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Monday, 22 April 2013

बांग्लादेशी हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं हिन्दुत्व के ठेकेदारों को…


बांग्लादेशी हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं हिन्दुत्व के ठेकेदारों को…


विकास का हिन्दुत्व मॉडल पर क्या कॉरपोरेट वर्चस्व नहीं है..
भारत का राजनय, मुक्त बाजार,हिन्दुत्व और धर्मनिरपेक्षता!…
 जब हमें बांग्लादेश या नेपाल या भूटान के हितों का ख्याल नहीं रखना है तो हम क्यों अपेक्षा करते हैं कि चीन हमारे हितों का ख्याल रखेगा!…
 पलाश विश्वास
अब विश्वबैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के दिशा निर्देशों से मुक्त बाजार भारत की राजनय तय होता है। भारत चीन सीमा विवाद और जल संसाधन के बंटवारे पर पड़ोसी देशों से द्विपक्षीय वार्ता तो होती नहीं है पर व्हाइट हाउस और पेंटागन से विदेश नीति तय होती है। ईरान में भूकम्प के बाद चीन में मची भूकम्पीय तबाही से ब्रह्मपुत्र के उत्स पर परमाणु धमाके से पहाड़ तोड़कर बाँध बनाने के उपक्रम पर भारत ऐतराज करने की हालत में भी नहीं है क्योंकि भारत चीन जल समझौता जैसी कोई चीज नहीं है। हिमालयी क्षेत्र में उत्तराखंड, हिमाचल, बंगाल का पहाड़ी क्षेत्र, सिक्किम भूगर्भीय दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील है। कुमायूँ गढ़वाल में भूकम्प के  इतिहास की निरन्तरता बनी हुयी है। भूस्खलन तो रोजमर्रे का जीवन है। पर भारत सरकार को न तो हिमालय की चिंता है और न जल संसाधनों की सुरक्षा की और न ही वहाँ रहने वाली आम जनता के जानमाल की। हिमालय के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और हिमालयी जनता का अमानवीय दमन ही राजकाज है।
जब अपने देश में पर्यावरण कानून, समुद्री तट सुरक्षा कानून , वनाधिकार कानून, सम्विधान की पाँचवी और छठीं अनुसूचियों, धारा 39 बी, 39 सी, स्थानीय निकायों की स्वायत्तता, मौलिक अधिकारों, नागरिक और मानव अधिकारों की धज्जियाँ उड़ाकर विकास के नाम पर मूलनिवासी बहुजनों को कॉरपोरेट हित में निजी कम्पनियों के लाभ के लिये नित नये कानून पास करके संशोधन करके जल जंगल जमीन से बेदखल किया जा रहा हो, सेज और परमाणु संयंत्र की बहार हो, बड़े बाँध और ऊर्जा प्रदेश बन रहे हैं, जनान्दोलनों का सैनिक राष्ट्र निरँकुश दमन कर रहा हो, तो भारतीय विदेश नीति को बांग्लादेश में जनप्रतिरोध की क्या परवाह होगी? जब हमें बांग्लादेश
palashji, Palash Vishwas, पलाश विश्वास
पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं। आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना।
या नेपाल या भूटान के हितों का ख्याल नहीं रखना है तो हम क्यों अपेक्षा करते हैं कि चीन हमारे हितों का ख्याल रखेगा!
भारत में हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्रवाद का उन्माद बड़े ही वैज्ञानिक और बाजार प्रबन्धन के बतौर राजनीतिक विकल्प और विकास के वैकल्पिक चमत्कारिक मॉडल के रूप में नये सिरे से पेश किया जा रहा है। भारत की अल्पमत सरकार बाबरी विध्वंससिख नरसंहारगुजरात नरसंहार और भोपाल गैस त्रासदी के युद्ध अपराधियों को सजा दिलाने के बजाय केन्द्र में साझे तौर पर दुधारी दो दलीय सत्ता में न सिर्फ उनके साझीदार है, बल्कि हिन्दू राष्ट्र के ध्वजावाहकों के साथ मिलीभगत के तहत विदेशी निवेश,विनिवेश, अबाध पूँजी प्रवाह, विकासदर, वित्तीय घाटा, निवेशकों की आस्था, बुनियादी ढाँचा के नारों के साथ नागरिकता संशोधन कानून पास करके आधार कार्ड परियोजना के तहत देश की आधी आबादी के नागरिक मानवाधिकार संवैधानिक रक्षाकवच को निलम्बित करके जनसंहार अभियान चला रही है। खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश का पुरजोर विरोध करने वाले संघ परिवार को विमानन क्षेत्र से लेकर रक्षा क्षेत्र तक में विदेशी पूँजी के अबाध वर्चस्व से कोई आपत्ति