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Friday, 5 April 2013

SC students burn effigies of Congress MLAs, MP in Rohtak



Dalits Media Watch
News Updates 05.04.13
 
SC students burn effigies of Congress MLAs, MP in Rohtak - The Indian Express
Centre proposes measures to strengthen SC/ST Act - The Hindu
 
The Indian Express

 

SC students burn effigies of Congress MLAs, MP in Rohtak

 
PTI : Rohtak, Thu Apr 04 2013, 21:56 hrs
 
Students belonging to the Scheduled Caste (SC) demonstrated here and burnt the effigies of Congress MLAs and MPs, protesting police inaction in nabbing the accused in the murder case of two Dalit youths.
 
The activists, under the aegis of Dr Ambedkar Missionaries Vidharthi Association, an outfit of students belonging to the dalit community, gathered on the campus of Maharshi Dayanand University (MDU) and started moving towards the local residence of Haryana Chief Minister Bhupinder Singh Hooda at Baapu Park.
 
They raised slogans against the state government for its alleged failure in checking the crime against dalits.
 
Earlier, senior leader of the association Vikram Singh Dumolia, while addressing the protesters alleged that rising crime against Dalits had yet again proved that the Hooda-government had failed to protect Dalits in the state.
 
"Dalits are being tortured and murdered by criminals, but the government is taking no step to ensure their safety and security," he said adding that Dalits will not sit quietly till the government ensures their security.
 
The Hindu
 
Centre proposes measures to strengthen SC/ST Act
 
Smriti Kak Ramachandran
 
Imposing a social or economic boycott on persons from a reserved caste or tribe, parading them naked, preventing them from entering a place of worship or employing them as manual scavengers — such offences will now be dealt with more severely and in a time-bound manner, as the Union Ministry of Social Justice and Empowerment has recommended measures to strengthen the Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989, and Rules 1995.
 
"We have drawn up a list of recommendations that deal with newer forms of offences and bring within the purview of the Act relevant IPC Offences that attract penalties of less than 10 years. A draft was circulated for inter-ministerial consultations, and we are in the process of drafting a Cabinet note on the proposal to strengthen the Prevention of Atrocities Act," said an official of the Ministry.
 
The Ministry is also keen on having dedicated special courts and a 30-day trial to deal with complaints. "The time taken to file a complaint and then to address it is a crucial aspect of the complaint redress. There are designated courts and special public prosecutors appointed to ensure speedy trial, but a review of trials under the Act has shown that all witnesses are not given adequate notice, not briefed appropriately, and not apprised of time, place and status of the case. In all, there is undue delay in disposing of these cases, leading to loss of confidence among the victims in the criminal justice system," the official said.
 
Now, the Ministry has recommended that the Act include provisions like appointment of special public prosecutors to try cases exclusively, all cases be disposed of within three months from the date of filing of charge sheet and cases under the Act be given priority in appeals.
 
Offences that are well documented, but not within the ambit of the Act, such as obstructing the use of common property resources, causing physical harm or death on the allegation of practising witchcraft or abetment should be brought within the purview of the Act, the Ministry has said.
 
"Another important recommendation is expanding the scope of presumption whether the perpetrator had knowledge of the (SC/ST) identity of the victim while committing the offence. We found a shortcoming in the reading of the Act…: the emphasis on establishing that the offence was committed on ground that the victim was SC or ST. There are numerous cases of the police refusing to register complaints under the Act unless the complainant could establish that the identity of the victim was in fact the ground for committing the offence; in some cases, the police refuse to register a case… because the perpetrator did not overtly use the terms of caste abuse while committing the offence. We have called for tweaking the Act in such a way that the police and the judiciary do not place the onus on the complainant or the prosecution to prove that the accused acted on the basis of caste or tribal identity," the official said.
 


-- 
.Arun Khote
On behalf of
Dalits Media Watch Team
(An initiative of "Peoples Media Advocacy & Resource Centre-PMARC")
...................................................................
Peoples Media Advocacy & Resource Centre- PMARC has been initiated with the support from group of senior journalists, social activists, academics and  intellectuals from Dalit and civil society to advocate and facilitate Dalits issues in the mainstream media. To create proper & adequate space with the Dalit perspective in the mainstream media national/ International on Dalit issues is primary objective of the PMARC.


गुजरात का कर्ज उतार दिया मोदी ने, हिंदुस्तान का कर्ज उतारेंगे! अब क्या हिंदुस्तान को गुजरात बनाकर?


गुजरात का कर्ज उतार दिया मोदी ने, हिंदुस्तान का कर्ज उतारेंगे! अब क्या हिंदुस्तान को गुजरात बनाकर?

भारत के कम से कम 612 उद्योगपतियों ने विदेशों में फर्जी कंपनी बना कर करोड़ों रुपये के टैक्स की चोरी की है।इस सनसनीखेज पर्दाफाश के परिप्रेक्ष्य में तनिक गौर करें कि क्या विडंबना है कि सार्वभौम गणराज्य में लोकतंत्र का भविष्य तय होगा वणिक सभा में!   

