क्या भारत सरकार की जरुरत अभी भी है?
संसद के भरोसे उदारीकरण कब रुका है, जो रुक जायेगा? सार्वभौम राष्ट्र में अलग-अलग राज्य अमेरिका और दूसरे देशों का उपनिवेश बनता जा रहा है। केंद्र सरकार ने खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी के सवाल पर राज्यों को निर्णय की आजादी देकर देश के संघीय ढांचा और समता के सिद्धांत को पहले ही तिलांजलि दी है। राज्यों के क्षत्रपों की महात्वाकांक्षा के चलते अलगाववाद और अन्य राज्यों के भारतीय नागरिकों बहिष्कार तिरस्कार से एकता और अखंडता वैसे ही खतरे में है। विदेशी पूंजी की अंधी दौड़ रही सही कसर पूरी कर देगी। सुधारों की गाड़ी पर सवार केंद्र सरकार का इरादा अब पीछे मुड़कर देखने का नहीं है।
भारत सरकार की जरुरत क्या है? अब अमेरिका सीधे राज्य सरकारों से सौदे करने में लगा है। बंगाल में हिलेरिया की सवारी से शुरू हुआ यह सिलसिला तेज होता जा रहा है। अब भारत सरकार की जरुरत क्या है? अमेरिकी अर्थव्यवस्था कछुए के रफ्तार से चल रही है और यूरोप की अर्थव्यवस्था यूरोपियन सेंट्रल बैंक के नोट छापने की वजह से जिंदा है। देश को अमेरिका और यूरोप बनाने की जुगत में देश को तोड़ देने का काम हो रहा है। एक अमेरिकी व्यावसायिक प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की। कहा जा रहा है कि इस मुलाकात में प्रतिनिधिमंडल ने उत्तर प्रदेश में निवेश को लेकर मुख्यमंत्री से चर्चा की। उधर खुदरा में ऍफ़डीआई का विरोध कर रही भारतीय जनता पार्टी शासित मध्य प्रदेश में निवेश और औद्योगिक विकास के नाम पर राज्य में भारत-अमेरिका व्यवसाय सम्मेलन आयोजित करने पर सहमति बन गई है, राज्य सरकार की ओर जारी बयान में बताया गया है कि अमेरिका यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते दिन वाशिंगटन में यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल और भारतीय उद्योग परिसंघ व्यवसाय सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस अवसर पर भारत-अमेरिका व्यवसाय सम्मेलन मध्यप्रदेश में आयोजित करने पर सहमति बनी। समय और स्थान बाद में तय होंगे। इस मौके पर मुख्यमंत्री चौहान ने बताया कि मध्य प्रदेश भारत के राज्यों में सबसे तेज गति से निवेश क्षेत्र के रूप में सामने आया है। राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश की भरपूर सम्भावनाएं हैं।। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंध मैत्रीपूर्ण हैं। भारत के लिए अमेरिका सबसे बड़ा विदेशी पूंजी निवेश का स्त्रोत है। भारत में कुल विदेशी पूंजी निवेश में छह प्रतिशत योगदान अमेरिका का है। तो युवराज राहुल गांधी ताजपोशी की तैयारी में कश्मीर में औद्योगीकरण की मुहिम चलाने में जुट गये। पूंजी का खेल कश्मीर में शुरू हो गया, तो बाकी देश के मुकाबले उसकी प्रतिक्रिया विस्फोटक होगी। अधिकांश आर्थिक सुधारों की घोषणा हो चुकी है और बाजार के अब एक सीमित दायरे में ही रहने की उम्मीद है। हालांकि, नवंबर माह में संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले बाजार में एक सुधार देखे जाने की संभावना है।