नहीं है। रेलवे और राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं को बलात्कार विरोधी स्त्री उत्पीड़नविरोधी कानून के प्रावधानों में जैसे पुलिस और सेना को, सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून , आतंकवाद निरोधक आईन को छूट दी गयी, उसी तरह की छूट देकर जनहित में पुनर्वास और मुआवजा के दिलफरेब वायदों के साथ बिना भूमि सुधार लागू किये भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून पास कराने की तैयारी है तो पेंशन और भविष्यनिधि तक को बाजार के हवाले करने के लिये,पूरे बैंकिंग सेक्टर को कॉरपोरेट के हवाले करके जीवन बीम निगम के साथ साथ भारतीय स्टेट बैंक के विध्वंस के जरिये आम जनता की जमा पूँजी पर डाका डालने की तैयारी है। कालेधन की यह अर्थव्यवस्था चिटफण्ड में तब्दील है और कोयले की कोठरी में सत्तावर्ग के सभी चेहरे काले हैं।
ऐेसे में नेपाल हो या बांग्लादेशकहीं भी धर्मनिरपेक्षता व लोकतन्त्र की लड़ाई हिन्दुत्व के लिये बेहद खतरनाक है।
मसलन नेपाल में राजतन्त्र के अवसान के बाद भारत की हिन्दुत्ववादी राजनय के एकमात्र एजेण्डा वहाँ राजतन्त्र की बहाली है। इस वक्त नेपाल में बड़े जोर शोर से प्रचार अभियान चल रहा है कि भारत में नरेन्द्र मोदी के अमेरिकी समर्थन से प्रधानमन्त्री बन जाने से भारत हिन्दू राष्ट्र बन जायेगा और इसीके साथ नेपाल में एकबार फिर राजतन्त्र की स्थापना हो जायेगी। फिर शांति और संपन्नता का युग वापस आ जायेगा। जाहिर है कि भारत का हिन्दुत्ववादी सत्तावर्ग उसी तरह लोकतन्त्र के विरुद्ध है जैसे कि जायनवादी कॉरपोरेट साम्राज्यवाद। भारतीय सत्तावर्ग कम से कम अपने अड़ोस पड़ोस मे लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता बर्दाश्त कर ही नहीं सकता और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिये हर कार्रवाई करता है। वरना क्या कारण है कि पाकिस्तान से अभी-अभी आनेवाले हिन्दुओं को नागरिकता दिलाने की मुहिम तो जोरों पर होती हैवहीं विभाजन पीड़ित हिन्दू शरणार्थियों की नागरिकता छीने जाने परउनके विरुद्ध देशव्यापी देशनिकाले अभियान के खिलाफ कोई हिन्दू आवाज नहीं उठाता। बांग्लादेश, पाकिस्तान और बाकी दुनिया में बाबरी विध्वंस के बाद क्या हुआ, सबको मालूम है, लेकिन इस वक्त बांग्लादेश में लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता के जीवन मरण संग्राम के वक्त उनका समर्थन करने के बजाय संघ परिवार की ओर से सुनियोजित तरीके से रामजन्मभूमि आन्दोलन ने सिरे से जारी किया जाता है। यहीं नहीं,संघ परिवार की ओर से पेश प्रधानमन्त्रित्व के दो मुख्य दावेदारों में से एक बाबरी विध्वंस तो दूसरा गुजरात नरसंहार मामले में मुख्य अभियुक्त है। इस पर मजा यह कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का झंडा उठाये लोगों को गुजरात नरसंहार का अभियुक्त तो साम्प्रदायिक लगता हैलेकिन बाबरी विध्वंस का अभियुक्त नहीं। वैसे ही जैसे सिखों को हिन्दू मानने वाले संघ परिवार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में न सिर्फ काँग्रेस का साथ दिया,बल्कि सिखों के जनसंहार के वक्त भी काँग्रेस का साथ देते हुये वह हिन्दू हितों का राग अलापता रहा और बाद में अकाली दल के साथ पंजाब में सत्ता का साझेदार हो गया।दंगापीड़ित सिखों को न्याय दिलाने का कोई आन्दोलन न संघ परिवार ने छेड़ा और न अकाली सत्ता की राजनीति की इसमें कोई दिलचस्पी रही।