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

गुजरात का कर्ज उतार दिया मोदी ने, हिंदुस्तान का कर्ज उतारेंगे! अब क्या हिंदुस्तान को गुजरात बनाकर?बाबरी विध्वंस के अपराधी कौन है, देशव्यापी दंगा के जिम्मेवार कौन है, पूरी दुनिया जानती है। अमेरिका ने सिखों के जनसंहार के तथ्य को सिरे से नकार दिया है। पर मनुष्यता का इतिहास इसे झुठला नहीं सकता।मानवता के युद्धअपराधी सत्ता के संरक्षण से भले ही बच जाये, सत्ता पर काबिज हो जाये, पर वास्तव नहीं बदल जाता। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हिंदुत्व की  प्रयोगशाला में तब्दील गुजरात में क्या हुआ, उसे अदालत में साबित करना फिलहाल इस व्यवस्था में असंभव है। लेकिन गुजरात में क्या हुआ और उसके अनुकरण में असम में क्या हुआ, इस देश के नागरिकों को, मोदी समर्थकों और मोदी विरोधियों को, दोनों पक्षों को अच्छी तरह मालूम है।अब मोदी हिंदुस्तान का कर्ज उतारने के लिए पूरे देश में गुजरात माडल  लागू कर दें, तो उसे भी रोकने का कोई उपाय नहीं है। मोदी के विकल्प बगैर राहुल गांधी पेश हैं। कारपोरेट हिंदू साम्राज्यवाद के ये दोनों विकल्प हैं।​​ इनमें से किसी एक को चुनकर ही इस देश  में लोकतंत्र का कारोबार चलना है। हिंदू साम्राज्यवाद और कारपोरेट साम्राज्यवाद दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं। दोनों विकल्प की एक ही जायनवादी नीति है, नरसंहार की संस्कृति के तहत बहुसंख्य जनगण का सफाया और कारपोरेट हित​ ​ साधना। पर इस देश में बहिस्कृत व नरसंहार के लिए चुनी गयी बहुसंख्य जनता ही उनकी पैदल सेना है। प्रतिरोद की ताकतें खंड खंड ​​खंडित हैं, विचारधारा और सिद्धांतों के बहाने अपनी अलग दुकान से वे आद्यान्त सत्ता की राजनीति में निष्णात हैं। तो कोई माई का लाल है कि मोदी को हिंदुस्तान को गुजरात बनाने से रोक दें राहुल गांधी आयेंगे तो क्या वे मोदी से किसी भी मायने में बेहतर हैं राष्ट्रके समक्ष धर्मराष्ट्रवाद की दुधारी तलवार नंगी नाच रही है। गर्दन सबकी नपने वाली है, पर हर कोई दूसरे की ही गर्दन तराशने में लगा है। किसी को अंदाजा नहीं कि इस चुनौती के मुकाबले का, या इससे देश को बचाने का रास्ता क्या है। मालूम है भी तो उस रास्ते पर चलाना नहीं चाहते, दुकानदारी बंद हो जायेगी। डर इसीका है।
देश के शेयर बाजारों में गुरुवार को भारी गिरावट का रुख रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 291.94 अंकों की गिरावट के साथ 18,509.70 पर और निफ्टी 98.15 अंकों की गिरावट के साथ 5,574.75 पर बंद हुआ। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 70.26 अंकों की गिरावट के साथ 18,731.38 पर खुला और 291.94 अंकों यानी 1.55 फीसदी की गिरावट के साथ 18,509.70 पर बंद हुआ। दिन के कारोबार में सेंसेक्स ने 18,733.62 के ऊपरी और 18,473.85 के निचले स्तर को छुआ।इसी के मध्य पेट्रोल और डीज़ल के बाद अब चीनी भी और महंगी हो सकती है। सरकार ने चीनी को कुछ शर्तों के साथ डीकंट्रोल करने का फैसला किया है। यानी अब सरकार भी बाजार भाव पर ही चीनी खरीदेगी। कैबिनेट कमिटी ने गुरुवार को बड़ा फैसला करते हुए चीनी को बाजार के हवाले करने का फैसला लिया है। माना जा रहा है कि इस फैसले के साथ ही चीनी और महंगी हो सकती है। अब तक चीनी मिलों को अपने चीनी के कुल प्रॉडक्शन का 10 फीसदी हिस्सा सरकार को लेवी के तौर पर 20 रुपये प्रति किलोग्राम देना पड़ता है। इस चीनी को सरकार पीडीएस चैनल के तहत 13.50 प्रति किलोग्राम पर गीरबों को देती है।

भारत के कम से कम 612 उद्योगपतियों ने विदेशों में फर्जी कंपनी बना कर करोड़ों रुपये के टैक्स की चोरी की है।  वाशिंगटन के इंटरनैशनल कंसोर्सियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स यानी आईसीआईजे ने एक सनसनीखेज रहस्योद्घाटन करते हुये दुनिया भर के ऐसे लोगों और कंपनियों का नाम सामने लाया है, जिन्होंने टैक्स बचाने के लिये फर्जीवाड़ा किया है।  

इसके लिये संस्था ने लगभग 25 लाख फाइलों के दस्तावेज एकत्र किये।  इंटरनैशनल कंसोर्सियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स ने जो दस्तावेज सामने लाये हैं, वे विकिलीक्स के अमेरिकी विदेश विभाग के लीक किए गए दस्तावेजों से 160 गुना ज्यादा हैं।  इनमें 30 सालों के दस्तावेज हैं।

संस्था ने अलग-अलग देशों के 1 लाख 20 हजार से अधिक नाम सार्वजनिक किये, जिन्होंने फर्जी तरीके से टैक्स बचाने के लिये विदेशों में कंपनियां खोल लीं।  इंटरनैशनल कंसोर्सियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स ने 170 देशों के 1.2 लाख फर्म्स, ट्रस्ट और एजेंट्स के बारे में जो सनसनीखेज राज खोला है, उसमें भारत के 612 उद्योगपति शामिल हैं।

इंटरनैशनल कंसोर्सियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स यानी आईसीआईजे के दस्तावेजों के अनुसार किंगफिशर के मालिक विजय माल्या, सांसद विवेकानंद गद्दम, अभय कुमार ओसवाल, तेजा राजू, सौरभ मित्तल, रविकांत रुइया, समीर मोदी, चेतन बर्मन जैसे 612 उद्योगपतियों ने विदेशों में फर्जी कंपनियां खोलकर टैक्स चोरी की और अपने पैसों को खपाया है।  

इन उद्योगपतियों ने ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, कुक आइलैंड और समोआ जैसे टैक्स हेवन समझे जाने वाले देशों में फर्जी कंपनियां और खाते खोले हैं।  आईसीआईजे ने दावा किया है कि भारत में इन औद्योगिक घरानों ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और फेमा नियमों को तार-तार कर दिया. आईसीआईजे ने इन उद्योगपतियों के लेन-देन के विस्तृत दस्तावेज भी सार्वजनिक किये हैं।

