमन के साथ ही सरकार के ऋण प्रबंधन का काम भी करता है। इसलिए उसके काम व फैसलों में अनावश्यक उलझन होती है। सरकार चाहती है कि ऋण प्रबंधन का काम उससे अलग कर दिया जाए ताकि वह मौद्रिक नीति संबंधी फैसले निष्पक्षता और बिना किसी दबाव के ले सके।

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने दो साल पहले 2010-11 का आम बजट पेश करते हुए कहा था कि सरकार सार्वजनिक ऋण प्रबंधन एजेंसी विधेयक पेश करेगी। लेकिन इस मसले पर रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच बराबर मतभेद बने रहे। रिजर्व बैंक का कहना है कि सरकार के ऋण का प्रबंधन वित्त मंत्रालय के अधीन बनी किसी अलग संस्था के बजाय रिजर्व बैंक के नियंत्रण में चलनेवाली किसी संस्था से कराया जाना चाहिए।

रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने इस संदर्भ में पहले कहा था, "सरकार के ऋण प्रबंधन के काम को रिजर्व बैंक से अलग करने के पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। मसलन, इससे हितों का टकराव सुलझ जाएगा, ऋण की लागत घट जाएगी, ऋण का सुदृढीकरण होगा और पारदर्शिता आएगी। लेकिन वास्तव में ये सारे फायदे अतिरंजित हैं।" उनका कहना था कि उचित मौद्रिक नीति और वित्तीय स्थायित्व के लिए सरकार के ऋण प्रबंधन और केंद्रीय बैंक के बीच नजदीकी संबंध होना जरूरी है।


रिटेल सेक्टर को उम्मीद है कि इस बजट में मल्टीब्रैंड विदेशी निवेश पर सरकारी नीतियों में कुछ सफाई आ सकती है। उधर, सिंगल ब्रैंड रिटेल में 100 फीसदी एफडीआई की मंजूरी के बावजूद अभी भी इंडस्ट्री में एसएमई से 30 फीसदी सोर्सिंग को लेकर दुविधा है, जिसे दूर करने की उम्मीद इंडस्ट्री को है। लेकिन रिटेल इंडस्ट्री की सबसे बड़ी मांग है जीएसटी जल्द लागू किया जाए।करीब 2,700 करोड़ डॉलर का संगठित रिटेल सेक्टर सरकार से इंडस्ट्री स्टेटस मिलने की उम्मीद भी कर रहा है। रिटेल सेक्टर सरकार से एसईजेड की तर्ज पर आरईजेड यानी रिटेल एंटरटेनमेंट जोन बनाने की मांग कर रहा है जिनमें निवेश करने वाले रिटेलर्स को ऑट्रॉय, स्टैम्प ड्यूटी में छूट और सस्ती बिजली मिले। रिटेलर्स की ये भी मांग है कि सप्लाई चेन बनाने के लिए आयात किए जाने वाले उपकरणों पर ड्यूटी में छूट मिले। साथ ही, सरकार सेविंग के बजाए खपत बढ़ाने वाली पॉलिसी बनाए।

रिटेलर्स एपीएमसी एक्ट में बदलाव की मांग भी कर रहे हैं, ताकि सीधे किसानों से खरीद आसान हो। इसके अलावा इसेंशियल कमोडिटी एक्ट के तहत स्टॉक लिमिट की सीमा बढ़ाने की मांग भी रिटेलर्स कर रहे हैं। अब देखना है कि वित्त मंत्री 16 मार्च को रिटेलर्स की कितनी उम्मीदों पर खरा उतरते हैं।

रेल बजट आम बजट से अलग होने के नाते इसका हमेशा राजनीतिक इस्तेमाल होता रहा है। हर रेलमंत्री अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए बाकी देश को तिलांजलि देकर अपने वोट बैंक को खुश करने पर आमादा होते रहे हैं। रेल बजट का वित्तीय या मौद्रिक नीतियां तो रही दूर , रेलवे के​ ​ अपने अर्थशास्त्र मसलन राजस्व . आय और परिचालन व्यय से दूर दूर का नाता नहीं होता। परियोजनाए गोषित कर दी जाती हैं और पैसे का इंतजाम नहीं होता। यात्री सहूलियतों, सुरक्षा और आधारभूत संरचना जैसी मूल जरुरतों की अनदेखी करके थोक तालियां बटोर ली जाती है। इस बार भी दिनेश त्रिवेदी इससे अलग कुछ करेंगे , ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। सात पूर्वोत्तर राज्यों को आगामी रेल बजट में बड़ा तोहफा मिल सकता है। एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर उभरने में यह पूर्वोत्तर राज्य तृणमूल काग्रेस के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

भारतीय रेलवे ने शनिवार से 120 दिन पहले टिकट आरक्षण की सुविधा लागू कर दी है। टिकटों की कालाबाजारी रोकने के लिए उठाए गए इस कदम से रेलवे को भी फायदा होगा। चार महीने पहले आरक्षण से टिकट कैंसिलेशन की संभावना भी बढ़ जाएगी। रिफंड टिकट से भी रेलवे को अतिरिक्त आय होगी। महीनेभर पहले रेलवे ने इसकी घोषणा की थी।

रेल मंत्रालय तृणमूल काग्रेस के नेता दिनेश त्रिवेदी के पास है और इसका इस्तेमाल इन राज्यों में रेल परियोजनाओं के लिए किया जा सकता है। तृणमूल काग्रेस ने अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर विधानसभा चुनावों में अपना खाता खोल लिया है और अब उसकी नजर त्रिपुरा विधानसभा चुनावों पर है।उल्लेखनीय है कि रेल मंत्री बनने के बाद त्रिवेदी ने सबसे पहला दौरा नागालैंड का किया था। रेल मंत्री आगामी बजट में पूर्वोत्तर में कनेक्टिविटी यानी संपर्क सुधारने की जरूरत पर खास ध्यान दे सकते हैं और कुछ नई ट्रेनों और रेल लाइनों की घोषणा कर सकते हैं।

पिछले साल रेल बजट पेश करते समय तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों की राजधानियों को आपस में जोड़ने के उपायों की घोषणा की थी। उम्मीद की जा रही है कि त्रिवेदी इस मिशन में तेजी लाने की दिशा में काम करेंगे।

हाल ही में मणिपुर में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में तृणमूल काग्रेस ने सात सीटें जीतीं और अब उसका लक्ष्य क्षेत्रीय पार्टी से एक राष्ट्रीय पार्टी बनने का है। इससे पहले, तृणमूल काग्रेस अरुणाचल प्रदेश में पाच सीटें जीती थी। मणिपुर विधानसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन को लेकर उत्साहित तृणमूल काग्रेस ने कहा है कि जल्द ही इसे राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता मिल जाएगी।

देश के प्रमुख उद्योग संगठनों ने चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर के घटकर 6.1 प्रतिशत पर आने और बीते सप्ताह में बैंकों द्वारा रिवर्स रेपो के तहत एक दिन में रिकॉर्ड 1.90 लाख करोड़ रूपये से अधिक की पूजीं लेने पर गहरी चिंता जताते हुये भारतीय रिजर्व बैंक से तरलता बढ़ाने के उपाय करने और नकद आरक्षी अनुपात 'सीआरआर' में एक प्रतिशत तक की कटौती करने का आग्रह किया है।

भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फ्क्किी) के अध्यक्ष आर वी कनोरिया के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में लगातार विकास दर में गिरावट जारी है। पहली तिमाही में यह 7.7 प्रतिशत पर रही जो दूसरी तिमाही में घटकर 6.9 प्रतिशत और अब तीसरी तिमाही में 6.1 प्रतिशत पर आ गयी है जो चालू वित्त वर्ष में विकास दर के अनुमानित लक्ष्य को भी हासिल कर पाने पर सवालिया निशान लगा दिया है।

उन्होंने कहा कि इसके मद्देनजर गिरावट को थामने और इसमें तेजी लाने के लिए नीतिगत उपाय किये जाने की तात्कालिक आवश्यकता है और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इसमें विलंब किया जाना खतरनाक साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक को आगामी 15 मार्च को रिण एवं मौद्रिक नीति की तिमाही मध्य समीक्षा में विकास पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। केन्द्रीय बैंक को सीआरआर में कम से कम 0.50 प्रतिशत और इसी तरह से अल्पकालिक ऋण दरों, रेपो और रिवर्स रेपा, में भी आधी फीसदी की कटौती करनी चाहिए।


Welcome Akhilesh!It is ensured with the fresh Mandate in Uttar pradesh that Congress or BJP would not be able to win the major part of Hindi Cow belt known as UP.The infight between congress and BJP is limited within Uttarakhand where Congress romped



Welcome Akhilesh!It is ensured with the fresh Mandate in Uttar pradesh that Congress or BJP would not be able to win the major part of Hindi Cow belt known as UP.The infight between congress and BJP is limited within
Uttarakhand where Congress romped home this time replacing BJP.
Indian Holocaust My Father`s Life and Time - Eight HUNDRED THIRTEEN

Palash Biswas

http://indianholocaustmyfatherslifeandtime.blogspot.com/


http://basantipurtimes.blogspot.com/
Law and order will be the priority of the new SP government in Uttar Pradesh, chief minister- designate Akhilesh Yadav on Friday said, maintaining that no discrimination will be made on the basis of caste and creed.

