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Monday, 23 September 2013

how fake mamata's alligations are...

Mamata's recent alligation is that america is funding the islamic communalists to create communal riot in west bengal.... Is it true... Nooo how it can be true we all know the world knows it.. america and its intelligence agency C.I.A. are working along with Israel's Mossad to get over Islamic extremists.. and there intentions against islamic nations have been cleared by wars againstislamic nations..World has seen the intentions of C.I.A. and mossad against islam. So how its possible that they will be helping The Islamic people here. Its pure logic. 
Mamata banerjee's Intentions was clear when she declared pensions for imam , that was totally clearthat shewas playing communal game by trying to achieve 28% musl;im vote for panchayat. Butdid it work is she realy friendof islam, 97% of death in panchayat was delivered to muslim victims the nameswere declared in news papers. So she declared that she is friend of islam but she delivered death to islam.Now  puja is near. She needs hindu sentiments but her intentions to get muslim vote took away hindu votes and R.S.S. away from here due to which R.s.s became weak. Thats why varun gandhi came to west bengal to fix R.S.S. Now when she realized R.s.s will not help her she needs to blame some one .. But who she blamed she blamed america. But there is an clear intention too. EIslamic extremists are against America and west so by her statement it was clear that she is against west and america. SO now its clear for usthat who she is. Neither islam nor hindu just chaos. bengal haven't seen any budget for past two years. condition of bengal is getting worse day by day.but will it get well ... Time will say. because time always replies but delivers its answer and judgement at right time.

reading this will clearly show how fake mamata's statements are and whats her real intention. 
_O_

Saturday, 29 June 2013

{ खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते!

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खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते!

पलाश विश्वास

खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते।
खबरों में जख्मी होते हैं जो लोग,वे भी मेरे नहीं होते।

बुरी खबरों के लिए असंख्य अखबार अनगिनत चैनल

पृथ्वी में इतनी दुर्घटनाएं क्यों होती हैं आजकल?
बुरी खबरों के इंतजार में रतजगा व्यस्त तमाम लोग
व्यस्त इंटरनेट, सूचना महाविस्फोट

सबकुछसलामत है सुनकर बहुत अच्छा नहीं लगता

जिले बदल गये हैं बहुत दिन हुए दोस्त
प्रांतों की सीमाएं भी बदल गयी हैं
देस सही सलामत हैं,फिर भी बेचैन हैं हम बहुत

गांव तक पहुंचने के लिए सबसे जरुरी है पासपोर्ट

राशनकार्ड से भी नागरिकता तय नहीं होगी अब
मतदाता पहचान पत्र न जाने कब बेकार हो गये

तस्वीरे शिनाख्त नहीं करती चेहरे की
हर वजूद लावारिश है अब मेरे देश में

बायोमेट्रिक डिजिटल हुआ है रंगीन मेरा देश

नदियां बती हैं तो पानी भी लाल होना चाहिए
आबोहवा में में सुधार के लिए लाशें होना बहुत जरुरी है दोस्त
इंसान को लाश बनाने का हर सामान  बहुत जरुरी है दोस्त

हवाओं में बारुद न हो तो सब बेमजा समझिये दोस्त
एक्शन और स्पेशल असर अब लाइव चाहिए दोस्त
मल्ची मीडिया फोर जी स्पेक्टर्म बहुत जरुरी है दोस्त

घात लगाकर कहीं बैठा न हो आतंक
और आतंकर के खिलाफ जंग भी न हो तो मुश्किल है बहुत
आंतरिक सुरक्षा खतरे में न हो और देश हो सुरक्षित

तो बंदुकों से लेकर एटम बम की वर्दियां कैसी दोस्त
सरकारों को बहुत परेशान करती न्यायपालिका दोस्त
नरसंहार की संस्कृति नहीं कैसी राजनीति दोस्त

बयानों में दर्ज नहीं होते बेदखल अनाथ गांवों के आंसू

बलात्कृत फसलें क्या बोलेंगी किसी के खिलाफ
अपने ही लोगों की मौत का जायजा लेते लोग
पीठ में घोंपा न हो कोई छुरातो मजा क्या है जीने में

खबरों में मारे जानते हैं जो लोग, वे मारे कोई नहीं होते।
खबरों में जख्मी होते हैं जो लोग वेभी कोई नहीं होते।

हादसे अब दहशत पैदा नहीं करते तनिक

मृतकों के आंकड़ों में खिलती हैं सुर्खियां
अब नफरत नहीं होती सामूहिक बलात्कारों से दोस्त

गरीबी रेखा के नीचे हैं निनानब्वे फीसद लोग
अबाध पूंजी प्रवाह सकुशल है दोस्त
सकुशल है कालाधन काले हाथों में दोस्त

सारा जोर है इस वक्त जनसंख्या नियंत्रण पर

जनसंख्या के सफाये पर जश्न मनाइये दोस्तों
आपदा उत्सव पर भी जश्न मनाइये दोस्तों

राजनीति और अर्थव्यवस्था पर काबिज सफेदपोश अमानुष

अब भेड़िये की मुस्कान सबसे बेहतरीन रचना है
सौंदर्यबोध कलाकौशल और तकनीक वीभत्सता है
जीते जी हैवान बन गये हैं लोग

बौद्धिक गुलामी से शुरु होती है तरक्की की सीढ़ियां, दोस्तों

लहूलुहान खबरों के खंडहर में आत्मरतिमग्न
अपनी जमात के ही सारे प्रतिबद्ध सितारे

चमगादड़पंख फड़फड़ा रहे हैं बहुत
पीपल के पेड़ों से बेदखल ब्रह्मराक्षस
चौराहे बंद गलियों में तब्दील,अंधेरे में कैद हम

बेकार प्रक्षेपास्त्र सी दिनचर्या है दोस्तों

सूरज को पीठ पर ढोते हुए टहलना
मरे पर वार करना फैशन मौसम है दोस्तों
जलवायु बदल गया है,खतरे में हिमालय दोस्तों

लिहाजा

खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते
खबरों में जख्मी होते हैं,जो लोग वे भी मेरे कोई नहीं होते

(मूल कविता का पुनर्पाठ, मूल कविता साक्षात्कार,सितंबर,2000 में प्रकाशित)

प्रक्षेपक

खबरों में मारे जाते हैं जो लोग,वे मेरे कोई नहीं होते
खबरों में जख्मी होते हैं,जो लोग वे भी मेरे कोई नहीं होते

उत्तराखंड त्रासदी में मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार में देरी की वजह कुछ उभरते मतभेदों को बताया जा रहा है। खराब मौसम की वजह से सामूहिक अंतिम संस्कार मंगलवार को भी नहीं हो पाया था और बुधवार को भी मौसम अनुकूल नहीं होने की वजह से इस प्रक्रिया में देरी हुई। वहीं, खबरों के मुताबिक राज्य सरकार चाहती है कि सेना अंतिम संस्कार के कामकाज में भी मदद करे जबकि सेना का कहना है कि उनका काम सिर्फ राहत और बचाव कार्य तक ही है और शवों का अंतिम संस्कार उनके कामकाज के दायरे में नहीं आता है।

