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Monday, 18 June 2012

रायसीना जीत लिया बाजार ने, अब लक्ष्य अपना वित्तमंत्री हासिल करना !

रायसीना जीत लिया बाजार ने, अब लक्ष्य अपना वित्तमंत्री हासिल करना !

http://hastakshep.com/?p=20901
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोलकाता से चाहे ममता दीदी कहें कि खेल अभी बाकी है, पर उन्हें बंगाल में बाजार की मदद से माकपा के ३४ साल के राज खत्म करने ​​के बावजूद बाजार की ताकत का कोई अंदाजा नहीं है। अपनी प्रबल लोकप्रियता के दम पर बाजार के खिलाफ विद्रोह तो उन्होंने कर दिया​ ​ लेकिन बाजार को अपना राष्ट्रपति चुनने से रोक नहीं पायी और अकेली रह गयी। उन्हें मुलायम पर भरोसा था और अब शायद राजग की ​​मदद से १९६९ की इंदिरा गांधी की तरह अब भी वे पांसा बदलने की सोच रही है। पर बाजार अपनी जीत तय करने में कोई कसर बाकी ​​नहीं छोड़ता, यह सबक उन्हें अब तो सीख ही लेना चाहिए। अब रायसिना रेस जीतने के बाद बाजार का लक्ष्य अपना वित्तमंत्री हासिल करने ​​का है। भारत का वित्तमंत्री १९९१ से किसी राजनीतिक समीकरण से नहीं बनता, यह सर्वविदित है। वैश्विक पूंजी के हित साधने वाले को ही यही पद मिलता है। ऐसा नहीं होता तो रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर ही रिटायर कर गये हते डा मनमोहन सिंह।आखिर अब वित्तमंत्री और नेता सदन कौन बनेगा?
सूत्रों मुताबिक प्रणव मुखर्जी 24 जून को राष्ट्रपति नामांकन के बाद इस्तीफा दे सकते हैं।अगले वित्‍तमंत्री की खोज की कवायद शुरू हो चुकी है। नया वित्‍तमंत्री कौन होगा इसके लिए भी कवायद शुरू हो चुकी है। इस पद के लिए जयराम रमेश, मोंटेक सिंह अहलूवालिया,  सुशील कुमार शिंदे, आनंद शर्मा, कमलनाथ के नाम चल रहे हैं।
रंगराजन को इस दौड़ में काला घोड़ा माना जा रहा है।रमेश के आसार सबसे कम नजर आते हैं। बतौर पर्यावरण मंत्री उन्होंने कारपोरेट इंडिया को नाकों चने चबवा दिये थे और जयंती नटराजन​ ​ ने उनकी जगह लेक आक्सीजन सप्लाई जारी रखी।बाजार को आहलूवालिया या रंगराजन और यहां तक कि नंदन निलेकणि और कौशिक बसु के मुकाबले कमलनाथ का नाम पसंद होगा, ऐसा भी नहीं लगता।हालांकि आनंद शर्मा को कैबिनेट मंत्रालय का अनुभव कम है, लेकिन जयराम रमेश और आनंद शर्मा दोनों को 10 जनपथ का करीबी माना जाता है वहीं आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को राजनीतिक अनुभव की कमी है। प्रणब दा इस समय कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं, जिसमें देश के सभी कांग्रेस सांसद और विधायक शामिल होते हैं। साथ-साथ वह लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय वित्त मंत्री हैं। इस पद से प्रणब दा 25 तारीख तक इस्‍तीफा दे देंगे। और अगर सभी दलों के सांसद-विधायकों की सहमति हुई तो वो देश के अगले राष्‍ट्रपति होंगे।उनके इस्तीफा देने के बाद मंत्रिमंडल में बड़ा फेर-बदल होना तय हो गया है। माना जा रहा है कि अब भारत को नया वित्तमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री मिल सकता है।