Welcome akhilesh!It is ensured with the fresh Mandate in Uttar pradesh that Congress or BJP would not be able to win the major part of Hindi Cow belt known as UP.The infight between congress and BJP is limited within Uttarakhand where Congress romped home this time replacing BJP.th incarnation  of akhilesh yadav should not be taken otherwise as the Nation is ruled by Gandhi Nehru dynasty for long time. If Rahul Gandhi may be projected as Next prime Minister and if indira Gandhi and rajiv Gandhi had alread become Prime Ministers, why should we call it Dynasty Rule in UP. Akhilesh has led the party to Victory leading from the front and he deserves to be awarded by the party while the Nation should expect greater role by the Old socialist Guard Mulayam Sing Yadav. I have personally witnessed the Golden days in UP while Uttarakhand was the part of UP. For decades UP has lost the Political Leadership and Nothing positive happened in UP. let us welcome akhilesh for a change for better. We may hope only as Nothing is in our hand in the predominance of Identity Politics turning at best as Castelogy and ideology translated in Profit Oriented Business only.

Marking a generational shift in Uttar Pradesh politics, Akhilesh Yadav, who scripted his party's return to power in Lucknow, was today elected leader of the SP legislature party. At 38, he will be the youngest Chief Minister of the statewhen he takes charge on March 15.Mind you, the old socialist prespective has been already lost. When the Samajwadi Party's election manifesto, which was announced a few days before the Uttar Pradesh Assembly elections, promised free laptops and tablets to every 10th and 12th standard pass-out if voted to power, it went against what the SP had stood for years.

Samajwadi Party supremo Mulayam Singh Yadav today advised his son and Uttar Pradesh Chief Minister-designate Akhilesh Yadav to lead a clean social and political life.

"I will be happy to see if Akhilesh keeps his personal and social life clean. This will be fulfilment of my dreams," he said addressing a meeting of newly-elected party MLAs here.

Mulayam told the legislators to fulfill aspirations of the people and try to win their hearts.

"You all have a responsibility on your shoulders. You should try to fulfill aspirations of the people and win their hearts with your behaviour," he said.

Addressing party leaders and workers, Akhilesh said now the aim of the party would be 2014 Lok Sabha elections.

He said he would try to fulfil promises made to the people.

Akhilesh, architect of Samajwadi Party's spectacular victory in the state assembly election, will be sworn-in as Chief Minister on March 15.

Minutes after his name was proposed by senior party leader Azam Khan and supported by Shivpal Yadav, Akhilesh, son of SP chief Mulayam Singh Yadav, promised good governance and warned that "no callousness in law and order will be tolerated".

He warned SP workers that if they are found indulging in acts of hooliganism, they will be thrown out of the party — there have been several incidents of violence, allegedly involving SP workers, after the election results came in.

"By doing our work with full honesty, we can take UP on the road to development. Our priority is to provide good governance and relief to all sections of society. It is possible only if we perform our work with honesty and dedication," Akhilesh said.

Sending a clear message to the rank and file of babudom, the CM-designate said: "Those officers who are honest will be given postings while others will be booked. No laxity will be tolerated... we have issued instructions that no callousness in law and order will be tolerated. It has to be maintained, and officials should not hesitate in taking stern action."

"People rose above religion and caste while voting for us. We will take into consideration the interests of all sections of society. Farmers, weavers, Muslims, youths and every other section will be taken care of by the government. We have promised welfare schemes for everyone in our election manifesto and these will be implemented in true letter and spirit," he said.

The party leaders, though, were not surprised as they knew it was a signal that Akhilesh Yadav had taken over command from his father and party supremo Mulayam Singh Yadav.

The announcement was significant as it did not just indicate an image make-over for the party, but signalled that the party was making an earnest attempt to infuse modernity into itself. Earlier, its decisions were mainly guided by caste factors as "modern ways" were considered detrimental to social progress and the party was essentially "status-quoist".

It was Akhilesh's answer to his rival, Congress general secretary Rahul Gandhi, who had attacked the former's party for opposing "computers" and "English".

The image make-over for the SP appears to be complete with the party's unanimous decision to appoint Akhilesh, who guided his party to a stunning victory in the Assembly polls, as the next UP chief minister. At thirty eight, Akhilesh is the youngest chief minister of the state.   

Born on the first of July 1973 at Saifai in UP's Etawah district, Mulayam's native village, Akhilesh must have learnt his first lessons in politics very early, as his father had become a minister in UP in 1977, when he was four.

Akhilesh learnt the importance of discipline during his years at the Sainik School at Dhaulpur in Rajasthan before moving to Mysore for his bachelor and masters degrees in engineering. He also has a masters degree in environmental engineering from Australia.

Akhilesh was handed over command of the state unit of the party at a time, when its popularity was perhaps at its nadir. It had been humiliated in the 2007 Assembly elections and later in the 2009 Lok Sabha elections. He was supposed to be a counter to Rahul but in a different style.

Akhilesh, who had been a MP from Kannauj since 2007, faced humiliation soon after taking over the party's state unit, when his wife Dimple lost to Congress's Raj Babbar in the Ferozabad Lok Sabha by-poll in November 2009.

He, however, took it in his stride and continued to infuse modernity into the party subtly. He knew that the SP must get rid of the "goondon ki party" (a party of the criminals) tag if it were to find support among the educated people.

He demonstrated it by refusing entry to mafia don turned politician D P Yadav into his party, despite the fact that Yadav's case was advocated by none other than senior leader Azam Khan.

Even the national SP spokesman Mohan Singh was removed after he sought to by-pass Akhilesh saying there were those in the SP who wanted D P Yadav to join the party.

His writ ran in the distribution of tickets and he single handedly ran the election campaign of the party. Akhilesh traveled around 10,000 km and addressed over five hundred meetings during and before the elections.






कारपोरेट लाबिइंग अब सीधे सीधे कारपोरेट सौदेबाजी में तब्दील!





कारपोरेट लाबिइंग अब सीधे सीधे कारपोरेट सौदेबाजी में तब्दील!

डीटीसी और जीएसटी लागू करना और मल्टी ब्रांड रीटेल एफडी आई को हरी झंडी दादा प्रणव की मुख्य चुनौतियां हैं,बिना लब्बोलुआब इंड्स्ट्री को अब नतीजे चाहिए!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

​बजट की उलटी गिनती शुरू हो गयी है।वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी 16 मार्च को साल 2012-13 के लिए देश का आम बजट पेश करेंगे। यूपी चुनाव में मुंह की खाने और उससे बी ज्यादा भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका के फ्लाप शो,ममता, मुलायम और क्षेत्रीय क्षत्रपों की नई तीसरी शक्ति बनने की नई मुहिम और हाथ में भाजपा का पुराना विकल्प, उद्योग जगत के पास ताश के पत्ते कुछ ज्यादा ही हैं। इस पर तुर्रा यह कि राजकोषीय घाटा कम करने की फिक्र में दिन का चैन, रात की नींद खराब करने वाले प्रणव मुखर्जी न तो वित्तीय नीत और न मौद्रिक नीति की दिशा तय कर पा रहे हैं। तमाम वित्तीय कानून खटाई में हैं। विनिवेश डांवाडोल है। सुधारों का भविष्य अधर में है। सरकार और पार्टी डरी डरी सी है। ऐसे में फौरी तौर पर इस बजट में डीटीसी और जीएसटी लागू करना और मल्टी ब्रांड रीटेल एफडी आई को हरी झंडी दादा प्रणव की मुख्य चुनौतियां हैं। उन्हें देश की व्यापक पहुंच वाली लेकिन चरमराती और लीकेज वाली सब्सिडी व्यवस्था में व्यापक सुधार को अंजाम देना होगा, उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में जबरदस्त सुधारों  के लिए पहल करनी होगी। उनको कर का दायरा बढ़ाना होगा और साथ ही वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद अपनाए गए कर कटौती के राहत उपायों को भी वापस लेना होगा। यह कोई चुनाव प्रचार का मामला तो है नहीं कि वायदा करके मुकर जाये और किसी की बला किसी और के मत्थे टाल दिया जाये। बिना लब्बोलुआब इंड्स्ट्री को अब नतीजे चाहिए।

तेल संकट, यूरोजोन और इरान परिदृश्य मुश्किल कुछ कम नहीं थे। अमेरिका में नये रोजगार की खबर से बाजार में थोड़ा जोश का माहौल भी बना था। पर अब नया अशनिसंकेत भारतीय अर्थ व्यवस्था की चूलें हिलाने के लिए काफी हैं।अब मंदी की आहटें बहुत तेज हो गयी हैं। चीन भी मंदी की चपेट में ह। बकरी की अम्मा कब तक खैर मनाती रहेगी जबकि उत्पादन प्रणाली ध्वस्त है और खुले बाजार के चक्कर में परंपरागत उद्योग धंधों, आजीविका को टौपट कर दिया गया है। चीनी रक्षा बजट ही नहीं, चीन में मंदी बी वित्तमंत्री के लिए अग्नि परीक्षा साबित होने जा रही है।चीन में फरवरी माह में व्यापार घाटा पिछले दशक में सबसे ऊंचे स्तर तक पहुंच गया. फरवरी महीने में व्यापार घाटा साढ़े इकत्तीस अरब डॉलर था, यानी, वहां जो आयात हुआ वो निर्यात के मुकाबले साढ़े इकत्तीस अरब डॉलर अधिक था। उधर एक और एशियाई देश ईधन का आयात बढ़ने से जापान का व्यापार घाटा रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। पिछले साल जापान में परमाणु दुर्घटना हुई थी, जिसके कारण वहां के अधिकांश परमाणु बिजली घरों को बंद करना पड़ा था। अधिकांश परमाणु बिजली घरों के बंद होने की वजह से बिजली जरुरतों को पूरा करने के लिए ईधन आयात बढ़ाना पड़ा था।विडंबना है कि भारत ने भी परमाणु बिजली का विकल्प चुना है जिस भारत अमेरिका परमाणु संधि के बाद अब किसी भी हाल में बदला नहीं जा सकता। भोपाल गैस त्रासदी के अनुभव के बावजूद।