इस सनसनीखेज पर्दाफाश के परिप्रेक्ष्य में तनिक गौर करें कि क्या विडंबना है कि सार्वभौम गणराज्य में लोकतंत्र का भविष्य तय होगा वणिक सभा में! गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को जवाब देने की पूरी तैयारी कर ली है।कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भारतीय उद्योग परिसंघ की बैठक में दिए भाषण में अपनी शादी और प्रधानमंत्री बनने के सवाल को अप्रासंगिक बताया।उन्होंने कहा, 'मुझसे प्रेस के लोग अक्सर पूछते हैं मैं शादी कब करूंगा। कोई कहता है, बॉस, आप प्रधानमंत्री कब बनने जा रहे हैं। कोई कहता है, नहीं आप प्रधानमंत्री नहीं बनने जा रहे हैं। कुछ लोग कहते हैं, ऐसी संभावना है कि आप प्रधानमंत्री बन जाएं।'

राहुल ने कहा कि चार हजार विधायक और 600-700 सांसद देश को चला रहे हैं। देश को तरक्की के पथ पर ले जाना है तो सभी लोगों को सिस्टम से जुड़ना होगा। यह निराशाजनक बात है कि राजनीतिक दलें जमीन से जुड़ी नहीं हैं।एक प्रधान की गांव की विकास में अहम भूमिका होती है। एक सांसद के अधीन 500-600 ग्राम प्रधान होते हैं। अब समय आ गया है कि इन प्रधानों को ‌विकास से जुड़े फैसलों में अधिकार मिले।ऐसा देखा गया है कि ग्राम प्रधान किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ा होता है। ऐसे में वह किस प्रकार राजनीतिक दल या नेता तक अपना विचार पहुंचा पाएगा।

नरेंद्र मोदी सोमवार 8 अप्रैल को फिक्की के महिला विंग को संबोधित करेंगे।फिक्की के महिला विंग में मोदी के भाषण ने एक बार फिर राहुल बनाम मोदी की चर्चा तेज कर दी है। एक तरफ जहां सभी की नजर फिक्की में राहुल के भाषण लगी हैं। वहीं मोदी के नए कार्यक्रम से दोनों के बीच नजरिए का फर्क को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म होने के पूरे आसार हैं। सीआईआई के मंच से राहुल गांधी के बोल विपक्ष को पसंद नहीं आए। बोल मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी समेत तमाम राजनीतिक दलों ने देश और राजनीति को लेकर राहुल गांधी के नजरिये पर वार किया है। भाषण समाप्त होते ही बीजेपी ने कहा कि उन्होंने सिर्फ समस्याएं गिनवाईं समाधान नहीं दिया। कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज यानी सीआईसीआई के मंच से राहुल गांधी आज देश की समस्याओं पर खूब बोले। कुछ ने कहा राहुल दिल से बोले, कुछ ने कहा समस्याएं गिनाई लेकिन समाधान नहीं बताया। कुछ ये कहते नजर आएं कि समझ में ही नहीं आया कि राहुल कहना क्या चाहते हैं। राहुल के भाषण की सबसे ज्यादा खिंचाई बीजेपी करती नजर आई। जिसे राहुल की बातें हवाई लगी। मोदी फोबिया से ग्रस्त लगी।दरअसल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा कि कोई भी व्यक्ति सांप्रदायिक सद्भावना को दरकिनार कर देश का विकास नहीं कर सकता। साथ ही उन्होंने व्यक्ति पूजा की जमकर आलोचना की। उन्होंने कहा एक शख्स के इर्द-गिर्द देश के विकास का तानाबाना नहीं बुना जा सकता। लोगों ने इसे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर वार माना। तो बीजेपी के पलटवार पर केंद्र सरकार ने जवाब देने में कोई देरी नहीं की।जेडीयू के मुताबिक खुद राहुल को नहीं पता वो क्या बोल रहे हैं। जेडीयू का कहना है कि राहुल समस्या की जगह समाधान देते तो बेहतर होता। विरोधियों ने राहुल गांधी के पीएम पद की दौड़ में शामिल नहीं होने के बयान पर भी चुटकी ली।

आगामी आम चुनाव में पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाए जाने की पुरजोर मांग के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा कि वे देश का कर्ज उतारना चाहते हैं। गांधीनगर में एक पुस्तक विमोचन समारोह में मोदी ने कहा कि 'लोग कह रहे हैं नरेंद्र मोदी ने गुजरात का कर्ज चुका दिया है, अब हिंदुस्तान का कर्ज चुकाएंगे।'उन्होंने कहा कि यह केवल मोदी ही नहीं, बल्कि भारत से प्रेम करने वाला हर भारतीय करे। हमें जो भी अवसर मिले उसका सदुपयोग अपनी मातृभूमि का कर्ज चुकाने के लिए करना चाहिए।हालांकि मोदी ने अपनी इस बात के अर्थ का खुलासा तो नहीं किया, लेकिन उनके समर्थक अगले आम चुनाव में उन्हें भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाए जाने की मांग लगातार कर रहे हैं। मोदी का यह बयान संयोग से उसी दिन आया है जब कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक कार्यक्रम के दौरान यह साफ किया है कि वे प्रधानमंत्री बनने की होड़ में शामिल नहीं हैं।

राहुल  गांधी अगले आम चुनाव में कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार होंगे या नहीं- इस पर पार्टी ने अस्पष्टता बनाए रखी है।
दो सत्ता-केंद्रों के भविष्य के लिए भी उपयुक्त मॉडल होने की बात औपचारिक रूप से कहकर कांग्रेस ने अटकलों के लिए पर्याप्त गुंजाइश छोड़ दी है। इसके बावजूद इसमें शक नहीं कि कांग्रेस में राहुल गांधी अब सत्ता का प्रमुख केंद्र हैं और भविष्य में भी रहेंगे। इसलिए वे जब कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज की सालाना आम बैठक को संबोधित करने आए, तो सारे देश की नजर उनके भाषण पर थी और कांग्रेस उपाध्यक्ष ने निराश नहीं किया।
उनके वक्तव्य में भारत, यहां के लोगों और विकास के बारे में उनकी समझ स्पष्ट झलकी। उनके नजरिये में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी दोनों की चिंताएं बखूबी प्रतिबिंबित हुईं। राहुल का पूरा समर्थन तीव्र गति से आर्थिक विकास को है। अत: वे उद्योग जगत के अनुकूल नीतियों के पक्ष में खड़े हैं। लेकिन लाभ सब तक पहुंचे- यानी वंचित तबके भी विकास के फायदों में भागीदार बनें- इसके लिए माकूल ढांचा बनाने को भी वे जरूरी मानते हैं। लेकिन यूपीए ने बीते नौ सालों में विकास की अधिकार आधारित जिस अवधारणा को आगे बढ़ाया है, उसे और गति देना उनकी नीति होगी, क्योंकि सिर्फ इसके जरिये ही विकास को निरंतर और टिकाऊ बनाया जा सकता है।
राहुल गांधी की राय में यही वह रास्ता है जिससे तमाम प्रतिकूल स्थितियों के बीच उम्मीदों से लबालब इस देश के जनगण की ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करते हुए भारत में निहित संभावनाओं को साकार किया जा सकता है। ये काम हो सके, इसके लिए जरूरी है कि विकल्प और समाधान व्यक्ति/व्यक्तियों में नहीं, बल्कि सवा अरब लोगों में ढूंढ़ा जाए। राहुल ने कहा कि जमीनी स्तर तक आमजन को सशक्त करना उनका मकसद है। जिस समय देश में बहस व्यक्तियों में सिमटी हो, यह बेशक ताजगी भरी सोच है। इसे सामने रखते हुए राहुल गांधी ने अगले आम चुनाव में कांग्रेस ही क्यों सही विकल्प है, इस पर अपने तर्क पेश किए हैं। लोग किस हद तक उन्हें स्वीकार करेंगे, ये भविष्य के गर्भ में है।