सूरज को पीठ पर ढोते हुए टहलना
मरे पर वार करना फैशन मौसम है दोस्तों
जलवायु बदल गया है,खतरे में हिमालय दोस्तों
बकौल ताराचंद्र त्रिपाठी: एक मित्र ने इस तबाही के लिए चारधाम यात्रा को जिम्मेदार माना है. मेरे विचार से इस तबाही के लिए चारधाम यात्रा कत्तई जिम्मेदार नहीं है. जिम्मेदार हैं तो पिछली सरकारों और उनके लगुए भगुए नेता. कच्ची उमर के पहाड़ की छाती को विस्फोटों छलनी करने वाले, यूपी हो या उल्टाखंड किसी ने भी हिमालय की पीड़ा पर ध्यान नहीं दिया. नारायण हों, या भगोना, सब ने निश्शंक हो कर उसे लूटा है. उसकी गोद में पले हम सब लोगों ने अपने पितरों की वनों और पर्वतों को भी जीवन्त मान कर उनसे अपनी जरूरत भर की सामग्री लेना छोड़ कर उसे बेतहासा लूटना आरंभ कर दिया. जहाँ लंगूर और बन्दर भी सावधानी से उछलते कूदते थे, वहाँ हमारे बड़े बडे ट्रकों और अर्थ मूवरों ने धिरकना आरम्भ कर दिया. माटी को सहारा देने वाली झाड़ियाँ कब की समूल सरे राह बाजार में लुटा दी गयीं. जो मरे, जो पीड़ित हुए, जो आगे चल कर पीढ़ी दर पीढी पीड़ित होंगे. पहाड़ की नहीं समूची गंगा यमुना के दोआबे को आज ही नहीं कल भी हिमालय की बद दुआ को झेलना होगा.

उत्तराखंड सरकार ने इस बात का ऐलान किया है कि वह केदारनाथ मंदिर को फिर से बनवाएगी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा कि सरकार केदारनाथ मंदिर बनवाएगी। गौर हो कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदरनाथ मंदिर बनवाने की पेशकश की थी जिसे बहुगुणा ने ठुकरा दिया है।

गौरतलब हैकि उत्तराखंड में बाढ़ की सबसे ज्यादा विभीषिका झेलने वाले केदारनाथ में मंदिर गर्भगृह और नंदी को छोड़कर कुछ नहीं बचा है । माना जा रहा है कि इस पवित्र धाम को फिर से बसाने में दो से तीन साल लग जाएंगे।

बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश घौडियाल के अनुसार मंदिर के भीतर कोई नुकसान नहीं हुआ है। लिंग पूरी तरह सुरक्षित है लेकिन बाहर जमा मलबे का रेत और पानी मंदिर के भीतर घुस गया है। मंदिर के आसपास कुछ नहीं बचा है। मंदिर समिति का कार्यालय, धर्मशालाएं और भंडार गृह सब नष्ट हो गया है।

राहत अभियान खत्म हुआ नहीं अभी
केदरानाथदखल महाभारत शुरु
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने केदारनाथ के रावल के दावे को सिरे से खारिज कर दिया है। कहा कि रावल को अब केदारनाथ में पूजा नहीं करने दी जाएगी। बदरी-केदार दोनों जगहों के रावलों पर पूजा को लेकर एक ही बात लागू होती है। रावल स्वयं को जगदगुरु बता रहे हैं, लेकिन वे मंदिर समिति के वेतनभोगी कर्मी हैं।

कनखल स्थित शंकराचार्य निवास में ज्योतिषपीठाधीश्वर ने बताया कि केदारनाथ में स्थिति सामान्य की जानी जरूरी है। शवों को वहां से हटाकर उनका सनातन परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए। उसके बाद केदारनाथ में परंपरा के अनुसार पूजा शुरू होनी चाहिए। केदारनाथ के रावल भीमा शंकर लिंग के उस दावे को शंकराचार्य ने खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने स्वयं को जगदगुरु बताया था। शंकराचार्य ने कहा कि वे वहां के केवल रावल हैं। कौन सा जगदगुरु वेतनभोगी होता है। उन्होंने कहा कि स्वार्थ के लिए रावल उखीमठ में पूजा की बात कह रहे हैं। इसमें व्यावसायिक दृष्टिकोण छिपा हुआ है। केदारनाथ में सिद्ध शिवलिंग है। इसलिए वहां प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि रावल को अब केदारनाथ में पूजा अर्चना नहीं करने दी जाएगी।

शंकराचार्य ने केदारनाथ भेजा शिष्य, संतों पर असमंजस

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने केदारनाथ की स्थिति का पता लगाने अपने एक शिष्य को रवाना कर दिया है। शंकराचार्य आश्रम कनखल से दी सूचना के अनुसार आत्मानंद जौलीग्रांट एयरपोर्ट से केदारनाथ जाएंगे। बुधवार दोपहर शंकराचार्य आश्रम से शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के हवाले से बताया कि आत्मानंद को केदारनाथ की स्थिति से संतों को अवगत कराने के लिए केदारनाथ धाम भेजा है। आगे की रणनीति उनकी ओर से दी गई जानकारी के आधार पर बनाई जाएगी। वहीं संतों के केदारनाथ जाने के लिए मंगलवार को शंकराचार्य ने सरकार को भेजे पत्र का बुधवार शाम तक कोई जवाब नहीं आया है। उधर, जौलीग्रांट एयरपोर्ट रवाना होने से पहले दैनिक जागरण से बातचीत में आत्मानंद से बताया कि वे हेलीकॉप्टर से केदारनाथ जाएंगे। सरकार ने कोई बंदोबस्त न किया तो वे शंकराचार्य के आदेश पर स्वयं के खर्चे पर हेलीकॉप्टर से केदारनाथ जाएंगे।

मंदिर समिति का नौकर बताना गद्दी का अपमान: रावल

गोपेश्वर [चमोली]। केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग शिवाचार्य महाराज ने कहा कि मुझे मंदिर समिति का कर्मचारी कहकर शंकराचार्य ने केदारनाथ की परंपरा व गद्दी का अपमान है। मैंने मंदिर समिति से नौकरी के रूप में आज तक कोई भी धन नहीं लिया है।

हैदराबाद से दूरभाष पर जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि श्री बदरीनाथ में पूजा परंपरा में रावल पुजारी के रूप में होते हैं। वे केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं, जबकि केदारनाथ में रावल गद्दी स्थान पर विराजमान होते हैं। उनसे दीक्षा प्राप्त वीर शैवलिंगायत संप्रदाय के जंगम लोगों में से पांच शिष्यों में से कोई भी एक पूजा करता है। हर वर्ष केदारनाथ की पूजा रावल से दीक्षित शिष्यों में से कोई भी कर सकते हैं। परंपरा के अनुसार केदारनाथ में पूजा करने वाले का ब्रह्मचारी होना जरूरी नहीं है। रावल को ही ब्रह्मचारी, सन्यासी होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि केदारनाथ में पूजा परंपरा का ज्ञान केदारघाटी की जनता, विद्वानों को भली भांति पता है। ऐसे में ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य उन्हें मंदिर समिति का नौकर कहकर अपमानित कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि उन्होंने मंदिर समिति से वेतन के रूप में कोई भी धनराशि आज तक नहीं ली है।