दूसरी तरफ भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की ओर से जो बजट पूर्व ज्ञापन जारी किया गया है उसमें यह तो माना गया है कि राजकोषीय गुंजाइश सीमित है लेकिन इसके बावजूद उसने उद्योग जगत के लिए छूट की मांग की है। सीआईआई के ज्ञापन में कहा गया है, 'निवेश को बढ़ावा देने के लिए उत्पाद शुल्क और सेवा कर को मौजूदा स्तर पर बरकरार रखना बेहद जरूरी है।' वास्तव में तो सीआईआई का तर्क यह है कि सेवा कर में छूट की सीमा को ढाई गुना तक बढ़ाया जाना चाहिए।

इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हो सकती हैं। ममता ने कहा है कि वो इन दोनों शपथ ग्रहण समारोहों में जाने की पूरी कोशिश करेंगी।गौरतलब है कि बादल 14 मार्च को शपथ लेने वाले हैं, जबकि अखिलेश यादव 15 मार्च को लखनऊ में शपथ लेंगे। वहीं, ममता के इस कदम को यूपीए के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। बीते कई महीनों से ममता और यूपीए के बीच कई मुद्दों पर तनातनी दिखी है। रिटेल में एफडीआई का मुद्दा हो या एनसीटीसी का ममता ने दोनों मुद्दे पर यूपीए सरकार को घेरा है। अब अखिलेश यादव और प्रकाश सिंह बादल के शपथ ग्रहण समारोह में जाकर वो यूपीए को एक और झटका देने की तैयारी कर रही है।सूत्रों की मानें तो ममता दोनों शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगी। पंजाब में एनडीए के बड़े नेताओं के साथ दिखेंगी तो यूपी में समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ दिखेंगी। दूसरी तरफ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि देश की राजनीति एक मोड़ ले रही है। जाहिर है कि कारपोरेट इंडिया इन परिस्थितियों और बदलते समीकरणों पर नजर रखे हुए हैं और वक्त बेवक्त रणनीति बदल रही है। कारपोरेट लाबिइंग अब सीधे सीधे कारपोरेट सौदेबाजी में तब्दील है।पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को पटखनी क्या मिली चारों ओर सुगबुगाहट फैल गयी कि अब दिल्ली की सत्ता को खतरा पैदा हो सकता है, हालांकि यूपीए सुप्रीमो सोनिया गांधी ने इस बात से इंकार कर दिया है।

सब्सिडी में होने वाली भारी बढ़ोतरी का भार कम करने के लिए सरकार ने कीमत सुरक्षा कोष का प्रस्ताव तैयार किया है। खाद्य व उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इस पर विचार कर रहा है और 2012-13 के बजट में यह सामने आ सकता है। इस कोष का ढांचा अभी शुरुआती अवस्था में है और इस पर विस्तार से काम होना बाकी है। हालांकि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की दिशा में पहल करके सरकार ने बहुत बड़ी जवाबदेही अपने हाथ में ली है। लेकिन इस दौरान उन्होंने बढ़ती जनसंख्या, पानी की घटती उपलब्धता और बढ़ती सब्सिडी को लेकर अपनी चिंता भी जाहिर की।

उद्योग जगत ने भारतीय रिजर्व बैंक से आगामी मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा में रेपो दरों में एक प्रतिशत कटौती की मांग की है। बाजार को सीआरआर में 50 आधार अंक की कटौती की उम्मीद थी। आम बजट से पहले रिजर्व बैंक ने सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) में 0.75 फीसदी की कटौती कर दी है। यह कटौती शनिवार से प्रभावी हो गई है।बाजार को हैरान करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) 75 आधार अंक घटाकर 4.75 फीसदी कर दिया है। इससे बैंकिंग तंत्र में अतिरिक्त 48,000 करोड़ रुपये की नकदी आएगी। ​मौद्रिक नीतियों में यह उदारता उद्योग जगत को तदर्थ तौर पर जरूर खुश कर सकती है, पर डीटीएस, जीएसटी, विनिवेश, वित्तीय और श्रम कानूनों में संशोधन उसके एजंडे पर टाप पर है। लालीपाप थमाकर सरकार इस मुश्किल से निकल जायेगी, ऐसा नहीं लगता। बहरहाल इससे जहां महंगाई और ऊंची ब्याज दर से परेशान आम आदमी को राहत मिली है, वहीं उद्यमियों का मानना है कि इससे उद्योगों को मजबूती मिलेगी।  सीआरआर बैंकों की जमा राशि का वह हिस्सा होता है, जिसे बैंकों को रिजर्व बैंक के पास सुरक्षित रखना होता है। इस हिस्से में पहले भी आरबीआई ने जनवरी माह में आधे फीसदी की कटौती की थी। तब बैंकिंग तंत्र को 315 अरब रुपये का इजाफा हुआ था। अब यह कटौती और बढ़ने से आम आदमी के लिए ऋण लेना आसान होगा तो उद्योगों की मंदी भी दूर होगी और उद्योग तरक्की करेंगे। बैंकरों ने कहा कि सीआरआर में कटौती से छोटी अवधि की दरों में गिरावट आएगी, जो पिछले एक हफ्ते से ऊंचे स्तर पर बनी हुई थी। केनरा बैंक के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक एस रामन ने कहा, 'हम रिजर्व बैंक द्वारा सीआरआर में कटौती किए जाने से बेहद खुश हैं। यह कदम तंत्र में नकदी बढ़ाने के लिए उठाया गया है। सीआरआर में कटौती के बाद सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट और बल्क डिपॉजिट की दरें 25 आधार अंक कम हो सकती हैं।'तीन महीने के डिपॉजिट सर्टिफिकेट की दरें पिछले एक हफ्ते में 75-100 आधार अंक बढ़कर 11 फीसदी से ज्यादा हो गई थी। सोमवार को बाजार में नकदी बढऩे से सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल भी घट सकता है।सीआरआर में कटौती की वजह पर रिजर्व बैंक ने कहा, 'अग्रिम कर भुगतान और बैंकों द्वारा केंद्रीय बैंक में नकदी जमा कराने के कारण मार्च के दूसरे सप्ताह में तंत्र में नकदी प्रवाह का संकट बढऩे की आशंका थी।' केंद्रीय बैंक ने कहा कि वह अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों तक पूंजी का निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित करना चाहता है।

फरवरी में निर्यात 4.3 की रफ्तार से बढ़ा है और ये 2,460 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है। हालांकि निर्यात के मुकाबले आयात की ग्रोथ ज्यादा रही है।

फरवरी में आयात 20.6 फीसदी की तेजी के साथ बढ़ा है और ये 3,980 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है। निर्यात और आयात के बीच इस खाई की वजह से देश का व्यापार घाटा 1,520 करोड़ डॉलर से ज्यादा का रहा है।

वहीं अप्रैल-फरवरी के दौरान निर्यात 21.4 फीसदी बढ़कर 26,740 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है। अप्रैल-फरवरी के दौरान आयात 29.4 फीसदी बढ़कर 44,320 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। अप्रैल-फरवरी के दौरान व्यापार घाटा 16,680 करोड़ रुपये रहा है।

फिलहाल वित्त मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2011-12 में सरकार का कुल अनुमानित ऋण 32,81,464.94 करोड़ रुपए है। इसमें से आंतरिक ऋण 31,10,617.97 करोड़ रुपए का है, जबकि विदेशी ऋण की मात्रा 1,70,846.97 करोड़ रुपए है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का त्वरित अनुमान 52,22,027 करोड़ रुपए का है। इस तरह इस समय भारत सरकार का कुल ऋण जीडीपी का 62.84 फीसदी है।केंद्र सरकार सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन के लिए रिजर्व बैक से अलग व्यवस्था करेगी। इसके लिए ऋण प्रबंधन कार्यालय (डीएमओ) बनाया जाएगा जिसके लिए एक विधेयक संसद के बजट सत्र में पेश किया जाएगा। बजट सत्र अगले हफ्ते सोमवार, 12 मार्च से शुरू हो रहा है।

वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को सरकारी ऋण की ताजा स्थिति पर जारी रिपोर्ट में कहा है, "सार्वजनिक ऋण प्रबंधन के बारे में सबसे अहम सुधार है वित्त मंत्रालय में अलग से डीएमओ की स्थापना। आनेवाले बजट सत्र 2012-13 में इस सिलसिले में आवश्यक विधेयक पेश करने का प्रस्ताव है।"

अभी तक भारतीय रिजर्व बैंक देश के मुद्रा प्रबंधन और बैंकों के नियमन के साथ ही सरकार के ऋण प्रबंधन का काम भी करता है। इसलिए उसके काम व फैसलों में अनावश्यक उलझन होती है। सरकार चाहती है कि ऋण प्रबंधन का काम उससे अलग कर दिया जाए ताकि वह मौद्रिक नीति संबंधी फैसले निष्पक्षता और बिना किसी दबाव के ले सके।

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने दो साल पहले 2010-11 का आम बजट पेश करते हुए कहा था कि सरकार सार्वजनिक ऋण प्रबंधन एजेंसी विधेयक पेश करेगी। लेकिन इस मसले पर रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच बराबर मतभेद बने रहे। रिजर्व बैंक का कहना है कि सरकार के ऋण का प्रबंधन वित्त मंत्रालय के अधीन बनी किसी अलग संस्था के बजाय रिजर्व बैंक के नियंत्रण में चलनेवाली किसी संस्था से कराया जाना चाहिए।

रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने इस संदर्भ में पहले कहा था, "सरकार के ऋण प्रबंधन के काम को रिजर्व बैंक से अलग करने के पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं। मसलन, इससे हितों का टकराव सुलझ जाएगा, ऋण की लागत घट जाएगी, ऋण का सुदृढीकरण होगा और पारदर्शिता आएगी। लेकिन वास्तव में ये सारे फायदे अतिरंजित हैं।" उनका कहना था कि उचित मौद्रिक नीति और वित्तीय स्थायित्व के लिए सरकार के ऋण प्रबंधन और केंद्रीय बैंक के बीच नजदीकी संबंध होना जरूरी है।


रिटेल सेक्टर को उम्मीद है कि इस बजट में मल्टीब्रैंड विदेशी निवेश पर सरकारी नीतियों में कुछ सफाई आ सकती है। उधर, सिंगल ब्रैंड रिटेल में 100 फीसदी एफडीआई की मंजूरी के बावजूद अभी भी इंडस्ट्री में एसएमई से 30 फीसदी सोर्सिंग को लेकर दुविधा है, जिसे दूर करने की उम्मीद इंडस्ट्री को है। लेकिन रिटेल इंडस्ट्री की सबसे बड़ी मांग है जीएसटी जल्द लागू किया जाए।करीब 2,700 करोड़ डॉलर का संगठित रिटेल सेक्टर सरकार से इंडस्ट्री स्टेटस मिलने की उम्मीद भी कर रहा है। रिटेल सेक्टर सरकार से एसईजेड की तर्ज पर आरईजेड यानी रिटेल एंटरटेनमेंट जोन बनाने की मांग कर रहा है जिनमें निवेश करने वाले रिटेलर्स को ऑट्रॉय, स्टैम्प ड्यूटी में छूट और सस्ती बिजली मिले। रिटेलर्स की ये भी मांग है कि सप्लाई चेन बनाने के लिए आयात किए जाने वाले उपकरणों पर ड्यूटी में छूट मिले। साथ ही, सरकार सेविंग के बजाए खपत बढ़ाने वाली पॉलिसी बनाए।

रिटेलर्स एपीएमसी एक्ट में बदलाव की मांग भी कर रहे हैं, ताकि सीधे किसानों से खरीद आसान हो। इसके अलावा इसेंशियल कमोडिटी एक्ट के तहत स्टॉक लिमिट की सीमा बढ़ाने की मांग भी रिटेलर्स कर रहे हैं। अब देखना है कि वित्त मंत्री 16 मार्च को रिटेलर्स की कितनी उम्मीदों पर खरा उतरते हैं।

रेल बजट आम बजट से अलग होने के नाते इसका हमेशा राजनीतिक इस्तेमाल होता रहा है। हर रेलमंत्री अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए बाकी देश को तिलांजलि देकर अपने वोट बैंक को खुश करने पर आमादा होते रहे हैं। रेल बजट का वित्तीय या मौद्रिक नीतियां तो रही दूर , रेलवे के​ ​ अपने अर्थशास्त्र मसलन राजस्व . आय और परिचालन व्यय से दूर दूर का नाता नहीं होता। परियोजनाए गोषित कर दी जाती हैं और पैसे का इंतजाम नहीं होता। यात्री सहूलियतों, सुरक्षा और आधारभूत संरचना जैसी मूल जरुरतों की अनदेखी करके थोक तालियां बटोर ली जाती है। इस बार भी दिनेश त्रिवेदी इससे अलग कुछ करेंगे , ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। सात पूर्वोत्तर राज्यों को आगामी रेल बजट में बड़ा तोहफा मिल सकता है। एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर उभरने में यह पूर्वोत्तर राज्य तृणमूल काग्रेस के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

भारतीय रेलवे ने शनिवार से 120 दिन पहले टिकट आरक्षण की सुविधा लागू कर दी है। टिकटों की कालाबाजारी रोकने के लिए उठाए गए इस कदम से रेलवे को भी फायदा होगा। चार महीने पहले आरक्षण से टिकट कैंसिलेशन की संभावना भी बढ़ जाएगी। रिफंड टिकट से भी रेलवे को अतिरिक्त आय होगी। महीनेभर पहले रेलवे ने इसकी घोषणा की थी।

रेल मंत्रालय तृणमूल काग्रेस के नेता दिनेश त्रिवेदी के पास है और इसका इस्तेमाल इन राज्यों में रेल परियोजनाओं के लिए किया जा सकता है। तृणमूल काग्रेस ने अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर विधानसभा चुनावों में अपना खाता खोल लिया है और अब उसकी नजर त्रिपुरा विधानसभा चुनावों पर है।उल्लेखनीय है कि रेल मंत्री बनने के बाद त्रिवेदी ने सबसे पहला दौरा नागालैंड का किया था। रेल मंत्री आगामी बजट में पूर्वोत्तर में कनेक्टिविटी यानी संपर्क सुधारने की जरूरत पर खास ध्यान दे सकते हैं और कुछ नई ट्रेनों और रेल लाइनों की घोषणा कर सकते हैं।

पिछले साल रेल बजट पेश करते समय तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों की राजधानियों को आपस में जोड़ने के उपायों की घोषणा की थी। उम्मीद की जा रही है कि त्रिवेदी इस मिशन में तेजी लाने की दिशा में काम करेंगे।

हाल ही में मणिपुर में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में तृणमूल काग्रेस ने सात सीटें जीतीं और अब उसका लक्ष्य क्षेत्रीय पार्टी से एक राष्ट्रीय पार्टी बनने का है। इससे पहले, तृणमूल काग्रेस अरुणाचल प्रदेश में पाच सीटें जीती थी। मणिपुर विधानसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन को लेकर उत्साहित तृणमूल काग्रेस ने कहा है कि जल्द ही इसे राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता मिल जाएगी।

देश के प्रमुख उद्योग संगठनों ने चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर के घटकर 6.1 प्रतिशत पर आने और बीते सप्ताह में बैंकों द्वारा रिवर्स रेपो के तहत एक दिन में रिकॉर्ड 1.90 लाख करोड़ रूपये से अधिक की पूजीं लेने पर गहरी चिंता जताते हुये भारतीय रिजर्व बैंक से तरलता बढ़ाने के उपाय करने और नकद आरक्षी अनुपात 'सीआरआर' में एक प्रतिशत तक की कटौती करने का आग्रह किया है।

भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फ्क्किी) के अध्यक्ष आर वी कनोरिया के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में लगातार विकास दर में गिरावट जारी है। पहली तिमाही में यह 7.7 प्रतिशत पर रही जो दूसरी तिमाही में घटकर 6.9 प्रतिशत और अब तीसरी तिमाही में 6.1 प्रतिशत पर आ गयी है जो चालू वित्त वर्ष में विकास दर के अनुमानित लक्ष्य को भी हासिल कर पाने पर सवालिया निशान लगा दिया है।

उन्होंने कहा कि इसके मद्देनजर गिरावट को थामने और इसमें तेजी लाने के लिए नीतिगत उपाय किये जाने की तात्कालिक आवश्यकता है और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इसमें विलंब किया जाना खतरनाक साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक को आगामी 15 मार्च को रिण एवं मौद्रिक नीति की तिमाही मध्य समीक्षा में विकास पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। केन्द्रीय बैंक को सीआरआर में कम से कम 0.50 प्रतिशत और इसी तरह से अल्पकालिक ऋण दरों, रेपो और रिवर्स रेपा, में भी आधी फीसदी की कटौती करनी चाहिए।


कपास की खेती आत्महत्या का पर्याय बन चुकी है,शरद पवार की भी सुनवाई नहीं!कपास निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का चौतरफा विरोध!



कपास की खेती आत्महत्या का पर्याय बन चुकी है,शरद पवार की भी सुनवाई नहीं!कपास निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का चौतरफा विरोध!  

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कपास नियंत्रण पर प्रतिबंध की समीक्षा का निर्देश दे चुके हैं। पर वाजिब दाम न​ ​ मिलने से कपास उत्पादकों में रोष बड़ता जा रहा है। कपास की खेती महाराष्ट्र गुजरात, कर्नाटक और कई दूसरे राज्यों में में आत्महत्या का पर्याय बन चुकी है।खेती की लागत लगातार बढ़ती जा रही है। खाद. बिजली और पानी, मजदूरी की बढ़ती दरों से निपटने के लिए​ ​ किसान कर्ज लेने को मजबीर होते हैं। तो फसल बेहतर होने के बावजूद घरेलू बाजार में उसे लागत खर्च​ ​ निकालने लायक दाम भी नसीब नहीं होता। ज्यादातर इलाकों में छोटे किसानों को स्थानीय साहूकार से कर्ज लेने की भारी कीमत मौत को गले लगाकर अदा करनी होती है। सरकार इस हकीकत को नजरअंदाज कर रही है।हालत यह है कि इस सिलसिले में और कोई नहीं, देश के कृषि मंत्री महाराष्ट्र के मराठा मानुष शरद पवार की भी सुनवाई नहीं हो रही है। कृषि मंत्री शरद पवार के मुताबिक इस साल कपास का उत्पादन ज्यादा हुआ है, ऐसे में कपास के निर्यात पर रोक लगाने से किसानों को सही दाम नहीं मिल पाएगा। प्रतिबंध के फैसले की समीक्षा करने के लिए शुक्रवार को मंत्री समूह [जीओएम] की बैठक बेनतीजा रही।हालांकि सरकारी तरफ से दिल को तसल्ली वास्ते कहा यही जा रहा है कि कपास निर्यात पर लगी रोक को हटना ही है।