पिछले दिनों राजधानी नयी दिल्ली में बांग्लादेश के  धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक शाहबाग आन्दोलन के समर्थन में देश भर के शरणार्थियों ने निखिल भारत शरणार्थी समन्वय समिति के आह्वान पर धरना दिया और प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम में हिन्दुत्व का कोई सिपाहसालार नजर नहीं आया और न अराजनीति और राजनीति का कोई मसीहा। जबकि बांग्लादेश में अब भी एक करोड़ हिन्दू हैं। रोज हिन्दुओं पर हमले हो रहे हैं, पर अयोध्या के रथी महारथियो को रोज बांग्लादेश में ध्वस्त किये जा रहे असंख्य हिन्दू धर्मस्थलों, रोज हमले के शिकार होते हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं है। बुनियादी सवाल तो यह है कि क्या उन्हें भारतीय हिन्दुओं की कोई परवाह है? हिन्दुत्व के नाम पर जो बहुसंख्य मूलनिवासी बहुजन संघपरिवार की पैदल सेना हैंसमता और सामाजिक न्यायसमान अवसरों और आर्थिक सम्पन्नता के उनके अधिकारों की चिंता हैउसके प्रति समर्थन हैदेवभूमि और पवित्र तीर्थ स्थलों,चारो धामोंपवित्र नदियों पर कॉरपोरेट कब्जा के खिलाफ वे कब बोले? वास्तव में वे रामरथी नहीं, बल्कि जनसंहार और बेदखली के शिकार इस अनन्त वधस्थल पर जारी अश्वमेध अभियान के ही वे रथी महाऱथी हैं। बहुसंख्य आम जनता के हक हकूक के खिलाफ आर्थिक सुधारों का हिन्दुत्व राष्ट्रवादियों ने कब विरोध कियाबताइये! विकास का हिन्दुत्व मॉडल पर क्या कॉरपोरेट वर्चस्व नहीं है और क्या इस मॉडल की कॉरपोरेट मार्केटिंग नहीं हो रही है,जिसे विश्व व्यवस्था और कॉरपोरेट साम्राज्यवाद का बिना शर्त समर्थन हासिल है?
इस कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में पूर्वी बंगाल के स्वतन्त्रता सेनानियों की मार्मिक याद दिलाते हुये शरणार्थी नेता सुबोध विश्वास ने सवाल खड़े किये कि पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों पर बहस हो सकती है तो क्यों नहीं पूर्वी बंगाल के विभाजन पीड़ित शरणार्थियों को लेकर कोई सुगबुगाहट है। इस आयोजन का कॉरपोरेट मीडिया में क्या कवरेज हुआ, हमें नहीं मालूम। सभी कोलकातिया अखबारों के दफ्तर नई दिल्ली में मौजूद हैं और इस कार्यक्रम में करीब-करीब सभी राज्यों से प्रतिनिथधि मौजूद थेजो बोले भी,पर कोलकाता में किसी को कानोंकान खबर नहीं है। हम अपनी ओर से अंग्रेजी और हिन्दी को छोड़ बांग्ला में भारत में शरणार्थियों का हालत और बांग्लादेश के ताजा से ताजा अपडेट दे रहे हैं, पर यहाँ के नागरिक समाज में कोई प्रतिक्रिया , कोई सूचना नहीं है। आम जनता तो सूचना ब्लैक आउट के शिकार हैं ही। बहरहाल शाहबाग आन्दोलन के प्रति समर्थन जताया जा रहा है, वहाँ अल्पसंख्यक उत्पीड़न रोकने के लिये आवाज उठाये बिना। उधर जमायते है तो इधर भी जमायत है और इसी के साथ वोट बैंक हैं। राजनीति के कारोबारी जाहिर है कि मुँह नहीं खोलने वाले। लेकिन अराजनीति वाले कहाँ हैं? उनकी हालत तो एक मशहूर पत्रकार नारीवादी धर्मनिरपेक्ष आइकन की जैसी हो गयी है जो गुजरात के नरसंहार के विरुद्ध निरन्तर लड़ने वाले लोगों के विरुद्ध नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश का आरोप लगा रही हैं या फिर बहुजन आन्दोलन के उन मसीहाओं की तरह जो मोदी के प्रधानमन्त्रित्व के लिये यज्ञ महायज्ञ में सामाजिक बदलाव और आजादी के आन्दोलन को निष्णात करने में लगे हुये हैं। जिस वैकल्पक मीडिया के लिये हमने और हमारे अग्रज साथियों ने पूरा जीवन लगा दियावहाँ भी हिन्दुत्व का वर्चस्व है। `हस्तक्षेप' को छोड़कर सोशल मीडिया में हर कहीं इस मामले में चुप्पी है।
बांग्लादेश में ब्राह्मणवाद विरोधी दो सौ साल पुराना मतुआ आन्दोलन का दो सौ साल से निरन्तर चला आ रहा बारुणि उत्सव बंद हो गया है और मौजूदा हालात में न वहाँ इस साल कोई तीज त्योहार और न ही दुर्गापूजा मनाने की हालत में हैं एक करोड़ हिन्दू। इस तरह हमले जारी रहे तो वे तसलीमा के लज्जा उपन्यास के नायक की तरह एक न एकदिन भारत आने को मजबूर हो जायेंगे। जिस शरणार्थी समस्या के कारण भारतीय सेना को बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में दखल देना पड़ा, वह फिर मुँह बाएं खड़ी है। क्या भारतीय राजनय के लिये यह चिंता की बात नहीं है और हिन्दुत्व के ध्वजावाहकों के लिये लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता के स्वयंभू रथि महारथियों के लिये!