एजुकेशन सिस्टम में बदलाव की वकालत
राहुल ने कहा कि देश में मानव संसाधनों की कमी नहीं है। हमें युवाओं को सही ट्रेनिंग देने की जरूरत है। यदि हम उन्हें सही शिक्षा और दिशा दे पाए तो बेरोजगारी खत्म हो जाएगी।

इसके लिए हमें वर्ल्ड एजुकेशन सिस्टम बनाने की जरूरत है। आखिर हम क्यों नहीं आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्‍थान बना रहे हैं?

यदि हम ऐसा करने में सफल रहें तो फिर निश्चय ही अपने युवाओं के सपने को पूरा करने में सक्षम होंगे। शिक्षा में उद्योगों को अपना योगदान देना होगा।

बुनियादी ढांचा बेहतर करने पर जोर
राहुल ने कहा कि भारतीय उद्योगपति बेहद साहसी हैं। हमें बस बुनियादी ढांचा को सुधारने की जरूरत है। इसके लिए हमें मजबूत और बड़ी सड़कें बनानी होंगी। बंदरगाह तैयार कर उन्हें कारोबार के लिए प्लेटफॉर्म देना होगा।

उद्योगपतियों से मिलती है ऊर्जा
राहुल ने कहा कि सीआईआई सम्मेलन में आना मेरे लिए बेहद सम्मान की बात है।

अब दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ गई है। इसका श्रेय बहुत हद तक यहां के उद्योगपतियों को जाता है। पहले भारत को ऊर्जा नदियों से मिलती थी, अब कारोबारियों से मिलती है।

राहुल ने कहा कि अकेले सरकार कुछ नहीं कर सकती है। इसके लिए सभी को साथ मिलकर चलना होगा। इसमें उद्योगपतियों की भूमिका बेहद अहम होगी। वैसे भी किसी इकोनॉमी को महज पैसे कमाने पर फोकस नहीं करना चाहिए।

युवाओं को मिले सही ट्रेनिंग
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की बैठक में राहुल ने कहा कि देश में समस्या नौकरी की नहीं, बल्कि ट्रेनिंग की है। भारतीय युवा संघर्ष को तैयार है, बस हमें सही दिशा देने की जरूरत है।

राहुल ने अपने भाषण में लोकमान्य तिलक एक्सप्रेस में की गई गोरखपुर से मुंबई की यात्रा का जिक्र किया। इस ट्रेन यात्रा से उन्हें आम लोगों की सोच और सपनों की जानकारी मिली।

राहुल ने बताया कि एक युवा किस तरह अपने सपने को पूरा करने के लिए जद्दोजहद करता है, यात्रा से यह मुझे पता चला। इससे एक बात तो साबित हो गया कि भारतीय युवा संघर्ष करने का माद्दा रखते हैं।






कल बस्तर से एक सूचना मिली थी कि सुरक्षा बलों ने कुछ आदिवासियों के घर जलाए हैं और ग्रामीणों को नक्सली घोषित कर उन पर ज़ुल्म किये हैं .

कल बस्तर से एक सूचना मिली थी कि सुरक्षा बलों ने कुछ आदिवासियों के घर जलाए हैं और ग्रामीणों को
नक्सली घोषित कर उन पर ज़ुल्म किये हैं . 

आज टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार पढ़ा उसमे लिखा है कि सरकारी सुरक्षा बलों ने नक्सलवादियों पर हमला 

किया जिसमे सात ' नक्सलवादी ' मारे गये . 

कल बस्तर से एक सूचना मिली थी कि सुरक्षा बलों ने कुछ आदिवासियों के घर जलाए हैं और ग्रामीणों को नक्सली घोषित कर उन पर ज़ुल्म किये हैं .

आज टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार पढ़ा उसमे लिखा है कि सरकारी सुरक्षा बलों ने नक्सलवादियों पर हमला किया जिसमे सात ' नक्सलवादी ' मारे गये .

खबर में ये भी लिखा है कि नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर अंधाधुंध फायरिंग करी . जवाब में सुरक्षा बलों ने फायरिंग करी जिसमे नक्सलवादी मारे गये .

आश्चर्य कि बात है कि नक्सलियों की अंधाधुंध फायरिंग में सुरक्षा बल के एक भी सिपाही को खरोंच तक नहीं आयी , लेकिन सरकारी सुरक्षा बलों की गोली से सात नक्सली मर गये .

एक बार इसी तरह से सिंगारम गाँव में पुलिस ने उन्नीस ग्रामीणों को मार दिया था जिनमे चार लड़कियां थीं जिनके साथ बलात्कार करके चाकू घोंप कर मारा गया था .

तब भी पुलिस ने दावा किया था कि मारे गये लोग नक्सली थे और उन्होंने पुलिस पर हमला किया था और जवाबी कार्यवाही में नक्सली मारे गये थे .