भारत में १० लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की खेती की जाती है।कपास भारत की आदि फ़सल है, जिसकी खेती बहुत ही बड़ी मात्रा में की जाती है। यहाँ आर्यावर्त में ऋग्वैदिक काल से ही इसकी खेती की जाती रही है। भारत में इसका इतिहास काफ़ी पुराना है। हड़प्पा निवासी कपास के उत्पादन में संसार भर में प्रथम माने जाते थे। कपास उनके प्रमुख उत्पादनों में से एक था। भारत से ही 327 ई.पू. के लगभग यूनान में इस पौधे का प्रचार हुआ। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत से ही यह पौधा चीन और विश्व के अन्य देशों को ले जाया गया। कपास सदियों से भारतीय किसानों की एक पसंदीदा फसल रह चुकी है। यह अच्छी और पर्याप्त आय अर्जित कर सकती है। कपास भारत की सबसे महत्वपूर्ण रेशेदार फसल होने के साथ-साथ देश की कृषि और औद्योगिक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कपड़ा उद्योग के लिए कपास रीढ़ की हड्डी के समान है। कपड़ा उद्योग में 70 प्रतिशत रेशे कपास के ही इस्तेमाल होते है और भारत से विदेशों को होने वाले कुल निर्यात में लगभग 38 प्रतिशत निर्यात कपास का होता है, जिससे देश को 42 हजार करोड़ रुपये मिलते है।सबसे अच्छे कपास के रेशे की लम्बाई 5 सेंटीमीटर से भी अधिक होती है| इस तरह के कपास की किस्म सयुंक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी पूर्वी तट तथा वेस्टइंडीज में उगाई जाती है|यह दुनिया के करीब 60 देशों में उगायी जाती है। दस देश- अमरीका, पूर्व सो‍वियत संघ, चीन, भारत, ब्राजील, पाकिस्‍तान, तुर्की, मैक्सिको, मिस्र और सूडान दुनिया के कुल उत्‍पादन की करीब 85 प्रति‍शत कपास पैदा करते हैं। इसका कुदरती रेशा वस्‍त्र उद्योग के लिए अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण कच्‍ची सामग्री है।भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां हाइब्रिड और कपास की सभी चार प्रजातियों- जी. हिरसुतुम, जी आर्बोरियम, जी. हरबेसियम और जी बार्बाडेन्‍स की व्‍यावसायिक खेती होती है। यहां 45 प्रति‍शत क्षेत्र में हाइब्रिड, 34 प्रति‍शत में जी हिरसतुम, 15 प्रति‍शत में जी आर्बोरियम और 6 प्रति‍शत क्षेत्र में जी हरबेसियम की खेती होती है जो बार्बाडेंस का रकबा नगण्‍य है। पंजाब, हरियाणा, राजस्‍थान, महाराष्‍ट्र, गुजरात, मध्‍यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु प्रमुख कपास उत्‍पादक राज्‍य हैं। कपास पश्चिमी उत्‍तरप्रदेश में अलीगढ़, आगरा, मथुरा, गाजियाबाद और सहारनपुर में, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल के सुन्‍दरबन में भी उगायी जाती है। लगभग 65 प्रति‍शत कपास का रकबा पूरी तरह वर्षा पर नि‍र्भर है जबकि 35 प्रति‍शत में सिंचाई सुवि‍धा उपलब्‍ध है।भारत में कपास दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के आरम्भ के साथ ही बोयी जाती है, जबकि सिंचाई पर आश्रित कपास एक-दो महीने पूर्व ही बोयी जाती है। देश में 49 प्रतिशत कपास सिंचित क्षेत्रों में पैदा की जाती है। आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र कर्नाटक राज्य के दक्षिणी भाग में कपास जून से अगस्त के अन्त तक बोयी जाती है और चुनाई जनवरी से अप्रैल तक की जाती है। तमिलनाडु में इसको बोना दोनों ही मानसूनों के अनुसार होता है। दक्षिणी प्रायद्वीप के बाहर यह मार्च से जुलाई तक बोयी जाती है और अक्टूबर से जनवरी तक इसकी चुनाई होती है। कपास भारत की सामान्यतः खरीफ की फ़सल है।

महंगाई वित्तीय और मौद्रिक नीतियों की वजह से बढ़ती है और राजकोषीय गाटे का दबाव बढ़ता है तो सारा बोझ ​​बेरहमी से देश के बहुसंख्यक किसानों पर लाद दी जाती है।मालूम हो कि इससे पहले घरेलू बाजार में प्याज की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए इसी ईजीओएम ने निर्यात पर पाबंदी लगाई थी। इसके बाद देश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक क्षेत्र नाशिक के किसानों ने विरोध जताते हुए स्थानीय मंडी में दैनिक नीलामी बंद कर दी थी। यहां तक कि किसानों ने पिछले शुक्रवार को मंडी तक पहुंचे प्याज को भी नीलामी के लिए नहीं रखा। कृषि मंत्री शरद पवार ने नवंबर में ही कह दिया था कि सरकार को राज्यों को खाद्यान्न के आवंटन, भडारण सुविधाओ के साथ इसके निर्यात के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। इस साल देश में खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन होने का अनुमान है। गौरतलब है कि बंगाल जैसे राज्य में भी धान की कीमत न मिलने से किसान खुदकशी कर रहे हैंष हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुदकशी करनेवालों को किसान मानने से ही इंकार कर दिया।तो कैसे चल रही है इस देस में आयात निर्यात की बैसाखी पर कृषि विपणन व्यवस्था?सरकार चीनी निर्यात के फैसले पर अमल से ठिठक गई।पांच लाख टन चीनी निर्यात की घोषणा के चार महीने बाद भी सरकारी अधिसूचना जारी न होने से निर्यात संभव नहीं हो पाया।


टेक्सटाइल सचिव किरण ढींगरा ने शुक्रवार की बैठक के बाद कहा था कि निर्यात पर रोक के फैसले पर और अधिक चर्चा की जरूरत है और इस संबंध में जल्द ही बैठक बुलाई जाएगी। मामले पर चौतरफा विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हस्तक्षेप के बाद जीओएम की बैठक बुलाई गई थी। वाणिज्य मंत्रालय ने बीते सोमवार को कपास निर्यात पर रोक लगाने का फैसला कृषि मंत्रालय को विश्वास में लिए बगैर ही ले लिया था। इसके दायरे में पहले से जारी हो चुके पंजीकरण प्रमाण-पत्रों को भी शामिल कर लिया गया था। कृषि मंत्री शरद पवार समेत टेक्सटाइल उद्योग तथा मध्य प्रदेश और गुजरात के मुख्यमंत्रियों ने इस फैसले की तीखी आलोचना की है। पवार का आरोप है कि इस बारे में उन्हें भी अंधेरे में रखा गया।वाणिज्य मंत्रालय अपने फैसले का बचाव करते हुए कह चुका है कि कपास निर्यात की छूट देते समय सरकार का अनुमान था कि कुल 84 लाख गांठ कपास का निर्यात हो जाएगा। लेकिन फरवरी के पहले सप्ताह तक कुल 1.20 करोड़ गांठ कपास निर्यात का रजिस्ट्रेशन कराया जा चुका है। इसके मुकाबले 94 लाख गांठ कपास का निर्यात हो चुका है। इसी के चलते यह फैसला लिया गया।

गौरतलब है कि कपास निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का चौतरफा विरोध के चलते सरकार पर कपास निर्यात पर लगी रोक हटाने का दबाव बन गया। पवार ने इस मामले में वाणिज्य मंत्रालय को चिट्ठी भी लिखी है। उन्होंने कहा है कि वाणिज्य मंत्रालय ने कृषि मंत्रालय को सूचित किए बिना कपास के निर्यात पर रोक लगाई है।इससे भी काम नहीं हुआ तो उन्होंने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने की गुहार लगायी। वहीं इससे पहले सोमवार को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कपास के निर्यात पर रोक हटाने के लिए प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी थी।डीजीएफटी ने देश में कपास की मांग पूरी करने के लिए इसके निर्यात पर रोक लगाई है। जिसके बाद पहले से पंजीकृत कपास का भी निर्यात नहीं हो पाएगा। लेकिन निर्यात पर रोक की खबर आते ही इसके विरोध में आवाज उठने लगी।

कॉटन जिनर्स ने निर्यात पर लगी रोक के खिलाफ दो दिन के बंद का ऐलान किया है। इस बंद के दौरान 2 दिन तक कॉटन जिनर्स अपनी फैक्ट्रियां बंद रखेंगे।उन्होंने फैसला किया है कि वे नौ मार्च को मंत्री समूह की प्रस्तावित बैठक में समीक्षा के बाद ही अगला कदम उठाएंगी। समूचे सौराष्ट्र में आंदोलन शुरू हो गया है।

