दलित ईसाईयों को मुआवजा दे वेटिकन
ईसाई संगठन पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट ने गुड फ्राइडे पर पोप फ्रांसिस से भारत के कैथोलिक चर्च में सुधार लाने और चर्च द्वारा धर्मांतरित ईसाइयों के साथ विश्वासघात करने के बदले उन्हें वेटिकन की तरफ से मुआवजा देने की मांग की है। ईसाई नेता आर.एल.फ्रांसिस ने कहा कि भारत का चर्च धर्मांतरित ईसाइयों का विकास करने और उन्हें चर्च ढांचें में समानता उपलब्ध करवाने की जगह उन पर अनुसूचित जातियों का ठप्पा (टैग) लगवाने की तथाकथित लड़ाई सरकार से लड़ रहा है। जबकि ईसाइयत में जातिवाद के लिए कोई स्थान नहीं है।
मूवमेंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष आर.एल.फ्रांसिस ने कहा कि आज चर्च में आम ईसाई ही नहीं उनके अधिकारों की बात करने वाले पादरियों और ननों का भी चर्च व्यवस्था में शोषण और उत्पीड़न किया जा रहा है। समानता की वकालत करने वाली ईसाइयत में हिन्दू दलितों से अलग होकर ईसाइयत अपनाने वालों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। भारतीय चर्च आज ईसा के सिंद्वातों को भूलाकर अपने साम्राज्यवाद को बढ़ाने में लगा हुआ है। द्वितीय वेटिकन के फैसलों और कैनन लॉ को भारतीय चर्चो में लागू ही नही किया जा रहा।
भारत में वंचित वर्गो से धर्मांतरित लोगों का बहुमत ईसाइयत में है देश की कुल ईसाई जनसंख्या का 80 प्रतिशत दलित और आदिवासी समाज से है। इतनी बड़ी भागीदारी होने के बावजूद चर्च के निर्णयक स्थानों में उनकी कोई भागीदारी नहीं है। मौजूदा समय में कैथोलिक चर्च के 168 बिशप है (ईसाई समाज में सर्वाधिक ताकतवर पद) इनमें केवल 4 दलित बिशप है। तेरह हजार डैयसेशन प्रीस्ट, चौदह हजार रिलिजयस प्रीस्ट, पँाच हजार बर्दज और एक लाख के करीब नन है जिनमें से केवल हजार-बारह सौ ही दलित-आदिवासी पादरी है और वह भी चर्च ढांचे में हाशिए पर पड़े हुए है।
ईसाई नेता फ्रांसिस ने कहा कि विशाल संसाधनों से लैस भारतीय चर्च धर्मांतरित ईसाइयों की समास्याओं पर मौन साधे हुए अपने साम्राज्यवाद को बढ़ाने में लगा हुआ हैं। भारत में चर्च को कुछ संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। भाषा और संस्कृति को संरक्षण देने वाली संवैधानिक धराओं का दुरुपयोग करते हुए चर्च ने भारत में कितनी संपति इकट्ठी की है इसकी निगरानी करने का कोई नियम नही है। जबकि कई पश्चिमी देशों में इस तरह की व्यवस्था बनाई गई है। ईसाई संगठन ने मांग की, कि चर्चो और उनके संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए कानून लाया जाना चाहिए।
मूवमेंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष आर.एल फ्रांसिस ने कहा कि देश में सरकार के बाद चर्च के पास दूसरे नम्बर पर भूमि है और वह भी शहरी पॉश इलाकों में। देश की जनसंख्या का मात्र तीन प्रतिशत होने के बावजूद भारत की 22 प्रतिशत शिक्षण संस्थाएं और 30 प्रतिशत स्वस्थ्य सेवाओं पर चर्च का कब्जा है। इतना सब होने पर भी आम गरीब ईसाई मर रहा है और हमारे चर्च नेता धर्म प्रचार की स्वतंत्रता और उनकी संस्थाओं को विषेश दर्जा दिलाने जैसे कार्यो में ही व्यस्त है।
पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट अध्यक्ष आर.एल.फ्रांसिस ने कहा कि जिन दलितों ने ईसाइयत को अपनाया वह हिन्दू दलितों के मुकाबले जीवन की दौड़ में पीछे छूट गए है। जहां हिन्दू समाज ने विकास की दौड़ में पीछे छूट गए अपने इन अभाव-ग्रस्त भाई-बहनों को आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध करवाये है, वही भारतीय चर्च ने अपना साम्राज्य बढ़ाने को प्रथमिकता दी है।