जबकि सच्चाई यह थी कि इन सभी को पुलिस ने घरों से खींच खींच कर निकाला, फिर लड़कियों को एक तरफ ले जाकर बारी बारी बलात्कार किया फिर लड़कियों को चाकू मार दिया और लड़कों को गोली से उड़ा दिया .

हमने हाई कोर्ट में सरकार से पूछा कि उन आपने कितनी गोली चलाई ? पुलिस ने बताया पच्चीस गोलियाँ . हमने पूछा आपकी पच्चीसों की पच्चीसों गोलियाँ नक्सलियों को लग गयीं . एक भी गोली ना किसी पेड़ में धंसी ना हवा में इधर उधर गई . और उसमे उन्नीस नक्सली मर भी गये . और हमने पूछा कि नक्सलियों ने कितनी गोलियाँ चलें थीं ? तो पुलिस ने बताया कि नक्सलियों ने दो घंटे तक अंधाधुंध फायरिंग करी थी . हमने पूछा कि आपमें से किसी को गोली लगी क्या ? पुलिस ने बताया कि नहीं नक्सलियों की कोई गोली किसी भी पुलिस वाले को नहीं लगी .

हमने पूछा कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद से आज तक नक्सलियों से मिले हुए सारे हथियार दिखाइए . जो हथियार पुलिस ने दिखाए वह जंग लगे हुए सड़े हुए मात्र सात सड़ी हुई बंदूकें दिखाई . ये सैंकडों साल पुराने हथियार थे जिनसे गोली चलाना बिल्कुल सम्भव ही नहीं है . कई बंदूकों की नली पूरी तरह से सड़ चुकी थी और उनमे बड़े बड़े छेद थे .

पुलिस हर बार आदिवासियों को मार कर इन्ही बंदूकों को अदालत में दिखा देती है .

हमने पूछा कि आपने इनके मरने के बाद इनका पोस्ट मार्टम क्यों नहीं करवाया ? तो पुलिस ने कोर्ट में कहा कि लाशें तो नक्सली उठा कर ले गये थे . हमने कोर्ट को बताया कि साहब मरने वाले उसी गाँव के निर्दोष लड़के लड़कियां थे और पुलिस वाले उन्हें मार कर चले गये थे . उसके बाद गाँव वालों ने गाँव में ही सबको दफनाया है .

कोर्ट ने सारी लाशें खोदने का हुक्म दिया . तेईस दिन के बाद पोस्ट मार्टम हुआ . मामला अभी भी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में लटका हुआ है .

इस घटना को कोर्ट में ले जाने के छह महीने बाद सरकार ने हमारे आश्रम को बुलडोजर चला कर तोड़ दिया . बाद में इस घटना के उत्तरदायी पुलिस अधीक्षक ने आत्म हत्या कर ली .

लेकिन आदिवासियों को न्याय नहीं मिला .
 

राजस्थान को गुजरात बनाने से रोक पाना मुश्किल होगा।


राजस्थान को गुजरात बनाने से रोक पाना मुश्किल होगा।

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

राजस्थान शुरू से ही शान्ति, सौहार्द, सांस्कृतिक मिठास और मेहमान नवाजी के लिये जाना जाता रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों से राजस्थान में ऐसे तत्वों का दबदबा बढा है, जो यहॉं की शान्ति और सौहार्द को तहस-नहस करने पर तुले हुए हैं। इनका एकमात्र लक्ष्य है किसी भी प्रकार से सत्ता पर काबिज होना। ये जब-जब सत्ता में होते हैं या सत्ता के करीब होते हैं, लोगों को लड़ाने के लिये षड़यंत्रों की संरचना करते हैं और प्रायोजित तरीके से ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं, जिससे लोगों में जातिगत या साम्प्रदायिक घृणा इस सीमा तक बढ जाये कि उनके बीच के संघर्ष को रोका नहीं जा सके और प्रशासन के लिये कानून और व्यवस्था बनाये रखना असम्भव हो जाये।

पिछले दो दिनों में राजस्थान का राजनैतिक माहौल तो गर्मा ही रहा है, लेकिन साथ ही साथ राज्य के साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है। नागौर जिले के मकराना कस्बे में 3 अप्रेल की घटना और राजधानी जयपुर के सांगानेर में 4 अप्रेल की घटनाएँ (साम्प्रदायिक) इसी बात का संकेत हैं। यदि सरकार और प्रशासन ने हालातों को तत्काल समझकर, नियंत्रित नहीं किया तो आने वाले बीस-पच्चीस दिनों की राजनैतिक सरगर्मियों के बीच राज्य के साम्प्रदायिक माहौल को बिगड़ने से रोक पाना असम्भव हो जायेगा।

राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सबसे बड़ी समस्या ये है कि उन्हें जनता के दु:खदर्द और जनता की दैनिक समस्याओं की असली कारक-भ्रष्ट नौकीशाही के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से डर लगता है। जबकि जनता नौकरशाही और विशेषकर ब्यूरोक्रेसी की मनमानियों से बुरी तरह से त्रस्त है। केवल जनता ही नहीं, बल्कि सत्ताधारी पार्टी के विधायक, जनप्रतिनिधि और पार्टी कार्यकर्ता भी अफसरशाही की मनमानियों  से अत्यधिक व्यथित हैं, लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत को अफसरों के खिलाफ कुछ भी सुनना पसन्द नहीं है।

ऐसे हालात में सरकार के विरुद्ध जनता के दिल में स्वाभाविक रूप से गुस्सा उबल रहा है, जिसका फायदा उठाने के लिये सत्ताधारी पार्टी के राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। आजकल राजनीति इसी स्तर पर काम करने लगी है। दूसरी सबसे बड़ी बात ये भी है कि विरोधियों के पास कोई बड़ा और सार्थक राजनैतिक मुद्दा भी नहीं है। क्योंकि गहलोत के वर्तमान कार्यकाल के दौरान डॉ किरोड़ी लाल मीणा की राजनीतक महत्वाकांक्षाओं के चलते गुर्जरों और मीणाओं का टकराव, आपसी सौहार्द में बदल गया है। राज्य में हिन्दू-मुसलमानों के बीच भी कोई बड़ी झड़प नहीं हुई। हॉं सवर्णों द्वारा दलितों का लगातार अपमान करते रहने और दलितों तथा आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाएँ अवश्य राज्य में बदस्तूर जारी हैं, जिनको लेकर यहॉं का सवर्ण मीडिया चुप रहता है। जिसके चलते दोनों बड़ी पार्टियों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है, क्योंकि ले-देकर दलितों तथा आदिवासियों को अन्तत: इन्हीं दोनों पार्टियों की शरण में आना मजबूरी रहा है।