कपास उत्पादक ही क्यों, गन्ना, आलू, प्याज और धान किसी बी फसल का खुले बाजार में वाजिब दाम अब नही​ ​ मिलता। दूसरी हरित क्रांति अभी शुरू भी नहीं हुई, पर किसान पहली हरित क्रांति का ही खामियाजा भुगत रहे हैं।​​ देसी कृषि पद्धति कबकी खारिज हो गयी और विकल्प खेती सही मायने में मौत की अंधी गली बन गयी है। बीज, पानी, बिजली, खाद और मजदूरी सबकुछ किसानों की औकात से ऊपर की चीजें हो गयी हैं। पहले साहूकार और बिचौलिये से परेशान थे। अब न्यूनतम मूल्य और सरकारी संस्तान, मिलों, शीतगृहों और मंडियों के बावजूद किसान की ​​किस्मत आयात निर्यात के खेल में दांव पर लगी होती है, जिस पर हर हाल में किसानों के बजाय दूसरे लोगों को ही फायदा होता है और हर हाल में किसानों को घाटा उठाना पड़ता है, उत्पादक और उपभोक्ता दोनों की हैसियत से क्योंकि खुले बाजार में बच निकलने के लिए जरूरी क्रयशक्ति उसके पास हो नहीं सकती। अव उद्योग जगत, अर्थ शास्त्री, कृषि विशेषज्ञ​ ​ और राजनेता किसानों को मल्टी ब्रांड रीटेल एफडीआई और ठेके की खेती के जरिये मोक्ष दिलवाने की मुहिम में जुट गये हैं। किसानों का गोदान कभी मौत से पहले पूरा नहीं होता इसतरह।

बहरहाल राजनैतिक तौर पर किसान जाति जाटों  के आरक्षण आंदोलन के मध्य  कृषि मंत्री शरद पवार को विश्वास में लिए बगैर केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय की ओर से कपास निर्यात पर लगी रोक का मामला बुधवार को और गंभीर हो गया। प्रधानमंत्री ने मामले की तुरंत समीक्षा करने का निर्देश दिया। वैसे, मंत्री समूह की बैठक पहले ही 9 मार्च को बुला ली गई।शुक्रवार को मंत्री समूह [जीओएम] की यह बहुप्रतीक्षित बैठक बेनतीजा रही। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा को वियतनाम के दौरे पर ही कहना पड़ा कि वह लौटते ही कृषि मंत्री पवार से मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा कि इस बारे में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को पूरी जानकारी दे दी गई थी। अगर सरकारी नीति निर्धारन पद्धति की बात करें तो यह मामला टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले से कम गंभीर नहीं है। आखिर वाणिज्य मंत्रालय ने किसके हित साधने के लिए कृषि मंत्रालय  को बाईपास करके ऐसा निर्णय ले लिया!

देश के पांच राज्यों में रिण सहित विभिन्न कारणों से किसानों की आत्महत्या की घटनाएं हुई हैं। कृषि मंत्री शरद पवार ने बताया कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल और पंजाब में पिछले तीन सालों के दौरान किसानों की आत्महत्या की घटनाएं घटीं। उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश में वर्ष 2008-2009 और 2010 में क्रमश: 469, 296 और 152 किसानों ने आत्महत्या की।

पवार ने बताया कि कर्नाटक में इसी अवधि में क्रमश: 182, 136 और 138 किसानों ने आत्महत्या की। महाराष्ट्र में इस दौरान 735, 550 और 454 किसानों ने आत्महत्या की। उन्होंने कहा कि पंजाब में इस दौरान 12-15 और चार किसानों ने आत्महत्या की। केरल में 2008 में 11 किसानों ने आत्महत्या की।

कृषि मंत्री ने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा दी गयी सूचना के अनुसार किसानों की आत्महत्याओं के पीछे विविध कारण हैं। इनमें फसल नहीं होना, सूखा, सामाजिक, आर्थिक और वैयक्तिक कारण शामिल हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं को रोकने के लिए कई प्रयास किए हैं।

कृषि संबंधी विपदा की समस्या का समाधान करने के लिए आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र में 31 जिलों को शामिल करते हुए 2006 में तीन वर्षो के लिए पुनर्वास पैकेज की घोषणा की गयी। 30 जून 2011 तक इस पैकेज के अधीन 19910.70 करोड रूपये की धनराशि जारी की गयी है। पैकेज के गैर रिण घटकों के कार्यन्वयन की अवधि 30 सितम्बर 2011 तक बढा दी गयी है।

* किसानों की आत्महत्या की घटनाएं महाराष्ट्र,कर्नाटक,केरल,आंध्रप्रदेश,पंजाब और मध्यप्रदेश(इसमें छत्तीसगढ़ शामिल है) में हुईं।
   * साल १९९७ से लेकर २००६ तक यानी १० साल की अवधि में भारत में १६६३०४ किसानों ने आत्महत्या की। यदि हम अवधि को बढ़ाकर १२ साल का करते हैं यानी साल १९९५ से २००६ के बीच की अवधि का आकलन करते हैं तो पता चलेगा कि इस अवधि में लगभग २ लाख किसानों ने आत्महत्या की।
   * आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से पिछले एक दशक में औसतन सोलह हजार किसानों ने हर साल आत्महत्या की। आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी जाहिर होगा कि देश में आत्महत्या करने वाला हर सांतवां व्यक्ति किसान था।
   * साल १९९८ में किसानों की आत्महत्या की संख्या में तेज बढ़ोत्तरी हुई। साल १९९७ के मुकाबले साल १९९८ में किसानों की आत्महत्या में १४ फीसदी का इजाफा हुआ और अगले तीन सालों यानी साल २००१ तक हर साल लगभग सोलह हजार किसानों ने आत्महत्या की।
   * साल २००२ से २००६ के बीच यानी कुल पांच साल की अवधि पर नजर रखें तो पता चलेगा कि हर साल औसतन १७५१३ किसानों ने आत्महत्या की और यह संख्या साल २००२ से पहले के पांच सालों में हुई किसान-आत्महत्या के सालाना औसत(१५७४७) से बहुत ज्यादा है। साल १९९७ से २००६ के बीच किसानों की आत्महत्या की दर (इसकी गणना प्रति एक लाख व्यक्ति में घटित आत्महत्या की संख्या को आधार मानकर होती है) में सालाना ढाई फीसद की चक्रवृद्धि बढ़ोत्तरी हुई।
   * अमूमन देखने में आता है कि आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है और यही बात किसानों की आत्महत्या के मामले में भी लक्ष्य की जा सकती है लेकिन तब भी यह कहना अनुचित नहीं होगा कि किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में पुरुषों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा थी।देश में कुल आत्महत्या में पुरुषों की आत्महत्या का औसत ६२ फीसदी है जबकि किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में पुरुषों की तादाद इससे ज्यादा रही।
   * साल २००१ में देश में किसानों की आत्महत्या की दर १२.९ फीसदी थी और यह संख्या सामान्य तौर पर होने वाली आत्महत्या की घटनाओं से बीस फीसदी ज्यादा है।साल २००१ में आम आत्महत्याओं की दर (प्रति लाख व्यक्ति में आत्महत्या की घटना की संख्या) १०.६ फीसदी थी। आशंका के अनुरुप पुरुष किसानों के बीच आत्महत्या की दर (१६.२ फीसदी) महिला किसानों (६.२ फीसदी) की तुलना में लगभग ढाई गुना ज्यादा थी।
   * साल २००१ में किसानों की आत्महत्या की सकल दर १५.८ रही।यह संख्या साल २००१ में आम आबादी में हुई आत्महत्या की दर से ५० फीसदी ज्यादा है।पुरुष किसानों के लिए यह दर १७.७ फीसदी रही यानी महिला किसानों की तुलना में ७५ फीसदी ज्यादा।

महाराष्ट्र कपास के उत्पादक क्षेत्रों में प्रमुख है। यहाँ कुल क्षेत्र का 31 प्रतिशत पाया जाता है, जबकि कुल उत्पादन का 21.7 प्रतिशत होता है, अर्थात उत्पादन की दृष्टि से इस राज्य का देश में दूसरा स्थान है। यहाँ कपास जून से अगस्त तक बोयी जाती है और दिसम्बर-जनवरी तक चुन ली जाती है। यहाँ कपास का उत्पादन कई क्षेत्रों में किया जाता है- (1) अंकोला और अमरावती ज़िलों में ऊमरा और कम्बोडिया कपास बोयी जाती है। (2) यवतमाल ज़िले में पूसद, दरवाहा ताल्लुको में ऊमरा और कम्बोडिया कपास होती है। (3) बुलढाना ज़िले के मल्कपुर, महकार, खामगांव और जलगांव ताल्लुकों में ऊमरा और कम्बोडिया कपास पैदा की जाती है। इन सब ज़िलों में कपास वर्षा के सहारे पैदा की जाती है। (4) नागपुर, वर्धा, चन्द्रपुर और छिन्दवाड़ा ज़िलों में कम्बोडिया कपास वर्षा के सहारे ही पैदा की जाती है। (5) सांगली, बीजापुर, नासिक, अहमदनगर, गोलापुर, पुणे तथा प्रभानी अन्य उत्पादक ज़िलें हैं, यहाँ ऊमरा और खानदेशी कपास होती है। इस राज्य में 43 लाख गांठ कपास का उत्पादन होता है।

मध्य प्रदेश में जून में बुवाई की जाती है और नवम्बर से फ़रवरी तक चुनाई की जाती है। यहाँ मालावाड़ के पठार एवं नर्मदा और तापी की घाटियों में काली और कछारी मिट्टियों में इसका उत्पादन किया जाता है। पश्चिम नीमाड़, इन्दौर, रायपुर, धार, देवास, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर ज़िलों में ऊमरा, जरीला, बिरनार, मालवी और इन्दौरी कपास बोयी जाती है। मध्य प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख गांठ कपास का उत्पादन होता है।

राजस्थान में गंग नहर क्षेत्र में श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ ज़िलें में पंजाब-देशी और पंजाब-अमरीकन; झालावाड़, कोटा, टोंक, बूंदी ज़िलों में मालवी कपास तथा भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, चित्तौड़ और् अजमेर ज़िलों में राजस्थान देशी और अमरीकन कपास बोयी जाती हैं। इस राज्य में 6 लाख गांठ कपास का उत्पादन होता है।