शंकराचार्य परंपरा पर बोलते हुए श्री शिवाचार्य महाराज ने कहा कि देश में धर्म की रक्षा के लिए चार आदि गुरु शंकराचार्य ने चार शंकराचार्यो को चार पीठों में बैठाया गया था। वीर शैवलिंगायत संप्रदाय परंपरा में पांच पंचाचार्यो को उस संप्रदाय के लोग जगत गुरु का स्थान देते है। पांच पीठों में से कर्नाटक के रंभापुरी में वीर पीठ, कर्नाटक के उज्जैनी में सधर्म पीठ, उत्तराखंड के ऊखीमठ ओंकारेश्वर मंदिर में हिमवत केदार बैराग्य पीठ, आंध्र प्रदेश के श्री शैल में सूर्य पीठ तथा उत्तर प्रदेश के काशी में ज्ञान पीठ है। इनमें से केदारनाथ के रावल को केदार जगत गुरु के रूप में वीर शैवलिंगायत संप्रदाय में पूजा जाता है। उन्होंने कहा कि भगवान केदारनाथ की विग्रह मूर्ति की पूजा ऊखीमठ में की जा रही है। यह धन कमाने के लिए नहीं बल्कि भगवान की भक्ति का एक माध्यम है। उन्होंने सन्यासी के रूप में न केवल धर्म प्रचार बल्कि पूजा परंपरा के निर्वहन के लिए अपने जीवन के हर क्षण बिताए हैं। शंकराचार्य के केदारनाथ की पूजा में विध्न डालने संबंधी बयान पर रावल ने कहा कि यह कृत्य धर्म और परंपरा के विपरीत होगा और इसे लोग कभी माफ नहीं करेंगे। वे भी अपने जीते जी केदारनाथ की धार्मिक परंपराओं को खंडित नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि केदारनाथ में मरण शूतक के कारण अभी पूजा संभव नहीं है। जब मंदिर समिति गर्भ गृह व मंदिर की सफाई कर देगी। इसके बाद शुद्धिकरण कर बाबा केदारनाथ की पूजा परंपरा के अनुसार फिर से शुरू होगी।

केदारनाथ में ही हो केदारेश्वर की पूजा: अविमुक्तेश्वरानंद

हरिद्वार। केदारनाथ के रावल पर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के साथ ही उनके शिष्यों ने तीखा हमला किया है। शंकराचार्य के प्रतिनिधि शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि केदारनाथ के रावल को परंपरा, व्यवहार व शास्त्र का ज्ञान नहीं है। केदारेश्वर की पूजा ओंकारेश्वर में नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि रावल मरण सूतक की बात कह रहे हैं, लेकिन वे यह बताएं की कौन से मंदिर में मृत्यु होने के बाद पूजा नहीं की जाती। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि जिस मूर्ति को लेकर उखीमठ आने की बात कही जा रही है, उसको लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। वास्तव में कोई पुजारी मूर्ति लेकर आया तब भी वह गलत है। उन्होंने कहा कि माधवाश्रम महाराज आदि शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ में न होने का बयान दे रहे हैं। यह शास्त्रों में की बातों के विरुद्ध है।

तो बंदुकों से लेकर एटम बम की वर्दियां कैसी दोस्त
सरकारों को बहुत परेशान करती न्यायपालिका दोस्त
नरसंहार की संस्कृति नहीं कैसी राजनीति दोस्त

कांग्रेस ने मंगलवार को राहुल गांधी के बाढ़ प्रभावित उत्तराखंड दौरे को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से अलग करार देते हुए कहा है कि पार्टी उपाध्यक्ष 'फोटो सेशन' के लिए नहीं गए थे।

उधर, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की कांग्रेस की ओर से की जा रही आलोचनाओं और राहुल गांधी की यात्रा का स्वागत किए जाने पर खिन्नता जताते हुए भाजपा ने आज कहा कि कम से कम ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति से बचना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने यहां कहा कि जहां तक उत्तराखंड में आई आपदा का सवाल है, मैं यही कहना चाहूंगा कि किसी भी राजनीतिक दल को इसे लेकर राजनीति नहीं करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि कोई मुख्यमंत्री या कोई राजनीतिक दल उत्तराखंड में बाढ़ प्रभावितों की सहायता करना चाहता है तो मेरा मानना है कि उस मदद को स्वीकार करना चाहिए, न कि उसे राजनीतिक मुद्दा बना कर उछालना चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी से संवाददाताओं ने कहा कि मोदी 15,000 लोगों को बचाने का दावा करके 'रैम्बो' बनने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि उनका दौरा सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए था।

चमगादड़पंख फड़फड़ा रहे हैं बहुत
पीपल के पेड़ों से बेदखल ब्रह्मराक्षस
चौराहे बंद गलियों में तब्दील,अंधेरे में कैद हम
उत्‍तराखंड में त्रासदी पर अभी तक तो राजनीति ही हो रही थी, लेकिन अब हजारों लोगों के जख्‍मों पर लापरवाही और असंवेदनशीलता का नमक भी छिड़का जा रहा है। ये काम कोई छोटा मोटा नेता नहीं कर रहा है बल्कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने और सत्‍तारूढ़ यूपीए सरकार की अघोषित रूप से कमान संभालने वाली सोनिया गांधी और उत्‍तराखंड में कांग्रेस की सरकार के मुख्‍यमंत्री विजय बहगुणा कर रहे हैं। इन पर राजनीति इस कदर हावी है कि ये राहत कार्यों को बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रहे हैं और वह भी हंसते हुए। इन्‍हें इस बात की परवाह नहीं कि अपना बखान करने के लिये इन्‍हें बाद में भी समय मिल जाएगा, लेकिन ये लोग तो अपना बखान कर रहे हैं, जबकि हकीकत ये है कि उत्‍तराखंड में न जाने कितने लोग भूख प्‍यास से मर गये और आज भी हजारों लोग वहां पर फंसे हैं।   

अखबारों में छपी मुस्‍कुराती हुई तस्‍वीरें

ये पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब राहत के काम में ढिलाई के आरोपों से घिरी उत्तराखंड सरकार ने छवि सुधारने के लिए अखबारों में दिये। इनमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की मुस्कुराती हुई तस्वीरें छापी गई हैं। इसमें पीएम मनमोहन सिंह की भी तस्वीर है। ये हंसती तस्वीरें लोगों के जख्मों पर नमक छिड़क रही है। उत्तराखंड सरकार ने मुसीबत की घड़ी में साथ रहने की प्रतिज्ञा वाले ये विज्ञापन सोमवार को अखबारों में जारी किए। इसमें आम लोगों तक पहुंचाई गई राहत के बड़े-बड़े दावे किए गए हैं। सेना से आगे सरकार का नाम जोड़ते हुए 83 हजार लोगों को बचाने का दावा किया गया है।