कुछ पुराने महत्वपूर्ण आलेख



Video Of Tamerlan Tsarnaev NAKED, Handcuffed,Walking Alive! So How Did His Body End Up Like This?



Tamerlan Tsarnaev NAKED walking alive.
This UNCONFIRMED video which we are told appeared on Brazilian TV earlier today appears to have been shot at the scene of the Boston Police Dept's arrest of suspect bomber Tamerlan Tsarnaev – the video clearly shows the 26 year old being escorted to BPD vehicle whilst handcuffed and not wounded, which in total contradiction to official reports which claim the suspect was shot by police and then run-over by his younger brother in a stolen SUV in Sommerville, MA. Please bookmark and share this video, and do continue to ask questions about what happened on the evening April 18th and the morning of April 19th, 2013, so the public can better determine the truth of all that really happened. 
Eye witness account of the suspect being ordered to take off all his clothes.
Why did they release this Picture? Would they be trying to create more hatred? How does this benefit anyone?
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My apologies for the very graphic photo, but I was watching CNN when a correspondent was saying he had witnessed the suspe ct (no 1) being captured and made to get naked. To my fellow journalists, esp those on mainstream networks in the U.S., why isn't the question being asked, if the alleged suspect was captured healthy and alive, then how did he end up like this, and why???? by Abbas Mirza
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दीदी का गुस्सा और एक बागी पुलिस अफसर की चेतावनी!




दीदी का गुस्सा और एक बागी पुलिस अफसर की चेतावनी!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