पंजाब में कपास की बुवाई मार्च से अगस्त तक और चुनाई जनवरी तक की जाती है। अधिकतर उत्पादन सिंचाई के सहारे किया जाता है। प्रमुख उत्पादक ज़िले पंजाब में अमृतसर, जालन्धर, लुधियाना, पटियाला, संगरूर और भटिंडा हैं। इनमें अधिकतर पंजाब-अमरीकन कपास पैदा की जाती है, यहाँ पर वर्तमान में 24 लाख गांठ का उत्पादन होता है।

हरियाणा में भी पंजाब के समान सिंचाई के सहारे ही कपास उत्पन्न की जाती है। गुड़गांव, करनाल, हिसार, जिन्द, अम्बाला और रोहतक प्रमुख कपास उत्पादक ज़िलें हैं। यहाँ पंजाब अमेरीकन और पंजाब-देशी कपास बोयी जाती है। इस राज्य में 8 से 10 लाख गांठ का प्रतिवर्ष उत्पादन होता है।

उत्तर प्रदेश में कपास मुख्य रूप से गंगा और यमुना के दोआब तथा रुहेलखण्ड और बुन्देलखण्ड संभागों में सिंचाई के सहारे छोटे रेशे वाली पैदा की जाती है। लम्बे रेशे वाली कपास का उत्पादन भी अब किया जाने लगा है। मेरठ, बिजनौर, मुजफ़्फ़रनगर, एटा, सहारनपुर, बुलन्दशहर, अलीगढ़, आगरा, इटावा, कानपुर, रामपुर, बरेली, मथुरा, मैनपुरी और फ़र्रुख़ाबाद प्रमुख उत्पादक ज़िले हैं। यहाँ देशी और पंजाब-अमेरिकन कपास पैदा की जाती है।

तमिलनाडु में कपास दोनों ही मानसून कालों में किसी-न-किसी क्षेत्र में बोयी जाती है। यहाँ अधिकतर कम्बोडिया, यूगेंडा, मद्रास-यूगेंडा, सुजाता, सलेम, तिरुचिरापल्ली, लक्ष्मी, कारूंगानी क़िस्म की कपास पैदा की जाती है। यह सारा उत्पादन काली मिट्टी के क्षेत्रों में किया जाता है। कपास उत्पादक प्रमुख ज़िले कोयम्बटूर, सलेम, रामनाथपुरम, मदुरै, तिरुचिरापल्ली, चिंगलपुट, तिरुनलवैली व तंजावूर हैं।

आन्ध्र प्रदेश में कपास का उत्पादन गुण्टूर, कडप्पा, कुर्नूल, पश्चिमी गोदावरी, कृष्णा, महबूबनगर, आदिलाबाद और अनन्तपुर ज़िलों में किया जाता है। यहाँ मुख्यतः मुगारी, चिरनार, कम्पटा, काकीनाडा, सभानी-अमरीकन, लक्ष्मी, समुद्री क़िस्म बोयी जाती है। भारत में आन्ध्र प्रदेश तीसरा कपास उत्पादक राज्य है। कपास के कुल उत्पादन का 13.49 प्रतिशत आन्ध्र प्रदेश में उत्पादित होता है।

कर्नाटक में कुल क्षेत्रफल का 12 प्रतिशत और उत्पादन का 5.3 प्रतिशत प्राप्त होता है। यहाँ दो प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। प्रथम क्षेत्र काली मिट्टी का है, जिसे 'सलाहट्टी क्षेत्र' कहते हैं। इसके अन्तर्गत वेल्लारी, हसन, शिवामोग्गा, चिकमंगलुरु, रायचूर, गुलबर्गी, धारवाड़, बीजापुर और चित्रदुर्ग ज़िलों में वर्षा के सहारे अधिकतर देशी कपास पैदा की जाती है। दूसरा क्षेत्र लाल मिट्टी का है, जिसे 'दोड़ाहट्टी' कहते हैं। इसमें वर्षा और सिंचाई दोनों के सहारे पंजाब अमरीकन कपास बोयी जाती है।



स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ेगी बसपा


स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ेगी बसपा

Sunday, 11 March 2012 16:34
लखनऊ, 11 मार्च (एजेंसी) निर्वाचन आयोग और केन्रदीय बलों की देख-रेख में नहीं होने वाला कोई भी चुनाव नहीं लड़ने का बसपा ने फैसला किया है।
उत्तर प्रदेश की 16वीं विधानसभा चुनाव में पराजय का सामना करने वाली बहुजन समाज पार्टी :बसपा: ने सूबे में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव सहित कोई भी चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया जो निर्वाचन आयोग और केन्रदीय बलों की देख-रेख में नहीं होंगें।
बसपा अध्यक्ष मायावती ने विधानसभा चुनाव में हार के कारणों तथा कुछ अन्य विषयों की समीक्षा के लिये आज राजधानी में आयोजित पार्टी के 'अखिल भारतीय कार्यकर्ता सम्मेलन' में कहा कि प्रदेश में सपा की सरकार के लौटते ही 'गुण्डाराज' की भी वापसी हो गयी है।
प्रदेश की निवर्तमान मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके मद्देनजर बसपा को कुछ सख्त फैसले लेने पड़े हैं। चूंकि स्थानीय निकाय चुनाव केन््रदीय बलों की निगरानी में नहीं होते हैं इसलिये अपने कार्यकर्ताओं की जान-माल की रक्षा के लिये बसपा सूबे में निकट भविष्य में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ेगी।
मायावती ने कहा कि अगर कोई पार्टी कार्यकर्ता या पदाधिकारी स्थानीय निकाय चुनाव लड़ता है तो उसे तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि चुनाव नतीजों की घोषणा के फौरन बाद शुरू हुई गुण्डागर्दी बसपा के लिये ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि इसका निशाना जानबूझकर इसी पार्टी के कार्यकर्ताओं को बनाया जा रहा है ताकि स्थानीय निकाय चुनाव में सपा को इसका लाभ दिलाया जा सके।
विधानसभा चुनाव के नतीजों पर बसपा प्रमुख ने कहा कि वे चुनाव परिणाम सीटों के हिसाब से पार्टी की उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहे।
 


बजट और मौद्रिक नीति से मिलेगी बाजार को दिशा



बजट और मौद्रिक नीति से मिलेगी बाजार को दिशा

Sunday, 11 March 2012 14:36
नयी दिल्ली, 11 मार्च (एजेंसी) शेयर बाजारों में अगले सप्ताह आम बजट तथा भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा की वजह से काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्रीय बैंक द्वारा नकद आरक्षित अनुपात :सीआरआर: में 0.75 फीसद की कटौती के बाद सोमवार को बाजार अच्छी बढ़त के साथ खुल सकता है। 
बैंकों को रिजर्व बैंक के पास अपनी जमा का जो हिस्सा रखना होता है उसे सीआरआर कहा जाता है। रिजर्व बैंक ने सीआरआर को 5.5 प्रतिशत से घटाकर 4.75 फीसद कर दिया है।   
ब्रोकरेज कंपनी एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट में कहा गया है, ''सीआरआर में कटौती हमारी उम्मीदों के अनुरूप है। हालांकि 0.75 फीसद की कटौती हैरान करने वाली है, क्योंकि अनुमान यह लगाया जा रहा था कि इसमें आधा प्रतिशत की कटौती की जाएगी।'' 
रिपोर्ट में कहा गया है कि सीआरआर में कटौती का समय भी बिल्कुल उचित है, क्योंकि अग्रिम कर का भुगतान 15 मार्च तक होना है। केंद्रीय बैंक के इस कदम के बाद अब मौद्रिक समीक्षा में कुछ खास होने की संभावना नहीं बची है। 
रिजर्व बैंक 15 मार्च को मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा पेश करेगा, जबकि आम बजट 16 मार्च को आना है। विश्लेषकों का कहना है कि बजट के अलावा निवेशकों की निगाह औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों पर भी रहेगी, जो सोमवार को आने हैं।
वेटूवेल्थ के मुख्य परिचालन अधिकारी अंबरीष बलिगा ने कहा, ''सीआरआर में कटौती हमारे उम्मीद से पहले की गई है। हालांकि, बजट तक बाजार में कोई बड़ी तेजी देखने को नहीं मिलेगी।'' 
बाजार विशेषज्ञों ने कहा कि उन्हें सीआरआर में 0.50 फीसद की कटौती की उम्मीद थी। लेकिन 0.75 प्रतिशत की कटौती ने उन्हें हैरान किया है। पिछले सप्ताह बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 0.75 प्रतिशत की गिरावट के साथ 17,503.24 अंक पर आ गया।
जियोजित बीएनपी परिबा फाइनेंशियल सर्विसेज के गौरांग शाह ने कहा, ''बाजार में इस सप्ताह हर घटनाक्रम के हिसाब से प्रतिक्रिया होगी। रिजर्व बैंक की नीति और बजट से बाजार को दिशा मिलेगी। सोमवार को बाजार लाभ के साथ खुलेंगे और बैंकिंग शेयर अच्छे लाभ में रहेंगे।''  
एमके ग्लोबल की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बार का बजट पूर्व की तुलना में कम 'लोकप्रियता' हासिल करने वाला होगा। आम चुनाव 2014 में होने हैं, इसलिए सरकार अगले साल ज्यादा लोकप्रियता वाला बजट पेश करेगी।