राहत सामग्री रवाना करते हुए भी सोनिया के चेहरे भी थी हंसी

इस विज्ञापन से पहले सोनिया गांधी ने कांग्रेस मुख्‍यालय से 25 ट्रक राहत सामग्री उत्‍तराखंड रवाना की थी। उत्‍तराखंड में त्रासदी के बाद से पहली बार राहुल गांधी इसी कार्यक्रम में नजर आए थे। उत्‍तराखंड में कुदरत के कहर के पूरे आठ दिन बाद। ट्रकों को हरी झंडी दिखाते हुए सोनिया गांधी के चेहरे पर हंसी थी। इस कार्यक्रम में शीला दीक्षित भी मौजूद थीं।

जनसंख्या के सफाये पर जश्न मनाइये दोस्तों
आपदा उत्सव पर भी जश्न मनाइये दोस्तों

16 और 17 जून को जलप्रलय के दौरान रामबाड़ा में कुछ निशान बचा ही नहीं। सबकुछ बर्बाद हो गया। चश्मीदादों के कहना है कि केदारनाथ में तो कुछ दिख भी रहा है लेकिन रामबाड़ा में कुछ भी नहीं दिख रहा है। नक्शे से उसका नामोनिशान मिट चुका है।केदारनाथ के ठीक पास है रामबाड़ा जो सैलानियों में बेहद चर्चित है। सैलानी यहां रुकने के अलावा ट्रैकिंग करना भी पसंद करते है। यहां लगभग 150 दुकाने थी और पांच होटल थे जहां सैलानी ठहरा करते थे। अब यहां कुछ भी नहीं दिखता, सब पानी में बह गए हैं। जब इस इलाके में पानी का सैलाब आया तो धरती से उसकी ऊंचाई 10 फीट थी जिसमें सब कुछ बह गया। यहां अब भी मलवा बिखरा हुआ है। इस मलबे में ना जाने कितनी इंसानी लाशें समेत कई चीजें मिलेंगी लेकिन फिलहाल यहां सबकुछ खौफ में सिमटा हुआ है। यहां सन्नाटा पसरा है,खामोशी है जिसमें बर्बादी का मंजर साफ दिखता है

इलाहाबाद के एक ग्रामीण इलाके में गंगा नदी से छह शव बरामद किए गए हैं। पुलिस ने इस आशंका को खारिज नहीं किया है कि ये शव उत्तराखंड में बह गए श्रद्धालुओं के हो सकते हैं। पुलिस प्रवक्ता उमाशंकर शुक्ला ने बताया कि मांडा थाना क्षेत्र में ग्रामीणों ने गंगा नदी में शव बहते हुए देखे और फिर पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने स्थानीय और गोताखोरों की मदद से शव बाहर निकाले।

खराब मौसम की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन बाधित होने से अभी भी उत्तराखंड के अलग-अलग पहाड़ी क्षेत्रों में करीब पांच हजार लोग फंसे पड़े है। हालांकि सरकारी सूत्र कह रहे हैं कि राहत कार्य अगले 48 से 72 घंटे में पूरा हो जाएगा, लेकिन कुछ ऐसे गांव भी हैं जो पूरी तरह से संपर्क मार्ग से कटे हुए हैं। इन गांवों में अभी तक कोई राहत व बचाव दल नहीं पहुंच पाया है। एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड में अभी भी करीब 5 हजार लोग फंसे हुए हैं और 400 लोग आधिकारिक रूप से लापता हैं।

कई शवों को कीड़ों ने खाया : सूबे की आपदा में बड़ी संख्या में क्षत-विक्षत शव को लेकर भी प्रशासन के हाथ-पांव फूल रहे हैं। सैकड़ों की संख्या में ऐसे शव हैं, जिनकी पहचान नहीं हो पाई है। कई शव ऐसे हैं, जिन्हें कीड़ों ने खा लिया है। कुछ शव पूरी तरह से सड़ गए हैं। इनका डीएनए लेने में भी सरकार को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। महामारी की आशंका से भी सरकार परेशान है। जरूरत के मुताबिक डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं।
रोजी-रोटी के संकट की चिंता : स्थानीय लोगों ने सरकार के सामने सबसे बड़ी चिंता तुरंत नुकसान के अलावा रोजी-रोटी के संकट पर भी जताई है। आपदा राहत मंत्री यशपाल आर्य के मुताबिक यहां के हजारों लोगों की रोजी-रोटी पर्यटन पर आधारित है। ऐसे में इनकी आजीविका का ध्यान सरकार को देना होगा।
अब भी सब जगह खाना नहीं : प्रदेश के कई इलाकों में आपदा के कई दिन बाद भी खाना नहीं पहुंच पाया है। सरकार ने बुधवार को फिर भरोसा दिलाया कि अगले तीन दिन में किसी भी प्रभावित इलाके में खाने की कमी नहीं होगी। हालांकि, सरकार ने अपने स्टॉक में पर्याप्त खाद्यान्न की उपलब्धता का दावा किया है।

मुख्यमंत्री बहुगुणा ने कहा कि राज्यों से जानकारी मंगाई जा रही है कि वहां से कितने लोग उत्तराखंड आए थे। अब तक कितने वापस लौटे, इसके आधार पर ही लापता लोगों की सही संख्या का पता चलेगा। चारों तरफ से हो रही आलोचना के बाद अब मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सभी जिला अधिकारियों को आपदा राहत का वितरण तुरंत सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया है। सभी जिला अधिकारियों से कहा गया है कि वे पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के नुकसान का आकलन करके अब रीस्टोरेशन का काम भी तुरंत शुरू कर दें। राज्य सरकार के विभिन्न एजेंसियों से तालमेल की कमी अखर रही है। सरकार को सूबे में काम कर रही सभी एजेंसियों से पूरी रिपोर्ट नहीं मिल रही है। सेना व अर्धसैनिक बलों में तालमेल नहीं है।




Tuesday, 18 June 2013

हम छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा के जंगलों में गए। एक पेड़ के नीचे बसेरा बनाया और फिर 18 साल तक रहे और 18 साल बाद वहाँ की सरकार ने मुझे उठाकर बाहर फेंका।Himanshu Kumar



  • मैं 18 साल पहले अपनी पत्नी के साथ छत्तीसगढ़ गया था। गांधी जी का कहना है कि हिन्दुस्तान का विकास करना है और लोकतंत्र को मजबूत बनाना है तो नवजवानों को गाँवों में जाना चाहिए और गाँव में रहना चाहिए। इसलिए अपनी पत्नी के साथ शादी के एक महीने बाद अपना सूटकेस उठाया और हम छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा के जंगलों में गए। एक पेड़ के नीचे बसेरा बनाया और फिर 18 साल तक रहे और 18 साल बाद वहाँ की सरकार ने मुझे उठाकर बाहर फेंका।