ऐसे हालातों में राज्य में पिछले दो दिनों की घटनाएँ इस बात का साफ संकेत देती हैं कि कुछ तत्व इस प्रकार के प्रयास कर सकते हैं कि राज्य को धर्म के नाम पर गुजरात की तरह से आग में झोंक दिया जाये। जिससे सरकार के प्रति जनता में और अधिक रोष व्याप्त हो जाये और हालात सरकार के नियंत्रण से बाहर हो जायें। जिसका लाभ आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान उठाया जा सके। 

अफसरशाही के प्रति मुख्यमंत्री गहलोत का अटूट प्रेम और अफसरों की लगातार मनमानी दो ऐसे कारण हैं, जो हर आम-ओ-खास को सरकार एवं सत्ताधारी पार्टी के विरुद्ध आवाज उठाने का पर्याप्त कारण प्रदान करते हैं।

मुख्यमंत्री गहलोत के दरबार में जनसुनवाई के लिये जो लोग दूरदराज से जैसे-तैसे जयपुर तक का कठिन  सफर करके पहुँचते हैं, उनके मामलों में मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी की ओर से सम्बंधित अफसर को पत्र लिखकर मामले को समाप्त मान लिया जाता है। जिसका दुष्परिणाम ये हो रहा है कि मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी की ओर से लिखे जाने वाले पत्रों पर कार्रवाई होना तो दूर 90 फीसदी पत्रों का तो निर्धारित समय में मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी को जवाब तक नहीं मिलता है। मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी की ओर से ऐसे मामलों में निगरानी की कोई ऐसी कारगर व्यवस्था नहीं है, जिससे उनको ये ज्ञात हो सके कि जो लोग जनसुनवाई में मुख्यमंत्री के समक्ष उपस्थित हुए, अन्तत: उनको न्याय मिला या नहीं!

अपने विभागीय सचिव, मंत्रियों की नहीं सुनते हैं। आईएएस सीधे मुख्यमंत्री के मुंह लगे हुए हैं। मंत्री पांच वर्ष तक पद और आधी-अधूरी पावर का आनन्द उठा रहे हैं। मीडिया बिका हुआ है। इसके उपरान्त भी सरकार चल रही है और आश्‍चर्यजनक रूप से फिर से सत्ता में आने के सपने भी देख रही है। यदि इन हालातों में भी सरकार फिर से सत्ता में आती है, क्योंकि अनेक विश्‍लेषक ऐसा मानते भी हैं, तो इसके लिये सरकार की उपलब्धियॉं नहीं, बल्कि मुख्य प्रतिपक्ष जिम्मेदार होगा। जो वर्तमान सरकार की तुलना में पूरी तरह से अपनी साख खो चुका है। इस बात का प्रतिपक्ष को भी बखूबी अहसास है। इसी लिए राज्य के शांत माहौल को गर्माने के लिए हर हथकंडे को अपनाने में कोई भी पीछे नहीं है!

दूसरी इसी कमजोरी का राजनैतिक लाभ उठाने के लिये आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान राज्य में तीसरी ताकत के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये मुलायम सिंह, मायावती और डॉ. किरोड़ी लाल मीणा बेताब हैं। यह अलग बात है कि ये तीनों ही कोई बड़ी सफलता अर्जित कर पायेंगे, इसमें जनता को अभी तक सन्देश है।

ऐसे हालातों में सत्तालोलुप दुराचारियों की ओर से वर्तमान सरकार को सत्ता से येनकेन बेदखल करने और इसके लिए सौहार्दप्रिय राजस्थानियों के बीच साम्प्रदायिक वैमनस्यता बढाने के सुनियोजिक प्रयास शुरू हो चुके हैं। अन्यथा फेसबुक पर की गयी टिप्पणी के मामले में पुलिस द्वारा कानूनी कार्रवाई हेतु मामला दर्ज कर लिए जाने के बाद भी, नागौर के मकराना कसबे में दोषी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की मांग को लेकर समुदाय विशेष के लोगों का सड़क पर हुडदंग मचाने का क्या कारण हो सकता है? इसी प्रकार से जयपुर के सांगानेर क्षेत्र में बाइक खड़ी करने के मामूली से विवाद को लेकर दो समुदायों का आमने-सामने आ जाना और मामले को इतना तूल दे देना कि जयपुर के पुलिस आयुक्त सहित दो दर्जन पुलिस वालों घायल हो जाना, किस बात का संकेत है?

यदि राजस्थान सरकार और सरकार के मुखिया अशोक गहलोत की आँख-नाक-कान के रूप में काम करने वाली अफसरशाही अभी भी पिछले चार साल की तरह ही सोती रही और मनमानी करती रही तो 2013 में राजस्थान को गुजरात बनाने रोक पाना मुश्किल होगा।
Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'.jpg Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'.jpg
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सरना धर्म कोड एवं पांचवीं अनुसूची अनुपालन के लिए संताल परगना सरना धार्मिक एवं सामाजिक समन्वय समिति की महारैली


 सरना धर्म कोड एवं पांचवीं अनुसूची अनुपालन के लिए 

संताल परगना सरना धार्मिक एवं सामाजिक समन्वय 

समिति की महारैली 

आदिवासी का खौलता हुआ ज्वालामुखी जैसा गुस्सा अब 

लोकतांत्रिक आंदोलन , भारत गणराज्य में भारतीय  

संविधान लागू करने के लिए, 39 बी, 39सी धाराओं, 

मौलिक अधिकारों, पांचवीं और छठीं ्नुसूचियों को 

लागू करने की मांग लेकर जनांदोलन के महाविस्फोट में

अभिव्यक्त होना है।भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में

आदिवासियों और अस्पृश्य भूगोल को मुख्यधारा में 

शामिल करने के लिए क्या आप और हम खामोश 

रहेंगे?