मध्यावधि चुनाव शगूफा के साथ सुधारों के लिए दबाव बढ़ा


मध्यावधि चुनाव शगूफा के साथ सुधारों के लिए दबाव बढ़ा
(09:42:08 PM) 10, Mar, 2012, Saturday
http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/2785/10/0



स्टीवेंस विश्वास
बजट में आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर खास कदम नहीं उठाए जाएंगे। उद्योग जगत के सामने यह साफ जाहिर हो चुका है और इसी के मद्देनजर कारपोरेट रणनीतियां तय हो रही है। नये राजनीतिक विकल्प की तलाश भी शुरू हो गयी है। बाजार को अब मनमोहन सिंह सरकार से खास उम्मीद नहीं है। यह कांग्रेस  के लिए चुनावी शिकस्त से यादा परेशानी का सबब है।
 मध्यावधि चुनाव शगूफा के साथ सुधारों के लिए दबाव बढ़ा। सबसे यादा जोर राजकोषीय घाटा और सब्सिडी खत्म करने पर है। रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के मध्यावधि चुनाव के बयान के बाद यूपीए सरकार में शामिल राजनीतिक दलों में हड़कंप मचा हुआ है। उधर सपा नेता मुलायम सिंह ने भी पीएम पद को लेकर टिप्पणी की है। इन टिप्पणियों के बाद माना जा रहा है कि मनमोहन सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो गई है । त्रिवेदी ने कहा है कि उत्तर प्रदेश समेत पांच रायों में हुये चुनाव से पता चलता है कि देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल है और भाजपा-सपा जल्द से जल्द चुनाव चाहती हैं। उन्होंने देश में मध्यावधि चुनाव की बात करते हुये कहा कि तृणमूल कांग्रेस भी दो साल पहले चुनाव होने पर खुश होगी। अपने गृहग्राम में आयोजित कार्यम में मुलायम सिंह ने भी टिप्पणी कर दी कि उधर सपा के कार्यकर्ता अनुशासन बनाए रखेंगे तभी वे प्रधानमंत्री बन सकेंगे। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने बार - बार कहा है कि वो लगातार बढ़ती सब्सिडी से काफी परेशान हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि सब्सिडी की वजह से उनकी नींद तक उड़ी हुई है। माना जा रहा है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी राजस्व बढ़ाने के लिए सेवा कर में बढ़ोतरी पर विचार कर रहे हैं। इसका असर निश्चित रूप से उद्योगों पर दिखाई देगा। इसे देखते हुए उद्योगों का कहना है कि प्रोत्साहन पैकेज यदि अगले वित्त वर्ष में जारी रहता है तो उन्हें इससे काफी राहत मिलेगी।अगला हफ्ता बाजार के लिए बहुत ही अहम रहने वाला है। अगले हफ्ते आरबीआई की ेडिट पॉलिसी और बजट का ऐलान होने वाला है। चुनाव नतीजों के बाद बाजार में गिरावट देखने को मिली है। 
गौरतलब है कि सरकार बदलने की मुहिम में मुलायम सिंह और ममता बनर्जी के नामों का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। मजे की बात है कि अभी कल तक बाजार की रणनीति सुधार विरोधी ममता से निजात पाने की थी, पर अब मध्यावधि चुनाव की चाहत में ममता को सबसे यादा तवजो दी जा रही है। वहीं यूपी में त्रिशंकू विधानसभा की हालत में जिस मुलायम के जरिये कांग्रेस को मजबूत करके सुधारों के तेज करने की बात की जा रही थी, अब उन्हीं मुलायम की प्रधानमंत्रित्व की महात्वाकांक्षा को सबसे धाररदार हथियार बनाने की रणनीति है। शुवार को तृणमूल कांग्रेस ने संसदीय दल की बैठक बुलाकर मनमोहन सरकार को सकते में डाल दिया है। मालूम हो कि उद्योग जगत से त्रिवेदी के मधुर संबंध है। पर बाजार पर इसका कोई असर न होना यूपीए सरकार के लिए खतरे की घंटी है। समझा जा रहा है कि सुधारों के भविष्य को लेकर चिंतित बाजार अब जल्द से जल्द केंद्र में सरकार बदलने के इंतजार में है और उसके धीरज का बांध टूट चुका है। 
यह समझनेवाली बात है कि मुलायम तीसरे विकल्प के तौर पर ही प्रधानमंत्री पद के कहीं नजदीक पहुंच सकते हैं जबकि तीसरी ताकत के वजूद ही खत्म है। वाम ताकतें हाशिए पर हैं। ममता जरूर अरुणाचल और मणिपुर की विधानसभाओं में अच्छी हालत में पहुंच गयी हैं और उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में उनकी महत्वाकांक्षा उजागर हुई है। लेकिन तीसरी ताकत बतौर नहीं, बाजार और कारपोरेट जगत क्षेत्रीय दलों के नए उभार का इस्तेमाल यूपीए सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से करने लगा है और कहा जा रहा है कि  यूपी विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद साइकल की रफ्तार में आई तेजी से दिल्ली की सियासत हिल उठी है। मुलायम सिंह यादव जहां पीएम पद का सपना देखने लगे हैं।  संभावना यह जताई जा रही है कि मुलायम सिंह, शरद यादव, चंद्रबाबू नायडू, जयललिता, नवीन पटनायक के साथ मिलकर ममता बनर्जी चौथा मोर्चा बनाने की दिशा में कदम बढ़ाएं। अगर ऐसा कुछ होता है तो हालात देश को तेजी से मध्यावधि चुनाव की ओर ले जा सकते हैं। 
दूसरी तरफ कांग्रेस हालांकि मध्यावधि चुनाव की संभावना को सिरे से खारिज कर रही है पर खबर है कि प्रशासनिक तौर पर इसकी तैयारियां शुरु हो गयी है। आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए पीएमओ की चुनाव पूर्व औचक सयिता से भी इसीका संकेत मिलता हुआ नजर आता है। समझा जाता है कि पुलक चटर्जी को खास जिम्मेवारी सौंपी गयी है। पुलक चटर्जी ने सभी मंत्रालयों पर नकेल कसना आरंभ कर दिया है। चटर्जी ने साफ तौर पर कहा दिया है कि सभी मंत्रालय अपना अपना लक्ष्य निर्धारित समय सीमा में पूरा कर लें। मूलत: उत्तर प्रदेश काडर के आईएएस पुलक चटर्जी ने साफ तौर पर अधिकारियों को हिदायत दे दी है कि अगर वे निर्धारित समय सीमा में काम पूरा नहीं कर सकते हैं तो बेहतर होगा वे त्यागपत्र दे दें।
लेखा महानियंत्रक द्वारा जारी आंकड़ों ने राजकोषीय घाटा बजटीय अनुमान से 5.5 फीसदी यादा होने की पुष्टि कर दी है। सरकार ने बजट में चालू वित्त वर्ष में 4.13 लाख करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा रहने का अनुमान लगाया था। लेकिन जनवरी 2012 तक ही यह 4.35 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। राजकोषीय घाटा जीडीपी के फीसदी में मापा जाता है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए इसके जीडीपी का 4.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। दिसंबर तक राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.99 फीसदी था। सांख्यिकी गणना पर वास्तविक जीडीपी की कम वृद्धि दर का कोई खास असर नहीं पड़ सकता है लेकिन इसकी सुस्त वृद्धि दर की मार राजकोषीय घाटे पर पड़ी है क्योंकि इससे प्रत्यक्ष कर संग्रह में गिरावट आई है। प्रत्यक्ष कर केंद्रीय बोर्ड के अधिकारियों ने कहा कि प्रत्यक्ष कर संग्रह बजटीय अनुमान से 15,000-20,000 करोड़ रुपये कम रह सकता है। लेकिन अप्रत्यक्ष कर संग्रह बजटीय अनुमान के मुताबिक ही हैं। चालू वित्त वर्ष में जनवरी तक सरकार की कुल कर राजस्व प्राप्ति 4.58 लाख करोड़ रुपये थी जबकि बजटीय अनुमान 6.64 लाख करोड़ रुपये है। राजकोषीय घाटे पर यादा मार गैर-कर राजस्व प्राप्तियां नहीं होने से पड़ी है। सरकार व्यय पर काबू पाने में सफल रही है।उद्योग संगठन एसोचैम ने हाल ही में 1,000 सीईओ के बीच एक बजट पूर्व सर्वे कराया। इसमें अधिकांश सीईओ का कहना था कि राजस्व बढ़ाने के लिए इनपुट मैटेरियल और कैपिटल गुड्स की बजाय आयातित वस्तुओं पर सीमा शुल्क में निश्चित बढ़ोतरी के बारे में सरकार को विचार करना चाहिए। इसके साथ ही सार्वजनिक इकाइयों में विनिवेश के जरिए भी सरकार को अपना राजकोषीय घाटा कम करने और राजस्व बढ़ाने के विकल्प पर सोचना चाहिए। सर्वे में शामिल करीब 460 सीईओ का कहना था कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू कराने के लिए सरकार को केंद्रीय बिी कर (सीएसटी) को दो फीसदी से घटाकर एक फीसदी करना चाहिए। जीएसटी के लागू होने से देश की आर्थिक विकास दर में 1.4 फीसदी से 1.6 फीसदी की वृध्दि आ सकती है। साथ ही इससे सरकार को 1.50 लाख करोड़ रुपये की सालाना कमाई होगी। उद्योग संगठन एसोचैम का मानना है कि कर सुधार के बढ़ रहे दबावों के बीच यह एक बेहतर विकल्प साबित होंगे।