    जब समाज नहीं था और कल्पना कीजिए जंगल है समाज से पहले। और एक गोश्त का टुकड़ा है और दो भेडि़ए हैं तो गोश्त का टुकड़ा इन दोनों में किसको मिलेगा। किसका होगा जो ताकतवर है और फिर आप कल्पना कीजिए समाज बन गया और एक रोटी का टुकड़ा है। दो इंसान हैं तब वह रोटी इन दोनों में से किसको मिलेगी। बराबर मिलेगी दोनों को, इसका मतलब कि समाज बनते ही उसकी बुनियादी शर्त दो हैं- एक बराबरी और दूसरा इंसाफ। अगर समाज की बुनियाद में दो शर्त बराबरी और इंसाफ नहीं है तो वह जंगल है। अगर समाज में बराबरी और इंसाफ नहीं है तो हम भेडि़ए हैं। 

    अब यह बताइए कि दो जिले हैं एक जिले में खूब कारखाने हैं और एक जिले में नहीं हैं तो आप किस जिले को विकसित मानेंगे। जिसमें कारखाने हैं उसको विकसित मानंेगे। यानी औद्योगीकरण विकास है। कारखाने अमीर लगाता है या गरीब लगाता है। और मुनाफा अमीर की जेब में या गरीब की जेब में जाता है। कारखाने की जमीन किसकी ली जाती है, गरीब की। इसका मतलब विकास गरीब से लेकर अमीर को दे दो। कारखाने की जमीन कैसे ली जाती है। मान लीजिए कारखाने के लिए जमीन एक गाँव से लेनी है तो कैसे ली जाती है। प्यार से या पुलिस के दम पर। बन्दूक के दम पर यानी हमारा विकास बन्दूक के दम पर होगा और बन्दूक किसकी होगी सरकार की होगी और सरकार को सपोर्ट किसका है हम सबका। यानी कि हम सब बन्दूक के दम पर गरीब की छीन करके अमीर बनने वाला समाज हैं और यह सरकार दूसरे का छीनकर विकास करती है और जिसका फायदा हम सब उठाते हैं। हम सब उन बन्दूकों का समर्थन करते हैं और सरकार का मतलब है बन्दूक और वही सरकार ज्यादा मजबूत है जिसके पास ज्यादा बन्दूकें होती हैं और जिसके पास ज्यादा बन्दूकें चलाने का अख्तियार होता है। इस अख्तियार को हासिल करने के लिए सरकारें लोगों में खौफ पैदा करती हंै। सारी दुनिया की सरकारंे खौफ पैदा करने के लिए कोई न कोई एक बहाना ढूँढती हैं। हिन्दुस्तान में वह बहाना मुसलमान है। 

    उनको अपनी यह लूट जारी रखनी है और उस लूट को जारी रखने के लिए उन्हें चाहिए मजबूत फौज। ज्यादा से ज्यादा फौज। सबसे ज्यादा विकसित देश कौन है अमरीका और सबसे बड़ी फौज किसकी है अमरीका की। बिल्कुल साफ बात है मुझे यह बताइए हमारे समाज में ज्यादा मजे में कौन है। जो ज्यादा मेहनत करते हैं वे मजे में हैं या जो कम मेहनत करते हैं वे मजे में हैं। जो मेहनत नहीं करते हैं वे मजे में हैं? और जो ज्यादा उत्पादन करता है तो क्या वह ज्यादा उपभोग करता है? जो उत्पादन नहीं करता है वह उपभोग करता है। ये इंसाफ है या नाइंसाफी है और नाइंसाफी बिना बन्दूकों के चल सकती है? जितनी बड़ी नाइंसाफी उतनी ज्यादा ताकत की जरूरत है। तो पूरा का पूरा निजाम आप देखिए कि चीफ जस्टिस आॅफ इण्डिया मुस्लिम है इस समय। मैं तो यूनाइटेड नेशन्स गया मैंने कहा कि बहुतेरे आदिवासियों को मारा जा रहा है, ये जुल्म हो गए वह जुल्म हो गए तो उन्होंने कहा कि यह बताइए आपके यहाँ पाँच वर्ष में इलेक्शन होते हैं कि नहीं होते, फ्री इलेक्शन होते हैं? हमने कहा हाँ। आपके यहाँ फ्री ज्यूडीशियरी है कि नहीं? कहा हाँ है और बोला पार्लियामेन्ट में आदिवासी एम0पी0 भी है मैंने कहा हाँ है। क्या करें बताइए सब कुछ तो है। वे जिसे ठीक समझ रहे हैं जिस सरकार को ठीक समझ रहे हैं मैंने आपको बताने की कोशिश की वह सरकार क्या मतलब है।

    चाणक्य ने राजनीति पर जो किताब लिखी है उसका नाम क्या है। उसका नाम अर्थशास्त्र! राजनीति का मतलब यही है अर्थशास्त्र। कि जो समाज में पैसा है, समाज की दौलत है उस पर किसका कब्जा होगा। यही राजनीति है और कब्जा उसी का होगा जिसके पास बन्दूक है और वह बन्दूक अपने हाथ में किस बहाने से ली जाए वह बहाना ये राज करने वाला जो पाॅलीटिकल क्लास है, जो रूलिंग क्लास है, वह बहाने ढूँढता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा ताकत अपने हाथ में रख सके और उसको चैलेन्ज करने वाली ताकतें, जो सरकार को चैलेन्ज करें दरअसल राष्ट्रद्रोही हैं। ये देशद्रोही हैं। मैं छत्तीसगढ़ में रहा। छत्तीसगढ़ में विदेशी कम्पनियों के लिए आदिवासियों के छः सौ गाँवों को जलाया गया। एक बार नहीं बीस बीस बार जलाया है। लाखों आदिवासियों को घर से हटा दिया है। ये हिन्दुस्तान की सरकार कर रही है। सरकार कांग्रेस भाजपा मिलकार कर रही है। उसने हजारों नवजवानों को जेलों में डाल दिया है और जेलों से जो खबर आ रही है बच्चे बैठें हैं बता नहीं सकता। किस तरह की हरकतें लोगों व महिलाओं के साथ की जा रही हैैं। बच्चों को पत्थरों पर पटक-पटक कर मार डाला है फोर्सेज ने हिन्दुस्तान में और माफ कीजिएगा क्या आप इन चीजों से वाकिफ नहीं हैं। क्योंकि बस्तर से जो माल लूटा जाएगा उससे जो कारखाने चलेंगे उससे जो विकास होगा, हम सब उसके बेनीफिशीयरी हैं। इसलिए उनके मरने का हमको तकलीफ नहीं है। इसलिए जब हमारे ऊपर हमला होता है, तो दूसरों को तकलीफ नहीं है। ये मुल्क मुल्क नहीं है। ये स्वार्थी लोगों का एक जमघट है। 