राज्यभर में शारदा या श्रद्धा ग्रुप के फर्जीवाड़े के खिलाफ क्रमशः तेज हो रहे जनाक्रोश पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीखी ​​प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे नाटकबाजी ही नहीं बताया बल्कि आत्महत्या और गुमशुदगी का विकल्प चुनने को मजबूर लोगों को उन्होंने नसीहत दी है कि ऐसी कंपनी में निवशे करते हुए उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए। मालूम हो कि पहले राज्य सरकार ने शारदा कर्णधार सुदीप्त सेनगुप्त की गिरफ्तारी की संभावना से साफ इंकार करते हुए चिटफंड को केंद्र सरकार की मंजूरी का हलवाला देते हुए गेंद सेबी और रिजर्व बैंक के पाले में डाल दी ​​थी। पर इस मामले में सत्तादल के सांसदों, मंत्रियों, विधायकों और नगरप्रधानों के लिप्त होने के आरोप तेज होते न होते दीदी राजधर्म निभाने​ ​ लगी और इस सिलसिले में सुदीप्त सेन की गिरफ्तारी के लिए लुकआउट नोटिस जारी कर दिया गया है। संकट से निपटने के लिए राष्ट्रपति भवन में  लंबित विधेयक को मंजूरी देने के लिए कल तक अपील करती मुख्यमंत्री अब चिटफंड कंपनियों की संपत्ति जब्त करने के लिए अध्यादेश जारी करने का विकल्प आजमाना चाहती है। पर कानूनी पेचदगियों के चलते यह उपाय कितना कारगर होगा , अभी से कहा नहीं जा सकता।दीदी ने इस सिलसिले में एक जांच आयोग के घठन की मंसा भी जाहिर की है। अब ऐसी परिस्थिति में दीदी का गुस्सा संकट से निपटने में कितना मददगार होता है, यह भी देखना होगा। वैसे राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और विख्यात साहित्यकार नजरुल इस्लाम ने, जो हमेशा सत्ता से पंगा लेने और बहिष्कृत हो जाने के लिए विवादास्पद है, काफी पहले राज्य सरकार को आगाह कर दिया था कि चिटफंड से राज्य में व्यापक पैमाने पर आम लोगों का सर्वनाश होने जा रहा है।जाहिर है कि ऐसा कत्तई नहीं है कि इतना सब कुछ अचानक से एक दिन में हो गया। साल 2007-08 से ही राज्य में कुकुरमुत्ते की तरह उग आईं ये चिटफंड कंपनियां गरीब निवेशकों से हजारों करोड़ रुपये इकट्ठा कर चुकी हैं, लेकिन इन कंपनियों की ओर से दी जाने वाली लुभावने स्कीम पर रोक लगाने की दिशा में कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई।शारदा ग्रुप की धोखाधड़ी से करीब 2.5 लाख एजेंट प्रभावित है। इन एजेंटों पर दोहरी मार पड़ रही है। एक तरफ तो इनमें से कई लोगों का वह पैसा फंस गया है जो इन्होंने शारदा ग्रुप में निवेश किए थे और दूसरी तरफ उन्हें आम निवेशकों का गुस्सा भी झेलना पड़ रहा है।

मन क्यों न फिसले इन ऑफर्स पर
-सागौन से जुड़े बॉन्ड्स में निवेश से25 साल में रकम 34 गुना करने का ऑफर
-आलू के ट्रेड में निवेश के जरिए 15 महीने में रकम दोगुनी करने का ऑफर

छोटे निवेशों में आई भारी कमी
इन चिटफंड कंपनियों की तरफ लोगों के जाने से 2012-13 के पहली छमाही में छोटे निवेशों में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गई। स्मॉल सेविंग्स में यह निवेश 8 हजार करोड़ से घटकर 200 करोड़ पर पहुंच गया।

पश्चिम बंगाल सरकार पर कोलकाता की एक चिट फंड कंपनी शारदा ग्रुप को बचाने का आरोप लगा है। डूबने की कगार पर पहुंची कंपनी अपने डिपॉजिटरों को पैसे नहीं लौटा पा रही है, और डिपॉजिटर पैसे की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए हैं।
वहीं जमाकर्ताओं को रकम नहीं लौटाने के कारण कंपनी के हजारों एजेंट ममता बनर्जी के घर के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कई एजेंटों पर तो 20 करोड़ रुपये तक की देनदारी है। गुस्साए डिपॉजिटरों ने शारदा कंपनी के दफ्तरों में लूट-मार तक मचा दी है।लोग इस धोखेबाजी के लिए ममता बनर्जी सरकार को जिम्मेदार मान रहे हैं, क्योंकि इस दल से जुड़े कई लोगों का शारदा ग्रुप के साथ गहरा संबंध है। नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी शारदा ग्रुप के बंद हो जाने से कंपनी के हजारों मझोले और छोटे निवेशकों की जान अटकी हुई है। इन कंपनियों में निवेश करने वाले लोग सड़कों पर उतर आए हैं और इस चिटफंड कंपनी के दफ्तरों और एजेंट्स को निशाना बना रहे हैं। आरोप है कि अकेले शारदा ग्रुप ने ही पश्चिम बंगाल में लोगों के 20 हजार करोड़ रुपये डकार लिए हैं। इस मामले में बुरी तरह घिरी ममता सरकार ने एक हाईलेवल मीटिंग बुलाई है। बताया जा रहा है कि सरकार चिट फंड पर अध्यादेश भी ला सकती है।