पलाश विश्वास

 पूरे देश में आदिवासी की संख्या भारत के कुल आबादी की आठ प्रतिशत है। इसके बावजूद सरना धर्मावलंबियों का अपना धर्म कोड नहीं है। रैली के माध्यम से पांचवीं अनुसूची की रक्षा, सीएनटी व एसपीटी एक्ट की रक्षा, खनिज संपदा पर अधिकार, पुनर्वास नीति को लागू करने, भू-हस्तांतरण पर पाबंदी सहित कई आदिवासी-मूलवासी मुद्दे पर चर्चा की गयी। 

निज संवाददाता, दुमका : सरना धर्म कोड एवं पांचवीं अनुसूची अनुपालन के लिए संताल परगना सरना धार्मिक एवं सामाजिक समन्वय समिति की महारैली सोमवार को बिरसा मुंडा आउटडोर स्टेडियम में हुई। अध्यक्षता संयुक्त संयोजक सह केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति सदस्य दिलीप कुमार मुर्मू ने की।
इसमें बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे सरना प्रार्थना सभा के मुख्य संयोजक सह सरना धर्मगुरु बंधन तिग्गा के नेतृत्व में आये अतिथियों ने सर्वप्रथम स्व. शिवधन मरांडी की तस्वीर पर माल्यार्पण कर दो मिनट का मौन रखा। इसके बाद श्री तिग्गा ने कहा कि समिति अपने अधिकार के लिए एकजुट होकर आगे बढ़े तभी शिवधन मरांडी को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है। महारैली के माध्यम से समुदाय के लोगों ने सरना धर्म कोड नहीं तो वोट नहीं का संकल्प लिया है। मांझी परगना सरदार महासभा जामताड़ा के सचिव बाबूलाल सोरेन ने कहा कि जब तक धर्म कोड नहीं मिलता तब तक हम बिखरे ही रहेंगे। उन्होंने एकजुट होकर आंदोलन को जारी रखने की बात कही। सरना धर्म प्रचारक एवं सामाजिक कार्यकर्ता वीरेन्द्र भगत ने कहा कि कम संख्या वाले दूसरे धर्म को कोड मिल चुका है लेकिन आज भी सरना धर्म कोड के लिए तरस रहे हैं। ट्राइबल्स ड्रीम के संजय पाहन ने कहा कि सरना धर्म कोड पाना हमारा मौलिक अधिकार है। पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों का लाभ मिलना हमारा संवैधानिक अधिकार है। सरकार इसे देने में अगर आनाकानी करती है तो संसद का घेराव होगा। मांझी हड़ताल इंग्लिश लाल मरांडी ने कहा कि आदिवासी समाज की अपनी पारंपरिक, सामाजिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था है। इसे मजबूत नहीं किया गया तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। प्रो. प्रवीण उरांव ने कहा कि सरना धर्म की उपेक्षा किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं होगी। राजकुमार पाहन ने कहा कि अधिकारों से वंचित कर हमें कमजोर करने की साजिश हो रही है। प्रो. शर्मिला सोरेन ने कहा अविलंब आदिवासियों पर अत्याचार बंद होना चाहिए। अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष कुमार चंद्र मार्डी ने कहा कि पांचवीं अनुसूची लागू नहीं कर संविधान के नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है। उन्होंने अविलंब इसे लागू करने की मांग की। आदिवासी महासभा के उपाध्यक्ष मुकेश बिरूआ ने कहा कि पूरे देश में आदिवासियों की संख्या 10 करोड़ के करीब है। हमारी मांग जायज है और सरकार को इसे किसी भी सूरत में पूरा करना होगा। महारैली को एमेली बेसरा, विश्वनाथ तिर्की, मधुसूदन मारला, फागु बेसरा, सुलेमान हांसदा, हराधन मुर्मू, त्रिलोचन टुडू, मोहरिल हांसदा, सुनील मरांडी, लखीराम हेम्ब्रम, अनिल कोल, सर्वेश्वर किस्कू, लोधरा हांसदा, लस्कर टुडू, मोहरिल हासदा, एनोस सोरेन, प्रो. इंदल पासवान, इंद्र हेम्बम, चंदन मुर्मू, निर्मल टुडू, छुत्तर किस्कू, सतीश सोरेन, चुंडा सोरेन सिपाही, नुनूलाल चौड़े, जीते मरांडी, लुबीन हेम्ब्रम, भैया हांसदा, सिकंदर हेम्ब्रम, अनिल मुर्मू, श्रीनाथ पहाड़िया, मुनी मरांडी, हरिलाल हांसदा ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन सुनील हेम्ब्रम एवं धर्मगुरु लश्कर सोरेन ने किया।

सरना धर्म कोड नहीं, तो वोट नहीं

दुमका : अखिल भारतीय सरना धार्मिक और सामाजिक समन्वय समिति द्वारा दुमका के बिरसा मुंडा आउटडोर स्टेडियम में सरना धर्मकोड एवं पांचवीं अनुसूची अनुपालन महारैली आयोजित की गयी. सोमवार को आयोजित इस महारैली में झारखंड सहित विभिन्न प्रांतों से सरना धर्मावंलबी जुटे.
महारैली में अलग सरना धर्मकोड की मांग को लेकर आदिवासियों ने अपनी एकजुटता प्रदर्शित की. मुख्य रूप से सरना धर्मगुरु बंधन तिग्गा ने संबोधित किया और कहा कि आदिवासी समुदाय को एकजुटता दिखानी होगी, तभी अधिकार को हासिल किया जा सकेगा. कहा : अब उपेक्षा किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जायेगी. इस दौरान 'सरना धर्मकोड नहीं, तो वोट नहीं' के नारे भी लगाये गये. महारैली की अध्यक्षता दिलीप कुमार मुमरू ने की.
महारैली को मुख्य रुप से सरना धर्मगुरु बंधन तिग्गा लश्कर सोरेन, बाबूलाल सोरेन, वीरेंद्र भगत, संजय पाहन, राजकुमार पाहन, प्रो प्रवीण उरांव, प्रो शर्मिला सोरेनकुमार चंद्र मार्डी, मुकेश विरुआ आदि ने संबोधित किया.