    मुल्क की पहली शर्त होती है कि मुल्क के भीतर एक तबका दूसरे तबके के साथ युद्ध नहीं करेगा। आबादी का एक हिस्सा दूसरे हिस्से के साथ वार नहीं करेगा। यह मुल्क की पहली शर्त है। हिन्दुस्तान में अगर एक आबादी दूसरी आबादी के खिलाफ बन्दूकें इस्तेमाल कर रही है। बस्तर के छः सौ गाँव जला दिए हैं, झारखण्ड, बिहार, बंगाल, उड़ीसा सब जगह लाखों फौजी भेज दिए गए हैं जो वहाँ गाँव में हमला कर रहे हैं, उनकी जमीनें छीन रहे हैं, उनको हटा रहे हैं। उनकी जमीनों से हटा दिए जाएँगे तो ये कैसे जिएँगे। क्या करेंगे ये लोग, आपको मालूम है लाखों लोग हैं जो पहाड़ों पर, नदियों पर, जंगलों पर जिन्दा हैं। अगर उन्हें वहाँ से हटा दिया जाएगा तो करोड़ों लोग मर जाएँगे। इस देश के करोड़ों लोग मर जाएँगे इस देश की फौज इनके खिलाफ इस्तेमाल की जा रही है और हम इसको एक राष्ट्र मान लें। यह राष्ट्र है? एक राष्ट्र की आबादी दूसरे आबादी को खत्म कर रही है। इसको हम राष्ट्र मान लें। यह राष्ट्र है। जहाँ सेना का इस्तेमाल देश के सबसे कमजोर लोगों की हत्या करने में किया जा रहा है। उसको हम लोकतंत्र मान लें और उनको हम वोट देते हैं और हम स्वीकार करते हैं कि यह होगा। कल उनके साथ हो रहा है। दुनिया में हुआ है। दुनिया में आदिवासियों को मार डाला गया है। अमरीका ने रेड इण्डियनस को मार दिया। विद्वान अमरीकी कहते हैं कि कहाँ खत्म है। आस्ट्रेलिया में न्यूजीलैण्ड में मार दिया और मजबूत तबका कमजोर तबके को मारता जाएगा। आज आदिवासियों की बारी है कल दलितों की बारी है। बारी-बारी सब मारे जाएँगें। ये तो जो आपने विकास का माॅडल अपनाया है आजादी के तुरन्त बाद महात्मा गांधी ने कह दिया था कि यह शैतानी माॅडल है। इस शैतानी माॅडल का एक ही तरीका है। अंग्रेज क्यों आए थे हिन्दुस्तान में। हिन्दुस्तान में जो रा मटेरियल है उस पर कब्जा करने के लिए। हिन्दुस्तान का जो कच्चा माल है उसको लूटेंगे। एक अंग्रेज ने लिखा था कि यह तो सच है कि अंग्रेजी राज में कभी सूरज नहीं डूबता लेकिन यह भी सच है अंग्रेजी राज में कभी खून नहीं सूखता है। अंग्रेज कच्चा माल को लूटने के लए फौज रखते थे। आगे कम्पनी (ईस्ट इण्डिया कम्पनी) पीछे-पीछे फौज चलती थी और गांधी ने कहा कि अंग्रेज सारी दुनिया को लूटने के लिए फौज रखते थें। अगर भारत ने अंग्रेजों के विकास का माॅडल अपनाया तो भारत के लोग किसको लूटेंगे, आप अपने ही लोगों को लूटेंगे और फौज के दम पर लूटेंगे। गांधी ने कहा था कि जब अपने लोगों को अपनी फौज से ही लूटोगे तो उसमें से युद्ध निकलेगा। इस विकास माॅडल से युद्ध का निकलना अवश्य संभावी है। इसमें से शांति निकल ही नहीं सकती। इसमें सिर्फ हिंसा निकलेगी और दूसरे पर्यावरण का विनाश होगा क्योंकि जो तुम्हारा कन्जम्पशन डेवलप है तुमने मान लिया है ज्यादा से ज्यादा कन्जम्पशन। वही विकसित है जो ज्यादा उपभोग करता है और विकास का ज्यादा कन्जम्पशन है कि तुम पर्यावरण को नष्ट कर दोगे और गांधी ने कहा था कि दुनिया दो चीजों से नष्ट होगी। एक युद्ध से दूसरा पर्यावरण के विनाश से। 

    आज हम वहाँ पहुँच गए है जहाँ दुनिया का सबसे विकसित देश अमरीका सारी दुनिया को रौंदने निकल पड़ा है। सारी दुनिया को लूटने निकल पड़ा है। सारी दुनिया पर जहाँ चाहता है वह हमला करता है। वह अफगानिस्तान के मिनरल्स पर हमला करता है वह इराक के तेल पर हमला करता है और हिन्दुस्तान उसके तलवे चाटता है और कहता है कि यही माॅडल तो हमें चाहिए था। छत्तीसगढ़ में एफ0बी0आई0 प्लानिंग करता है कैसे मारना है आदिवासियों को, जुल्म आफगानिस्तान में ही नहीं छत्तीसगढ़ में हो रहे हैं तो हालात बहुत खराब हैं और मुल्क हमारा है। अगर नष्ट हुआ इसकी जिम्मेदारी भी हम सबकी है। तो इसे बचाना है तो इसकी जिम्मेदारी भी हम सबकी है, न न्याय पालिका पवित्र है न सरकार पवित्र है, यह तो लफंगांे का समूह है। जो काबिज हो गया है। आपको मालूम है कि हिन्दुस्तान का वित्त मंत्री चिदम्बरम चुनाव हार गया था। पैसा देकर घोषणा करवाई कि वह जीत गया है। मुझे एक मिनिस्टर के साथियों ने बताया कि 100 करोड़ की डील हुई। 80 करोड़ दिया 20 करोड़ की बेईमानी कर गया। और हिन्दुस्तान का प्रधानमंत्री चुनाव जीता ही नहीं और हम कहते हैं हमारे देश में डेमोक्रेसी है। जिसको जनता ने चुना ही नहीं वह प्राइम मिनिस्टर बन गया। वल्र्ड बैंक डिसाइड करता है कि तुम्हारा मिनिस्टर कौन होगा और हमको लगता नहीं कि हम गुलाम हैं और हम इसको डेमोक्रेसी मानकर बैठे हुए हैं। 