महिला ने की खुदकुशीः इस बीच शारदा ग्रुप की ठगी का शिकार हुई एक महिला ने की आत्महत्या की खबर है। इस महिला ने शारदा ग्रुप में 30 हजार रुपये जमा किए थे। दक्षिण 24 परगना के बारूईपुर में जीवनभर की गाढ़ी कमाई से हाथ धो देने वाली महिला ने शनिवार को खुद को आग लगा ली। रविवार को अस्पताल में उसकी मौत हो गई। इसके अलावा जिले में ही एक एजेंट ने जहर खा लिया। उसकी हालत गंभीर बनी हुई है।



राइटर्स बिल्डिंग में राज्य के वित्तमंत्री अमित मित्र  और उद्योग मंत्री पार्थ चट्टोपाध्याय की मौजूदगी में चिटफंट की तूफानी बैठक राजपथ ​​पर पुलिसिया रोक टोक के बीच हुए एजंटों और ग्राहकों के जबर्दस्त धरना प्रदर्शन के बीच संपन्न हुई। टीवी चैनलों पर दिनभर इस धरना प्रदर्शन की खबर छायी रही तो शाम को टीवी के पर्दे पर गुस्से से भरी दीदी का चेहरा आ गया। दीदी के वक्तव्य का सार जो निकला , उससे साफ जाहिर ​​है कि राज्य सरकार को इस विपदा का पूर्वाभास था। पर आंधी पानी से पहले एहतियाती उपाय काम नहीं आये। वैसे दीदी ने दावा किया कि  सीबीआई ने राज्य सरकार को पहले बता दिया था लेकिन यह जानकारी उसने विधाननगर थाने में मामला दायर होने के बाद बांगाली नववर्ष की पहली तारीख पोयला बैशाख के बाद ही सरकार के साथ शेयर की।

मुख्यमंत्री लेकिन प्रशासनिक व्यर्थता की बात मानने से  साफ इंकार कर दिया और कहा कि जनता को पैसा लगाने से पहले जांच पड़ताल करनी चाहिए थी। अब जो नुकसान हुआ सो हुआ। उसकी भरपायी नहीं की जा सकती।इसपर आशंका यह है कि सरकार को नये कानून और अध्यादेश से कोई नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है।यह जनता के एटम बम को ​
​डीएक्टिव करने की कवायद के सिवाय ककुछ नही है। राज्यभर से जो दीदी, बचाओ बचाओ की गुहार आयी है, उसके जवाब में दीदी का यह प्रत्युत्तर है कि न रकम की वापसी की उम्मीद करें और न मुआवजा की।

गौरतलब है कि नौ महीने पहले राज्य के बागी साहित्यकार  पुलिस अफसर  पुलिस उपाधीक्षक नजरुल इस्लाम ने राज्य के गृह सचिव वासुदेव बंद्योपाध्याय को लंबी चिट्ठी लिखकर चिटफंड कंपनियों के गोरखधंधे का खुलासा करते हुए राज्य सरकार से तत्काल कदम उठाने की मांग​ ​ की थी। लेकिन उस चिट्ठी के बाद भी विवादास्पद शारदा कंपनी के अखबारों की लांचिंग पर मुख्यमंत्री समेत तृणमूल के सांसद और मंत्री ​​देखे गये। भाकायदा सार्वजनिक सभाओं में मंत्री और सांसद इस कंपनी को कुल्ला सर्टिफिकेट देते रहे। कंपनी की ओर से स्वास्थ्य कार्यक्रम का भी उद्घाटनमुख्यमंत्री ने स्वंय किया।जबकि इस कंपनी ने अपने ब्रांड एंबेसेडर के तौर पर शताब्दी राय के नाम का इस्तेमाल किया।इन ​​विस्फोटक तथ्यों के आलोक में दीदी का गुस्सा कितना जायज है. यह तो जनता तय करेगी। मालूम हो कि लोगों को एक बकाया खास तौर ​​पर याद है , जबकि राज्य सरकार ने राज्य के लोकप्रिय बहुप्रसारित  अखबारों को सरकारी पुस्तकालयों में निषिद्ध करके चिटफंड कंपनियों​ ​ के अखबारों को अनिवार्य पाठ्य बना दिया था। अब तो चर्चा यह भी जोरों पर है कि चिटफंड कंपनी के बंद अखबारों के कर्मचारियों की ​​छंटनी के बाद इनअखबारों को एक अत्यंत प्रभावशाली , केंद्र में पूर्व मंत्री चलाने वाले है। ताजा परिस्थितियों के कारण अब ऐसा हो पायेगा कि नहीं, बताया नहीं जा सता। पर इन अखबारों से जुड़े जो लोग दुबारा नौकरी पर बहाल होने की उम्मीद कर रहे थे, ताजा प्रकरण ने शायद उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

