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Thursday 27 September 2012

हिंदू और मुसलमानों के साथ भेदभाव!

भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission (NHRC)) एक स्वायत्त विधिक संस्था है । इसकी स्थापना 12 अक्टूबर, 1993 को हुई थी।पर इसके कामकाज में हिंदू राष्ट्रवाद हावी होता दिखायी दे रहा है।राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एक न्यायाधिकरण या प्रशासनिक संस्था नहीं है। इसका काम न्यायालयों के काम को दोहराना नहीं है, न ही पुलिस तंत्र के कार्य को विस्थापित करना है। इसका काम तो मानवाधिकार उल्लंघन के उन मामलों को प्रकाश में लाना तथा राहत के उपाय करना है जो सामने आने से रह गए हों, किंतु इसके विपरीत आयोग का रिकार्ड देखकर लगता है कि इसने अपनी इच्छा और सुविधा से काम तय किए है।

मानवाधिकार जननिगरानी समिति की ओर से पेश इस केस स्टडी का अगर हम तुलनात्मक अध्ययन करें तो साफ देख सकते हैं कि किस प्रकार से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली ने एक ही प्रकार के केस में अलग अलग  कैसे दो तरफा कार्यवाही की है।

 इससे हिन्दू और मुस्लिम के बीच साफ साफ भेद भाव दिखाई देता है और माननीय आयोग के ऊपर ये प्रश्न खडा होता है कि आखिर क्या कारण है कि एक ही प्रकार के हिन्दू मामलों में सीधे कार्यवाही के निर्देश आयोग द्वारा दिये गये हैं जबकि दूसरी तरफ ठीक उसी प्रकार के मुस्लिम मामलों को सीधे राज्य मानवाधिकार आयोग, लखनऊ को भेज दिया गया है, यह कहते हुये कि मामला राज्य से जुड़ा है। लेकिन फिर वही प्रश्न खडा होता है कि फिर हिन्दू केस में वही मामला राज्य का न होकर सीधे आयोग अपने स्तर से कार्यवाही का आदेश दे रहा है।  हम देख सकते हैं कि पुलिस उत्पीडन के हिन्दू केस में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सीधे एस.एस.पी या सम्बन्धित अधिकारी को नोटिस दिया है और बिल्कुल ऐसा ही केस पुलिस उत्पीडन के मुस्लिम केस को राज्य मानवाधिकार आयोग को स्थानांतरित कर दिया है। साथ ही राज्य मानवाधिकार आयोग ने इन मामलों पर कोई कार्यवाही नही की है, केवल एक सूचना पत्र भेज दिया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा केस राज्य मानवाधिकार आयोग में दर्ज कर लिया गया है।

 मानव अधिकार एक व्यक्ति की राष्ट्रीयता, उसके निवास, लिंग, राष्ट्रीयता या जातीय मूल, रंग, धर्म या अन्य स्थिति पर ध्यान दिए बिना सभी मनुष्यों के लिए निहित अधिकार हैं। सभी समान रूप से भेदभाव के बिना मानव अधिकारों के हकदार हैं। ये अधिकार आपस में संबंधित, अन्योन्याश्रित और अविभाज्य हैं।भारत में, मानवाधिकारों की रक्षा के कई तरीके हैं। संसद और कार्यपालिका को देश में कानून का निर्माण और कार्यान्वयन सौंपा गया है जबकि न्यायपालिका इसके निष्पादन को सुरक्षित करती है।इन बुनियादी चीजों के अलावा संस्थानों के अन्य निकाय हैं जो मौजूदा तंत्र को मजबूत और समृद्ध बनाते हैं। वास्तव में समर्पित सरकारी एजेंसियां, सामाजिक रूप से समर्पित गैर सरकारी संगठन, स्थानीय सामुदायिक समूह और अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसियां दुनिया भर में मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए कार्य करती हैं

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