    अगर चीजों को बदलना है तो चीजों को साफ-साफ देखना शुरू कीजिए। खाली यह कहें कि किताबों में गलत चीजे हैं। दुनिया में जितनी दुनियाबी किताबें हैं वह आॅउट-आॅफ-डेटेड हो गई हैं। माफ कीजिए पाकिस्तान में एक किताब को मानने वाले शांति से रह सकते हैं। ऐसा नहीं है। हमारा तो मानना है कि आँखें खोलो, आज के वक्त में क्या धर्म है। हमारे नागरिक इंसान होने का क्या धर्म है। हम लोग कैसे सुन्दर है सब लोग कैसे सुन्दर है। ये जो युग आया है। इस युग ने दो चीजे दी हैं। हमको साइंस दी है साइंस ने हमको दो चीजें दी हैं। एक स्पीड अब विचार ग्लोबल हो गया है। आज अगर एक जगह अन्याय होगा तो सारी दुनिया में दंगे हो सकते हैं और दूसरी चीज विज्ञान ने दी है मारने की ताकत। जब पहली बार हिरोशिमा पर बम गिरा था जिसमें 20 लाख लोग एक सेकण्ड में मर गए थे। तब महात्मा गांधी से कहा था कि आपके अहिंसा की धज्जियाँ उड़ गईं, नहीं अब तुम्हें अहिंसा का महत्व समझ में आएगा। क्योंकि अब अगर युद्ध हुआ तो इसमें से कोई नहीं बचेगा। विज्ञान युग की माँग है कि या तो सब मरेंगे, नहीं तो सब बचेंगे। आप क्या सोचते हैं 80 प्रतिशत लोगों के सोर्सेज छीन लेंगे और 20 प्रतिशत डेवलेप कर लेंगे। 

    मैं और क्लीयर कर दूँ कि पहली प्लानिंग की जो बैठक हुई थी उसमें नेहरू ने विनोवा भावे जी से कहा था आइए आप बताइए कि कैसे हिन्दुस्तान की प्लानिंग होगी। विनोवा उस समय पद यात्रा कर रहे थे। उन्होंने कहा मैं पैदल आऊँगा और छः महीने लगे आन्ध्रप्रदेश से दिल्ली पहुंँचने में। राजघाट पर पहली कमीशन की बैठक हुई, विनोवा ने पूछा हिन्दुस्तान के गरीब को रोटी कितने में दिन में दे दोगे? कहा कि दस साल में, विनोवा ने कहा कि यह तो प्लानिंग नहीं है। बड़े-बड़े कारखानों की प्लानिंग की है, गरीब को रोटी देने की प्लानिंग नहीं की है। प्लानिंग ऐसी होती है जैसे एक पिता अपने घर की प्लानिंग करता है कि सबसे पहले छोटे बच्चे को खाना मिलेगा कि नहीं। वहाँ लोगों ने विनोवा जी से कहा 20 प्रतिशत आबादी को आप भूल जाओ। इन 20 प्रतिशत लोगों के लिए दवाई, घर, कपड़ा, रोटी नहीं है। 20 प्रतिशत लोग बाहर रह जाएँगे, मर जाएँगे, 70 तक आते-आते यह संख्या 40 प्रतिशत के लिए हो गई थी कि 40 प्रतिशत रिसोर्सेज हैं ही नहीं। 2000 तक आते-आते यह आबादी 60 प्रतिशत हो गई कि रिसोर्सेज इनके लिए नहीं हंै और अब विकास का जो माॅडल है सिर्फ 20 प्रतिशत लोगों के लिए रिसोर्सेज हैं। हमारा जो लिविंग स्टैण्डर्ड है उसमें सिर्फ 20 प्रतिशत का विकास होगा। 80 प्रतिशत लोग बाहर रह जाएँगे। 80 प्रतिशत लोग बाहर रह जाएँगे, मतलब उनकी जमीने ले ली जाएँगी, उनके रिर्सोसेज ले लिए जाएँगे और उनके रिसोर्सेज 20 प्रतिशत लोगों के लिए खर्च होंगे। 20 प्रतिशत उसको कन्ज्युम करेगा यानी 80 प्रतिशत लोग उनकी जमीनों से हटा दिए जाएँगे और लोग मर जाएँगे। इस विकास में 20 प्रतिशत लोगों का विकास होगा, 80 प्रतिशत लोग मर जाएँगे और जब 80 प्रतिशत लोग मरेंगे तो यह चुपचाप मर जाएँगे? यह लड़ेंगे नहीं? आपके विकास में अगर 20 प्रतिशत व 80 प्रतिशत की लड़ाई होनी है और आपके पास परमाणु बम है। तो सोचिए कि आप कितने बड़े ज्वाला मुखी पर बैठे हुए हैं। 

    आप 80 प्रतिशत आबादी के खिलाफ हैं और उसके खिलाफ फौज का इस्तेमाल करने के मंसूबे रखते हैं। इसलिए गांधी जी ने कहा था कि विज्ञान युग में या तो सब जिएँगे या तो सब मरेंगे। क्योंकि तुम्हारे पास अब ऐसी ताकत आ गई है। इसलिए अगर इस दुनिया को बचाना है तो हम सब कैसे जिएँ पूरी परिस्थिति का ठीक से आंकलन करें। कोई दिमाग में गुस्सा नहीं, कोई पाॅलीटिक्स, आइडियालाॅजी नहीं। इनको साफ-साफ चीजे जैसी हैं, वैसे साफ-साफ देखिए। उसको ठीक से ठीक कर लें वरना हम बहुत बड़े खतरे में घिर चुके हैं और जो पाॅलिटिकल लीडरशिप है वह लफंगों का समूह है। बहुत इसके पीछे न जाएँ, हममंे बहुत सारे लोग हैं जो सोचते हैं कि पार्टी को वोट दे दें उस पार्टी को वोट दे दें। ये जो विकास का माॅडल बताया है, सारी पार्टियाँ इसको अपनाए हैं। कोई इसके खिलाफ नहीं बोलता है कि ये जो विकास का माॅडल है जो 80 प्रतिशत के खिलाफ है हम सब इसको फनमेजपवदमक करते हैं। कौन सी पार्टी फनमेजपवद करती है मायावती, समाजवादी, कांग्रेस व भाजपा, कम्युन्सिट कोई नहीं आपको करना है।
    ( इस भाषण को लोक संघर्ष पत्रिका के संपादक रणधीर सिंह सुमन ने लिपिबद्ध किया है व प्रकाशित किया है )







Wednesday, 12 June 2013

अंतःस्थल से एकबार फिर



अंतःस्थल से एकबार फिर

पलाश विश्वास


देखते देखते बीत गये पूरे बारह साल, बीता एक युग
मैंने कभी पिता की पुण्यतिथि नहीं मनायी
न मैं इस योग्य हूं की उनकी संघर्ष की विरासत का बोझ
ढो सकूं, इतनी प्रतिबद्धता कहां से लाऊं

वे कोई पत्रकार या जनप्रतिनिधि तो  नहीं,
पर जीते जी सारे के सारे प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों और
मुख्यमंत्रियों, विपक्ष के नेताओं से सीधे संवाद
की स्थितियां बना लेते थे, पीसी अलेक्सांद्र की दीवार फांद
पहुंच जाते थे इंदिराजी के  प्रधानमंत्री कार्यालय में

बिना पैसे वे कहीं से कहीं पहुंच सकते थे और
मौसम या जलवायु से उनका कार्यक्रम बदलता नहीं था
जिस दिशा से आये पुकार, जहां भी देस के जिस कोने में या
सीमापार कहीं भी संकट में फंसे हो अपने लोग, बिना पासपोर्ट
बिना विसा दौड़ पड़ते थे वे कभी भी
अपना घर फूंककर दूसरों को उष्मा देने की
अनंत ऊर्जी थी उनमें और वे जिस जमीन पर खड़े होते थे,
वहां से भूमिगत आग गंगाजल बनकर सतह
पर आ जाती थी, ऐसा था उनका करतब