ईसाई संगठन पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट ने पोप फ्रांसिस एवं वेटिकन की सुप्रीम काउंसिल और वर्ल्ड काउंसिल ऑफ चर्चेज (डब्लूय.सी.सी.) से मांग की कि वह एवेंजलिज्म (धर्मप्रचार) पर खर्च होने वाले धन का उपयोग दलित ईसाइयों के विकास के लिये करें कैथोलिक चर्च में बिशप का चुनाव करने का अधिकार आम ईसाइयों को दे - वर्तमान समय में वेटिकन का पोप ही बिशप नियुक्ति करता है। स्थानीय ईसाइयों के बीच चर्च सत्ता का हस्तातंरण करने और चर्चों और चर्च संस्थानों से प्राप्त होने वाले धन को दलित ईसाइयों पर खर्च करने की मांग की है।
भारत में वंचित वर्गो से धर्मांतरित लोगों का बहुमत ईसाइयत में है देश की कुल ईसाई जनसंख्या का 80 प्रतिशत दलित और आदिवासी समाज से है। इतनी बड़ी भागीदारी होने के बावजूद चर्च के निर्णयक स्थानों में उनकी कोई भागीदारी नहीं है। मौजूदा समय में कैथोलिक चर्च के 168 बिशप है (ईसाई समाज में सर्वाधिक ताकतवर पद) इनमें केवल 4 दलित बिशप है। तेरह हजार डैयसेशन प्रीस्ट, चौदह हजार रिलिजयस प्रीस्ट, पँाच हजार बर्दज और एक लाख के करीब नन है जिनमें से केवल हजार-बारह सौ ही दलित-आदिवासी पादरी है और वह भी चर्च ढांचे में हाशिए पर पड़े हुए है।
ईसाई नेता फ्रांसिस ने कहा कि विशाल संसाधनों से लैस भारतीय चर्च धर्मांतरित ईसाइयों की समास्याओं पर मौन साधे हुए अपने साम्राज्यवाद को बढ़ाने में लगा हुआ हैं। भारत में चर्च को कुछ संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। भाषा और संस्कृति को संरक्षण देने वाली संवैधानिक धराओं का दुरुपयोग करते हुए चर्च ने भारत में कितनी संपति इकट्ठी की है इसकी निगरानी करने का कोई नियम नही है। जबकि कई पश्चिमी देशों में इस तरह की व्यवस्था बनाई गई है। ईसाई संगठन ने मांग की, कि चर्चो और उनके संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए कानून लाया जाना चाहिए।
मूवमेंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष आर.एल फ्रांसिस ने कहा कि देश में सरकार के बाद चर्च के पास दूसरे नम्बर पर भूमि है और वह भी शहरी पॉश इलाकों में। देश की जनसंख्या का मात्र तीन प्रतिशत होने के बावजूद भारत की 22 प्रतिशत शिक्षण संस्थाएं और 30 प्रतिशत स्वस्थ्य सेवाओं पर चर्च का कब्जा है। इतना सब होने पर भी आम गरीब ईसाई मर रहा है और हमारे चर्च नेता धर्म प्रचार की स्वतंत्रता और उनकी संस्थाओं को विषेश दर्जा दिलाने जैसे कार्यो में ही व्यस्त है।
पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट अध्यक्ष आर.एल.फ्रांसिस ने कहा कि जिन दलितों ने ईसाइयत को अपनाया वह हिन्दू दलितों के मुकाबले जीवन की दौड़ में पीछे छूट गए है। जहां हिन्दू समाज ने विकास की दौड़ में पीछे छूट गए अपने इन अभाव-ग्रस्त भाई-बहनों को आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध करवाये है, वही भारतीय चर्च ने अपना साम्राज्य बढ़ाने को प्रथमिकता दी है।
ईसाई संगठन पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट ने पोप फ्रांसिस एवं वेटिकन की सुप्रीम काउंसिल और वर्ल्ड काउंसिल ऑफ चर्चेज (डब्लूय.सी.सी.) से मांग की कि वह एवेंजलिज्म (धर्मप्रचार) पर खर्च होने वाले धन का उपयोग दलित ईसाइयों के विकास के लिये करें कैथोलिक चर्च में बिशप का चुनाव करने का अधिकार आम ईसाइयों को दे - वर्तमान समय में वेटिकन का पोप ही बिशप नियुक्ति करता है। स्थानीय ईसाइयों के बीच चर्च सत्ता का हस्तातंरण करने और चर्चों और चर्च संस्थानों से प्राप्त होने वाले धन को दलित ईसाइयों पर खर्च करने की मांग की है।
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