बहरहाल चिटफंड कंपनी के डूब जाने पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उच्च स्तरीय जांच का आदेश दिया और इसके लिए विशेष जांच दल बनाया।राइटर्स बिल्डिंग में उच्च स्तरीय बैठक के बाद ममता ने संवाददाताओं से कहा कि पुलिस महानिदेशक की अगुवाई में एसआईटी मामले की जांच करेगी और यह जांच जांच आयोग कानून के तहत की जाएगी।मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि चिटफंड कंपनियों के संचालन को प्रतिबंधित करने के लिए सख्त अध्यादेश के लिए मसौदा तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि रविवार को जब राष्ट्रपति ने उनकी तबीयत के बारे में जानने के लिए उन्हें फोन किया था तब उन्होंने उनसे कहा था कि चिटफंड कंपनियों के संचालन को प्रतिबंधित करने के लिए पिछली वाममोर्चा सरकार द्वारा पारित विधेयक लौटाया जाए ताकि राज्य सरकार ऐसी अवैध गतिविधियों से निबटने के लिए उसमें कड़े प्रावधान शामिल कर सके।

उन्होंने कहा, ''वर्ष 2009 में वाममोर्चा सरकार द्वारा अग्रसारित विधेयक यदि 24 घंटे के अंदर लौटाया जाता है तो हमारी सरकार तत्काल अध्यायदेश की उद्घोषणा कर देगी।''

ममता ने आरोप लगाया कि वाममोर्चा सरकार ने जो कानून प्रस्तावित किया था, उसमें कुछ गड़बड़ियां है और चिटफंड कंपनियां उसके ही शासनकाल में फली फूलीं।''

उन्होंने कहा कि चिटफंड की अवैध गतिविधियों पर अंकुश पाने के लिए कड़े कानून जरूरी हैं और चूंकि उनका संचालन केंद्रीय कानूनों द्वारा शासित है न कि राज्य सरकार द्वारा, ऐसे में जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर आती है।

स्थिति पर चिंता जताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ''पिछले कुछ साल से कुछ चिटफंड कंपनियां गरीब निवेशकों को हाई रिटर्न का वादा कर उन्हें ठग रही हैं।'' शारदा प्रकरण से हजारों निवेशकों पर गंभीर असर पड़ा है। उन्होंने कहा, ''मैं बहुत सख्त हूं और यदि केंद्र पिछली वाममोर्चा सरकार द्वारा अग्रसारित कानून हमें 24 घंटे के अंदर लौटा देता है तो हम देखेंगे कि यह धन कैसे निवेशकों को लौटाया जा सकता है।''

ममता ने कहा नए कानून में संपत्ति जब्त करने, निरीक्षण, तलाशी आदि के लिए प्रावधान होंगे ताकि गरीब निवेशकों को उनका पैसा वापस मिले। उन्होंने कहा कि विधाननगर थाने, सीआईडी और कोलकाता पुलिस ने शारदा ग्रुप के अध्यक्ष सुदीप्त सेन को गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन वह भाग गया।

जब ममता से पूछा गया कि क्या उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस शारदा ग्रुप के साथ कथित संबंधों को लेकर दो सांसदों के खिलाफ कार्रवाई करेगी, उन्होंने कहा, ''जब वे वहां थे, तब वे सांसद नहीं थे। कानून अपना काम करेगा। हमारी सरकार पारदर्शी हैं। यदि कोई अपराध करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।'' उन्होंने कहा कि कई पूर्व माकपा मंत्रियों एवं कई पत्रकारों के खिलाफ भी जांच की जा रही है।

ममता ने शारदा ग्रुप मीडिया सीईओ पद से इस्तीफा देने वाले राज्यसभा सदस्य कुणाल का नाम लिए बगैर कहा, '''यदि सांसद ने गलत किया है तो कानून अपना काम करेगा।'' एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा, ''मुझे नहीं मालूम कि उन्होंने निवेशकों से कितना धन एकत्र किया है, चाहे वह 1000 करोड़ है या एक लाख करोड़। लेकिन हमें इस विषय पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।'