वे अपढ़ थे, पर संवाद की उनकी वह कला हमारी पकड़ से
बाहर है लाख कोशिशों के बावजूद
भाषा उनके लिए कोई बाधा खडी नहीं
कर सकती थी, न धर्म की कोई प्राचीर थी
उनके आगे पीछे और जाति कहीं भी रोकती न थी उन्हें

वे गांधी नहीं थे यकीनन, लेकिन गांधी सा जीवन जिया उन्होंने
पहाड़ों की कड़कती सर्दी में भी वे नंगे बदन बेपवाह हो सकते थे
उनकी रीढ़ में कैंसर था, पर वे हिमालय से कन्याकुमारी तक की
समूची जमीन नापते रहे पैदल ही पैदल
और उनकी आखिरी सांस भी थी उनके संघर्ष के साथियों के लिए

हमें कोई अफसोस नहीं कि वे अपने पीछे
कुछ भी नहीं छोड़ गये हमारे लिए
सिर्फ एक चुनौती के, जो हर वक्त हमें
उस अधूरी लड़ाई से जोड़े रखती है
जो हम कायदे से लड़ भी नहीं सकते और

न मैदान छोड़ सकते हैं  जीते जी

विभाजन की त्रासदी झेलने के बावजूद
वे अखंड भारत के नागरिक थे
दंगों की तपिश सहने के बावजूद वे
नख से सिर तक धर्मनिरपेक्ष थे

लोकतांत्रिक थे इतने कि हर फैसले से पहले करते थे
हर संभव संवाद, शत्रु मित्र अपने पराये
ये शब्द उनके लिए न थे
और जनहित में जो भी हो जरुरी
उसके लिए योग्यता हो या नहीं, कुछ भी कर गुजरने
की कुव्वत थी उनमें , जिम्मेवारी टालकर
पलायन सिखा न था

वे पुलिस का डंडा झेल सकते थे
हाथ पांव तुड़वा सकते थे
जेल से उन्हें डर लगता नहीं था और खाली पेट
रहना तो उनकी आदत थी

वे खेत जोतते थे और सिंचते थे पसल
सपना बोते थे और अपना हक हकूक के लिए
लड़ना सिखाते थे
वे पुनर्वास की मांग लेकर चारबाग पर
तीन तीन दिन ट्रेनें रोक सकते थे
तो ढिमरी ब्लाक के किसानों के भी अगुवा थे वे

आखिर तक उन्होंने अपने गांव को
बनाये रखा साझा परिवार
जो अब भी , उनकी मौत के
बारह साल भी है साझा परिवार
जो खून के रिश्ते से नहीं, संघर्ष की विरासत
के जरिये आज भी है साझा परिवार

मेरे पिता की पुण्यतिथि वे ही
मना सकते हैं, मना रहे हैं , मैं नहीं

मैं आज उनमें से कोई नहीं
बंद गली की कैद में सुस्ती
मेरी यह जिंदगी मधुमेह में बेबस
हजारों जरुरतों की चारदीवारी में कैद
हमारी प्रतिबद्धता

मैं वह जुनून, वह दीवानगी
कभी हासिल ही नहीं कर सका
जो कुछ भी कर गुजरने को मजबूर करे इंसान को
सिर्फ इंसानियत के लिए
इंसानियत के हक हकूक के लिए
लाखों करोड़ों को परिजन
बनाने की वह कला विरासत में नहीं मिला हमें

मैं पिता की पुण्यतिथि नहीं मनाता
कर्म कांड तो वे भी नहीं मानते थे
और व्याकरण के विरुद्ध थे वे
अवधारणाओं के भी, उनके लिए
विचारधारा से ऊपर था सामाजिक यथार्थ
जिसे हम कभी नहीं मान सकें

वे गाधीवादी थे तो अंबेडकर के अनुयायी भी
वे मार्क्सवादी थे, लेकिन कट्टर थे नहीं
वे नीति रणनीति के हिसाब से जनसरोकार
का पैमाना तय नहीं करते थे और न कर सकते थे
आखिर वे  थे ठेठ शरणार्थी, ठेठ देहाती किसान
जो किताबों से नहीं, अनुभवों और चौपाल से तय करते हैं चीजें

वे सीधे संघर्ष के मैदान में होते थे
क्योंकि विद्वता न थी, इसीलिए
संगोष्ठी की शोभा नहीं बने वे कभी
और न उनका संघर्ष रिकार्ड हुआ कहीं
वे सबकुछ दर्ज करवाकर मरने का इंतजाम नहीं कर पाये
औऱ फकीर की तरह या घर फूंक कबीर की तरह
यूं ही जिंदगी गवां दी अपने लोगों के नाम

सत्ता के गलियारों को बहुत नजदीक से देखा उन्होंने
पर सत्ता की राजनीति में कहीं नहीं थे वे
उनकी एक ही राजनीति थी, वंचितों, बेदखल लोगो की
आवाज बुलंद करने की राजनीति
और वही विरासत हमारे लिए छोड़ गये वे

वे हमारे वजूद में इसतरह समाये हैं कि
हम अबभी उन्हींकी मर्जी के मुताबिक
उन्हींकी लड़ाई जारी रखने की नाकाम कोशिश में मशगुल
उनकी पुण्यतिथियों पर भी बेपरवाह रहे आजतक

और बारह साल पूरे हुए इस तरह
मुझे तो यह तिथि भी याद न थी
फेसबुक से सीधे गांव से
बसंतीपुर से जारी हुई तस्वीर तो
याद आये पिताजी फिर हमें

फिर ये बेतरतीब पंक्तियां निकल पड़ी
अंतःस्थल से एकबार फिर


Tomorrow 12th june, Pulin Babu's birth date so we would gather near his statue to remember his Work n contribution for society.u r invited.....
সাধারণ জন-্গণের জীবন যুদ্ধের নায়ক - 
"পুলিন বাবু "
সাধারণ ব্যক্তি -অসাধারণ ব্যক্তিত্ব !
১২ই জুন ২০১৩ পূণ্যতিথি ঃ জানাই অশেষ . . শ্রদ্ধা ও প্রণাম !
পুলিন বাবু সেবা সমিতি - বাসন্তী পুর
-নিত্যানন্দ মণ্ডল

Photo: সাধারণ জন-্গণের জীবন যুদ্ধের নায়ক -  "পুলিন বাবু " সাধারণ ব্যক্তি -অসাধারণ ব্যক্তিত্ব ! ১২ই জুন ২০১৩ পূণ্যতিথি ঃ জানাই অশেষ . . শ্রদ্ধা ও প্রণাম ! পুলিন বাবু সেবা সমিতি - বাসন্তী পুর -নিত্যানন্দ মণ্ডল
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