आर्थिक सुधारों से संबंधित कईं महत्वपूर्ण बिलों को वास्तविकता में बदलने से पहले संसद की मंजूरी दिलानी होगी और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा विशेष रूप से फिलहाल तो एफडीआई की सीमा बढ़ाए जाने के खिलाफ दिखाई दे रही है। पर संसद के भरोसे उदारीकरण कब रुका है, जो रुक जायेगा? सार्वभौम राष्ट्र में अलग-अलग राज्य अमेरिका और दूसरे देशों का उपनिवेश बनता जा रहा है। केंद्र सरकार ने खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी के सवाल पर राज्यों को निर्मय की आजादी देकर देश के संघीय ढांचा और समता के सिद्धांत को पहले ही तिलांजलि दी है। राज्यों के क्षत्रपों की महात्वाकांक्षा के चलते अलगाववाद और अन्य राज्यों के भारतीय नागरिकों बहिष्कार तिरस्कार से एकता और अखंडता वैसे ही खतरे में है। विदेशी पूंजी की अंधी दौड़ रही सही कसर पूरी कर देगी। सुधारों की गाड़ी पर सवार केंद्र सरकार का इरादा अब पीछे मुड़कर देखने का नहीं है।
रसोई की आग में झुलसती जनता के खिलाफ सरकार की जंग जोर शोर से जारी है! सातवां ही नहीं, अब पहला सिलेंडर भी महंगा पड़ेगा। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय ने शुक्रवार को रसोई गैस एजेंसी संचालकों का कमीशन बढ़ा दिया और उसका भार उपभोक्ताओं पर डाल दिया। जिसके चलते सिलेंडर के दामों में यह वृद्धि हुई है। नई दरें शुक्रवार से लागू भी हो गईं। ममता बनर्जी ने सरकार के इस फैसले को जनविरोधी करार दिया है। उन्होंने फेसबुक पर टिप्पणी की है, ‘आपको पता है कि यूपीए-2 के दौरान एलपीजी की कीमतें कितनी बार बढ़ी हैं और इससे आम आदमी पर बोझ बढ़ा है? सरकार ने एक बार फिर इसकी कीमतें बढ़ा दी हैं। …वेरी बैड, वेरी सैड।’ हालांकि, एजेंसी के गोदाम से खुद गैस सिलेंडर लाने पर 15 रु. कम चुकाने होंगे।
आम आदमी को मार देने पर उतारू सरकार का एक और नया कदम लोगों को जीते जी मार देगा, अब दवाओं की कीमतें भी बढ़ेंगी। मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने आवश्यक दवाओं की कीमतें तय करने के लिए बाजार आधारित फार्मूले की सिफारिश की है। इसके तहत बाजार में 1 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाली सभी दवाओं की औसत कीमत के आधार पर दवाओं की कीमतें तय की जाएंगी। आवश्यक दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए प्रस्तावित न्यू फार्मा प्राइसिंग पॉलिसी (एlनपीपीपी) अगले सप्ताह कैबिनेट में विचार के लिए रखी जा सकती है। खबर है कि फार्मास्युटिकल्स विभाग इसके लिए कैबिनेट नोट को अंतिम रूप देने में जुटा हुआ है। आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए फार्मास्युटिकल्स विभाग दवा कंपनियों के लिए कुछ शर्तें भी जोड़ सकता है। सूत्रों के अनुसार न्यू फार्मा प्राइसिंग पॉलिसी को अंतिम निर्णय के लिए अगले सप्ताह कैबिनेट में भेजा सकता है चूंकि अगले सप्ताह सरकार को सुप्रीम कोर्ट को आवश्यक दवाओं की कीमतें नियंत्रित करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी भी देनी है। ऐसे में फार्मास्युटिकल्स विभाग आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक शर्त जोड़ सकता है जिसके तहत दवा कंपनियों के लिए निश्चित मात्रा में आवश्यक दवाओं का उत्पादन करना जरूरी होगा। इस फार्मूले से बाजार में बिकने वाली लगभग 30 फीसदी दवाएं प्राइस कंट्रोल के दायरे में आ सकेंगी। मौजूदा समय में ड्रग प्राइस कंट्रोल आर्डर 1995 के तहत 78 दवाएं प्राइस कंट्रोल के दायरे में हैं।
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