Femen Stages a 'Topless Jihad'

http://www.theatlantic.com/infocus/2013/04/femen-stages-a-topless-jihad/100487/

Femen Stages a 'Topless Jihad'

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Earlier today, members of Ukrainian feminist group Femen staged protests across Europe as they called for a "topless jihad." The demonstrations were in support of a young Tunisian activist named Amina Tyler. Last month, Tyler posted naked images of herself online, with the words "I own my body; it's not the source of anyone's honor" written on her bare chest. The head of Tunisia's "Commission for the Promotion of Virtue and Prevention of Vice," reportedly called for Tyler to be stoned to death for her putatively obscene actions, lest they lead to an epidemic. Tyler has since gone quiet, leading some to fear for her safety. Below are images from Femen's protests today in Sweden, Italy, Ukraine, Belgium, and France. A warning, nearly every photo depicts nudity, and most contain offensive language. [31 photos]
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Activists of the women's rights movement Femen face riot policemen during a topless protest near Tunisia's Embassy in Paris, on April 4, 2013. Femen called for a day of international "topless jihad" on April 4 with Femen groups staging protests in various European cities in support of Amina, a young Tunisian woman who caused a scandal when she published photos of herself bare-chested on the internet in March. (Miguel Medina/AFP/Getty Images)
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Activists of the women's movement Femen remove their jackets as they arrive to demonstrate topless in front of the Great Mosque of Brussels, Belgium, on April 4, 2013. (Georges Gobet/AFP/Getty Images) #
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Activists from women's rights group Femen shout slogans during a protest supporting the rights of Arab women, including the Tunisian activist Amina, at the entrance of the Brussels Mosque, on April 4, 2013. (Reuters/Francois Lenoir) #
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Activists from Femen take part in a protest in front of the Consulate General of the Tunisian Republic in Milan, Italy, on April 4, 2013. (Reuters/Alessandro Garofalo) #
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Femen activists protest in front of the Tunisian Consulate in Milan, on April 4, 2013. (AP Photo/Antonio Calanni) #
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Activists of Femen take part in a topless protest outside the Tunisian consulate in Milan, on April 4, 2013. (Olivier Morin/AFP/Getty Images) #
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A Femen activist shouts during a topless protest outside the Tunisian consulate in Milan, on April 4, 2013. (Olivier Morin/AFP/Getty Images) #
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Policemen arrest a Femen activist during a topless protest at a mosque in Kiev, Ukraine, on April 4, 2013. (AFP/Getty Images) #
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Photographers take pictures of detained activists from women's rights group Femen, who are held in a police van after taking part in a protest in front of a mosque, in Kiev, Ukraine, on April 4, 2013. (Reuters/Gleb Garanich) #
Activists of the Communist Youth Organization alongside women's right movement Femen hold up placards as they take part in a protest outside the Tunisian embassy in Stockholm, Sweden, on April 4, 2013. (Jonathan Nackstrand/AFP/Getty Images) #
An activist of the Communist Youth Organization alongside women's right movement Femen gestures as she protests topless outside the Tunisian embassy in Stockholm, on April 4, 2013. (Jonathan Nackstrand/AFP/Getty Images) #
Topless Femen activists protest against Islamists in front of the Great Mosque of Paris, on April 3, 2013. (Fred Dufour/AFP/Getty Images) #
Femen activists try to burn a Salafist flag to protest against Islamists in front of the Great Mosque of Paris, on April 3, 2013. (Fred Dufour/AFP/Getty Images) #
A Femen activist burns a Salafist flag in front of the Great Mosque of Paris, on April 3, 2013. (Fred Dufour/AFP/Getty Images) #
A man kicks a topless Femen activist, as she raises her fist to protest against Islamists in front of the Great Mosque of Paris, on April 3, 2013. (Fred Dufour/AFP/Getty Images) #
Ukrainian activist Inna Shevchenko (right) of the women's rights movement Femen takes part in a topless protest with other Femen activists near Tunisia's Embassy in Paris, on April 4, 2013. (Miguel Medina/AFP/Getty Images) #
Femen activists demonstrate near Tunisia's Embassy in Paris, on April 4, 2013. (Miguel Medina/AFP/Getty Images) #
Femen activists protest near Tunisia's Embassy in Paris, on April 4, 2013. (Miguel Medina/AFP/Getty Images) #
Ukrainian activist Inna Shevchenko and other members of Femen struggle with police officers during a protest in Paris, on April 4, 2013. (Reuters/Jacky Naegelen) #
A Femen activist is removed by the police during a topless protest near Tunisia's Embassy in Paris, on April 4, 2013. (Miguel Medina/AFP/Getty Images) #
Police officers detain a Femen activist in Paris, on April 4, 2013. (Reuters/Jacky Naegelen) #
Femen activists struggle with police officers in Paris, on April 4, 2013. (Reuters/Jacky Naegelen) #
Police officers detain a Femen activist in Paris, on April 4, 2013. (Reuters/Jacky Naegelen) #
Femen activists demonstrate near Tunisia's Embassy in Paris, on April 4, 2013. (Miguel Medina/AFP/Getty Images) #
A Femen activist is removed by riot policemen during a protest near Tunisia's Embassy in Paris, on April 4, 2013. (Miguel Medina/AFP/Getty Images) #
Activists of the women's movement Femen demonstrate in front of the Ahmadiyya-Moschee (Berlin's oldest Mosque) in Berlin, on April 4, 2013. (Johannes Eisele/AFP/Getty Images) #
Femen activists speak to media in front of a mosque during a protest in Berlin, on April 4, 2013. The radical feminists, calling for more sexual freedom for Arab women, were protesting in support of a young Tunisian woman who received online death threats from ultraconservative Muslims after posting topless photos of herself online. (AP Photo/Markus Schreiber) #
Femen activists demonstrate in front of the Ahmadiyya-Moschee in Berlin, on April 4, 2013. (Johannes Eisele/AFP/Getty Images) #
A Femen activist demonstrates in front of the Ahmadiyya-Moschee in Berlin, on April 4, 2013. (Johannes Eisele/AFP/Getty Images) #
Femen activists hold up protest signs in front of the Ahmadiyya-Moschee in Berlin, on April 4, 2013. (Johannes Eisele/AFP/Getty Images) #