आज जब प्रणव के लिए राष्ट्रपति ​​भवन आरक्षित करके सत्ता वर्ग ने अपने महाअधिनायक को सम्मानजलक अवसर देने का रास्ता साफ कर लिया, तब वाशिंगटन में राष्ट्रपति ओबामा को भारत  अमेरिकी रिश्ते मजबूत करने की सुधि आयी है। इस एजंडे को कामयाब करने के लिए अपने विदेश मंत्री नालेज इकानामी के जनक कपिल सिबल और भारतीय अर्थ व्यवस्था के कर्ता धर्ता मंटेक सिंह आहलूवालिया के साथ वहीं आसन जमाये हुए हैं।देश के मौजूदा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए के उम्मीदवार होंगे। ममता बनर्जी के बोए कांटे चुनते हुए आज यूपीए ने उन्हें सर्वसम्मति से इस पद के लिए अपना प्रत्याशी बनाने का ऐलान कर दिया। उधर-प्रणब की जगह मुलायम के साथ मिलकर कलाम का नाम राष्ट्रपति के लिए आगे बढ़ा रही ममता बनर्जी अकेली रह गईं क्योंकि मुलायम सिंह यादव ने पलटी मार कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया।
यूपीए द्वारा प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिए जाने के बाद जहां एक तरफ विभिन्न दलों में उनको समर्थन देने की होड़ लग गई है, वहीं तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी अपने रुख पर कायम हैं। ममता ने कहा है कि अब भी कलाम ही उनके उम्मीदवार हैं और वह किसी के आगे सिर नहीं झुकाएंगी। राष्ट्रपति चुनाव के​ ​आईपीएल फाइनल के बाद आर्थिक मामलों से जुड़े मंत्रालयों के फेरबदल चैंपियन लीग से कम सनसनीखेज नही होने जा रही है। दीदी अपनी जिद पर अड़ी रही और राजनीतिक परिपक्वता नहीं दिखायी तो उनके हाथ में कुछ नहीं लगने वाला। बंगाल पैकेज जो गया सो गया, अब बाकी चार​ ​ साल सरकार चलाना मुश्किल हो जायेगा। राजग ने कांग्रेस के वामपंथ से नत्थी होने और वामपंथियों के मुख्यधारा में लौटने का मौका​ ​ देते हुए प्रणव का विरोध करना तय कर लें तो दीदी का खेल जारी रह सकता है वरना नहीं। पर बाजार इसकी इजाजत यकीनन नहीं देने​  वाला।​वैसे कांग्रेस ने अब मान लिया है कि ममता बनर्जी अब यूपीए के साथ नहीं हैं। ऐसा इसलिए भी क्‍योंकि यूपीए को सपा का समर्थन मिल गया है।समाजवादी पार्टी के नेता मोहन सिंह ने कहा कि ममता बनर्जी के साथ कोई खटास नहीं है। चूंकि कलाम साहब इच्‍छुक नहीं हैं, इसीलिए हम उनके नाम पर पीछे हट रहे हैं।
भारत के नीति निर्धारण में हस्तक्षेप की मंशा से वाशिंगटन तेल राजनय का भी भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। पहले ही मुद्रस्पीति, राजस्व ​​घाटा, रुपये पर संकट और राजनीतिक बाध्यताओं के आगे बेबस य़ूपीए सरकार के लिए इस दबाव को धेल पाना मुश्किल होगा। अमेरिकी विदेश नीति के रडार में इमर्जिंग मार्केट भारत और चीन की हर हलचल का पहले से पूर्वाभास दर्ज हो जाता है औरयह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए जीवन मरण का प्रश्न है। भारत में अर्थ व्यवस्था, राजनीति और नीति निर्धारण प्रक्रिया पर वाशिंगटन की कड़ी नजर है। जाहिर है कि मामला हाथ से बाहर न हो , इसलिए अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की खास जिम्मेवारी है। हिलेरिया की कोलकाता सवारी का भी यही ​​आशय रहा है। अब इसके आसार बहुत कम हैं कि अहम फैसलों पर उनका असर हो ही न।

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